Class 6 Hindi Malhar Chapter 5 Rahim Ke Dohe Question Answer रहीम के दोहे
रहीम के दोहे Question Answer Class 6
कक्षा 6 हिंदी पाठ 5 रहीम के दोहे पाठ के प्रश्न उत्तर – Rahim Ke Dohe Class 6 Question Answer
पाठ से
मेरी समझ से
(क) नीचे दिए गए प्रश्नों का सबसे सही (सटीक) उत्तर कौन-सा है? उसके सामने तारा (*) बनाइए।
(i) “रहिमन जिहा़ बावरी, कहि गइ सरग पताल। आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल।” दोहे का भाव है
- सोच-समझकर बोलना चाहिए। (*)
- मधुर वाणी में बोलना चाहिए।
- धीरे-धीरे बोलना चाहिए।
- सदा सच बोलना चाहिए।
(ii) “रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि । जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलबारि।” इस दोहे का भाव क्या है?
- तलवार सुई से बड़ी होती है।
- सुई का काम तलवार नहीं का सकती।
- तलवार का महत्च सुई से ज्यादा है।
- प्रत्येक छोटी बड़ी़ चीज का अपना मह त्व होता है। (*)
(ख) अब अपने मित्रों के साथ चर्चा कीजिए और कारण बताइए कि आपने यही उत्तर क्यों चुने?
उत्तर :
कविता में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि हमें सोच-समझकर बोलना चाहिए, क्योकि हमारी जिह्हा (वाणी) बहुत चंचल और बेकाबू होती है और यह बिना सोचे-समझे कुछ भी बोल देती है। यदि हम बिना सोचे-समझे कुछ बोलते है, तो उसका परिणाम अच्छा नहीं होता, जिससे बाद में हमें पछताना पड़ता है। अत: हमें अपनी जीय पर नियंत्रण रखना चाहिए।
दूसरी ओर प्रत्येक छोटी-बड़ी चीज़ का अपना महत्त्व होता है, क्योंकि प्रत्येक वस्तु की अपनी विशेष उपयोगिता और कार्य होता है, जो अन्य कोई चीज़ पूरी नहीं कर सकती। जिस प्रकार सुई का काम तलवार नहीं कर सकती और तलवार का काम सुई नहीं कर सकती, उसी प्रकार प्रत्येक चीज़ का एक अद्वितीय स्थान और महत्व होता है। हमें किसी मी वस्तु या व्यक्ति को उसके छोटे या बड़े आकार के आधार पर नहीं आँकना चाहिए।
मिलकर करें मिलान
पाठ में से कुछ दोहे स्तंभ 1 में दिए गए हैं और उनके भाव स्तंभ 2 में दिए गए हैं। अपने समूह में इन पर्चर्चा कीजिए और रेखा खींचकर सही भाव से मिलान कीजिए।
स्तंभ 1 | स्तंभ 2 |
1. रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय। टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परिजाय।। |
(i) सज्जन परहित के लिए ही संपत्ति संचित करते हैं। |
2. कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत। बिपति कसौटी जे कसे, ते ही साँचे मीत।। |
(ii) सच्चे मित्र विपत्ति या विपदा में भी साथ रहते हैं। |
3. तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर पियहिं न पान। कहि रहीम पर काज हित, संपत्ति सँचहि सुजान। |
(iii) प्रेम या रिश्तों को सहेजकर रखना चाहिए। |
उत्तर :
स्तंभ 1 | स्तंभ 2 |
1. रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय। टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परिजाय।। |
