हार की जीत Class 6 Saransh in Hindi
Haar Ki Jeet Class 6 Summary
हार की जीत कहानी का सारांश
बाबा भारती के पास एक घोड़ा था। वह घोड़ा बहुत प्रिय था। बाबा भारती उसे ‘सुलतान’ कहकर पुकारते थे। वे अपने घोड़े की सेवा में ही लगे रहते थे। वे अब गाँव के बाहर एक छोटे से मंदिर में रहने लगे थे। सुलतान पर चढ़कर आठ-दस मील का चक्कर लगाए बिना उन्हें चैन नहीं आता था।
खड्गसिंह उस इलाके का प्रसिद्ध डाकू था। उसका नाम सुनकर लोग काँपते थे। उसने भी सुलतान की प्रसिद्धि सुनी तो वह भी उसे देखने बाबा भारती के पास पहुँच गया। बाबा ने खड्गसिंह को अपना घोड़ा घमंड से दिखाया और खड्गसिंह ने उसे आश्चर्य से देखा। खड्गसिंह के कहने पर बाबा भारती ने उसे घोड़े की चाल दिखाई और घोड़ा उसे भा गया। चलते-चलते वह बोला-“बाबाजी, यह घोड़ा आपके पास नहीं रहने दूँगा।” यह सुनकर बाबा भारती डर गए। उनकी नींद हराम हो गई। उसकी रातें अस्तबल की रखवाली में कटने लगीं। कई महीने बीत गए।
एक दिन की बात है। संध्या का समय था। बाबा भारती सुलतान की पीठ पर सवार होकर घूमने जा रहे थे। सहसा एक आवाज़ आई-“अरे बाबा, इस कंगले की सुनते जाना।” बाबा ने घोड़े को रोक लिया। उस व्यक्ति का कष्ट पूछ़ा। वह रामवाला गाँव तक ले चलने की प्रार्थना करने लगा। स्वयं को दुर्गादत्त का सौतेला भाई बताया। बाबा ने उसे अपने घोड़े पर बिठा लिया।
सहसा बाबा के हाथ से लगाम छूट गई। अपाहिज बना व्यक्ति तनकर बैठ गया। वह व्यक्ति डाकू खड्गसिंह ही था। बाबा भारती चिल्लाकर बोले-“जरा ठहर जाओ।” खड्गसिंह ने घोड़ा रोक लिया, पर कहा-“बाबाजी, यह घोड़ा अब न दूँगा।”
बाबा बोले-“यह घोड़ा तुम्हारा हो चुका है। मेरी केवल एक प्रार्थना है कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना।” खड्गसिंह ने इसका कारण पूछ्छा तो बाबा भारती ने उत्तर दिया-“लोगों को इस घटना का यदि पता चलेगा तो वे किसी गरीब पर विश्वास नहीं करेंगे। दुनिया से विश्वास उठ जाएगा।”
यह कहकर बाबा भारती चले गए। पर उनके इस कथन का डाकू खड्गसिंह पर बड़ा असर हुआ। एक रात की बात है। सुनसान वातावरण था। खड्गसिंह सुलतान की बाग पकड़े हुए बाबा भारती के अस्तबल में जा पहुँचा। फाटक खुला पड़ा था। खड्गसिंह ने सुलतान को उसके स्थान पर बाँध दिया। उस समय उसकी आँखों में पश्चाताप के आँसू थे।
रात्रि के चौथे पहर में बाबा भारती के कदम स्नान करके अस्तबल की ओर बढ़ चले। घोड़े ने अपनी स्वामी के पैरों की आहट को सुन लिया। वह जोर से हिनहिनाया। बाबा भारती के आश्चर्य एवं प्रसन्नता की सीमा न थी। वे घोड़े से लिपटकर रोने लगे। घोड़े को थपकियाँ देते हुए, वे कहने लगे-“अब कोई गरीबों की सहायता से मुँह न मोड़ेगा।”
हार की जीत लेखक परिचय
सुदर्शन हिंदी के प्रसिद्ध कहानीकार थे। उनका जन्म 1896 ई० में हुआ था। उनका वास्तविक नाम था-‘बदरीनाथ भट्ट’। जब वे छठी कक्षा में पढ़ते थे, तभी उन्होंने अपनी पहली कहानी लिखी थी। ‘हार की जीत’ उनकी चर्चित कहानी है। उन्होंने कहानियों के अतिरिक्त कविताएँ, लेख, नाटक और उपन्यास भी लिखे हैं। उन्होंने कई फिल्मों की पटकथा और गीत भी लिखे। उनका निधन 1983 ई० में हुआ।
शब्दार्थ :
- आनंद = मज़ा (enjoyment)।
- अर्पण = भेंट (to give)।
- घृणा = नफरत (hatred)।
- संध्या = शाम (evening)।
- प्रसिद्धि = मशहूर (famous)।
- कीर्ति = प्रसिद्धि (fame)।
- छवि = सुंदरता (beauty)।
- अंकित = छप जाना (marked)।
- आश्चर्य = हैरानी (surprises)।
- अधीर = बैचेन (restless)।
- बाहुबल = शारीरिक ताकत (muscles power)।
- अस्तबल = घुड़साल (stable)।
- भय = डर (fear)।
- मिथ्या = झूठ (false)।
- असावधान = लापरवाह (careless)।
- कंगला = गरीब (poor)।
- अपाहिज = अपंग (handicap)।
- निराशा = आशा न रहना (distress)।
- प्रयोजन = मतलब (purpose)।
- विश्वास = भरोसा (belief)।
- पश्चाताप = पछतावा (repent)।