मैया मैं नहिं माखन खायो Class 6 Summary Explanation in Hindi

मैया मैं नहिं माखन खायो Class 6 Saransh in Hindi

Maiya Main Nahin Makhan Khayo Class 6 Summary

मैया मैं नहिं माखन खायो कविता का सारांश

प्रस्तुत पद कृष्ण भक्त कवि सूरदास द्वारा रचित है। सूर ने कृष्ण-लीलाओं का मार्मिक चित्रण किया है।
यह पद माखन-चोरी से संबंधित है। कृष्ण माखन खाते हुए पकड़े जाते हैं। वे अपनी माँ को अपनी बेगुनाही का परिचय देते हुए कहते हैं कि माँ, मैंने तो माखन नहीं खाया है। मुझे तो तूने प्रातःकाल होते ही गायों को लेकर वन में चराने के लिए भेज दिया था। वहाँ मैं गायों के पीछे सारे दिन भटकता रहा और संध्या होने पर ही घर लौटकर आया हूँ। भला मुझे माखन खाने का अवसर मिला ही कहाँ? दूसरा तर्क वे देते हैं कि मेरी बाँहें तो छोटी हैं और तेरा माखन तो ऊपर छींके पर रखा हुआ है, तब भला मैं उसे कैसे पा सकता था।

मैया मैं नहिं माखन खायो Class 6 Summary Explanation in Hindi 1

ये जो मेरे मुँह पर माखन लिपटा हुआ है, यह सब ग्वाल-बालों की शरारत का परिणाम है। वे मुझसे शत्रुता रखते हैं। अतः मुझे चोर बनाने के लिए थोड़ा-सा माखन मेरे मुँह पर लगा दिया है। और माँ तूने भोलेपन में आकैर इनकी बातों का विश्वास कर लियों है। मुझे लगता है कि अब तेरे मन में कुछ भेद उत्पन्न हो गया है और तू मुझे अपना सगा बेटा नहीं मानती, पराया मानती है। यदि ऐसा है तो ये अपनी लाठी और कंबल वापस ले ले। तूने मुझे बहुत नाच नचा लिया अब और नहीं। बालक के मुँह से ऐसी भोली बातें सुनकर माँ यशोदा का गुस्सा जाता रहा और उसने कृष्ण को अपने गले और हुदय से लगा लिया अर्थात् अपने वात्सल्य का परिचय दे दिया। उसकी सभी शिकायत समाप्त हो गई।

मैया मैं नहिं माखन खायो Class 6 Summary Explanation in Hindi 2

मैया मैं नहिं माखन खायो कवि परिचय

सूरदास का जन्म सन् 1478 में मनाया जाता है। एक मान्यता के अनुसार उनका जन्म मथुरा के निकट रुनकता या रेणुका क्षेत्र में हुआ, जबकि दूसरी मान्यता के अनुसार उनका जन्म स्थान दिल्ली के पास सीही माना जाता है। महाप्रभु वल्लभाचार्य के शिष्य सूरदास अष्टछाप के कवियों में सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। वे मथुरा और वृंदावन के बीच गऊघाट पर रहते थे और श्रीनाथ जी के मंदिर में भजन-कीर्तन करते थे। सन् 1583 में पारसौली में उनका निधन हुआ।

उनके तीन ग्रथों सूरसागर, साहित्य लहरी और सूर सारावली में सूरसागर ही सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ। खेती और पशुपालन वाले भारतीय समाज का दैनिक अंतरंग विषय और मनुष्य की स्वाभाविक वृत्तियों का चित्रण सूर की ग्रंथों में मिलता है। सूर ‘वात्सल्य’ और ‘शृंगार’ के श्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। कृष्ण और गोपियों का प्रेम सहजज मानवीय प्रेम की प्रतिष्ठा करता है। सूर ने मानव प्रेम की गौरवगााी के माध्यम मनुष्यों को हीनता बोध से मुक्त किया, उनमें जीने की ललक पैदा की। उनकी कविता में ब्रजभाषा का निखरा हुआ रूप है। वह चली आ रही लोकगीतों की परंपरा की ही श्रेष्ठ कड़ी है।

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मैया मैं नहिं माखन खायो कविता का हिंदी भावार्थ