(iii) प्रेम या रिश्तों को सहेजकर रखना चाहिए। |
2. कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत। बिपति कसौटी जे कसे, ते ही साँचे मीत।। |
(i) सज्जन परहित के लिए ही संपत्ति संचित करते हैं। |
3. तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर पियहिं न पान। कहि रहीम पर काज हित, संपत्ति सँचहि सुजान। |
(ii) सच्चे मित्र विपत्ति या विपदा में भी साथ रहते हैं। |
पंक्तियों पर चर्चा
नीचे दिए गए दोहों पर समूह में चर्चा कीजिए और उनके अर्थ या भावार्थ अपनी लेखन पुस्तिका में लिखिए
(क) “रहिमन बिपदाहू भरी, जो थोरे दिन हो।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय।।”
उत्तर :
भावार्थ रहीमदास इस दोहे में विपत्ति (कठिनाई) में सही पहचान करने के महत्त्व को उजागर करते हैं। उसका कहना है कि यदि विपत्ति कुछ समय के लिए होती है तो वह भी अच्छी है, क्योंकि यही वह समय होता है, जब हम अपने सच्चे मित्रों की पहचान कर पाते है।
कठिन समय में जो लोग हमारा साथ देते है, वे ही हमारे सच्चे हितैषी होते हैं, जबकि जो लोग हमें कठिन परिस्थितियों में छोड़ देते हैं, वे हमारे लिए अहितकर हैं और हमें उनसे दूर रहना चाहिए। अत:
विपत्ति हमे जीवन में सही और गलत लोगों की पहचान करने का अवसर देती है।
(ख) “रहिमन जिद्धा बावरी, कहि गइ सरग पताल
आप तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल।।”
उत्तर :
भावार्थ रहीमदास जी कहते हैं कि हमारी जिह्डा (वाणी) बहुत चंचल और बेकाबू होती है। यह बिना सोचे-समझे कुछ भी बोल देती है, जिसके परिणामस्वरूप या तो स्वर्ग या नर्क का सामना करना पड़ता है। ये जिहा उल्टा-सीधा कहकर स्वयं तो आराम से अंदर चली जाती है, लेकिन उसका परिणाम सिर को जूतों की मार खाकर भुगतना पड़ता है। अत: हमें अपनी जीभ पर नियंत्रण रखना चाहिए और जो भी बोले, उसे सोच-समझकर बोलना चाहिए।
सोच-विचार के लिए
दोहों को एक बार फिर से पढ़िए और निम्नलिखित के बारे में पता लगाकर अपनी लेखन पुस्तिका में लिखिए।
1. रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।।
(क) इस दोहे में ‘मिले’ के स्थान पर ‘जुड़े’ और ‘छिटकाय’ के स्थान पर ‘चटकाय’ शब्द का प्रयोग भी लोक में प्रचलित है, जैसे-
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाय।।
इसी प्रकार पहले दोहे में ‘डारि’ के स्थान पर ‘डार’, ‘तलवारि’ के स्थान पर तरवार’ और चौथे दोहे में ‘मानुस’ के स्थान पर ‘मानस’ का उपयोग भी प्रचलित है। ऐसा क्यों होता है?
उत्तर :
(क) दोहों में ‘मिले’ के स्थान पर ‘जुड़े’, ‘छिटकाय’ के स्थान पर ‘चटकाय’ और इसी तरह ‘डारि’ के स्थान पर ‘डार’, ‘तलवारि’ के स्थान पर ‘तरवार’ तथा ‘मानुष’ के स्थान पर ‘मानस’ का उपयोग भाषा के क्षेत्रीय और सांस्कृतिक विविधताओं के कारण होता है। अलग-अलग क्षेत्रों में बोलचाल और उच्चारण का तरीका भिन्न होता है, जिससे शब्दों में परिवर्तन आ जाता है। इस प्रकार की विविधता भाषा की समृद्धि का प्रतीक है और यही कारण है कि एक ही दोहा या कविता में अलग-अलग शब्दों का प्रयोग देखा जाता है। कविता में लोक प्रचलित शब्दों का प्रयोग अवश्य होता है, मले ही ये शब्द अलग-अलग होते हैं, लेकिन उनका भावार्थ एक ही रहता है। इसके अतिरिक्त सरलता और लय बनाए रखने के लिए भी लोकभाषां में ऐसे परिवर्तन होते हैं।
