जलाते चलो Class 6 Saransh in Hindi
Jalate Chalo Class 6 Summary
जलाते चलो कविता का सारांश
कवि का कहना है कि अभी धरती पर काफी अंधकार है। अतः इसे मिटाने के लिए स्नेह भर-भरकर दिए जलाते रहे। स्नेह के दो अर्थ हैं-प्रेम और तेल। दोनों अर्थ सटीक बैठते हैं।
कवि का कहना है यद्यपि विज्ञान में बहुत बड़ी शक्ति है। वह अमावस्या की कालिका को पूर्णिमा की चाँदनी बनाने में सक्षम है। इस सबके बावजूद आज भी विश्व भर में दिन में ही अमावस्या की काली रात घिरी चली आ रही है। विज्ञान की शक्ति के होते हुए ऐसा क्यों है? बिजली के जो दिये जलाए जा रहे हैं, वे स्नेह के बिना ही जल रहे हैं। इनको शीष्र बुझाना होगा। इनसे सही रास्ता नहीं मिल पाएगा। प्रेममय वातावरण का भी आवश्यकता है।
हे मनुष्य! तुम्हीं ने पहला दीपक जलाकर अंधकार की चुौौती को स्वीकार किया था। याद करो, तुम्हीं ने अंधकार की नदी को पार करने के लिए दीपक की नाव तैयार की थी। अब आवश्यकता है कि तुम अपनी बनाई उसी नाव को निरंतर बहाते चलो। कभी-न-कभी तो इस अंधकार का किनारा मिल ही जाएगा। यह तिमिर अज्ञान का भी है।
हे मनुष्य! तुम्हीं ने युगों से अंधकार की शिला पर असंख्य दीपक निरंतर जलाए थे। तुम्हारे जलाए उन दीयों को हवा ने बुझा दिया था। समय इस बात का गवाह है। इसके बावजूद तुम्हारे दीये स्वयं जो प्रकाश दे गए उन्हीं से रोशनी मिलेगी। वे दिये भले ही बुझ गए हों, पर उनमें प्रकाश अभी तक विद्यमान है।
दिये और तूफान की यह कहानी वर्षों से निरंतर चली आ रही है और आगे भी चलती रहेगी। यह क्रम अटूट हैं। दिये जलकर प्रकाश देते हैं और तूफान के झोंके उन्हें बुझा देते हैं। इसके बावजूद दीपक की जो लौ पहली बार जली थी, वह अभी भी सोने जैसी अभी भी जल रही है और भविष्य में भी जलती रहेगी। तूफान के झोंके उसे प्रत्यक्षतः भले ही उसे बुझा दें, पर उसके द्व रा फैलाए प्रकाश के प्रभाव को कभी मिटा नहीं पाएँगे।
कवि आशावादी है। वह कहता है कि यदि इस धरती पर एक भी दिया रहेगा तो कभी-न-कभी इस रात को सवेरा अवश्य मिलेगा अर्थात् अंधकार का नाश होगा और प्रकाश का उदय होगा।
जलाते चलो कवि परिचय
‘जलाते रहो’ कविता के रचयिता द्वारिका प्रसाद ‘माहेश्वरी’ हैं। उनका जन्म 1916 ई० में हुआ। माहेश्वरी हिंदी के प्रसिद्ध कवि हैं। उन्होंने पर्याप्त मात्रा में ‘बाल साहित्य’ की रचना की है। उनका लिख़ा गीत ‘हम सब सुमन एक उपवन के’ काफी लोकप्रिय हुआ।
माहेश्वरी जी का निधन 1998 ई. में हो गया।
जलाते चलो कविता का हिंदी भावार्थ
Jalate Chalo Class 6 Explanation
1. जलाते चलो ये दिये स्नेह भर-भर
कभी तो धरा का अँधेरा मिटेगा।
भले शक्ति विज्ञान में है निहित वह
कि जिससे अमावस बने पूर्णिमा-सी,
मगर विश्व पर आज क्यों दिवस ही में
घिरी आ रही है अमावस निशा-सी।
बिना स्नेह विद्युत-दिये जल रहे जो
बुझाओ इन्हें, यों न पथ मिल सकेगा।।
शब्दार्थ :
- दिये = दीपक (lamp)।
- स्नेह = प्रेम, तेल (love, oil)।
- धरा = धरती (earth)।
- शक्ति = ताकत (power)।
- निहित = समाई हुई (inserted)।
- विश्व = संसार (world)।
- दिवस = दिन (day)।
- रात्रि = रात्रि (night, darkness)।
- विद्युत = बिजली (electricity)।
- पथ = रास्ता (path)।
प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी ‘पाठ्यपुस्तक ‘मल्हार’ में संकलित कविता ‘जलाते रहो’ से अवतरित है। इस कविता के रचयिता द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी हैं। इस कविता में कवि अच्छाई, भलाई की दिया जलाते रहने की प्रेरणा दी है।
व्याख्या : कवि भलाई करने वालों को प्रेरित करते हुए कहता है कि तुम अपने दिये में स्नेह रूपी तेल भरकर जलाते रहो। तुम्हारा यह प्रयास एक-न-एक दिन अवश्य सफल होगा। इससे धरती पर छाया अंधकार कभी-न-कभी अवश्य मिट जाएगा।
यह कहा जाता है कि विज्ञान में बहुत ताकत समाई हुई है। उसकी शक्ति से अमावस्या भी बल्बों की रोशनी में पूर्णमासी के समान चमकने लगती है। लेकिन समझ नहीं आता कि इस वैज्ञानिक शक्ति के बावजूद आज विश्व में दिन में ही अमावस्या का सा अंधकार क्यों छाता चला जा रहा है।
