मातृभूमि Class 6 Saransh in Hindi
Mathrubhumi Class 6 Summary
मातृभूमि कविता का सारांश
इस कविता में कवि ने मातृभूमि के प्राकृतिक सौंदर्य एवं भारतीय संस्कृति की विशेषताओं को रेखांकित किश है। इसी भारत भूमि पर आकाश को चूमने वाला हिमालय पर्वत खड़ा है तो नीचे समुद्र झूमती दिखाई देता है। इसी भूमि पर गंगा-यमुना नदियों की जल धारा प्रवाहित होती है। यह पुण्य-भूमि है। यही मेरी जन्मभूमि व मातृभूमि है। यहाँ की पहाड़ियों से अनेक झरने झरते हैं। यहाँ की झाड़ियों में चिड़ियाँ मस्त होकर चहकती रहती है। यहाँ की अमराइयों में कोयल कूकती रहती है। यहीं सुग्गधित वायु बहकर हमारे तन-मन को हर्षित कर देती है।
मेरी इसी मातृभूमि पर रघुपति राजा राम और माता सीता ने जन्म लिया था। श्रीकृष्ण ने भी इसी भूमि पर बाँसुरी की तान सुनाई थी तथा गीता का ज्ञान दिया था। महात्मा बुद्ध ने भी इसी भूमि पर जन्म लेकर संसार को दया करने की सीख दी थी और संसार को मार्ग दिखाया था। यह भूमि जहाँ युद्ध की भूमि रही है, वही यह भूमि महात्मा बुद्ध की करुणा की भूमि भी रही है। यही भूमि मेरी मातृभूमि है, मेरी जन्मभूमि है।
मातृभूमि कवि परिचय
प्रसिद्ध कवि सोहनलाल द्विवेदी का जन्म 1906 ई. में हुआ था। उस समय भारत पर अंग्रेजों का शासन था। द्विवेदी जी ने अपनी कविताओं के माध्यम से अंग्रेजी शासन का डटकर विरोध किया। उनकी कविताओं का प्रिय विषय था-‘देशभक्ति’। उन्होंने अपनी कविताओं में भारत के अतीत के गौरव का गान किया है। उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ है-‘बढ़े चलो, बढ़े चलो’, ‘कोशिश करने वालों की हार नहीं होती’ आदि।
उनका निधन 1988 ई. में हुआ।
मातृभूमि कविता का हिंदी भावार्थ
Mathrubhumi Class 6 Explanation
1. ऊँचा खड़ा हिमालय
आकाश चूमता है,
नीचे चरण तले झुक,
नित सिंधु झूमता है।
गंगा यमुन त्रिवेणी
नदियाँ लहर रही हैं,
जगमग छटा निराली,
पग पग छहर रही हैं।
शब्दार्थ : आकाश – आसमान (sky)। चरण = पैर (feet) । सिंधु – समुद्र (see)। नित् – नित्य (daily)। त्रिवेणी – तीन नदियाँ (three rivers)। छटा = सुंदरता, शोभा (beauty)। पग = पैर ‘(feet)। छहर = बिखरना (spread)।
प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मल्हार’ में संकलित कविता ‘मातृभूमि’ से अवतरित हैं। इस कविता के रचयिता प्रसिद्ध कवि सोहनलाल द्विवेदी है। इस कविता में कवि ने भारतभूमि को अपनी मातृभूमि बताते हुए इसकी विशेषताओं का सुंदर चित्रण किया है।
व्याख्या : कवि अपनी मातृभूमि की विशेषताएँ बताते हुए कहता है कि इसी भूमि पर हिमालय पर्वत खड़ा हुआ है, जो आकाश का चूमता प्रतीत होता है। इसी पर्वत के नीचे चरणों में झुककर प्रतिदिन समुद्र झूमता रहता है।
इसी हिमालय पर्वत से गंगा, यमुना, सरस्वती जैसी तीन नदियों की धाराएँ निकलकर नीचे लहराती हुई आगे बढ़ती रहती है। इन नदियों की छटा निराली है। यह छटा प्रत्येक पग पर अपनी शोभा बिखेरती आगे बढढ़ती चली जाती है।
2. वह पुण्य-भूमि मेरी,
वह स्वर्ण-भूमि मेरी।
वह जन्मभूमि मेरी
वह मातृभूमि मेरी।
झरने अनेक झरते
जिस की पहाड़ियों में,
चिड़ियाँ चहक रही हैं,
हो मस्त झाड़ियों में।
शब्दार्थ : पुण्य = पवित्र (pure)। भूमि = धरती (earth)। स्वर्ण = सोना (gold)। मातृभूमि = माँ की धरती (mother land)। झरना = (spring fall)। पहाड़ियाँ = छोटे पहाड़ (tiny hills)। मस्त = मस्ती में (intoxicated)।