(ख) इस दोहे में प्रेम के उदाहरण में धागे का प्रयोग ही क्यों किया गया है? क्या आप धागे के स्थान पर कोई अन्य उदाहरण सुझा सकते हैं? अपने सुझाव का कारण भी बताइए।
उत्तर :
धागे का प्रयोग प्रेम के प्रतीक के रूप में इसलिए किया गया है, क्योंकि धागा एक कोमल और संवेदनशील वस्तु है, जिसे जरा-सा झटका देने पर भी वह टूट सकता है। उसी प्रकार प्रेम भी एक नाजुक बंधन है, जिसे यदि सख्ती से या बिना विचार किए झटका दिया जाए तो वह टूट सकता है। टूटने के बाद, जैसे धागे में गाँठ पड़ जाती है, वैसे ही रिश्तों में भी दरार आने पर उसे फिर से जोड़ना मुश्किल होता है और जुड़ने पर उसमें हमेशा एक खटास या गाँठ बनी रहती है। इसीलिए प्रेम के उदाहरण में धागे का प्रयोग किया गया है।
हाँ धागे के स्थान पर काँच का उदाहरण भी दिया जा सकता है, क्योंकि काँच भी धागे की तरह नाजुक होता है और उसे सँभालकर रखने की आवश्यकता होती है, जैसे प्रेम के रिश्ते को सँभालकर रखना पड़ता है। अतः प्रेम एक काँच की तरह होता है, जिसे अगर तोड़ा जाए, तो वह टूटकर बिखर जाता है और फिर उसे जोड़ने की कोशिश करने पर भी दरारें बनी रहती हैं।
2. “तरूवर फल नहिं खात हैं, सरवर पियहिं न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान।।”
इस दोहे में प्रकृति के माध्यम से मनुष्य के किस मानवीय गुण की बात की गई है? प्रकृति से हम और क्या-क्या सीख सकते है?
उत्तर :
प्रस्तुत दोहे में रहीम ने परोपकार जैसे मानवीय गुणों की बात की गई है; जैसे-वृक्ष फल नहीं खाते और सरोवर अपना पानी स्वयं नहीं पीते, वैसे ही सज्जन व्यक्ति अपनी संपत्ति को केवल अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों की भलाई कै लिए संचय करते हैं। यह दोहा इस बात को स्पष्ट करता है कि हमें अपनी संपत्ति, ज्ञान और संसाधनों का उपयोग दूसरों की सहायता के लिए करना चाहिए, न कि केवल स्वार्थपूर्ण उद्देश्यों के लिए।
प्रकृति से सीखने योग्य अन्य गुण
सहिष्णुता और धैर्य जिस प्रकार पृथ्वी धैर्यपूर्वक सभी प्रकार के बीजों को धारण करती है और उन्हें फसल में बदल देती है, उसी प्रकार हमें धैर्य और सहिष्युता का गुण अपनाना चाहिए।
निरंतरता और अविरलता नदी का प्रवाह निरंतर चलता रहता है, चाहे कितनी भी बाधाएँ क्यों न आएँ। इससे हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में हमें भी निरंतर चलते रहना चाहिए।
सहनंशीलता और विनम्रता जैसे वृक्ष फल से लदे होने पर हुक जाते हैं, वैसे ही हमें भी ज्ञान और धन से संपन्न होने पर विनम्र और सहनशील होना चाहिए।
