विज्ञान के गुण और दोष पर निबंध – Advantages And Disadvantages Of Science Essay In Hindi

विज्ञान के गुण और दोष पर निबंध – (Essay On Advantages And Disadvantages Of Science In Hindi)

विज्ञान वरदान या अभिशाप – Science Boon Or Curse

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • विज्ञान की प्रगति,
  • विज्ञान का वरदानी स्वरूप,
  • विज्ञान अभिशाप के रूप में,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

विज्ञान के गुण और दोष पर निबंध – Vigyaan Ke Gun Aur Dosh Par Nibandh

प्रस्तावना–
सेवक बनकर वरदायी जो, स्वामी बनकर है अभिशाप।

नर का ही उपयोग ज्ञान को, पुण्य बनाता या फिर पाप।। एक ही वस्तु एक पक्ष से देखने पर वरदान प्रतीत होती है और वही दूसरे पक्ष से देखने पर अभिशाप प्रतीत होती है। औषधि के रूप में जो विष जीवन–रक्षक है, वही विष के रूप में प्राणघातक है।

एक ही लोहे से, बधिक की तलवार और शल्य–चिकित्सक की छुरी बनती है किन्तु इसमें विष या लोहे को दोषी नहीं बताया जा सकता। ज्ञान का उपयोग ही उसके परिणाम को निश्चित करता है। विज्ञान भी विशिष्ट और क्रमबद्ध ज्ञान ही है। हम चाहें तो इसे सत्य, शिव और सुन्दर की अर्चना बना दें और चाहें तो उसे महाविनाश, अमंगल और कुरूपता का उपकरण बना दें।

विज्ञान की प्रगति–
यों तो सृष्टि के आदि से मानव ज्ञान–विस्तार में प्रवृत्त है किन्तु उन्नीसवीं और बीसी सदियाँ तो विज्ञान की चरमोन्नति के काल रहे हैं। आज इक्कीसवीं सदी भी विज्ञान के सृष्टि विजयी रथ को और तीव्रता से दौड़ाने में पीछे नहीं है।

जीवन पर विज्ञान के अनन्त उपकार हैं। ऐसा कौन–सा क्षेत्र है जिसे विज्ञान ने अपने उपकारों से कृतज्ञ न बनाया हो ? ऐसा कौन–सा अभागा देश है जो यन्त्रों के घर्घर नाद से न गूंज रहा हो ? सुई से लेकर अन्तरिक्ष यान तक में विज्ञान की महिमा का गान हो रहा है।

विज्ञान का वरदानी स्वरूप–आज विज्ञान मानव–जीवन के लिए हर मनोकामना की पूर्ति करने वाला कल्पवृक्ष बना हुआ है। विज्ञान ने मानव को प्रकृति पर निर्भरता से मुक्त करके उसे अकल्पनीय सुख–सुविधाएँ और सुरक्षा उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण योगदान किया है।

  1. कृषि क्षेत्र–रासायनिक खादों, उन्नत बीजों, कृषि–यन्त्रों, बाँधों, नहरों और कृत्रिम वर्षा की सौगात देकर विज्ञान मानव के कृषि–भण्डार को भर रहा है। वहीं नाना प्रकार की गृह–निर्माण सामग्री और शिल्पीय ज्ञान से मानव के विलास–भवनों की रचना कर रहा है। वही मानव तन को मनमोहक कृत्रिम और पम्परागत वस्त्रों से अलंकृत कर रहा है।
  2. चिकित्सा क्षेत्र–क्षय, कैंसर, कुष्ठ तथा एड्स जैसे घृणित रोगों पर विजय पाने में यह संघर्षरत है। जीन से लेकर क्लोन बनाने तक की मंजिल तय करके वह जीवन के रहस्य को ढूँढ़ रहा है। प्लास्टिक सर्जरी से कुरूपों को सुरूपता दे रहा है। मस्तिष्क, हृदय और गुर्दो को प्रत्यारोपित कर रहा है। अमरता की मंजिल को प्रशस्त कर रहा है।
  3. विद्युत एवं परिवहन क्षेत्र–भीमकाय यन्त्रों को उसी की विद्युत–शक्ति घुमा रही है। वही जल, थल, नभ में नाना प्रकार के वाहनों से दौड़ लगवा रहा है। वही अन्तरिक्ष और ब्रह्माण्ड के कुँआरे पथों को नाप रहा है।
  4. संचार का क्षेत्र–रेडियो, मोबाइल फोन, टेलीफोन, टेलीविजन और इण्टरनेट जैसे उपकरणों से उसने सारे विश्व को सिकोड़कर छोटा कर डाला है। रेडियो–दूरबीनों से यह ब्रह्माण्ड की छानबीन कर रहा है, वसुन्धरा के गर्भ में झाँक रहा है, सागरों के अतल तल को माप रहा है।
  5. मनोरंजन तथा व्यवसाय का क्षेत्र–मनोरंजन के अनेक साधनों के साथ व्यापार के क्षेत्र में भी उसने ई–मेल, ई–बैंकिंग जैसे साधन उपलब्ध कराये हैं।

विज्ञान अभिशाप के रूप में विज्ञान की उपर्युक्त वरदानी छवि के पीछे उसका अभिशापी चेहरा भी छिपा हुआ है। विज्ञान द्वारा आविष्कृत अस्त्र–शस्त्रों ने ही बस्तियों को श्मशान में बदला है।

हिरोशिमा और नागासाकी जैसे नगरों को विश्व के मानचित्र से मिटाने का श्रेय भी विज्ञान को ही जाता है। विज्ञान ने मनुष्य को घोर भौतिकवादी बनाकर उसके श्रेष्ठ जीवन मूल्यों को पददलित कराया है। विज्ञान की कृपा से ही आज का यह जगमगाता प्रगतिशील विश्व बारूद के ढेर पर बैठा हुआ है।

उपसंहार–
कवि दिनकर ने विज्ञान की विभूति पर इठलाने वाले आज के मानव को सावधान किया है सावधान मनुष्य यदि विज्ञान है तलवार, तो इसे दे फेंक, तजकर मोह, स्मृति के पार। हो चुका है सिद्ध, है तू शिशु अभी नादान, फूल काँटों की तुझे, कुछ भी नहीं पहचान।

वस्तुतः विज्ञान न वरदान है न अभिशाप। मनुष्य की उपयोग–बुद्धि ही उसके स्वरूप की निर्णायक है। अत: मनुष्य जाति का कल्याण इसी में है कि वह विज्ञान को अपना स्वामी न बनाकर उसे सेवक की भूमिका तक ही सीमित रखे।