मिलावटी खाद्य पदार्थ और स्वास्थ्य पर निबंध – Essay On Adulterated Foods And Health In Hindi
रूपरेखा–
- प्रस्तावना,
- मिलावट की व्यापक प्रवृत्ति,
- शिथिल दण्ड व्यवस्था,
- मिलावटखोरी और स्वास्थ्य,
- उपसंहार।
साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।
मिलावटी खाद्य पदार्थ और स्वास्थ्य पर निबंध – Milaavatee Khaady Padaarth Aur Svaasthy Par Nibandh
प्रस्तावना–
भारत एक तेजी से विकसित होती हुई अर्थव्यवस्था वाला देश है। हर क्षेत्र में विकास के नये–नये प्रतिमान स्थापित हो रहे हैं। आज भारत के कई उद्योगपति विश्व की धनवानों की सूची में चौथे और पाँचवें स्थान पर अंकित किये जा रहे हैं। भारतीय मूल के कई उद्योगपतियों ने विश्व व्यवसाय जगत् में अपना उच्चतम नाम अंकित करवा दिया है।
हमारे यहाँ के उद्योगपति विश्व के अनेक धनवान देशों की बीमार औद्योगिक इकाइयों का अधिग्रहण कर चुके हैं। यह परिदृश्य हमारे यहाँ के छोटे छोटे व्यापारियों को मिलावट, कम तौलना या नकली माल बेचकर ग्राहकों को धोखा देने को प्रेरित कर रहा समय में और बिना परिश्रम किए सफलता पाने का विचार भारतीयों में घर कर चुका है। व्यापारी भी आनन– फानन में लखपति और करोड़पति बनने के लिए मिलावट करना बुरा नहीं समझता।
मिलावट की व्यापक प्रवृत्ति–
भारत में आज कोई भी वस्तु शुद्ध नहीं मिलती। प्रत्येक वस्तु में किसी–न–किसी वस्तु की मिलावट पाई जाती है। कहते हैं एक व्यक्ति आत्महत्या के उद्देश्य से बाजार से जहर ले आया। जहर खाने के बाद वह मरा नहीं क्योंकि जहर मिलावटी था।
फिर बीमारी के इलाज के लिए दवाएँ लाया। दवा खाकर वह मर गया, क्योंकि दवाएँ नकली थीं। यह कहानी मिलावटी और नकली माल के बाजार में भरे होने को प्रमाणित करती है।
आज हर वस्तु नकली तथा मिलावटी मिलती है। दूध में पानी, घी में डालडा या चर्बी, धनिये में घोड़े की लीद, चाय पत्ती में चमड़े की कतरन, काली मिर्च में पपीते के बीज, मसालों में पत्थर का चूरा आदि तो पहले भी मिलाये जाते थे। अब तो रसायनों का प्रयोग करके सिंथेटिक दूध, घी, खोया तथा अन्य खाद्य पदार्थ तैयार किये जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त हानिकारक होते हैं।
थोड़े से डिटर्जेंट, यूरिया, रिफाइन्ड तेल तथा सफेद आयल पेन्ट आदि से नकली दूध बनाने के कारखाने पकड़े जा चुके हैं। कुछ समय पूर्व ही पशुओं की हड्डियों तथा माँस को उबालकर चर्बी निकालने तथा उससे देशी घी बनाने की फैक्ट्री आगरा के झरना नाले के जंगल में पकड़ी जा चुकी है। एक पुरानी हिन्दी फिल्म ‘नील कमल’ में अभिनेता महमूद के गाये हुए गीत से मिलावट की व्यापकता प्रमाणित होती है-
ना जाने किस चीज में क्या हो? गरम मसाला लीद भरा हो।
मिलावटी तथा नकली माल बेचकर शीघ्र ही धनी बने लोगों से समाज यह नहीं पूछता कि वे इतनी जल्दी अमीर कैसे बन गए? समाज उल्टे उनको धर्मवीर मानकर सम्मानित करता है।
इस तरह अप्रत्यक्ष रूप से उनके मिलावटी और नकली माल बेचने के दुष्कर्म को सामाजिक मान्यता प्राप्त हो जाती है। धर्म के पीछे विवेकहीन होकर हम सच्चाई को जानने की कोशिश ही नहीं करते और समाज का शोषण जारी रहता है।
शिथिल दण्ड व्यवस्था–
समाज की तरह ही सरकार भी मिलावटखोरों का साथ देती है। मिलावट तथा नकली माल के विरुद्ध कानून अत्यन्त ढीला है। यदि कानून है भी तो उसका पालन नहीं कराया जाता। व्यापारी रिश्वत देकर स्वयं को बचा लेता है। पहले तो मिलावट पकड़ी ही नहीं जाती।
यदि पकड़ी भी जाय तो सिद्ध नहीं हो पाती। मिलावटी माल की जाँच करने वाली प्रयोगशालायें बहुत कम हैं। जो हैं भी उनमें काम नहीं होता। नमूने महीनों–वर्षों पड़े–पड़े खराब हो जाते हैं तथा फिर उनसे किसी निष्कर्ष पर पहुँचा ही नहीं जा पाता। न्यायालय में वकील के तर्क मामलों को और उलझा देते हैं। तब शिकायतकर्ता को लगता है कि दोषी मिलावटखोर नहीं है, मिलावट की शिकायत करने वाला वह स्वयं दोषी है।।
मिलावटखोरी और स्वास्थ्य–
खाद्य पदार्थों में मिलावट तो बहुत ही निन्दनीय है। अशुद्ध खाद्य पदार्थ लोगों के स्वास्थ्य को हानि पहुँचाते हैं। कुछ चीजें तो मनुष्य को गम्भीर रूप से बीमार कर देती हैं। कभी–कभी वह जीवनभर ठीक न होने वाली बीमारी का शिकार हो जाता है। रही–सही कसर नकली और मिलावटी दवाएँ पूरा कर रही हैं।
उपसंहार–
मिलावट करने तथा नकली माल बेचने की समस्या दिन–प्रतिदिन जटिल होती जा रही है। अब तो प्रत्येक वस्तु नकली बनाई जाती है तथा उसका एक बड़ा बाजार बन चुका है। नेता, अफसर, व्यापारी और कर्मचारियों का गठजोड़ मिलकर जनता को लूट रहा है।
जनता स्वयं सजग नहीं है। जनता की असावधानी भी इस बुराई के फैलने का एक कारण है। उपभोक्ता फोरम आदि संस्थायें उपभोक्ताओं के हित के लिए बनी हैं परन्तु वे तभी अपना कार्य कर सकती हैं, जब जनता भी इसमें उनकी मदद करे।