सभी के साथ समानता का व्यवहार करना जैसे सूर्य बिना किसी भेदभाव के सभी को प्रकाश देता है, वैसे ही हमें भी बिना किसी भेदभाव के सबके प्रति उदारता और प्रेम का व्यवहार करना चाहिए।
शब्दों की बात
हमने शब्दों के नए-नए रूप जाने और समझे। अब कुछ करके देखें
शब्द-संपदा :
कविता में आए कुछ शब्द नीचे दिए गए हैं। इन शब्दों को आपकी मातृभाषा में क्या कहते हैं? लिखिए।
उत्तर :
कविता में आए शब्द | मातृभाषा में समानार्थक शब्द |
तरुवर | वृक्ष, पेड़ |
बिपति | विपत्ति, संकट |
छिटकाय | चटकाय, झटके से तोड़ना, दूटना |
सुजान | सज्जन, ज्ञानी |
सरवर | तालाब, जलाशय |
साँचे | सच्चे, वास्तविक |
कपाल | सिर, मस्तक |
शब्द एक अर्थ अनेक
“रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून।।”
इस दोहे में ‘पानी’ शब्द के तीन अर्थ हैं-सम्मान, जल, चमक। इसी प्रकार कुछ शब्द नीचे दिए गए हैं। आप भी इन शब्दों के तीन-तीन अर्थ लिखिए। आप इस कार्य में शब्दकोश, इंटरनेट, शिक्षक या अभिभावकों की सहायता भी ले सकते हैं।
कल यंत्र या मशीन, समय (जैसे-कल का दिन), मधुर ध्वनि
(जैसे-कल-कल की आवाज)
पत्र चिट्ठी, पता, समाचार पत्र
कर हाथ, टैक्स, करना
फल फल (जैसे-आम, केला), परिणाम (जैसे-कर्म का फल), तीर का अगला हिस्सा
पाठ से आगे
आपकी बात
रहिंमन देखिं बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि।।
इस दोहे का भाव है-न कोई बड़ा है और न ही कोई छोटा है। सबके अपने-अपने काम हैं, सबकी अपनी-अपनी उपयोगिता और महत्ता है। चाहे हाथी हो या चींटी, तलवार हो या सुई, सबके अपने-अपने आकार-प्रकार हैं और सबकी अपनी-अपनी उपयोगिता और महत्त्व है। सिलाई का काम सुई से ही किया जा सकता है, तलवार से नहीं। सुई जोड़ने का काम करती है, जबकि तलवार काटने का। कोई वस्तु हो या व्यक्ति, छोटा हो या बड़ा, सबका सम्मान करना चाहिए।
अपने मनपसंद दोहे को इस तरह की शैली में अपने शब्दों में लिखिए। दोहा पाठ से या पाठ से बाहर का हो सकता है।
उत्तर छात्र स्वयं करें।
सरगम
रहीम, कबीर, तुलसी, वृंद आदि के दोहे आपने दृश्य-श्रव्य (टी.वी. रेडियो) माध्यमों से कई बार सुने होंगे। कक्षा में आपने दोहे भी बड़े मनोयोग से गाए होंगे। अब बारी है इन दोहों की रिकॉर्डिंग (ऑडियो या विजुअल) की। रिकॉड्डिंग सामान्य मोबाइल से की जा सकती है। इन्हें अपने दोस्तों के साथ समूह में या अकेले गा सकते हैं। यदि संभव हो तो वाद्ययंत्रों के साथ भी गायन करें। रिकॉर्डिंग के बाद दोहे स्वयं भी सुनें और लोगों को भी सुनाएँ।
उत्तर :
छात्र स्वयं करें।
रहीम, वृंद, कबीर, तुलसी, बिहारी आदि के दोहे आज भी जनजीवन में लोकप्रिय हैं। दोहे का प्रयोग लोग अपनी बात पर विशेष ध्यान दिलाने के लिए करते हैं। जब दोहे समाज में इतने लोकप्रिय हैं, तो क्यों न इन दोहों को एकत्र करें और अंत्याक्षरी खेलें। अपने समूह में मिलकर दोहे एकत्र कीजिए। इस कार्य में आप इंटरनेट, पुस्तकालय और अपने शिक्षकों या अभिभावकों की सहायता भी ले सकते हैं।
उत्तर :
छात्र स्वय करें।
आज की पहेली
