CBSE Class 6 Hindi रचना निबंध लेखन

CBSE Class 6 Hindi रचना निबंध लेखन

निवंध का अर्थ

निबंध अंग्रेजी शब्द ‘Essay’ का हिंदी पर्याय है। निबंध ‘नि’ और ‘बंध’ दो शब्दों के मेल से बना है, जिसका अर्थ है- अच्छी तरह नियमों से बँधा हुआ अर्थात् ऐसी रचनाए जिससे विषय-वस्तु से संबंधित विचारों को विस्तृत व सारगर्भित जानकारी के रूप में प्रकट किया गया है। अत: निबंध वह गद्य रचना है, जिसमें लेखक अपने भावों-विचारों को क्रमबद्ध, सुसंगठित रूप में प्रस्तुत करता है। हिंदी के प्रसिद्ध निबंधकार और लेखक आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार, “पद्य कवियों की कसौटी है, तो निबंध गद्य की कसौटी है।”

निबंध के अंग

निबंध के तीन अंग होते हैं
1. भूमिका या प्रस्तावना इसके अंतर्गत विषय का परिचय दिया जाता है।
2. विषय का विस्तार यह निबंध का मध्य या मुख्य भाग भी कहलाता है। इसका आकार विस्तारित होता है। इसमें मुख्य विषय का वर्णन क्रमबद्ध रूप से किया जाता है।
3. उपसंहार या निष्कर्ष यह निबंध का अंतिम भाग है, जिसे निबंध का निकास द्वार भी कहा जा सकता है। यह भाग इतना प्रभावी होना चाहिए कि पाठक के मन पर इसका अमिट प्रभाव पड़े।

निबंध लेखन में ध्यान देने योग्य बातें

  • जिस दिषय पर निबंध लिखना है, उस विषय की पर्याप्त जानकारी होनी चाहिए।
  • विषय संबधी जानकारी के आधार पर निबंध लिखने से पूर्व उसकी रूपरेखा बना लेनी चाहिए।
  • निबंध का आरंभ विशेष रूप से आकर्षक बनाने का प्रयास करना चाहिए।
  • निबंध में सजीवता, सहजता का गुण होना चाहिए।
  • निक्य में लंबे वाक्यों का म्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
  • निबंध की भाषा सरल, सुबोध, प्रवाहमयी एवं प्रभावोत्पादक होनी चाहिए।
  • निबंध में विराम चिह्रों का उचित स्थानों पर शुद्ध प्रयोग करना चाहिए, जिससे भावों में र्पष्टता आ सके।
  • निबंध के अंत में उससे मिलने वाली शिक्षा या संदेश का उल्लेख किया जाना वाहिए।

निबंध का प्रारूप
भारत में इलेक्ट्रिक वाहन

भूमिका आज हम सभी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के उन्नत युग में जीवनयापन कर रहे हैं। प्रौद्योगिकी की प्रगति हमेशा मानव जीवन को बेहतर बनाने में मदद करती है। इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रयोग मनुष्य के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी बहुत लाभदायक है। भारत में इलेक्ट्रिक वाहन अब तीव्रता से पारंपरिक जीवाश्म ईंधन आधारित वाहनों के स्थायी विकल्प के रूप में उभर रहे हैं। इलेक्ट्रिक वाहन नई तकनीक है, जिससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, साथ ही यह देश की पेट्रोलियम निर्यांतक देशों पर निर्भरता कम कर देगा।

इलेक्ट्रिक वाहनों के लाभ परिवहन के क्षेत्र में नई तकनीक इलेक्ट्रिक वाहन पर्यांवरण के अनुकूल है। यह वाहन बिजली से चलते हैं व धुआं नहीं छोड़ते इसलिए यह प्रदूषण को कम करने में बहुत मददगार हैं। इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रयोग से ग्लोबल वार्मिंग में कमी आएगी।

डीजल, पेट्रोल सभी ऊर्जा के गैर-नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन हैं। इनका अधिक प्रयोग प्रकृति के लिए अच्छा नहीं है। इन प्राकृतिक संसाधन के संरक्षण के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रयोग अत्यंत लाभदायक सिद्ध हो रहा है।

प्रौद्योगिकी की तीव्र गति के साथ लोगों की माँग बढ़ रही है। इस बढ़ती हुई माँग को पूरा करने के लिए इलेक्ट्रिक वाहन परिवहन के नए साधन के रूप में उभरकर सामने आए हैं। दिल्ली सरकार ने हाल ही में इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने हेतु ‘स्विच दिल्ली’ जनआंदोलन भी प्रारंभ किया है।

इलेक्ट्रिक वाहनों से हानि इलेक्ट्रिक वाहनों की हानि इसकी सीमित ड्राइविंग रेंज है। इन वाहनों के चार्जिंग स्टेशनों की सीमित उषलब्धता एक अन्य नुकसान है, जिससे इलेक्ट्रिक वाहनों में लंबी दूरी की यात्रा अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाती है।

इन वाहनों में चार्जिग के लिए लगने वाला लंबा समय पेट्रोल, डीजल आदि से चलने वाले वाहन को भरने में लगने वाले समय से अधिक होता है। इन इलेक्ट्रिक वाहनों का कम व अधिक जलवायु वाले क्षेत्रों या तापमान में नकारात्मक प्रभाव है, क्योंकि इन क्षेत्रों में वाहनों की बैटरी व ड्राइविंग रेंज कम हो जाती है।

उपसंहार परिवहन की नई तकनीक इलेक्ट्रिक वाहनों के लाभ व हानि दोनों ही हैं। समय के साथ-साथ व तकनीकी प्रगति द्वारा इन वाहनों को अपनाना अधिक व्यापक होता जा रहा है। भविष्य में ये इलेक्ट्रिक वाहन पर्यावरणीय एवं आर्थिक लाभ के कारण परिवहन के आकर्षक व उत्तम साधन के रूप में उभरकर सामने आएँगे।

अभ्यास प्रश्न

चंद्रयान मिशन-3

भूमिका चंद्रयान-3 भारत के लिए अग्रणी एवं महत्त्वपूर्ण उपलब्चि है, क्योंकि इसने भारत को चंद्रमा पर पहुँचने वाला अमेरिका, रूस, चीन के बाद चौथा देश बना दिया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) ने वर्ष 2008 में चंद्रयान लॉन्च किया था। चंद्रयान-1 को वर्ष 2018 में श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया था।

इसने हमें चंद्रमा पर खनिजों के ब्लारे में विस्तारपूर्वक स्पेक्ट्रम जानकारी प्रदान की, लेकिन तकनीकी समस्याओं व संचार में रुकावट आने के कारण यह पूर्ण रूप से सफल नहीं हो सका। अत: चंद्रयान-2 को 22 जुलाई, 2019 नॉ. लॉन्च किया गया। यह चंद्रमा की सतह पर पानी का पता लगाने के उद्देश्य से बनाया गया था, परंतु इसका लैंडर और रोवर चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसके कारण यह विफल हो गया।

चंद्रयान- 3 का लैंडर पिछले मिशन के अनुरूप 14 जुलाई, 2023 को दोपहर 2 बजकर 35 मिनट पर चंद्रयान- 3 लॉन्च किया गया। चंद्रयान-3 में भारत ने अपना वैज्ञानिक अध्ययन और खोज अभियांत्रिकी को मजबूत करने के लिए विक्रम लैंडर और रोवर को चाँद पर भेजने में सफलता प्राप्त की। इस यान में एक ऑर्बिट भी शामिल किया गया है, जो चंद्रमा की सतह की पूरी तरह से निगरानी करेगा। चंद्रयान-3 ने दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करके इतिहास रच दिया है।

चंद्रयान-3 की विशेषता दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतरने वाला पहला अंतरिक्ष यान है। इसका मुख्य उद्देश्य चंद्रमा पर मौजूद पानी और बर्फ की उपस्थिति, वहाँ मौजूद प्राकृतिक तत्त्व एवं खनिजों, चंद्रमा की सतह की संरचना या बनावट, चंद्रमा के वायुमंडल में स्थित प्राकृतिक गैसों तथा संभावित जीवन की जानकारी प्राप्त करना है।
23 अगस्त 2023 को चंद्रयान-3 सफलतापूर्वक उतर चुका है, जिससे भारत को एक नई पहचान मिली है। इस सफलता के साथ ही भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक अंतरिक्ष यान उतारने वाला पहला देश बन गया है।

लाभ चंद्रयान- 3 से देश के युवाओं को अंतरिक्ष से जुड़ी जानकारी प्राप्त होगी। देश के सभी लोगों को चंद्रमा की बनावट का पता लगेगा। इस मिशन के सफल होने से अंतरिक्ष क्षेत्र में नई पहचान मिल गई। चंद्रयान-3 भारत के अंतरिक्ष रहस्यों की खोज और मानव ब्रहांड के बारे में ज्ञान का योगदान देना एक बड़ा कद्म है।
उपसंहार यह भारत के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण व गौरवशाली कदम है।

“अंतरिक्ष में गूँज उठे हम,
चंद्रयान का गान लिए।
चाँद तिरंगे रंग में रंगा,
एक नई पहचान लिए।
मेरे भारत के वैज्ञानिक,
तुम गौरव हो भारत का।
ऊँचा माथा लिए खड़े हम,
एक सच्चा अभिमान लिए।”

