रहीम के दोहे Class 6 Saransh in Hindi
Rahim Ke Dohe Class 6 Summary
रहीम के दोहे दोहों का सारांश
हमारी पाठ्यपुस्तक में रहीम के सात दोहे संकलित हैं। ये सभी दोहे नीतिपरक हैं। इन दोनों में सामान्य जीवन की सफलता के लिए नीतिपूर्ण कथन है।
पहले दोहे में कवि छोटी चीज का महत्व प्रतिपादित करता है। वह कहता है कि प्रत्येक छोटी चीज का अपना महत्त्व होता है। अत: बड़ी चीज को देखकर हमें छोटी चीज का ऐसे ही नहीं डाल देना चाहिए। वे उदाहरण देकर बताते है कि जहाँ सुई काम आती है, वहाँ तलवार बेकार हो जाती है।
दूसरे दोहे में कवि रहीम ने परोपकार का महत्त्व बनाया हैं जिस प्रकार वृक्ष स्वयं फल न खाकर हमें खाने को फल देते हैं और नदी स्वयं पानी न पीकर हमें पीने के लिए जल देती है, उसी प्रकार सज्ज़न व्यक्ति दूसरों के काम आने के लिए ही अपनी संपत्ति (धन-दौलत) का संग्रह करते हैं।
तीसरे दोहे में रहीम प्रेम का महत्त्व बताते हैं। प्रेम एक नाजुक धागे के समान होता है। इसे झटके के साथ नहीं तोड़ना चाहिए। यदि एक बार प्रेम का धागा टूट’जाता है तब यह पुन: पहली स्थिति में नहीं आ पाता। यदि जुड़ भी जाए तो भी इसमें गाँठ पड़ जाती है।
चौथे दोहे में रहीम अपना मान-सम्मान बनाए रखने की सीख देते हैं। इसे ‘पानी’ के माध्यम से प्रकट करते हैं। पानी (मान-सम्मान) के बिना सभी कुछ व्यर्थ है। उदाहरण देते हैं कि पानी से मोती, मनुष्य, आटे की उपयोगिता बनी रहती है।
पाँचवें दोहे में कवि मित्रता की कसौटी विपत्ति को बताते हैं। यदि विपत्ति थोड़े दिनों के लिए आए तो यह अच्छी ही होती है क्योंकि इससे लोगों की परख हो जाती है कि कौन हमारा भला चाहता है और कौन बुरा।
छठे दोहे में रहीम ने जीभ के बारे में बताया है कि यह बड़ी बॉवली है। यह स्वयं को मुख के भीतर रहती है पर अपनी बुरी बात के लिए हमें पिटवा देती है।
सातवें दोहे में कवि रहीम ने बताया है कि जब आपके पास धन-सम्पति होती है, तब तो सभी लोग आपके साथ अपना रिश्ता जोड़ लेते हैं। विपत्ति के समय ही जो आपका साथ देते हैं, वही सच्चे मित्र होते हैं। विपत्ति तो एक कसौटी के समान है।
रहीम के दोहे कवि परिचय
रहीम का जन्म 16 वीं शताब्दी में हुआ था। वे हिंदी साहित्य के भक्तिकाल के प्रसिद्ध कवि थे। उनके द्वारा रचित दोहे जन-जीवन में आज भी बहुत लोकप्रिय हैं। उन्होंने नीति, भक्ति और प्रेम संबंधी विषयों पर रचनाएँ की है। उन्हें अवधी और ब्रजभाषा दोनों का अच्छा ज्ञान था। वे रामायण, महाभारत के अच्छे जानकार थे। उनकी मृत्यु 17 वीं शताब्दी में हुई। उनका पूरा नाम था-अब्दुर्हीम खानखाना। वे अकबर के दरबार के नवरलों में से एक थे। उन्होंने लगभग 400 दोहों की रचना की।
रहीम के दोहे का हिंदी भावार्थ
Rahim Ke Dohe Class 6 Explanation
1. रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि॥?॥
तरुवर फल नहिं खात हैं सरवर पियहिं न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥२॥
शब्दार्थ : लघु = छोटा (small)। डारि = डाल देना (give up)। तरुवर = पेड़ (tree)। सरवर = सरोवर, तालाब (pond)। पान = पानी (water)। काज = काम (work)। संपत्ति = धन-दौलत (property)। सँचहि = जोड़ना (collection)।
प्रसंग : प्रस्तुत दोहे रहीम द्वारा रचित हैं। इनमें नीतिपरक बातें कही गई हैं।
व्याख्या : पहले दोहे में बताया गया है कि हमें बड़ी चीज को देखकर छोटी चीज को ऐसे ही फेंक नहीं देना चाहिए। छोटी चीज का भी अपना महत्त्व होता है। जहाँ सुई काम आती है, वहाँ तलवार काम नहीं आती।
