गोल NCERT Class 6 Hindi Chapter 2 Extra Question Answer
Class 6 Hindi Chapter 2 Extra Questions गोल अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार, उन दिनों खेल के मैदान में कैसी घटनाएँ होती रहती थीं?
उत्तर :
लेखक के अनुसार, उन दिनों खेल के मैदान में धक्का-मुक्की की घटनाएँ होती रहती थीं।
प्रश्न 2.
वर्ष 1933 में ‘पंजाब रेजिमेंट’ का मुकाबला किसके साथ हुआ?
उत्तर :
वर्ष 1933 में ‘पंजाब रेजिमेंट’ का मुकाबला ‘सैपर्स एंड माइनर्स टीम’ के साथ हुआ।
प्रश्न 3.
लेखक को चोट कैसे लग गई?
उत्तर :
एक माइनर्स टीम के खिलाड़ी ने गुस्से में आकर लेखक के सिर पर हॉकी स्टिक दे मारी, जिसके कारण उन्हें चोट लग गई।
प्रश्न 4.
लेखक का खेल में छः गोल करना क्या दर्शाता है?
उत्तर :
लेखक का खेल में एकसाथ छ: गोल करबा उनकी खेल क्षमता के प्रमाण को दर्शाता है।
प्रश्न 5.
लेखक को कौन घेरकर उनसे उनकी सफलता का राज जानना चाहते हैं?
उत्तर :
बच्चे और बूट़े सभी लेखक को घेरकर उनसे उनकी सफलता का राज जानना चाहते हैं।
प्रश्न 6.
लेखक ने प्रतिद्वंद्वी पक्ष को हिंसा का प्रत्युत्तर किस प्रकार दिया?
उत्तर :
लेखक ने प्रतिद्वंद्वी पक्ष को हिंसा का प्रत्युत्तर अपनी क्षमता व संयम से दिया।
प्रश्न 7.
सच्चे खिलाड़ी की क्या पहचान बताई गई है?
उत्तर :
सच्चे खिलाड़ी की पहचान खेल कौशल व धैर्य की भावना है।
प्रश्न 8.
लेखक ने खिलाड़ी को क्या सीख दी?
उत्तर :
लेखक ने खिलाड़ी को सीख दी कि खेल में गुस्सा करना अच्छा नहीं और इसे खेल भावना के साथ खेलना चाहिए।
Class 6 Hindi Chapter 2 Extra Question Answer गोल लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
लेखक ने पंजाब रेजिमेंट की ओर से कौन-सा खेल खेला? घटना सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर :
लेखक ने पंजाब रेजिमेंट की ओर से हॉकी खेला। वे वर्ष 1933 में ‘सैपर्स एंड माइनर्स’ टीम के खिलाफ मुकाबला कर रहे थे, जहाँ एक खिलाड़ी ने गुस्से में आकर उनके सिर पर हॉकी स्टिक मार दी। इस घटना के बाद उन्होंने मैदान में लौटकर उत्कृष्ट खेल का प्रदर्शन किया और छ: गोल किए।
प्रश्न 2.
खेल समाप्त होने के बाद लेखक ने प्रतिद्वंदी खिलाड़ी की पीठ क्यों थपथपाई?
उत्तर :
खेल समाप्त होने के बाद लेखक ने फिर उस खिलाड़ी की पीठ थपथपाई और कहा, “दोस्त, खेल में इतना गुस्सा अच्छा नहीं। मैने तो अपना बदला ले ही लिया है। यदि तुम मुझे हॉकी नहीं मारते तो शायद मैं तुम्हें दो ही गोल, से हराता।” वह खिलाड़ी वास्तव में बड़ा शर्मिदा हुआ।
प्रश्न 3.
लेखक का जीवन और खेल के प्रति कैसा दृष्टिकोण था?
उत्तर :
लेखक का जीवन और खेल के प्रति समर्पित और सकारात्मक दृष्टिकोण था। वे खेल को व्यक्तिगत जीत-हार की बजाय पूरे देश की प्रतिष्ठा से जोड़कर देखते थे। वे खेल में अनुशासन, खेल भावना और टीमवर्क को महत्त्वपूर्ण मानते थे।
प्रश्न 4.
प्रतिद्वंदी खिलाड़ी शर्मिदा क्यों हुआ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रतिद्दंदी खिलाड़ी शर्मिदा हुआ, क्योंकि उसने गुस्से में आकर लेखक के सिर पर हॉकी स्टिक मार दी थी, जिससे लेखक घायल हो गया था। फिर भी लेखक ने खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए छः गोल किए और हिंसा के अतिरिक्त खेल भावना दिखाते हुए उस खिलाड़ी को सांत्वना दी। लेखक की इस उदारता और अनुशासन ने प्रतिद्दंधी खिलाड़ी को उसकी गलती का एहसास कराया, जिससे वह शर्मिंदा महसूस करने लगा।
प्रश्न 5.
लेखक सफलता के मूलमंत्र के लिए क्या कहते हैं?
उत्तर :
लेखक के अनुसार, उनकी सफलता का कोई विशिष्ट मं: उड़ी है। लेखक की सफलता का मूलमंत्र है लगन, साधना और खेल भावना। वे कहते हैं कि सफलता के लिए निरंतर मेहनत और समर्पण आवश्यक है। लगन से किसी भी लक्ष्य को पाने की इच्छा, साधना से निरंतर अभ्यास और कौशल में निपुणता आती है। खेल भावना से खेल में अनुशासन और सहानुर्भूति विकसित होती है।
प्रश्न 6.