1. दो अक्षर का मेरा नाम, आता हूँ खाने के काम उल्टा होकर नाच दिखाऊँ, में क्यों अपना नाम बताऊँ।
उत्तर :
चना
2. एक किले के दो ही द्वार, उनमें सैनिक लकड़ीदार टकराएँ जब दीवारों से, जल उठे सारा संसार।
उत्तर :
माचिस
रहीम के दोहे Class 6 Summary Explanation in Hindi
‘रहीम के दोहे’ के रचयिता कवि ‘अब्दुरहीम खानखाना’ हैं। रहीम ने प्रस्तुत दोहों के माध्यम से जीवन के विभिन्न अनुभवों से प्राप्त ज्ञान को सरल और सटीक शब्दों में प्रस्तुत किया है।
- पहले :दोहे में रहीमदास ने छोटी या बड़ी वस्तु अथवा व्यक्ति में भेदभाव न करते हुए प्रत्येक के अपने-अपने महत्त्व की बात कही है।
- दूसरे : दोहे में रहीमदास ने मनुष्य को प्रकृति की तरह स्वार्थरहित व परोपकारी बनने की बात कही है।
- तीसरे : दोहे में प्रेम संबंध को कच्चे धागे के समान बताया है।
- चौथे : दोहे में पानी के महत्त्व को और उसकी उपयोगिता को बताया है।
- पाँचवें : दोहे में रहीम ने विपत्ति के समय सच्चे हितैषी की परख के विषय में बताया है।
- छठे : दोहे में जिह्ना पर काबू रखने की सीख दी है।
- सातवें : दोहे में संपत्ति और विपत्ति के समय मित्र की पहचान करने के विषय में बताया है।
दोहों की विस्तृत व्याख्या
दोहा 1
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि।।
शब्दार्थ : देखि-वेखकर, समझकर, बड़ेन-बड़ों को, लघु-जेटा, मामूली, कम महत्त्वपूर्ण, डारि-अनदेखा या अनादर करना, आवे-आता है, कहा-क्या, तलवारि-तलवार, (एक धारदार शस्त्र)।
संदर्भं : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मल्हार’ में संकलित ‘रहीम के दोहे’ से ली गई है। इसके रचयिता ‘अन्दुर्रहीम खानखाना’ हैं।
प्रसंग : रहीमदास अपने दोहों के माध्यम से जीवन के गहरे सत्य और व्यावहारिकता को सरल शब्दों में अभिव्यक्त करते हैं। इस दोहे में उन्होने छोटी और बड़ी वस्तुओं के महत्त्व को समझाने का प्रयास किया है।
व्याख्या : रहीमदास कहते हैं कि हमें बड़ी या महँगी वस्तु मिलने पर छोटी या सस्ती वस्तु का अनादर नहीं करना चाहिए। प्रत्येक वस्तु का अपना विशिष्ट उपयोग एवं महत्त्व होता है; जैसे-जहाँ सुई की आवश्यकता हो वहाँ तलवार काम नहीं कर स्सकती अर्थात् जहाँ सुई उत्तुओं को सिलकर जोड़ने का काम करती है, वहाँ तलवार वस्तुओं को काटकर अलग करने का काम करती है। दोनों ही एक-दूसरे का कार्य नहीं कर सकते। दोनों का अपना-अपना महत्त्व है। सूक्ष्म और आमूली लगने वाली चीज भी कभी-कभी बड़ी चीज से ज्यादा जरूरी हो जाती है। इसलिए किसी भी वस्तु या व्यक्ति को उसके आकार या मूल्य के आधार पर कम नहीं समझना चाहिए। छोटी वस्तुओं का भी अपने समय और परिस्थिति में उतना ही महत्त्व होता है, जितना कि बड़ी वस्तुओं का होता है।
विशेष :
- प्रस्तुत दोहे में संत रहीम जी ने छोटी-बड़ी वस्तुओं के महत्च्य को बताया है।
- इसमें रहीम ने बहुत ही कम शब्दों में गहरे अर्थ को व्यक्त किया है।
दोहा 2