दूसरे दोहे में परोपकार का महत्त्व बताने के लिए रहीम ने फलदार वृक्ष और सरोवर का उदाहरण दिए हैं। वृक्ष अपने फल स्वयं न खाकर दूसरों को देते हैं। इसी प्रकार सरोवर स्वयं पानी न पीकर हमें प्रदान करता है। इसी प्रकार सज्जन-चतुर व्यक्ति अपनी संपत्ति का संग्रह दूसरों में बाँटने के लिए ही करते हैं।
2. रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय॥३॥
रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून।८।।
शब्दार्थ : परि = पड़ना(become) । सून = सूना (lonely) । मानुष = मनुष्य (man) । चून = आटा (flour) ।
प्रसंग : प्रस्तुत दोहे रहीम द्वारा रचित हैं। इनमें नीतिपरक बातें कही गई हैं।
व्याख्या : रहीम के पहले दोहे में प्रेम के महत्त्व के बारे में बताया गया है। प्रेम का रिश्ता बड़ा नाजुक होता है। इसे छिटका कर या झटक कर नहीं तोड़ना चाहिए। प्रेम एक धागे के समान नाजुक होता है। एक बार टूट जाने पर धागे को नहीं जोड़ा जा सकता। इसी प्रकार एक बार प्रेम के टूट जाने पर इसे पुन: नहीं जोड़ जा सकता। यदि इसे किसी प्रयास से जोड़ भी लिया जाए तो बीच में गाँठ पड़ जाती है। प्रेम भी पहले जैसी बात नहीं आ पाती।
दूसरे दोहे में पानी को कई अर्थों में लिया गया है। पानी के बिना सब कुछ सूना-सूना सा प्रतीत होता है। पानी चला जाना-मान-सम्मान का चला जाना। यदि मनुष्य का पानी (सम्मान) मर जाए तो वह कभी उबर नहीं पाता। इसी प्रकार पानी के बिना मोती में चमक नहीं आ पाती। आटे को उबारने के लिए भी पानी की आवश्यकता होती है। अतः सिद्ध होता है कि पानी का बड़ा महत्व है। पानी शब्द में श्लेष अंलकार है। जब एक शब्द के कई अर्थ निकले तब श्लेष अलंकार होता है।
3. रहिमन बिपदाहू भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥४॥
रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गइ सरग पताल।
आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल॥६॥
कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
बिपति कसौटी जे कसे, ते ही साँचे मीत॥ज॥
शब्दार्थ : विपदा = मुसीबत (trouble)। भली = अच्छी (good)। हित = भला (good ) । अनहित = बुरा (bad)। जगत = संसार (world)। जिह्वा = जीभ (tongue)। बावरी = पागल (mad)। सरग = स्वर्ग (heaven)। कपाल = माथा, खोपड़ी (forehead) । संपत्ति = धन-दौलत (property)। बहुरीत = अनेक तरीकों से (so many ways)। विपत्ति = मुसीबत (trouble)। साँचे = सच्चे (true)। मीत = मित्र (friend)।
प्रसंग : प्रस्तुत दोहे रहीम द्वारा रचित हैं। इनमें नीतिपरक बातें कही गई हैं।
व्याख्या : पहले दोहे में बताया गया है कि विपत्ति तब अच्छी होती है जब यह थोड़े दिनों के लिए ही आती है। इसका कारण यह है कि विपत्ति का म में ही हमें यह पता चल जाता है कि कौन हमारा हितैषी है और कौन बुरा चाहने वाला है।
दूसरे दोहे में जीभ के बारे में बताया गया है। यह जीभ बड़ी बावली है। यही जीभ अच्छा या बुरा बोलती है। यही हमें स्वर्ग दिला देती है और कभी पाताल में भी भेज देती है। यह जीभ स्वयं तो मुँह के अंदर छिपी रहती है और बुरा बोलकर जूती खिलवा देती है अर्थात् अपमानित करवा देती है।
तीसरे दोहे में सच्ची मित्रता की कसौटी बताई गई है। जब तक हमारे पार धन-संपत्ति रहती है तब अनेक लोग अनेक रिश्ते