जी-20

भूमिका जी-20 अर्थात् ग्रुप ऑफ ट्वेंटी (Group of Twenty) दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का समूह है। जी- 20 अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग का प्रमुख मंच है। यह सभी प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक मुद्दों पर वैश्विक संरचना और अधिशासन निर्धारित करने तथा उसे मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जी- 20 शिखर सम्मेलन की स्थापना वर्ष 1999 में हुई थी। यह सम्मेलन वर्ष में एक बार आयोजित किया जाता है। भारत की अध्यक्षता में जी- 20 सम्मेलन 9.10 सितंबर, 2023 को नई दिल्ली में आयोजित किया गया। जी- 20 शिखर सम्मेलन का इस वर्ष विषय है-हम एक पृथ्वी है, एक परिवार हैं और हमारा भविष्य एक है (We are One Earth, One Family and We Share One Future)। यह विषय भारत की ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की विचारधारा को दर्शाता है।

जी- 20 के सदस्य देश जी- 20 यूरोपियन यूनियन एवं 19 देशों का एक अनौपचारिक समूह है। जी- 20 शिखर सम्मेलन में सभी नेता प्रत्येक वर्ष एकत्रित होते हैं और वैश्विक अर्थव्यवस्था को ‘कैसे आगे बढ़ाया जाए, इस विषय पर चर्चा करते हैं। इसकी शुरुआत जर्मन की राजधानी बर्लिन से हुई थी।

जी-20 में 19 देश-अजेंटीना, ब्राजील, चीन, जर्मनी, इंडोनेशिया, जापान, मैक्सिको, सऊदी अरब, तुकी, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, दक्षिण अफ्रीका, रूस, कोरिया गणराज्य इटली, भारत, फ्रांस, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया तथा एक यूरोपीय देश शामिल हैं। जी- 20 अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग का प्रमुख मंच है, जो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 85 %, वैश्विक व्यापार का 75 % से अधिक और विश्व का लगभग दो-तिहाई आबादी का प्रतिनिधित्व करता है।

जी- 20 का उद्देश्य जी- 20 का प्रमुख उद्देश्य व्यापार, जलवायु, स्वास्थ्य तथा अन्य मुद्दों पर वैश्विक नीति के समन्वय के लिए नियमित रूप से मिलना, चर्चा करना और उसमें सुधार करना या उससे निपटना है। जी- 20 का नेता वर्ष के दौरान, देश के वित्त मंत्री और केंद्रीय बैंक के गवर्नर वैश्विक अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों में सुधार लाने, वित्तीय नियमन में सुधार लाने और प्रत्येक सदस्य देश में जरूरी प्रमुख आर्थिक सुधारों पर चर्चा करने के लिए नियमित रूप से बैठक करते हैं। जी- 20 का कार्य जी- 20 बैठक वैश्विक अर्थव्यवस्था की दिशा और दशा दोनों को ही तय करता है। जी- 20 शिखर सम्मेलन के दौरान एजेंडे तय किए जाते हैं। ये समूह मुख्य रूप से ग्लोबल इकोनॉमी, आर्थिक स्थिरता, जलवायु परिवर्तन के मुद्दे, सतत विकास आदि प्रक्रियाओं पर काम करते हैं।

उपसंहार जी- 20 सम्मेलन एक प्रासंगिक व महत्त्वपूर्ण सम्मेलन है। यह सम्मेलन विश्व की समस्याओं का समाधान खोजने के लिए सभी राष्ट्रों को एकसाथ एक मंच पर लेकर आता है। भारत भी इसमें शामिल है और हमें भारतीय होने पर गर्व है। इस वर्ष भारत ने विश्व में जी- 20 के माध्यम से अपना परचम लहराया है।

चंद्रशेखर आजाद (स्वतंत्रता संग्राम के नायक) भूमिका हमारे देश को आजादी दिलाने में अनेक देशभक्त वीरों ने अपनी जान की बाजी लगा दी और आजादी के लिए अपना तन-मन-धन सब कुछ भारत माता के चरणों में अर्पित कर दिया। ऐसे ही क्रांतिकारियों में चंद्रशेखर आजाद का नाम अग्रण्य है, जिनका नाम भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है।

प्रारंभिक जीवन महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का जन्म मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के साधारण से परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित सीताराम और माता का नाम जगरानी देवी था। उनमें साहस और आत्मविश्वास कूट-कूटकर भरा था। चंद्रशेखर आजाद की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा काशी (वर्तमान में वाराणसी) में हुई। उन्हें संस्कृत पढ़ने के लिए भी काशी भेजा गया, जहाँ उन्होंने संस्कृत व्याकरण का अध्ययन किया, पर स्वभाव के अनुरूप उनका मन उसमें न लगा। वे वीरों की कहानियाँ और साहसपूर्ण घटनाओं से संबंधित पुस्तकें पढ़ा करते थे।

त्याग और बलिदान का अद्भुत उदाहरण वर्ष 1919 में जलियाँवाला बाग में हो रही जनसभा में उपस्थित भीड़ पर जनरल डायर ने गोलियाँ चलवा दीं। इसमें हजारों निह्धत्ये वृद्ध, युवा नर-नारी और बच्चे मारे गए। दस-ग्यारह वर्षीय आजाद के मन पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा। वे उसी समय से अंग्रेजों से बदला लेने की सोचने लगे। वे हर समय यही योजना बनाते रहते कि अंग्रेजों को देश से बाहर कैसे निकाला जाए?

इसके तीन-चार दिन बाद की घटना है कि गाँधीजी एडवर्ड के भारत आगमन पर उनके बहिष्कार के लिए आंदोलन चला रहे थे। लगभग 15 वर्ष की अल्पायु में ही वह इस आंदोलन में कूद पड़े। अंग्रेजों ने इस अल्प-वयस्क बालक पर भी दया नहीं दिखाई और उन्हें गिरप्तार कर मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया। मजिस्ट्रेट के सामने चंद्रशेखर ने अपना नाम ‘आजाद’, पिता का नाम ‘स्वाधीनता’ और अपना घर ‘जेलखाना’ बताया।

इससे क्रोधित मजिस्ट्रेट ने चंद्रशेखर को 15 बेंत लगाने की सजा दी। जब उनकी पीठ पर बेत मारी जाने लगी, तो प्रत्येक बेंत मारे जाने के साथ उनके मुँह से ‘भारत माता की जय’, ‘महात्मा गाँधी की जय’ के नारे निकलते रहे। इसी घटना के बाद उनका नाम ‘आजाद’ पड़ गया और वे प्रसिद्ध क्रांतिकारी बन गए। वे अंग्रेजों को नाकों चने चबवाते रहे। 27 फरवरी, 1931 को एक मुठभेड़ में उन्होंने अपनी पिस्तौल की अंतिम गोली स्वयं को मार ली और अंग्रेजों के हाथ जिदा न पकड़ने की प्रतिज्ञा को निभाया।

उपसंहार चंद्रशेखर आजाद ने अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए अपना बलिदान दे दिया। उनके चरित्र से आज के नवयुवकों को अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए कुछ कर गुजरने की प्रेरणा मिलती है। अत: हमें भी अपने देश के लिए सर्वस्व अर्पित करने को तैयार रहना चाहिए।

महात्मा गाँधी
(राष्ट्रपिता)

भूमिका भारत को आजादी दिलाने में अनेक महापुरुषों, देशभक्तों और वीरों का अमूल्य योगदान है। इन्हीं महापुरुषों में अद्भुत छवि वाले व्यक्ति भी थे, जिन्हें भारतवासी ‘बापू’ और ‘राष्ट्रपिता’ कहते हैं। वापू की कार्य-शैली सबसे अलग थी, जिसके कारण उनकी एक अलग ही छवि बन गई। वे सारे विश्व में जाने-पहचाने जाने लगे। उन्होंने अपने विशेष अस्त्र ‘सत्य और अहिंसा’ के बल पर देशवासियों को आजादी दिलाई। लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता चरम पर थी।

गाँधीजी का अनुकरणीय चरित्र राष्ट्रपिता गाँधीजी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था। उनका जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था। गाँधीजी ने अपनी माँ का सदैव कहना माना और आजीवन सत्य बोलने का प्रण लिया। गाँधीजी की प्रारंभिक शिक्षा राजकोट में हुई। मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद गाँधीजी वकालत की पढ़ाई करने इंग्लैंड चले गए। वहाँ भी उन्होंने अपनी माता को दिया हुआ वचन निभाया और मांस-मदिरा को हाथ नहीं लगाया। वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद गाँधीजी भारत लौट आए, उन्होंने मुंबई में प्रैक्टिस शुरू की। वे झूठे मुकदमे नहीं लेते थे।

दक्षिण अफ्रीका में गाँधीजी एक मुकदमे की पैरवी के सिलसिले में उन्हें दक्षिण अफ्रीका जानां इड़ा। वंहाँ उन्हें अंग्रेजों द्वारा रंग-भेद की नीति का शिकार होना पड़ा। दक्षिण अफ्रीका में गाँधीजी ने रंग-भेद के विरुद्ध आवाज उठाई और लोगों का समर्थन प्राप्त किया।

गाँधीजी का स्वतंत्रता के लिए आंदोलन गाँधीजी दक्षिण अफ्रीका से वापस भारत आए और स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष शुरु किया। उन्होंने सत्य और अहिसा को अपना अस्त्र बनाया। उनका ‘सत्याग्रह’ पूरे देश में प्रसिद्ध हो गया। उनके रूप में देशवासियों को एक नया नेतृत्व मिल चुका था। उन्होंने वर्ष 1921 में ‘असहयोग आंदोलन’, वर्ष 1930 में ‘नमक सत्याग्रह’ और वर्ष 1942 में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलन चलाया। उनके अनवरत् प्रयासों से देश ने 15 अगस्त, 1947 को आजादी का नया सूरज देखा।