तरुवर फल नहिं खात हैं सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान्।।
शब्दार्थ : तरुवर-वृक्ष, पेइ, नहिंनहीं, खात-खाते, ग्रहण करते, सरवर-तालाब, जलाशय, पियहिं-पीते, पान-पानी, कहि-कहते है, पर काज हित-दूसरों के कार्य या भलाई के लिए, संपति-संपत्ति, सँचहि-संचित करते हैं, इकट्ठा करते हैं, सुजान-सजजन, समझदार, विवेकशील व्यक्ति।
संदर्भ : पूर्ववत्।
प्रसंग : प्रस्तुत दोहे में संत रहीम ने प्रकृति के उपादानों के माध्यम से निस्वार्थता और परोपकारिता के महत्त्व को बताया है।
व्याख्या : कवि रहीमदास कहते हैं कि जिस प्रकार पेड़ स्वयं अपने फल नहीं खाते और तालाब स्वयं अपना पानी नहीं पीते, उसी प्रकार समझदार और विवेकशील लोग अपनी संपत्ति को केवल अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के भले के लिए भी संचित करते हैं। कवि ने इस दोहे में निस्वार्थता की महत्ता को बताते हुए इस बात पर बल दिया है कि सच्ची संपत्ति वही है, जिसका उपयोग दूसरों के कल्याण एवं भलाई के लिए किया जाए।
विशेष :
- इस दोहे में निस्स्वार्थता के महत्त्व को समझाया गया है।
- पेड़ और तालाब के उदाहरण देकर हमें प्रकृति से निस्स्वार्थता और उदारता की सीख दी गई है।
- संपत्ति का सच्चा मूल्य तभी है, जब उसे दूसरों के कल्याण के लिए उपयोग किया जाए।
- यह दोहा समाज में परोपकारिता और सहयोग की भावना को बढ़ावा देता है।
दोहा 3
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय।
दूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।।
शब्दार्थ : छिटकाय-खींचकर, झटके से, परि जाय-पड़ जाती है (उलझन या खटास आ जाती है।)
संदर्भ पूर्ववत्।
प्रसंग : प्रस्तुत दोहे में रहीम ने प्रेम के महत्त्व को समझाते हुए कहा है कि प्रेम का बंधन बहुत नाजुक होता है। इसे झटके से नहीं तोड़ना चाहिए।
व्याख्यां : रहीमदास जी इस दोहे में कहते हैं कि क्षणणिक आवेश या गुस्से में आकर प्रेमरूपी नाजुक धागे को कभी नहीं तोड़ना चाहिए। प्रेम का धागा इतना नाजुक होता है कि यदि एक बार टूट जाए तो उसे फिर से जोड़ना मुश्किल हो जाता है और यदि जोड़ भी दिया जाए तो उसमें गाँठ पड़ जाती है। यह गाँठ दर्शाती है कि रिश्ते में पहले जैसी सहजता और मधुरता नहीं रह पाती। इसलिए हमें रिश्तों में धैर्य और समझदारी से काम लेना चाहिए, जिससे वे संबंध टूटे नहीं और उनमें कभी भी कोई खटास न आए। प्रस्तुत दोहा हमें प्रेम और संबंधों को संजोकर रखना सिखाता है, क्योकि एक बार टूटने पर वे पहले जैसे नहीं रह पाते।
विशेष :
- यह दोहा प्रेम के नाजुक और संवेदनशील स्वभाव को दर्शाता है।
- गुस्से या आवेश में आकर संबधों को क्षति पहुँचाने से बचना चाहिए।
- प्रेम और संबंधों को संजोना और उन्हें बनाए रखना अल्यंत महत्त्वपूर्ण है।
दोहा 4
रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून।।
शब्दार्थ : पानी-वमक, लडजा, जल राखिये-बनाए रखना, संजोना, बिनु-बिना, सून-शून्य, खाली, बेमानी, ऊबरै-बचना, सुरक्षित रहना, मानुष-मनुष्य, इंसान, चून-आटा।