ये बिजली के बल्ब स्नेह के बिना ही जल रहे हैं। अब इन्हें बुझा देना चाहिए क्योंकि इससे रास्ते का अंधकार नहीं मिट सकेगा। भलाई-अच्छाई का दीप जलाने से ही पथ का अंधकार मिट जाएगा।
विशेष-‘स्नेह’ शब्द के दो अर्थ है : 1. प्रेम, 2. तेल।
2. जला दीप पहला तुम्हीं ने तिमिर की
चुनौती प्रथम बार स्वीकार की थी,
तिमिर की सरित पार करने तुम्हीं ने
बना दीप की नाव तैयार की थी।
बहाते चलो नाव तुम वह निरंतर
कभी तो तिमिर का किनारा मिलेगा।।
शब्दार्थ :
- तिमिर = अंधकार (darkness) ।
- चुनौती = चैलेंज (challenge)।
- स्वीकार = मंजूर (accept) ।
- सरित = नदी (river)।
- निरंतर = लगातार (continuous)।
- किनारा = तट (bank)।
प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मल्हार’ में संकलित कविता ‘जलाते रहो’ से अवतरित है। इस कविता के रचयिता द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी हैं। इस कविता में कवि अच्छाई, भलाई की दिया जलाते रहने की प्रेरणा दी है।
व्याख्या : कवि भले मनुष्यों को स्मरण कराता है कि तुम ही वे हो जिन्होंने पहला दिया जलाया था। इस दिये को जलाकर अंधकार की चुनौती को स्वीकार करने का काम उन्होंने ही किया था। इसी प्रकार अंधकार रूपी नदी को पार करने के लिए तुम्हीं ने दीपक रूपी नाव तैयार की थी। तुम्हीं अंधकार से पार लगने के प्रयास में लगे थे।
अभी भी कवि उन्हीं लोगों को प्रेरित करते हुए कह रहा है तुम अपना प्रयास जारी रखो, अपनी नाव को चलाते रहो। यह उम्मीद रखो कि तुम्हें एक किनारा अवश्य मिलेगा अर्थात् तुम्हें अपने लक्ष्य में सफलता अवश्य मिलेगी। अंधकार छँटकर रहेगा।
3. युगों से तुम्हीं ने तिमिर की शिला पर
दिये अनगिनत है निरंतर जलाए,
समय साक्षी है कि जलते हुए दीप
अनगिन तुम्हारे पवन ने बुझाए।
मगर बुझ स्वयं ज्योति जो दे गए वे
उसी से तिमिर को उजेला मिलेगा।।
शब्दार्थ :
- शिला = पत्थर (stone)।
- अनगिनत = असंख्य (countless)।
- साक्षी = गवाह (witness)।
- पवन = हवा (wind)।
- ज्योति = प्रकाश (light)।
प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मल्हार’ में संकलित कविता ‘जलाते रहो’ से अवतरित है। इस कविता के रचयिता द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी हैं।।इस कविता में, कवि अच्छाई, भलाई की दिया जलाते रहने की प्रेरणा दी है।
व्याख्या : कवि अच्छाई से विश्वास करने वालों को स्मरण करता है कि ये तुम्हीं थे जिन्होंने अंधकार के शिला पर अनगिनत दीपक जलाए थे। यह काम तुमने युग-युगों तक किया था। यह भी सच्चाई कि तेज हवा (तूफान) ने तुम्हारे जलाए दियों को बुझा दिया था। समय इसका गवाह है।
यह भी ठीक हे कि कुछ दिये बुझते-बुझते वह ज्योति (प्रकाश) दे गए, उसी से इस अंधकार में भी रोशनी मिलेगी। अर्थात् दीकप का प्रकाश शाश्वत बना रहता है। उसे कोई मूल रूप से मिटा नहीं सकता।
4. दिये और तूफान की यह कहानी
चली आ रही और चलती रहेगी,
जली जो प्रथम बार लौ दीप की
स्वर्ण -सी जल रही और जलती रहेगी।
रहेगा धरा पर दिया एक भी यदि
कभी तो निशा को सवेरा मिलेगा।।
शब्दार्थ :
- प्रथम = पहला (first)।
- स्वर्ण = सोना (gold)।
- धरा = धरती (earth )।
- निशा = रात (night)।
प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मल्हार’ में संकलित कविता ‘जलाते रहो’ से अवतरित है। इस कविता के रचयिता द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी हैं। इस कविता में कवि अच्छाई, भलाई की दिया जलाते रहने की प्रेरणा दी है।
व्याख्या : कवि बताता है कि दिये और तूफ़ान की कहानी कोई नई नहीं है, बल्कि यह पुराने समय से चली आ रही है और आगे भी चलती रहेगी। तूफ़ान दियों को बुझाता ही रहा है और दिये भी जलते रहेंगे। इतना भी निश्चित है कि दीपक की जो लौ पहली बार परोपकारी व्यक्ति ने जलाई थी, वह आज भी अपनी सुनहरी आभा बिखेरती हुई अभी भी जल रही है और भविष्य में भी जलती रहेगी। हमें आशान्वित बने रहना चाहिए। अच्छाई की लौ स्वर्णिम बने रहना चाहिए। अच्छाई की लौ स्वणि मि आभा बिखेरती है। उसे कोई रोक नहीं सकता।
कवि को विश्वास है कि जब तक इस धरती पर एक भी दिया जलता रहेगा, तब तक आशा बलवती बनी रहेगी। एक न एक दिन धरती पर छाया अंधकार मिटकर रहेगा और विश्व को एक नया सवेरा मिलकर रहेगा।