उपसंहार गाँधीजी मानवता के सच्चे पुजारी थे। उन्होने कभी किसी को छोटा नहीं समझा। उन्होने अछूतों को ‘हरिजन’ नाम देकर समाज में उन्हें सम्मानजनक स्थान दिया। वे भारत में सभी को सुखी और स्वस्थ देखना चाहते थे। इसलिए हमें गाँधीजी के आदर्शों का पालन करना चाहिए। ‘रसुपति राघव राजाराम’ उनका प्रसिद्ध भजन था। मानवता का यह पुजारी 30 जनवरी, 1948 को भारतवासियों को छोड़कर सदा के लिए चला गया।

स्वंतंत्रता दिवस

भूमिका इस धरती पर शायद ही कोई ऐसा प्राणी हो, जिसे परतंत्रता प्रिय हो। इसके विपरीत स्वतंत्रता सभी को प्रिय होती है। दुर्भाग्य से यदि किसी प्राणी की स्वतंत्रता छिन जाती है, तो वह उसे पाने के लिए प्राण रहने तक संघर्ष करता है। कुछ ऐसा ही भारतवासियों के साथ हुआ था। हमारे देश को सैकड़ों वर्षों तक पराधीनता का कलंक झेलना पड़।।

देश की आजादी खोई स्वतंत्रता को पाने के लिए अनेक महापुरुषों, देशभक्तों तथा वीर जवानों को अपना बलिदान देना पड़ा। 15 अगस्त, 1947 को अंतत: देशवासियों को खोई आज़ादी मिली। जिस प्रकार किसी वस्तु को खोना सरल होता है, परंतु उसे पाना कठिन, उसी प्रकार खोई आजादी को पाने के लिए देशवासियों को बहुत कठिन परिश्रम करना पड़ा। इस महासंग्राम के पावन यज़ में अनेक देशभक्तों को आहुति देनी पड़ी। इनमें तात्याँ टोपे, मंगल पाडे, रानी लक्ष्मीबाई, वीर कुंवर सिंह, नानासाहब, भगतसिह, चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, बालगंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, सुभाषचंद्र बोस अदि नाम अविस्मरणीय हैं।

इनके अतिरिक्त महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरु, वल्लभभाई पटेल आदि को जेल की यात्रा करनी पड़ी। इन्हीं शहीदों के बलिदान को याद करने तथा अपनी आजादी की रक्षा के लिए प्रतिवर्ष 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है।

स्वतंत्रता दिवस-राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाना स्वतंत्रता दिवस को राष्ट्रीय पर्व के रूप में सारे देश में जोश और उल्लास से मनाया जाता है। स्वतंत्रता दिवस का मुख्य पर्व भारत की राजधानी दिल्ली में लालकिले पर मनाया जाता है। इस दिन प्रात:काल प्रधानमंत्री राष्ट्रीय ध्वज फहराकर राष्ट्र के नाम संदेश प्रसारित करते हैं। इस समारोह में लाखों नर-नारी एकत्र होते हैं। वे राष्ट्र के नाम प्रसारित संदेश सुनते हैं। इसमें देश की प्रगति का खाका खीचते हुए प्रगति के पथ पर अग्रसर करने की झलक मिलती है। इस अवसर पर देश के कृतज लोगों द्वारा वीर शहीदों को याद किया जाता है।

उपसंहार स्वतंत्रता दिवस एक ओर खुशी का संदेश लेकर आता है, तो दूसरी ओर देशवासियों को उनके कर्तव्य की याद भी दिलाता है, इसलिए देशवासियों को इस पावन अवसर पर प्रण करना चाहिए कि हम देश की रक्षा करते हुए अपना सर्वस्व अर्पण कर देंगे। हम ऊँच-नीच का भेद्भाव भुलाकर अपनी एकता बनाए रखेंगे और शहीदों को सम्मान देते हुए उनके प्रति कृतज्ञ बने रहेंगे।

गणतंत्र दिवस

भूमिका भारत त्योहारों का देश है। यहाँ कई प्रकार के त्योहार मनाए जाते हैं। इनमें कुछ सामाजिक, कुछ धार्मिक और कुछ राष्ट्रीय त्योहार हैं। राष्ट्रीय त्योहारों में गणतंत्र दिवस अपना विशेष महत्व रखता है। इस पर्व को सारा देश मिल-जुलकर मनाता है।

गणतंत्र दिवस-एक ऐतिहासिक दिन हमारा देश भारत 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्र हुआ था, पर इसका अपना संविधिन 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया। उसी समय से 93 जनवरी को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता है। इसी ऐतिहासिक दिन को डॉं. राजेंद्र प्रसाद को भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में शपथ दिलाई गई थी। स्वतंत्रता दिवस की भांति ही इस राष्ट्रीय पर्व को भी अत्यंत धूमधाम से सारा देश मिल-जुलकर मनाता है। इस दिन राजपत्रित अवकाश होता है। इससे लोग इस पर्व में बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं।

विभिन्न राज्यों की राजधानियों एवं देशभर में सभी सरकारी भवनों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है। विद्यालयों में बच्चों को एकत्र कर प्रभात फेरियाँ निकाली जाती हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं और बच्चों को देश की आज्ञादी, एकता और अखंड़ता बनाए रखने की शपथ दिलाई जाती है। पूरे देश में राष्ट्रीय एकता, देशप्रेम और देशभक्ति बढ़ाने वाले गीतों की गूँज सुनाई देती है। विदेशों में रहने वाले भारतीय भी इस पर्व को हर्षोल्लास से मनाते हैं।

राजधानी में गणतंत्र दिवस देश की राजधानी नई दिल्ली में गणतंत्र दिवस का समारोह विशेष रूप से मनाया जाता है। इस दिन पूरी दिल्ली को सजाया जाता है। राष्ट्रपति शाही बग्यी पर बैठकर विजय चौक आते हैं। वहाँ देश के प्रधानमंत्री और तीनों सेना के प्रमुख राष्ट्रपति का स्वागत करते हैं। इस भव्य समारोह को देखने के लिए दिल्ली के अतिरिक्त दूर-दूर से लोग आते हैं। चिजय चौक पर अद्भुत दृश्य होता है। सेना के तीनों अंगों द्वारा राष्ट्रपति को सलामी दी जाती है। उनके सामने सामरिक अस्त्र-शस्त्रों का प्रदर्शन किया जाता है।

सेना के जवानों द्वारा हैरतअंगेज कारनामे प्रस्तुत किए जाते हैं। इस अवसर पर विभिन्न राज्यों की झंकियाँ प्रस्तुत की जाती है तथा देश के सभी प्रांतों से आए कलाकार अपनी कला का प्रदर्शंन करते हैं। विभिन्न स्कूलों के छात्रों और पुलिस के जवानों द्वारा बैंड वादन किया जाता है। राष्ट्रपति द्वारा साहसिक कारनामा करने वाले बच्चों को पुरस्कृत किया जाता है।

उपसंहार गणतंत्र दिवस हमें अपनी एकता एवं अखंडता बनाए रखने की सीख देता है। हम भारतीयों को अपनी जान देकर अपनी मातृभूमि की रक्षा करनी चाहिए, यही गणतंत्र दिवस का संदेश है।

मेरी दिल्ली हरी-भरी

भूमिका मुझे जिस पावन एवं सुंदर भू-भाग पर जन्म लेने पर पलने-बढ़ने का सौभाग्य मिला है, दुनिया उसे भारत के नाम से जानती है। इसकी राजधानी नई दिल्ली है, जिसे ‘हिंदुस्तान का दिल’ कहा जाता है। यह भारत की राजधानी होने के अतिरिक्त संसार के सुंदर देशों में से एक है। यह हमारे देश का अत्यंत सुंदर और प्राचीन नगर है, जो यमुना नदी के किनारे पर स्थित है।

दिल्ली-एक ऐतिहासिक नगर दिल्ली प्राचीन ऐतिहासिक नगर है, जो परिस्थितिवश अनेक बार बसी और उखड़ी है। महाभारत काल में पांडवों ने इसे दोबारा बसाया और उसका नाम इंद्रप्रस्थ रखा। बाद में इसका नाम शाहजहानाबाद पड़फ अंत में इसका नाम दिल्ली पड़ा। मुगल शासकों ने इसे अपनी राजधानी बनाया। इसकी भव्यता, सुंदरता और समृद्धि देखकर अंग्रेज शासकों ने भी इसे राजधानी और सत्ता का केंद्र बनाया।

हरी-भरी दिल्ली में प्रदूषण दिल्ली पहले बहुत ही हरी-भरी थी। यहाँ जगह-जगह बाग-बगीचे थे, जिनका प्राकृतिक सौदर्य मनोहारी था। इसके एक ओर अरावली की पहाड़ियाँ थीं, तो इसके पूर्वी भाग में यमुना नदी कल-कल करती बहा करती थी। यहाँ रोजगार के नाना प्रकार के साधन थे, इसलिए आस-पास के राज्यों से लोग आते रहे। बढ़ती आबादी की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए हरे-भरे पेड़ों को काटा गया।

मोटरगाड़ियों की संख्या बढ़ी। इससे एक ओर दिल्ली का सौंदर्य नष्ट हुआ, तो दूसरी ओर प्रदूषण का स्तर निरंतर बढ़ता गया। यमुना, जो पतित पावनी मानी जाती थी, इतनी प्रदूषित हो गई कि उसका जल पीना तो दूर स्नान करने लायक भी न रह गया। मोटरगाड़ियों और कल-कारखानों का शोर निरंतर ध्वनि प्रदूषण बढ़ा रहा है।