संदर्भ : पूर्ववत्।
प्रसंग : रहीमदास इस दोहे में पानी का प्रतीकात्मक प्रयोग शर्म और लज्जा के संदर्भ में करते हैं। उनका कहना है कि जैसे पानी के बिना मोती की चमक और आटा व्यर्थ हो जाते हैं, वैसे ही सम्मान और लज्जा के बिना मनुष्य की गरिमा और मूल्य भी नष्ट हो जाते हैं।
व्याख्या : प्रस्तुत दोहे के माध्यम से कवि यह बताना चाहते हैं कि जैसे मोती की चमक पानी (चमक) के बिना बेकार हो जाती है और आटा भी बिना पानी (जल) के खाने के योगय नहीं होता है, वैसे ही पानी (सम्मान) रहित मनुष्य का जीवन भी व्यर्थ है। अत: मनुष्य को अपने सम्मान को बचाकर रखना चाहिए। सम्मान समाप्त हो जाने से व्यक्ति का मूल्य भी समाप्त हो जाता है। इसलिए हमें पानी के महत्त्व को समझकर इसे अपने पास संजोकर रखना चाहिए।
विशेष :
- पानी को शर्म और लज्जा के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
- सम्मान के बिना व्यक्ति का जीवन व्यर्थ है।
दोहा 5
रहिमन बिपदाहू भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय।।
शब्दार्थ : बिपदाहू-विपत्ति में भी, कठिन परिस्थितियों में, भली-अच्छी, लाभकारी, थोरे-थोड़े, कम, हित-लाभकारी, हितकारी, अनहितअहितकर, हानिकारक, जगत-संसार, दुनिया, जानि-जानकर, समझकर
संदर्भं : पूर्ववत्।
प्रसंग : रहीमदास ने इस दोहे में विपत्ति और कठिनाइयों के संदर्भ में विचार प्रस्तुत किया है। इस दोहे में विपत्ति को एक तरह से परीक्षा के रूप में देखा गया है, जो हमारे आस-पास के लोगों की वास्तविकता को उजागर करती है।
व्याख्या : कवि रहीमदास इस दोहे में विपत्ति की स्थिति को सकारात्मक दृष्टिकोण से प्रस्तुत करते हैं। उनका कहना है कि यदि विपत्ति केवल कुछ दिनों की होती है तो यह भी अच्छी होती है, क्योंकि कठिन समय में ही हमारे सच्चे मित्र और हितैषी प्रकट होते हैं। विपत्ति का सामना करते समय, हम यह जान पाते हैं कि कौन हमें वास्तव में सहारा देता है – कौन हमारी मुश्किलों में हमारा साथ छोड़ देता है। यह समय हमें समझने में मदद करता है कि हमारे जीवन में कौन व्यक्ति हमारे लिए लाभकारी है और कौन नहीं। इस प्रकार, विपत्ति हमारे रिश्तों की असली पहचान का एक साधन होती है और हमें अपने जीवन में सच्चे साथी की पहचान करने का अवसर देती है।
विशेष :
- थोड़े दिनों के लिए दिपत्ति भी अच्छी होती है, क्योंकि यह हमें सच्चे मित्रों की पहचान फरने में मदद करती है।
- कठिन समय हमें अपने रिश्तों की वास्तविक्ता और उनकी उपयोगिता को समझने का अवसर देता है।
दोहा 6
रहिमन जिह्ना बावरी, कहि गइ सरग पताल।
आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल।।
शब्दार्थ : जिह्डा-जीभ, बावरी-बावली, सरग-स्वर्ग, पताल-पाताल लोक, नर्क, आपु-स्वयं, भीतर-अंदर, जूती-जूते की मार, खात-खाने (केलना), कपाल-सिर, माथा।
संदर्भ : पूर्ववत्।
प्रसंग : प्रस्तुत दोहे में रहीम जी ने जीभ से होने वाले अनर्थों के बारे में बताया है। कवि के अनुसार हमें अपनी जीभ को नियंत्रण में रखना चाहिए, अन्यथा इसका परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए।