Maiya Main Nahin Makhan Khayo Class 6 Explanation

1. मैया मैं नहिं माखन खायो।
भोर भयो गैयन के पाछे, मधुबन मोहि पठायो।
चार पहर बंसीवट भटक्यो, साँझ परे घर आयो॥
मैं बालक बहियन को छोटो, छीको केहि बिधि पायो।
ग्वाल-बाल सब बैर परे हैं, बरबस मुख लपटायो॥
तू माता मन की अति भोरी, इनके कहे पतियायो।
जिय तेरे कछु भेद उपजि हैं, जानि परायो जायो॥
ये ले अपनी लकुटि कमरिया, बहुतहिं नाच नचायो।
सूरदास तब बिहँसि जसोदा, लै उर कंठ लगायो॥

प्रसंग : प्रस्तुत पद कृष्ण भक्त कवि सूरदास द्वारा रचित है। सूर ने श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं का प्रभावी चित्रण किया है। व्याख्या : बाल कृष्ण माखन चुराकर खाते हुए पड़ते हैं। माता यशोदा उनसे पूछ रही है। बालक कृष्ण स्वयं को निर्दोष सिद्ध करने के लिए अनेक तर्क देते हैं। वे कहते हैं कि माँ! तूने मुझे सुबह-सुबह गायों के पीछे मधुबन भेज दिया था। मैं गायों को लेकर चार पहर तक ( 12 घंटे तक) बंसीवट पर भटकता रहा हूँ। संध्या होने पर ही मैं घर लौटकर आया हूँ और देख, मैं छोटा बालक हूँ, मेरी बाँहें भी छोटी-छोटी है और तूने माखन को छींके पर ऊपर लटकाया है। भला मैं इन छोटी बाँहों से छींके तक कैसे पहुँच सकता हूँ और कैसे माखन पा सकता हूँ? इतना अवश्य है कि सारे ग्वाल बाल मुझे बैर रखते हैं और उन्होंने जबर्दस्ती मेरे मुख पर माखन लपेट दिया है। ताकि मुझे ही दोषी समझा जाए।

हे माँ! तू मन की बड़ी भोली है। यही कारण है कि तूने इनकी झूठी बात पर विश्वास कर लिया है। मुझे ऐसा लगता है कि अब तेरे हृदय में कुछ भेद उत्पन्न हो गया हैं। इसीलिए तूने मुझे अपना नहीं, पराया समझ लिया है।

माँ, तूने बहुत नाच नचा लिया अर्थात् परेशान करा लिया। अब तू अपनी लाठी और कंबल को मुझसे ले ले। मुझ इनकी आवश्यकता नहीं है।

माता यशोदा बालक कृष्ण की भोली बातें सुनकर हैसने लगी और उन्हें अपने हृदय और गले से लगा लिया। उनका (भाता का) गुस्सा जाता रहा और उनका वात्सल्य उमड़ आया। सारी बातें हीं समाप्त हो गई।

विशेष :

  1. ब्रज भाषा का प्रयोग है।
  2. अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है-भोर भ्यो, मधुबन मोहि, बालक बहिपन, छोटो छींको, माता मुन, नाच नुचायो आदि।
  3. कृष्ण बाल लीला का वर्णन है।

शब्दार्थ :

  • मैया = माँ (mother)।
  • भोर = सवेरा (early morning)।
  • गैयन = गायों (cows)।
  • पाछे = पीछे (back)।
  • मधुबन = जंगल (forest)।
  • पठायो = भेज दिया (sent) ।
  • भटकायो = भटकता रहा (roaming)।
  • बहियन = बाँहें (arms)।
  • बिधि = तरीका (way) ।
  • बैर = दुश्मनीं (enmity)।
  • बऱबस = जबर्दस्ती (forcefully)।
  • मुख = मुँह (mouth)।
  • भोरी = भोली (simple)।
  • पतियायो = विश्वास कर लिए (believed)।
  • परायो = दूसरा (other)।
  • लकुटि = लाठी (stick)।
  • कमरिया = छोटा कंबल (small blanket) ।
  • नाच नचाना = तंग करना (teasing)।
  • बिहँसि = हँसकर (laughing)।
  • कंठ = गला (neck)।
  • उर = हृदय (heart)।

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