दिल्ली को हरा-भरा बनाने के उपाय दिल्ली को हरा-भरा बनाने के लिए लोगों में जागरूकता उत्पन्न हुई है। इस दिशा में सरकार ने भी आवश्यक कदम उठाया है। यहाँ वर्षा ऋतु आते ही उद्यान विभाग और पौधशालाओं से पौधों का नि:शुल्क वितरण किया जाता है, ताकि लोग अपने आस-पास खाली पड़ी भूमि पर अधिकाधिक पौधे लगाएँ तथा पेड़ बनने तक उनकी रक्षा करें। इसके अतिरिक्त हरे पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध लगाया गया है। मोटरगाडियों में शीशा रहित पेट्रोल का प्रयोग और मेट्रो रेल के परिचालन से प्रदूषण में कमी आई है। इसके अतिरिक्त यमुना की सफाई के लिए उठाए गए आवश्यक कदमों से दिल्ली को सौदर्य वापस मिलेगा।

उपसंहार हमें दिल्ली के पर्यावरण में सुधार करने और प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए जागरूकता लानी आवश्यक है।
सरकार और नागरिकों की साझेदारी के माध्यम से हरी-भरी दिल्ली का सपना पुनः साकार हो सकता है। हम औद्योगिकीकरण को समझकर नि:शुल्क पौधों का वितरण करके और पौधारोपण करके समृद्ध और हरी भरी दिल्ली के सपने को साकार करने में अपना सहयोग दे सकते हैं।

जल ही जीवन है

भूमिका जल है, तभी जीवन है। वैज्ञानिक कहते हैं कि मनुष्य का जन्म जल से हुआ है। जल न हो, तो कोई खाने या पीने का पदार्थ नहीं बन सकता। इसके बिना मनुष्य जी नहीं सकता। तभी सभी मानव सभ्यताएँ नदियों, झरनों या तालाबों के आस-पास जन्मीं, पली-बढ़ी और विकसित हुई। ऐसे जल को जीवन कहना गलत नहीं है।

प्रकृति का वरदान जल प्रकृति का वरदान है। इसे कोई मनुष्य नहीं बना सकता। हाँ, यह मनुष्य को जीवित रख सकता है। धरती पर जितना जल है, उसका 97.3 % जल खारे समुद्र में एकत्र है। इसका उपयोग मानव जाति नहीं कर सकती। 2 % बर्फ के रूप में जमा है। शेष बचे 0.07 % जल में से 0.06 % नदियों, झरनों में बहता है। मात्र 0.01 % जल धरती पर सुरक्षित है। आज हम जल-संकट से गुजर रहे हैं।

उसके दो कारण हैं-बढ़ती जनसंख्या और जल का गलत ढंग से संरक्षण। जनसंख्या बढ़ रही है तो उसको पीने, नहाने, धोने के लिए जल चाहिए। मनुष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए कारखाने और मकान भी चाहिए और चाहे कारखाने चलाने हों या फैक्ट्रियाँ, जल की आवश्यकता हमेशा बनी रहती है। यदि बढ़ती हुई जरूरतों के हिसाब से मनुष्य जल का सही रूप से संरक्षण कर ले, तब भी जल-संकट दूर हो सकता है, लेकिन इस दिशा में आज का व्यक्ति चितित तो है, पर तैयार नहीं है।

जल संरक्षण के उपाय वर्षा का जल पीने योग्य तथा उपयोगी होता है, लेकिन इसका 80 % भाग नदी-नालों में बहकर वापस सभुद्र में चला जाता है। यदि उस जल को जंगलों, तालाबों आदि स्थानों में रोक लिया जाए, तो हम जल-संकट से मुक्ति पा सकते है। जल-संकट से मुक्ति के उपाय निम्नलिखित हैं

  1. हमें जंगलों को हरा-भरा बनाना चाहिए।
  2. खुले और ढके हुए तालाबों को स्वच्छ और भरा-पूरा रखना चाहिए।
  3. वर्षा के जल को भूमि के अंदर तक पहुँचाने की व्यवस्था करनी चाहिए।
  4. नदियों के पवित्र जल को गंदगी व कचरे से दूर रखना चाहिए।

उपसंहार अंत में हम कह सकते हैं कि हम मनुष्य जितनी जल्दी जागृत होंगे, उतनी जल्दी जीवन देने वाले जल को संरक्षित कर सकेंगे और जीवन को एक अमूल्य भेंट प्रदान करेंगे। रहीमदास ने कहा है कि

रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।।
अर्थात् पानी के बिना कुछ संभव नहीं है और हमें पानी का संरक्षण और रख-रखाव सही तरीके से करना चाहिए।

शिकार होना पड़ा। दक्षिण अफ्रीका में गाँधीजी ने रंग-भेद के विरुद्ध आवाज उठाई और लोगों का समर्थन प्राप्त किया।

गाँधीजी का स्वतंत्रता के लिए आंदोलन गाँधीजी दक्षिण अफ्रीका से वापस भारत आए और स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष शुरू किया। उन्होंने सत्य और अहिंसा को अपना अस्त्र बनाया। उनका ‘सत्याग्रह’ पूरे देश में प्रसिद्ध हो गया। उनके रूप में देशवासियों को एक नया नेतूत्व मिल चुका था। उन्होंने वर्ष 1921 में ‘असहयोग आंदोलन’, वर्ष 1930 में ‘नमक सत्याग्रह’ और वर्ष 1942 में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलन चलाया। उनके अनवरत् प्रयासों से देश ने 15 अगस्त, 1947 को आजादी का नया सूरज देखा।

उपसंहार गाँधीजी मानवता के सच्चे पुजारी थे। उन्होने कभी किसी को छोटा नहीं समझा। उन्होने अछूतों को ‘हरिजन’ नाम देकर समाज में उन्हें सम्मानजनक स्थान दिया। वे भारत में सभी को सुखी और स्वस्थ देखना चाहते थे। इसलिए हमें गाँधीजी के आदर्शों का पालन करना चाहिए। ‘रघुपति राघव राजाराम’ उनका प्रसिद्ध भजन था। मानवता का यह पुजारी 30 जनवरी, 1948 को भारतवासियों को छोड़कर सदा के लिए चला गया।

स्वंतंत्रता दिवस

भूमिका इस धरती पर शायद ही कोई ऐसा प्राणी हो, जिसे परतंत्रता प्रिय हो। इसके विपरीत स्वतंत्रता सभी को प्रिय होती है। दुर्भाग्य से यदि किसी प्राणी की स्वतंत्रता छिन जाती है, तो वह उसे पाने के लिए प्राण रहने तक संघर्ष करता है। कुछ ऐसा ही भारतवासियों के साथ हुआ था। हमारे देश को सैकड़ों वर्षों तक पराधीनता का कलंक झेलना पड़ा।

देश की आजादी खोई स्वतंत्रता को पाने के लिए अनेक महापुरुषों, देशभक्तों तथा वीर जवानों को अपना बलिदान देना पड़ा। 15 अगस्त, 1947 को अंतत: देशवासियों को खोई आज़ादी मिली। जिस प्रकार किसी वस्तु को खोना सरल होता है, परंतु उसे पाना कठिन, उसी प्रकार खोई आजादी को पाने के लिए देशवासियों को बहुत कठिन परिश्रम करना पड़ा। इस महासंग्राम के पावन यज़ में अनेक देशभक्तों को आहुति देनी पड़ी। इनमें तात्याँ टोपे, मंगल पांडे, रानी लक्ष्मीबाई, वीर कुँंर सिंह, नानासाहब, भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, बालगंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, सुभाषचंद्र बोस अदि नाम अविस्मरणीय हैं।

इनके अतिरिक्त महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहर, वल्लभभाई पटेल आदि को जेल की यात्रा करनी पड़ी। इन्हीं शहीदों के बलिदान को याद करने तथा अपनी आजादी की रक्षा के लिए प्रतिवर्ष 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है।

स्वतंत्रता दिवस-राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाना स्वतंत्रता दिवस को राष्ट्रीय पर्व के रूप में सारे देश में जोश और उल्लास से मनाया जाता है। स्वतंत्रता दिवस का मुख्य पर्व भारत की राजधानी दिल्ली में लालकिले पर मनाया जाता है। इस दिन प्रात:काल प्रधानमंत्री राष्ट्रीय ध्वज फहराकर राष्ट्र के नाम संदेश प्रसारित करते हैं। इस समारोह में लाखों नर-नारी एकत्र होते हैं। वे राष्ट्र के नाम प्रसारित संदेश सुनते हैं। इसमें देश की प्रगति का खाका खींचते हुए प्रगति के पथ पर अग्रसर करने की झलक मिलती है। इस अवसर पर देश के कृतज्ञ लोगों द्वारा वीर शहीदों को याद किया जाता है।

उपसंहार स्वतंत्रता दिवस एक ओर खुशी का संदेश लेकर आता है, तो दूसरी ओर देशवासियों को उनके कर्तन्त्य की याद भी दिलाता है, इसलिए देशवासियों को इस पावन अवसर पर प्रण करना चाहिए कि हम देश की रक्षा करते हुए अपना सर्वस्व अर्पण कर देगे। हम ऊँच-नीच का भेदभाव भुलाकर अपनी एकता बनाए रखेंगे और शहीदों को सम्मान देते हुए उनके प्रति कृतज्ञ बने रहेंगे।

गणतंत्र दिवस

भूमिका भारत त्योहारों का देश है। यहाँ कई प्रकार के त्योहार मनाए जाते हैं। इनमें कुछ सामाजिक, कुछ धार्मिक और कुछ राष्ट्रीय त्योहार हैं। राष्ट्रीय त्योहारों में गणतंत्र दिवस अपना विशेष महत्त्व रखता है। इस पर्व को सारा देश मिल-जुलकर मनाता है।