व्याख्या : इस संसार में अधिकांश समस्याओं का कारण मनुष्य द्वारा बिना सोचे-समझे किए गए व्यर्थ प्रलाप होते हैं। बातों से बिगड़ी हुई स्थिति सुधर सकती है और एक सही समय पर कही गई गलत बात से बना-बनाया काम भी बिगड़ सकता है। रहीम जी इस दोहे में इसी विचार को व्यक्त करते हुए कहते हैं कि जिह्मा (जीभ) पगली होती है, जो बिना विचार किए उल्टी-सीधी बाते कह देती है और फिर स्वयं तो अंदर चली जाती है, परंतु उसकी कही बातों का परिणाम सिर को भुगतना पड़ता है, जिसे जूतों की मार खानी पड़ती है। इसलिए जिह्हा को हमेशा नियंत्रण में रखना चाहिए, नहीं तो उसके दुष्परिणामों का सामना करना पड़ता है।
रहीमदास जी का यह दोहा हमें इस बात की शिक्षा देता है कि हमें जीभ का उपयोग बंहुत सोच-समझकर करना चाहिए। किसी भी बात को कहने से पहले उसके परिणामों के बारे में विचार करना चाहिए, क्योंकि एक बार कह देने के बाद, शब्द वापस नहीं लिए जा सकते।
विशेष :
- बिना सोचे-समझे कुछ भी बोलने की प्रवृत्ति इंसान को मुसीबत में डाल सकती है।
- जीभ पर नियंत्रण रखना आवश्यक है, ताकि अनर्थ से बचा जा सके।
- सिर पऱ जूतों की मार से तात्पर्य अपमान और मानहानि से है, जो गलत बातें कहने से होती है।
दोहा 7
कहि रहीम संपत्ति सगे, बनत बहुत बहु रौत।
बिपति कसौटी जे कसे, ते ही साँचे मीत।।
शब्दार्थ : संपत्ति-संपन्नता, समृद्धि, सगे- रिश्तेदार, संबंधी, बनत- बनते हैं, साथ आते है, रीत-तरीकों से, अनेक प्रकार से, बिपति-विपत्ति, कठिनाई, कसौटी- परीक्षा, परख, जे कसे- जो परीक्षा में खरे उतरते है, ते ही- वे ही, साँचे- सच्चे, मीत- मित्र, सच्चे साथी।
संदर्भ : पूर्ववत्।
प्रसंग : प्रस्तुत दोहे में रहीमदास जी सच्चे मित्र और रिश्तों की पह्चान का वर्णन करते हैं। उन्होने बताया है कि सच्चे मित्र और रिश्तेदार वही होते हैं, जो विपत्ति के समय में साथ खड़े रहते हैं।
व्याख्या : प्रस्तुत दोहे में रहीमदास सच्चे मित्र और रिश्तेदारों की पहचान करने का तरीका बताते हुए कहते हैं कि जब व्यक्ति धन-संपति से संपन्न होता है, तो कई लोग उसके सगे-संबंधी बनने का दावा करते हैं।
संपत्ति :के समय लोग अलग-अलग तरीकों से साथ आते हैं और दिखावटी मित्रता निभाते है, लेकिन सच्ची मित्रता की परख तब होती है, जब व्यक्ति विपत्ति में होता है; जैसे-सोने की शुद्धता की परीक्षा कसौटी पर घिसकर की जाती है, वैसे ही सच्चे मित्र की पहचान कठिन समय में होती है। जो लोग विपति की कसौटी पर खरे उतरते हैं और हर परिस्थिति में साथ देते हैं, वही सच्चे और विश्वसनीय मित्र होते हैं।
विशेष :
- सच्ची मित्रता की परख कठिन समय में होती है, जब झूटे संबंध उजागर हो जाते हैं।
- सच्चे मित्रों का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि वे जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति होते हैं।