Autobiography of Book Essay In Hindi | पुस्तक की आत्मकथा पर निबन्ध

Autobiography of Book Essay In Hindi | पुस्तक की आत्मकथा पर निबन्ध
पुस्तक की आत्मकथा संकेत बिंदु:

  • मेरा नाम
  • मेरा स्वरूप
  • मेरे भीतर की सामग्री
  • मेरी इच्छा

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

पुस्तक की आत्मकथा पर निबन्ध | Essay on Autobiography of Book In Hindi

मैं पुस्तक हूँ। मेरा नाम ‘फुलवारी गीत’ है। जिस प्रकार फुलवारी में भाँति-भाँति के फूल होते हैं उसी प्रकार मेरे पृष्ठों पर भाँति-भाँति के गीत अंकित हैं। प्रत्येक गीत के भावों के अनुसार रंग-बिरंगे चित्र भी बने हुए हैं। इन चित्रों के कारण मेरा रूप इतना आकर्षक हो गया है कि नन्हें-मुन्ने बालक और बालिकाएँ मुझे अपने हृदय से लगाए रखते हैं।

मुझमें नन्हें बालक-बालिकाओं को आकर्षित करने की अद्भुत क्षमता है। मैं जब उनके हाथों में पहुँच जाती हूँ तो वे मेरे गीतों को गाने लगते हैं। वे उन्हें इतने मधुर स्वर में गाते हैं कि मैं भी अपनी सुध-बुध खो देती हूँ। मैं कई स्कूलों की यात्रा करती रहती हूँ। राजधानी दिल्ली ही नहीं मैंने तो पंजाब, चंडीगढ. हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और दक्षिण भारत के केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश तक अनेक प्रांत देख लिए हैं।

अध्यापिकाएँ मुझे हाथ में लेकर गाती हैं। उनके साथ छोटे-छोटे बच्चे अपने मधुर स्वर में गाते हैं। वे मेरा एक-एक पृष्ठ उलटकर उन्हें चित्र दिखाती हैं। इन चित्रों में चूहा, पैंट, कमीज़ और टाई बाँधकर पढ़ने जाता है। मेंढक टर्र-टर्र करके पढ़ने का संदेश देता है। वह कहता है-

मेंढक बोला टर-टर-टर, जल्दी-जल्दी पुस्तक पढ़।
न कर झगड़ा और न लड़, सबके मन में खुशियाँ भर।

इतना ही नहीं मेरे पृष्ठों में चंदा मामा है, शेर है, हाथी है, गेंद है, दूल्हा है, बिल्ली है, बादल और बिजली भी है। मेरे पृष्ठों पर बना भालूवाला डुगडुगी बजाकर भालू का तमाशा दिखाता है। पों-पों करती मोटर है। ऐसी सुंदर मोटर को देखकर सब उसमें बैठने के लिए दौड़ पड़ते हैं-

पों-पों करती मोटर आई, सबने कसकर दौड़ लगाई,
भीड़-भड़क्का, धक्कम-मुक्का, सबको सीट नहीं मिल पाई।

मेरा ऐसा सुंदर रूप एक दिन में नहीं बना। सबसे पहले कवि ने खूब सोचा। खूब सोचा। उन्होंने सोच-विचारकर गीत लिखे। फिर चित्रकार ने उन गीतों के अनुसार चित्र बनाए। इन गीतों और चित्रों को कंप्यूटर में डाला गया। मेरा आकार निश्चित किया गया। उतने आकार के कागज़ काटे गए। फिर छापेखाने में इन कागज़ों पर गीतों और चित्रों को छापा गया। वहाँ से इन्हें जिल्दसाज़ के पास लाया गया।

उसने गीतों को क्रम से लगाकर बाँध दिया। सबसे ऊपर आकर्षक कवर लगाया गया। इस पर मेरा नाम लिखा गया-फुलवारी गीत। इसके नीचे इन गीतों के रचयिता कवि का नाम लिखा गया। मुझे यह रूप जानते हैं किसके कारण मिला? मुझे यह रूप ‘प्रकाशक’ ने दिया। उसकी भाग-दौड़ के कारण मुझे इतना भव्य रूप तो मिला ही, उसने मुझे अलग-अलग नगरों के स्कूलों तक पहुँचाया। उनके कारण ही मैं देश भर के छोटे-छोटे बच्चों के हाथों में पहुंची। मेरी हार्दिक इच्छा है कि मैं देश भर के सभी बच्चों तक पहुँचूँ। सभी बच्चे मेरे पृष्ठों पर अंकित गीतों को अपने मधुर स्वरों में गाएँ। वे गाते हैं तो मेरे पृष्ठों पर बनी मछली पानी में तैरने लगती है। चुहिया बिल्ली को देखकर बिल में घुस जाती है। गुड़िया नाचने लगती है। हवा फर-फर चलने लगती है। बंदर बाल काटते समय भयभीत हो जाता है। आसमान में टिमटिमाते तारे अपने पास बुलाने लगते हैं। मछली हाथों से फिसल जाती है।

जल में तैरे छम-छम मछली,
उछले कूदे धम-धम मछली,
हाथ नहीं है आती मछली,
झट से फिसल है जाती मछली।

मैं बहुत सुंदर हूँ। मुझे अपनी सुंदरता पर घमंड नहीं है। मैं तो चाहती हूँ सभी पुस्तकें मेरी तरह ही सुंदर हों। उनमें रंग-बिरंगे चित्र हों। उन्हें देखकर बच्चे आनंद से झूम उठे। जिस दिन ऐसा हो जाएगा वह दिन मेरे जीवन का सबसे सुंदर दिन होगा।

Essay on Autobiography of Book In Hindi