गणतंत्र दिवस-एक ऐतिहासिक दिन हमारा देश भारत 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्र हुआ था, पर इसका अपना संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया। उसी समय से 93 जनवरी को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता है। इसी ऐतिहासिक दिन को डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में शपथ दिलाई गई थी। स्वतंत्रता दिवस की भाँति ही इस राष्ट्रीय पर्व को भी अत्यंत धूमधाम से सारा देश मिल-जुलकर मनाता है। इस दिन राजपत्रित अवकाश होता है। इससे लोग इस पर्व में बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं।

विभिन्न राज्यों की राजधानियों एवं देशभर में सभी सरकारी भवनों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है। विद्यालयों में बच्चों को एकत्र कर प्रभात फेरियाँ निकाली जाती हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं और बच्चों को देश की आज्ञादी, एकता और अखंडता बनाए रखने की शपथ दिलाई जाती है। पूरे देश में राष्ट्रीय एकता, देशप्रेम और देशभक्ति बढ़ाने वाले गीतों की गूँज सुनाई देती है। विदेशों में रहने वाले भारतीय भी इस पर्व को हर्षोल्लास से मनाते हैं।

राजधानी में गणतंत्र दिवस देश की राजधानी नई दिल्ली में गणतंत्र दिवस का समारोह विशेष रूप से मनाया जाता है। इस दिन पूरी दिल्ली को सजाया जाता है। राष्ट्रपति शाही बग्घी पर बैठठकर विजय चौक आते हैं। वहाँ देश के प्रधानमंत्री और तीनों सेना के प्रमुख राष्ट्रपति का स्वागत करते हैं। इस भव्य समारोह को देखने के लिए दिल्ली के अतिरिक्त दूर-दूर से लोग आते हैं। विजय चौक पर अद्भुत दृश्य होता है। सेना के तीनों अंगों द्वारा राष्ट्पति को सलामी दी जाती है। उनके सामने सामरिक अस्त्र-शस्त्रों का प्रदर्शन किया जाता है।

सेना के जवानों द्वारा हैरतअंगेज कारनामे प्रस्तुत किए जाते है। इस अवसर पर विभिन्न राज्यों की झांकियाँ प्रस्तुत की जाती हैं तथा देश के सभी प्रांतों से आए कलाक़ार अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। विभिन्न स्कूलों के छात्रों और पुलिस के जवानों द्वारा बैंड वादन किया जाता है। राष्ट्रपति द्वारा साहसिक कारनामा करने वाले बच्चों को पुरस्कृत किया जाता है।

उपसंहार गणतंत्र दिवस हमें अपनी एकता एवं अखंडता बनाए रखने की सीख देता है। हम भारतीयों को अपनी जान देकर अपनी मातृभूमि की रक्षा करनी चाहिए, यही गणतंत्र दिवस का संदेश है।
मेरी किल्ली ह्री भरी

भूमिका मुझे जिस पावन एवं सुंदर भू-भाग पर जन्म लेने पर पलने-बढ़ने का सौभाग्य मिला है, दुनिया उसे भारत के नाम से जानती है। इसकी राजधानी नई दिल्ली है, जिसे ‘हिंदुस्तान का दिल’ कहा जाता है। यह भारत की राजधानी होने के अतिरिक्त संसार के सुंदर देशों में से एक है। यह हमारे देश का अत्यंत सुंदर और प्राचीन नगर है, जो यमुना नदी के किनारे पर स्थित है।

दिल्ली-एक ऐतिहासिक नगर दिल्ली प्राचीन ऐतिहासिक नगर है, जो परिस्थितिवश अनेक बार बसी और उखड़ी है। महाभारत काल में पांडवों ने इसे दोबारा बसाया और उसका नाम इंद्रप्रस्थ रखा। बाद में इसका नाम शाहजहानाबाद पड़फ अंत में इसका नाम दिल्ली पड़ा। मुगल शासकों ने इसे अपनी राजधानी बनाया। इसकी भव्यता, सुंदरता और समृद्धि देखकर अंग्रेज शासकों ने भी इसे राजधानी और सत्ता का केंद्र बनाया।

हरी-भरी दिल्ली में प्रदूषण दिल्ली पहले बहुत ही हरी-भरी थी। यहाँ जगह-जगह बाग-बगीचे थे, जिनका प्राकृतिक सौदर्य मनोहारी था। इसके एक ओर अरावली की पहाडियाँ थीं, तो इसके पूर्वीं भाग में यमुना नदी कल-कल करती बहा करती थी। यहाँ रोजगार के नाना प्रकार के साधन थे, इसलिए आस-पास के राज्यों से लोग आते रहे। बढ़ती आबादी की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए हरे-भरे पेड़ों को काटा गया।

मोटरगाड़ियों की संख्या बढ़ी। इससे एक ओर दिल्ली का सौंदर्य नष्ट हुआ, तो दूसरी ओर प्रदूषण का स्तर निरंतर बढ़ता गया। यमुना, जो पतित पावनी मानी जाती थी, इतनी प्रदूषित हो गई कि उसका जल पीना तो दूर स्नान करने लायक भी न रह गया। मोटरगाड़ियों और कल-कारखानों का शोर निरंतर ध्वनि प्रदूषण बढ़ा रहा है।

दिल्ली को हरा-भरा बनाने के उपाय दिल्ली को हरा-भरा बनाने के लिए लोगों में जागरूकता उत्पन्न हुई है। इस दिशा में सरकार ने भी आवश्यक कदम उठाया है। यहाँ वर्षा ऋतु आते ही उद्यान विभाग और पौधशालाओं से पौधों का नि:शुल्क वितरण किया जाता है, ताकि लोग अपने आस-पास खाली पड़ी भूमि पर अधिकाधिक पौधे लगाएँ तथा पेड़ बनने तक उनकी रक्षा करें। इसके अतिरिक्त हरे पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध लगाया गया है। मोटरगाडियों में शीशा रहित पेट्रोल का प्रयोग और मेट्रो रेल के परिचालन से प्रदूषण में कमी आई है। इसके अतिरिक्त यमुना की सफाई के लिए उठाए गए आवश्यक कदमों से दिल्ली को सौदर्य वापस मिलेगा।

उपसंहार हमें दिल्ली के पर्यावरण में सुधार करने और प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए जागरूकता लानी आवश्यक है।
सरकार और नागरिकों की साझेदारी के माध्यम से हरी-भरी दिल्ली का सपना पुनः साकार हो सकता है। हम औद्योगिकीकरण को समझकर नि:शुल्क पौधों का वितरण करके और पौधारोपण करके समृद्ध और हरी भरी दिल्ली के सपने को साकार करने में अपना सहयोग दे सकते हैं।

जल ही जीवन है

भूमिका जल है, तभी जीवन है। वैज्ञानिक कहते हैं कि मनुष्य का जन्म जल से हुआ है। जल न हो, तो कोई खाने या पीने का पदार्थ नहीं बन सकता। इसके बिना मनुष्य जी नहीं सकता। तभी सभी मानव सभ्यताएँ नदियों, झरनों या तालाबों के आस-पास जन्मीं, पली-बढ़ी और विकसित हुई। ऐसे जल को जीवन कहना गलत नहीं है।

प्रकृति का वरदान जल प्रकृति का वरदान है। इसे कोई मनुष्य नहीं बना सकता। हाँ, यह मनुष्य को जीवित रख सकता है। धरती पर जितना जल है, उसका 97.3 % जल खारे समुद्र में एकत्र है। इसका उपयोग मानव जाति नहीं कर सकती। 2 % बर्फ के रूप में जमा है। शेष बचे 0.07 % जल में से 0.06 % नदियों, झरनों में बहता है। मात्र 0.01 % जल धरती पर सुरक्षित है। आज हम जल-संकट से गुजर रहे हैं। उसके दो कारण हैं-बढ़ती जनसंख्या और जल का गलत ढ़ंग से संरक्षण।

जनसंख्या बढ़ रही है तो उसको पीने, नहाने, धोने के लिए जल चाहिए। मनुष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए कारखाने और मकान भी चाहिए और चाहे कारखाने चलाने हों या फैक्ट्रियाँ, जल की आवश्यकता हमेशा बनी रहती है। यदि बढ़ती हुई जरूरतों के हिसाब से मनुष्य जल का सही रूप से संरक्षण कर ले, तब भी जल-संकट दूर हो सकता है, लेकिन इस दिशा में आज का व्यक्ति चितित तो है, पर तैयार नहीं है।

जल संरक्षण के उपाय वर्षा का जल पीने योग्य तथा उपयोगी होता है, लेकिन इसका 80 % भाग नदी-नालों में बहकर वापस समुद्र में चला जाता है। यदि उस जल को जंगलों, तालाबों आदि स्थानों में रोक लिया जाए, तो हम जल-संकट से मुक्ति पा सकते है। जल-संकट से मुक्ति के उपाय निम्नलिखित हैं

  1. हमें जंगलों को हरा-भरा बनाना चाहिए।
  2. खुले और ढके हुए तालाबों को स्वच्छ और भरा-पूरा रखना चाहिए।
  3. वर्षा के जल को भूमि के अंदर तक पहुँचाने की व्यवस्था करनी चाहिए।
  4. नदियों के पवित्र जल को गंदगी व कचरे से दूर रखना चाहिए।

उपसंहार अंत में हम कह सकते हैं कि हम मनुष्य जितनी जल्दी जागृत होंगे, उतनी जल्दी जीवन देने वाले जल को संरक्षित कर सकेंगे और जीवन को एक अमूल्य भेंट प्रदान करेंगे। रहीमदास ने कहा है कि

रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।।
अर्थात् पानी के बिना कुछ संभव नहीं है और हमें पानी का संरक्षण और रख-रखाव सही तरीके से करना चाहिए।

रक्षाबंधन
(भाई-बहनों के प्रेम का त्योहार)

भूमिका रक्षाबंधन भारत में मनाया जाने वाला प्रमुख त्योहार है। भारतीय त्योहारों में इसका विशेष महत्व है। यह त्योहार भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को और भी मजबूती प्रदान करता है। यह भाई को बहन के प्रति अपने कर्त्त्यों की याद दिलाता है। रक्षाबंधन का त्योहार मनाए जाने के पीछे पौराणिक कथा यह है कि एक बार इंद्र और राक्षसों के बीच भीषण युद्ध हुआ, जिसमें देवताओं की पराजय सुनिश्चित लगने लगी, तब इंद्र की पत्नी शची ने देवताओं को राखी बॉंधी।

तब इंद्र के साथ और देवताओं ने भी राक्षसों से युद्ध किया और उन्हें पराजित किया। इसके अतिरिक्त जब बहादुशशाह ने मेवाइ पर आक्रमण किया और राजपूत हारने लगे, तब चित्तौड़ की महारानी कर्मवती ने मेवाड़ की रक्षा के लिए हुमायूँ को राखी भेजी थी। इस राखी की लाज रखते हुए हुमायूँ ने अपनी सेना के साथ तत्काल प्रस्थान किया और चित्तौड़ की रक्षा की।

भाईे-बहन का पर्व रक्षाबंधन का पर्व सावन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है, इसलिए इसे ‘श्रावर्ण’ भी कहा जाता है। इस दिन बहने थाली में मिठाइयाँ, रोली टीका और राखी रखकर भाइयों के पास जाती है, उन्हें तिलक लगाती हैं और उनके हाथ में राखी बाँधती है। भाई उन्हें उपहारस्वरूप कुछ धन, कपड़े या अन्य उपहार देते हैं तथा रक्षा का वचन देते हैं। इससे भाई-बहन के रिश्ते में और भी प्रगाढ़ता आती है।

प्रेम व स्नेह का प्रतीक रक्षाबंधन भाई-बहन के पवित्र प्रेम एवं स्नेह का प्रतीक है। यह पूरे देश में उल्लास के साथ मनाया जाता है। देश के कुछ स्थानों पर पुरोहित अपने यजमान को रक्षा सूत्र बाँधते है। देश की सीमा पर पहरा देने वाले जवानों के हाथों में राखियाँ बाँधी जाती हैं। कुछ उत्साही बच्चे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भी राब्खी बाँधकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मध्यकाल में युद्ध में जाते हुए भाइयों के हाथ में बहनें राबी बाँधकर उन्हें रणभूमि में भेजती थीं।

उपसंहार रक्षाबंधन पविश्रता और सादगी का त्योहार है, जो भाई-बहन के पावन रिश्ते को प्रगाद बनाता है। इस त्योहार में मानवीय भावनाओं को महत्ता देनी चाहिए, न कि धन को। कुछ लोग थोड़े-से पैसे देकर अपने कर्त्त्यों की इतिश्री समझ लेते है। हमें ऐसा नहीं करना चाहिए। हमें राखी के धागे में छिपे प्यार और कर्तव्य के संदेश को समझना और पूरा करना चाहिए।

विश्व योग दिवस

भूमिका योग का अर्थ होता है-जुड़ना। योग खुद से जुड़ने की क्रिया है और जो खुद से जुड़ पाता है वही समाज के लिए कुछ कर पाता है। आज बहुत-से लोग अपने जीवन में आर्थिक रूप से सुखी हैं, परंतु जीवन की भाग-दौड़ ने उनको मानसिक रूप से खुश नहीं रहने दिया है। मन की शांति का एकमात्र साधन योग है। योग से न केवल मन की शांति, बल्कि सैकड़ों बीमारियों का इलाज भी संभव है। इसलिए कहा जाता है कि ‘करें योग, रहें निरोगा’ इसका अर्थ यह है कि योग करने से मनुष्य निरोग रहता है और कौन नहीं चाहता कि हम स्वस्थ जीवन व्यतीत न करें।

योग दिवस की शुरुआत भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने 27 सितंबर, 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण में कहा-
“योग भारत की प्राचीन परंपरा का एक अमूल्य उपहार है यह दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक है।”
‘इसके बाद प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की पहल से 21 जून, 2015 को प्रथम विश्व योग दिवस मनाया गया तथा अब प्रत्येक वर्ष 21 जून को ‘विश्व योग दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा।

मानव जीवन का अभिन्न अंग योग की शुरुआत भारत में प्राचीनकाल से मानी जाती है। योग हजारों वर्षों से भारतीयों की जीवन-शैली का हिस्सा रहा है। यह भारत की धरोहर है। योग में पूरी मानव जाति को एकजुट करने की शक्ति है। योग ज्ञान, कर्म और भक्ति का मिश्रण है। दुनियाभर के अनेक लोगों ने योग को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाया है। दुनिया के कई हिस्सों में इसका प्रचार-प्रसार हो चुका है। हमारे देश का योग विदेश में योगा (Yoga) नाम से प्रचलित है। सभी देश-विदेश के लोगों की दिनचर्यां का अभिन्न अंग योग ही है।

विश्व योग दिवस की घोषणा संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष सैम के कुटेसा ने 21 जून को विश्व योग दिवस मनाने की घोषणा की और कहा कि 170 से अधिक देशों ने विश्व योग दिवस के सुझाव का समर्थन किया है, जिससे पता चलता है कि योग के लाभ विश्व के लोगों को कितना आकर्षित करते हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी बधाई दी, जिनकी पहल से 21 जून को प्रत्येक वर्ष विश्व योग दिवस घोषित किया गया है। विश्व योग दिवस का उद्देश्य पूरे विश्व में योग से मिलने वाले लाभों के प्रति लोगों को जागरूक करना है।

उपसंहार केंद्र सरकार ने प्रथम विश्व योग दिवस के कार्यक्रम के अवसर पर किए गए योगासन के बारे में फिल्म तैयार करवाई। इस फिल्म को देखकर लोग घर बैठे टीवी, इंटरनेट के माध्यम से भिन्न-भिन्न प्रकार के योगासनों का लाभ उठा सकेंगे। इस प्रकार, कहा जा सकता है योग मात्र किसी एक व्यक्ति की जरूरत न होकर संपूर्ण मानव जीवन की जरूरत है। इस योग दिवस ने विश्व बंधुत्व की भावना को उजागर किया है। आज के समयँ में योग हमारी जरूरत से अधिक आदत बन गई है, जो हमारे शारीरिक और मानसिक विकास का आधार है।

ईद

भूमिका मानव जीवन में त्योहारों का विशेष महत्त्व है। त्योहार जीवन की नीरसता दूर कर मनुष्य के थके-हारे मन को नवोल्लास तथा उत्साह से भर देते हैं। त्योहार मनुष्य को एक-दूसरे के निकट लाते है तथा आपस में एकता, भाईचारा, सांप्रदायिक सद्भाव और मेल-जोल बढ़ाते हैं। त्योहार हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है, जो देश के एकीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऐसा ही एक प्रमुख त्योहार है-ईद।

एकता का त्योहार ईद हमारे देश में मनाए जाने वाले अधिकांश त्योहारों का जुड़ाव धर्म के साथ है। यद्यपि विभिन्नता में छिपी एकता की मजबूत भावना रखने वाले भारत देश में त्योहारों को सभी लोग मिल-जुलकर मनाते हैं। ईंद मुसलमानों का प्रमुख और सबसे लोकप्रिय त्योहार है। यह त्योहार लोगों को मिल-जुलकर रहने, परोपकार करने और भाईचारा बनाए रखने का संदेश देता है।

रमजान का महीना व ईद की प्रतीक्षा रमजान इस्लामी कैलेंडर के नौवे महीने में मनाया जाता है, जो चाँद की दृश्यता के आधार पर तय किया जाता है। रमजान के आखिरी दिन चाँद देखकर अगले दिन ईंद घोषित की जाती है। इस एक माह की अवधि में मुसलमान पवित्रता के साथ रोजा रखते हैं तथा दिन में पाँच बार नमाज पढ़ते हैं। महीने भर की इस अव्वधि में वे दिनभर निर्जल रहकर शाम को अपना रोजा खोलते हैं। रोजे की समाप्ति के बाद् ही ईंद का त्योहार हषोंल्लास से मनाया जाता है।

ईद के दिन मुसलमान सूयोंदय के बाद किसी बड़ी मस्जिद में सामूहिक नमाज पढ़ते हैं। इस दिन मस्जिदों की भीड़ देखने योग्य होती है। इस नमाज में गजब का अनुशासन दिखाई देता है। लोग वहाँ आते हैं और पंक्तिबद्ध खड़े होकर एवं बैठकर नमाज पढ़ते हैं। नमाज खत्म होने के बाद वे परस्पर गले मिलते हैं और एक-दूसरे को ईद की मुबारकबाद देते हैं। घर आकर वह मीठी सेवडयाँ खाते एवं खिलाते हैं और गरीबों को दान भी देते हैं।