प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मल्हार’ में संकलित कविता ‘मातृभूमि’ से अवतरित हैं। इस कविता के रचयिता प्रसिद्ध कवि सोहनलाल द्विवेदी है। इस कविता में कवि ने भारतभूमि को अपनी मातृभूमि बताते हुए इसकी विशेषताओं का सुंदर चित्रण किया है।
व्याख्या : कवि भारतभूमि को अपनी जन्मभूमि और मातृभूमि बताते हुए इसे पुण्यों वाली भूमि तथा स्वर्णिम (सुुहरी) भूमि बताता है। यह भूमि सोने की तरह चमकती है तथा पवित्र भावना से ओत-प्रोत है।
इसी भूमि पर पहाड़ियों से अनेक झरने झरते हैं और हमें शीतल, मीठा जल प्रदान करते हैं। इसी भूमि की झाड़ियों के मध्य अनेक चिडियाँ चहचहाती रहती है और मस्ती भरा जीवन जीती रहती है।
3. अमराइयाँ घनी हैं
कोयल पुकारती है,
बहती मलय पवन है,
तन-मन सँवारती है।
वह धर्म भूमि मेरी,
वह कर्म भूमि मेरी।
वह जन्मभूमि मेरी
वह मातृभूमि मेरी।
शब्दार्थ : अमराइयाँ = आम के घने बगीचे (garden of mangoes)। मलंय पवन = मलय पर्बत से चलने वाली सुग्गोधित हवा (scented air from Malaya hills)।
प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मल्हार’ में संकलित कविता ‘मातृभूमि’ सें अवतरित हैं। इस कविता के रचयिता प्रसिद्ध कवि सोहनलाल द्विवेदी है। इस कविता में कवि ने भारतभूमि को अपनी मातृभूमि बताते हुए इसकी विशेषताओं का सुंदर चित्रण किया है।
व्याख्या : कवि अपनी मातृभूमि (भारत भूमि) की प्राकृतिक विशेषताओं का उल्लेख करते हुए बताता है कि यहाँ की घनी अमराइयों में कोयल कूकती रहती हैं। यहीं पर दक्षिण के मलय पर्वत से आने वाली सुग्रित वायु बहकर हमारे तन-मन के ताप हर लेती है और हमारा जीवन संवर जाता है।
कवि बताता है कि यह भूमि धर्म की भूमि है। यही भूमि मेरे लिए कर्म की भूमि है। यही में अपना कार्य करता हृँ। यह भूमि मेरी (कवि की) जन्म भूमि है। यही भूमि हमारी मातृभूमि है। कवि इस भारतभूमि को धर्मभूमि, कर्मभूमि, जन्मभूमि, मातृभूमि कहकर इसके महत्त्व का प्रतिपादन करता है।
4. जन्मे जहाँ थे रघुपति,
जन्मी जहाँ थी सीता,
श्रीकृष्ण ने सुनाई,
वंशी पुनीत गीता।
गौतम ने जन्म लेकर,
जिस का सुयश बढ़ाया,
जग को दया सिखाई,
जग को दिया दिखाया।
वह युद्ध-भूमि मेरी,
वह बुद्ध-भूमि मेरी।
वह मातृभूमि मेरी,
वह जन्मभूमि मेरी।
शब्दार्थ : रघुपति = राम (Rama)। जंन्मी = पैदा हुई (born) । पुनीत = पवित्र (holy)। वंशी = बांसुरी (flute)। सुयश = अच्छी प्रसिद्धि (good fame) । जग = संसार (world)।
प्रसंग : प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्ययुस्तक ‘मल्हार’ में संकलित कविता ‘मातृभूमि’ से अवतरित हैं। इस कविता के रचयिता प्रसिद्ध कवि सोहनलाल द्विवेदी है। इस कविता में कवि ने भारतभूमि को अपनी मातृभूमि बताते हुए इसकी विशेषताओं का सुंदर चित्रण किया है।
व्याख्या : कवि बताता है कि इसी भारतभूमि पर रघुपति राघव रामचंद्र जी ने जन्म लिया था। यहीं पर माता सीता का जन्म हुआ था। श्रीकृष्ण ने इसी भूमि पर रहकर वंशी की मधुर ध्वनि गुँजाई थी। इसी भूमि पर उन्होंने अर्जुन के माध्यम से गीता का ज्ञान दिया था।
इसी भूमि पर गौतम बुद्ध ने जन्म लेकर इसी भूमि के यश को बढ़ाया। इसके साथ-साथ उन्होंने संसार को द्या की भावना सिखाई और दया का मार्ग संसार को दिखाया अर्थात् दया के मार्ग पर चलने की प्रेरित किया।
कवि इसी भूमि को युद्ध की भूमि (कुरक्षेत्र की भूमि) के साथ-साथ बुद्ध की शांति की भूमि भी बताया है। यही भूमि कवि के लिए मातृभूमि और जन्मभूमि है। यह भूमि अनेक विशेषताओं से परिपूर्ण है।