उपसंहार इस दिन सभी परस्पर बैर-भाव भूलकर प्रेम और सद्भाव के व्यवहार से ईद की सार्थकता सिद्ध करते हैं। ईद प्रसन्नता एवं सद्भावना फैलाने का त्योहार है। इस दिन हर आयु वर्ग के लोगों का उत्साह देखते ही बनता है। सभी भारतीयों को एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हुए एक-दूसरे के त्योहारों को मिल-जुलकर मनाना चाहिए, ताकि राष्ट्रीय एकता और अखंडता और भी मजबूत बने।

दीपावली
(अंधकार पर प्रकाश का प्रतीक वाला त्योहार)

भूमिका भारत पव्वों एवं त्योहारों का देश है। यहाँ समय-समय पर कोई-न-कोई पर्व-त्योहार मनाया जाता है। इन त्योहारों में रक्षाबंधन, दशहरा, होली, दीपावली, ईद आदि प्रमुख हैं। इनमें दीपों का त्योहार दीपावली अपना विशेष महत्त्व रखता है। इसे ‘प्रकाश का पर्व’ भी कहा जाता है। इस त्योहार में भारतीय संस्कृति की झाँकी मिलता है तथा यह हमारी एकता को मजबूत करते हुए जनजीवन को हर्षोल्लास से भर देता है।

दीपावली मनाए जाने का समय दीपावली दो शब्दों-‘दीप’ और ‘अवली’ के मेल से बना है। इसका अर्थ है-दीपों की पंक्तियाँ। सचमुच अमावस्या की रात में जब यह त्योहार मनाया जाता है, तो धरती पर असंख्य दीप एकसाथ जगमगा उठते हैं। इन्हें देखकर लगता है कि आसमान के लाखों तारे धरती पर उतर आए हैं। इससे धरती की शोभा कर्ई गुना बढ़ जाती है।

दीपावली का त्योहार कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को अत्यंत हषोल्लास से मनाया जाता है। दीपावली से दो दिन पहले धन तेरस का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन बर्तन एवं आभूषण खरीदना बहुत शुभ माना जाता है। इससे बर्तन एवं आभूषणों की दुकानों पर लगी भीड़ देखते ही बनती है। अगले दिन छोटी दीपावली या नरक चतुर्दशी मनाई जाती है।

मनाए जाने का तरीका इस दिन लोग खील-बताशे, कपड़े, मिठाइयाँ, उपहार, धूप-दीप-मालाएँ, मोमबत्तियाँ, बिजली के बल्बों की लड़ियाँ, मिट्टी के दीये आदि खरीदते हैं। बच्चे इस दिन पटाखे खरीदते हैं। शाम को दीप जलाकर लक्ष्मी-गणेश का पूजन किया जाता है। घर में जगह-जगह दीप जलाकर रखे जाते हैं। लोग एक-दूसरे से गले मिलकर दीपावली की शुभकामनाएँ देते हैं। वे अपने निकट संबंधियों को उपहार भी देते हैं। बच्चे अपने माता-पिता की देख-रेख में पटाखों का आनंद लेते है। इस स्योहार के अगले दिन गोवर्धन पूजा और अंतिम दिन भैख्यादूल का त्योहार मनाया जाता है।

पौराणिक कथा दीपावली मनाने के पीछे पौराणिक कथा यह है कि भगवान श्रीराम रावण को मारकर चौदह वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या वापस आए थे। उनके अयोध्या वापस आने की खुशी में लोगों ने घी के दीप जलाकर खुरियाँ मनाई थीं। तब से यह त्योहार प्रतिवर्ष मनाया जाता है। इसके अतिरिक्त सिखों के छठे गुरु हरगोविंद सिंह भी इसी दिन बंधन मुक्त हुए थे।

उपसंहार दीपावली हर्षोल्लास लाने वाला पर्व है। इसे सादगीपूर्वक मनाना चाहिए। पटाखे कम-से-कम जलाने चाहिए, ताकि प्रदृषण न बढ़ने पाए। कुछ लोग इस अवसर पर जुआ भी खेलते हैं। हमें इस दुष्पवृत्ति पर भी अंकुश लगाना चाहिए। दीपावली का त्योहार हमें एकता, स्वच्छता तथा खुशियों का संदेश देता है। अत: हमें इसे मिल-जुलकर प्रेम से मनाना चाहिए।

दशहरा
(असत्य पर सत्रा की जीत पर मनाया जाने वालों पर्व)

भूमिका भारत त्योहारों का देश है। साल में एक-दो महीनों को छोडकर यहाँ प्रत्येक माह कोई-न-कोई त्योहार मनाया जाता है। यहाँ रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, नागपंचमी, दशहरा, दीपावली, भैर्याद्ज. क्रिसमस, ईंद, लोहड़ी, बसंत पंचमी, होली, बैसाखी, राम नवमी आदि त्योहार खूब धूमधाम से मनाए जाते हैं। इनमें बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाने वाला त्योहार दशहरा अपना विशेष महत्च रखता है।

दशहरा मनाए जाने का समय दशहरा पर्व आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में प्रथमा तिथि से दशमी तक मनाया जाता है। इस समय प्रतेक शाम को भगवान राम की पात्वन लीला का मंचन किया जाता है। इसके अंतर्गत राम जन्म से लेकर रावण पर विजय पाने के घटनाक्रम को दिखाया जाता है। इसकी संगीतमय प्रस्तुति अत्यंत आकर्षक और मनभावन होती है। दसवें दिन राम-लक्ष्मण और सीता की झाँकियाँ निकाली जाती हैं।

बुराई पर अचछाई की जीत किसी खुले स्थान पर रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के विशालकाय पुतले खड़े किए जाते हैं। झाँकी का यहीं समापन होता है। मंत्रोचचारण के बीच राम के बाण मारते ही रावण का पुतला जल उठता है। अन्य बाणों से मेघनाथ और कुंभकरण के पुतले भी जल उठते हैं। इस तरह बुराई पर अच्छाई की जीत का अनुकरणीय प्रदर्शन होता है।

उपसंहार इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं। स्त्री-पुरुष और बच्चों का उत्साह एवं उल्लास देखने योग्य होता है। बच्चे खिलौनों के रूप में धनुष-बाण, गदा, मुखौटे आदि खरीदकर खुण होते हैं। दशहरा हमें बुराई से दूर रहने तथा अच्छाई को अपनाने की सीख देता है। इस अवसर पर हमें राम के अनुकरणीय चरित्र से सीख लेकर परस्पर प्रेम एवं सद्भाव से रहना चाहिए तथा लोगों में भी यही संदेश फैलाना चाहिए।

जन्माष्टमी
(मादान हुसण की बाल-लीला)

भूमिका भारत भूमि अत्यंत सुंदर, सुखद और पावन है। इस भूमि पर अनेक महापुरुषों और युगपुरुषों ने जन्म लिया है। यहाँ राम, कृष्ण, गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी, संत नानक देव, कबीर, तुलसी आदि युगपुरुषों और संत-महात्माओं ने जन्म लिया है, जिससे इस धरा की पवित्रता और महत्ता और भी बढ़ गई है। इनमें श्रीकृष्ण ऐसे ही युगपुरुष थे, जिनका जन्मदिवस श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के रूप में प्रतिवर्ष धूमधाम से मनाया जाता है।

जन्माष्टमी और पौराणिक कथा भारत भूमि को समय-समय पर अधर्म, अन्याय और अत्याचार का सामना करना पड़ा है। इसकी रक्षा के लिए तथा धर्म की स्थापना करने के लिए स्वयं ईश्वर ने विभिन्न रूपों में अवतार लिया है। कहा जाता है कि आज से हजारों वर्ष पूर्व मथुरा में उग्रसेन नामक राजा राज्य करते थे। उनका पुत्र कंस बहुत अत्याचारी था।

कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक राजा के साथ हुआ था। विवाह के बाद जब वसुदेव के साथ देवकी की विदाई हो रही थी, तब कंस को यह भविष्यवाणी सुनाई दी कि हे कंस! देवकी के आठवें पुत्र द्वारा तेरा वध किया जाएगा।

यह सुनते ही कंस ने वसुदेव और देवकी को कारागार में डाल दिया। उसने देवकी की सात संतानों का एक-एक कर वध कर दिया, पर जब आठवें बालक का जन्म श्रीकृष्ण के रूप में हुआ, तब उनकी बेडियाँ खुल गई। कारागार के रक्षक गहरी नींद में सो गए। भादो महीने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जन्मे बालक श्रीकृष्ण को वसुदेव अपने मित्र नंद के घर छोड़ आए और उनकी कन्या लाकर देवकी की गोद में डाल दी। प्रातःकाल कंस ने कन्या का वध कर दिया और भयमुक्त हो गया। उधर श्रीकृष्ण जब बड़े हुए, तब उन्होने कंस का वध किया। भगवान कृष्ण के जन्म दिवस को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है।

जन्माष्टमी मनाने का तरीका जन्माष्टमी के दिन लोग ब्रत-उपवास रखते हैं तथा शाम को मंदिर में या घर पर ही भजन-कीर्तन करते हैं। मंदिरों में झाँकियाँ सजाई जाती है, जिनमें पालने सुंदर ढंग से सजाए जाते हैं। आधी रात में श्रीकृष्ण का जन्म होते ही लोग उल्लासित हो उठते हैं। मंदिरों के घंटे बज उठते हैं। प्रसाद का वितरण होता है। क्से खाकर लोग अपना व्रत खोलते हैं। इस उत्सव की विशेष शोभा मधुरा के मंदिरों में देखते ही बनती है। वहाँ देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु एकत्र होते हैं और इस त्योहार का आनंद लेते हैं।

उपसंहार जन्माष्टमी का त्योहार हमें श्रीकृष्ण के जीवन से प्रेरणा लेने का संदेश देता है। यह त्योहार हमें साहसी बनने, अन्याय एवं अत्याचार न सहने तथा धर्म की राह अपनाने की प्रेरणा देता है। हमें श्रीकृष्ण के आदर्शों पर चलते हुए समाज में सद्भाव, प्रेम, भाईचारे और एकता को मजबूत करना चाहिए।

होली
(रंगों का त्योहार)

भूमिका मनुष्य अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए श्रम करता है। इससे उसके तन-मन को थकान और जीवन में नीरसता पैदा होती है। इस थकान और नीरसता को दूर करने के लिए वह त्योहारों का सहारा लेता है। ये त्योहार मनुष्य को उत्साह, ऊर्जा और हषोल्लास से भर देते हैं। होली ऐसा ही त्योहार है, जो प्रतिवर्ष खुशियाँ लेकर आता है और लोग आपसी मतभेद भुलाकर इसे मिल-जुलकर खुशी-खुशी मनाते हैं। यह त्योहार रंग और गुलाल उड्काकर मनाया जाता है। इसलिए इसे रंगों का त्योहार भी कहा जाता है।

होली की पौराणिक कथा होली का त्योहार सारे देश में मिल-जुलकर मनाया जाता है। इस त्योहार को मनाने के पीछे जनश्रुति यह है कि हिरण्यकश्यप नामक राक्षसों का राजा था, जो बहुत अत्याचारी था। वह स्वयं को भगवान समझता था। वह चाहता था कि लोग उसे भगवान मानकर उसकी पूजा करें, पर उसका पुत्र प्रह्बाद ईश्वर का पक्का भक्त था। वह ईश्वर में गहरी आस्था और विश्वास रखता था।

इससे रुष्ट होकर हिरण्यकश्यप ने उसे प्रताड़ित करना शुरु किया और कई बार उसे मारने का असफल प्रयास किया। प्रह्लाद की खुआ होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। हिरण्यकश्यप ने होलिका को आदेश दिया कि वह प्रद्नाद को लेकर आग में बैठ जाए, जिससे प्रद्बाद जलकर मर जाए। ईश्वर की कृपा से प्रह्लाद तो बच गया, परंतु होलिका जल गई। इसी घटना की याद में होली का त्थोहार मनाया जाता है।

रंगों का त्योहार होली का त्योहार वसंत ऋतु में फालुनुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस रात्रि में लकड़ियों और उपलों का छेर लगाकर होलिका जलाई जाती है।

लोग उसकी परिक्रमा करते हैं। इसी आग में नए अनाज की बालियाँ भूनकर उन्हें प्रसाद के रूप में घर लाया जाता है। इसके अंगले दिन रंगों का ल्योहार होली मनाई जाती है। बच्चे सवेरे से ही रंग और पिचकारियाँ लेकर निकल पड़ते हैं। एक-दूसरे पर रंग डालते हैं। बच्चे, युवा तथा बड़े सभी रंगों में रंगीन हो जाते हैं। वे बूढो तथा बुजुर्गों को अबीर लगाकर उनके चरण छूकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस अवसर पर सभी होली की शुभकामनाएँ देते हैं।

उपसंहार होली खुशियों का स्योहार है। यह प्रेम, एकता, सद्भावना, भाईचारा बढ़ाने वाला त्योहार है। हमें आपसी घुणा, शत्रुता, बैर-भाव, द्वेष भूलकर प्रेमपूर्वक मिल-जुलकर होली मनानी चाहिए तथा अपने साथ-साथ दूसरों के जीवन को भी रंगों की खुशियों से भर देना चाहिए, ताकि सभी के लिए होली मंगलमय बन जाए।

5G नेटवर्क

भूमिका 5G में ‘G’ का अर्थ जनरेशन (पीद़ी) होता है। जिस भी पीढ़ी की टेक्नोलॉजी का प्रयोग किया जाता है, उसके आगे ‘G’ लगाया जाता है और यही ‘G’ आधुनिक तकनीक के उपकरण को नई पीढ़ी के रूप में दर्शाने का कार्य करता है। हमारा देश धीरे-धीरे नई तकनीक की ओर अग्रसर होता जा रहा है और हमारे देश में नई-नई तकनीकों का आविष्कार किया जा रहा है।

5G एक आधुनिक तकनीक 5G टेक्नोलॉजी दूरसंचार की टेक्नोलॉजी से संबंध रखती है। किसी भी तकनीक का प्रयोग वायरलेस तकनीक के द्वारा किया जाता है। दूरसंचार की इस नई तकनीक में रेडियो तरंगें और विभिन्न तरह की रेडियो आवृत्ति का उपयोग किया जाता है। 5G तकनीक अगली पीढ़ी की तकनीक है और यह अब तक की सबसे ज्यादा आधुनिक तकनीक मानी जा रही है।

5G नेटवर्क के लाभ 5G तकनीक के आ जाने से ड्राइवरलेस कार, हेल्थ केयर, वर्चुअल रियलिटी, क्लाउड गेमिंग के क्षेत्र में नए-नए विकासशील मार्ग खुलते चले जा रहे हैं। 5G तकनीक सुपर हाई स्पीड इंटरनेट की कनेक्टिविटी प्रदान करने के साथ-साथ कई महत्त्वपूर्ण स्थानों में उपयोग में लाई जा रही है। 5G टेक्नोलॉजी आ जाने से कनेक्टिविटी में और भी ज्यादा विकास एवं शुद्धता प्राप्त हुई है। 5G का उपयोग स्मार्ट शहरों और अन्य जुड़े हुए वातावरणों के विकास के साथ-साथ नई स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा प्रौद्योगिकी के विकास के लिए भी किया जा रहा है।

5G की विशेषताएँ 5G तकनीक की स्पीड लगभग एक सेकंड में 20 Gbs (डाउनलोड के आधार पर) इसके उपभोक्ताओं को प्राप्त होती है। 5G नेटवर्क के आ जाने से देश में डिजिटल इंडिया को एक अच्छी गति प्राप्त हुई है और साथ ही देश के विकास में तीव्रता आई है। हाल ही में आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन ने दावा किया है कि देश में 5G के आ जाने से हमारे देश की जीडीपी एवं अर्थव्यवस्था में काफी सकारात्मक प्रभाव देखने को मिल सकता है।

उपसंहार 5 G तकनीक से प्रौद्योगिकी क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत होने की आशा है। जहाँ तक प्रौद्योगिकी के राष्ट्रव्यापी परिनियोजन का संबंध है, भारत को अभी भी एक लंबा मार्ग तय करना है, जिसके अंतर्गत स्पेक्ट्रम की कीमतो को कम करना, ग्रामीण-शहरी इलाके में तकनीक के अंतर को पाटना एवं नेटवर्क की पहुँच को देश के हर घर तक बढ़ाना शामिल है।

चैट जीपीटी

भूमिका चैट जीपीटी (जनरेटिव प्री-ट्रेंड ट्रांसफॉर्मर) ओपन ए आई (Artificial Intelligence) द्वारा विकसित एक बड़े पैमाने पर नेटवर्क आधारित भाषा प्रारूप है। जीपीटी मॉडल बड़ी मात्रा में कंटेट लिख सकता है, यह विभिन्न विषयों पर प्रतिक्रियाएँ दे सकता है; जैसे-प्रश्नों का उत्तर देना, स्पष्टीकरण प्रदान करना और संवाद में भाग लेना। चैट जीपीटी अनुवर्ती प्रश्नों का उत्तर देने के साथ अपनी गलतियों को स्वीकार कर सकता है, गलत धारणाओं को चुनौती दे सकता है, साथ ही अनुचित अनुरोधों को अस्वीकार कर सकता है।

चैट जीपीटी की विशेषताएँ चैट जीपीटी की प्राकृतिक भाषा को संसाधित करने एवं समझने हेतु डिजाइन किया गया है। इसका उपयोग वास्तविक दुनिया के अनुप्रयोगों; जैसे-डिजिटल माकेंटिंग, ऑनलाइन सामग्री निर्माण, ग्राहकों के प्रश्नों का उत्तर देने के लिए किया जाता है। यह मनुष्य के बोलने की शैलियों की नकल करते हुए प्रश्नों की एक बड़ी शृंखला का जवाब दे सकता है। इसे बुनियादी ई-मेल, पाटी नियोजन सूचियों, सीवी और यहाँ तक कि कॉलेज निबंध और होमवर्क के प्रतिस्थापन के रूप में देखा जा रहा है। इसका उपयोग कोड लिखने के लिए भी किया जा सकता है।

चैट जीपीटी की सीमाएँ भाषा इंटरफेस (BHASHINI- BHASHA Interface for India) आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से भाषा अनुवाद करता है, जिससे कभी-कभी उनमें कुछ त्रुटियाँ रह जाती हैं।

उपसंहार चैट जीपीटी के अंतर्गत उपयोगकर्ता वॉयस नोट्स का उपयोग करके एक प्रश्न पूछ सकता है और चैट द्वारा उत्पन्न आवाज आधारित प्रतिक्रिया प्राप्त कर सकता है। चैटबॉट भारत की ग्रामीण और कृषक आबादी को ध्यान में रखकर विकसित किया जा रहा है, जो अधिकांशतः सरकारी योजनाओं तथा सब्सिडी पर निर्भर करता है। इसके संभावित उपयोगकर्ता भाषाओं की एक विस्तृत श्रृखला का उपयोग करते है, जिससे एक भाषा मॉडल बनाना महत्चपूर्ण हो जाता है, जो उन्हें सफलतापूर्वक पहचान और समझ सके। इससे भारत में उन किसानों को मदद मिलेगी, जो स्मार्टफोन पर टाइपिंग नहीं कर सकते हैं।

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