लेखक को हॉंकी खेलने के लिए किसने प्रोत्साहित किया?
उत्तर :
लेखक 16 वर्ष की आयु में ‘फस्सं ब्राह्मण रेजिमेंट’ में साधारण सिपाही के रूप में भर्ती हुए। शुरुआत में उनकी खेल में कोई रुचि नहीं थी, लेकिन रेजिमेंट के सूबेदार मेजर तिवारी ने उन्हे हॉकी खेलने के लिए प्रोत्साहित किया, जिससे उनके खेल में सुधार हुआ। वे जब चाहे मैदान में पहुँच जाते और अभ्यास शुरू कर देते।
प्रश्न 7.
लेखक के हॉकी खेलने के छंग से वे क्या कहलाए गए?
उत्तर :
बर्लिन ओलंपिक में लोग लेखक के हॉंकी खेलने के ढंग से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने लेखक को ‘हॉंकी का जादूगर’ कहना शुरु कर दिया। बर्लिन ओलंपिक वर्ष 1936 में उन्होंने खेल में अद्वितीय कौशल, गेंद पर असाधारण नियंत्रण और रणनीतिक सूझ-बूझ का प्रदर्शन करके भारतीय टीम को स्वर्ण पदक दिलाया।
प्रश्न 8.
खेल के मैदान में लेखक की नि:स्वार्थ भावना को स्पष्ट कीजिए
उत्तर :
खेल के मैदान में लेखक की हमेशा यह कोशिश रहती कि वे गेंद को गोल के पास ले जाकर अपने किसी साथी खिलाड़ी को दे दे, जिससे उस साथी खिलाड़ी को गोल करने का श्रेय मिल जाए। लेखक की इसी खेल भावना और निस्वार्थता के कारण लेखक ने दुनिया के खेल प्रेमियों का दिल जीत लिया।
Class 6 Hindi Chapter 2 Extra Questions गोल दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
लेखक ने कहा कि हार या जीत उनकी अर्थात् किसी एक की नहीं, बल्कि पूरे देश की होती है। इस विचारधारा के संदर्भ में आप कैसे समझाएँगे कि व्यक्तिगत प्रयासों का व्यापक प्रभाव समाज या देश पर कैसे पड़ता है?
उत्तर :
लेखक का मानना है कि खेल में हार या जीत केवल व्यक्तिगत नहीं, वल्कि पूरे देश की होती है। यहु विचारधारा इस तथ्य को रेखांकित करती हैं कि किसी भी व्यक्ति की उपलब्धियाँ समाज या देश की प्रतिष्ठा से जुड़ी होती हैं। जब एक खिलाड़ी उत्कृष्ट प्रदर्शन करता है, तो वह न केवल अपने लिए, बल्कि अपने देश के लिए भी गौरव का स्रोत बनता है। यह राष्ट्र की एकता और गव्व की भावना को भी मजबूत करता है। व्यक्तिगत प्रयासो से समाज में प्रेरणा, और सकारात्मकता फैलती है, जिससे अन्य लोग भी अपनी क्षमताओं को पहचानते हुए अधिक मेहनत करने के लिए प्रेरित होते है। इसके परिणामस्वरूप देश का समग्र विकास के साथ-साथ प्रतिष्ठा भी बढ़ती है।
प्रश्न 2.
लेखक के खेल के प्रति दृष्टिकोण और अनुभव से हमें क्या सिखने को मिलता है?
उत्तर :
लेखक्रक के खेल के प्रति दृष्टिकोण और अनुभव से हमें अनुशासन, संयम और खेल भावना का महत्त्व सीखने को मिलता है। उन्होंने खेल में अनुशासन और नि:स्वार्थता के साथ खेलते हुए व्यक्तिगत उपल्धियो को टीम की सफलता के लिए त्याग दिया। उनका यह टृष्टिकोण न केवल गेले के मैदान में ही नहीं, बस्कि सामान्य जीवन में भी फलीभूत होता है। यह हमें सिखाती है कि हमें अपने व्यक्तिगत लाभ की जगह समुदाय या टीम की भलाई को प्राथमिकता देनी चाहिए। उनके अनुभव से यह भी सीखने को मिलता है कि विपरौत परिस्थितियों में संयम और धैर्य से कार्य करना चाहिए, जो जीवन में सफलता और संतुलन के लिए आवश्यक है।
प्रश्न 3.
चोट लगने के पश्चात् भी लेखक ने खेल को प्राथमिकता दी। यह सोच और व्यवहार क्या दर्शांता है?
उत्तर :
चोट लगने के बाद भी खेल को प्रार्थमिकता देने से लेखक की दृदता, समर्पण और खेल के प्रति सच्ची निष्ठा का परिचय मिलता है। उन्होंने दिखाया कि कैसे कठिनाइयों का सामना करते हुए भी अपनी जिम्मेदारी को निभाना चाहिए और खेल की भावना को बनाए रखना चाहिए।
यह दिखाता है कि किसी भी खेल में केवल जीत ही महत्त्वपूर्ण नहीं, बल्कि खेल के प्रति सम्मान और धैर्य भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। उनकी सोच अनुकरणीय है, क्योंकि यह न केवल उनकी दृद इच्छार्शक्ति को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि वे अपने कर्तव्यों के प्रति कितने प्रतिबद्ध हैं।
प्रश्न 4.
लेखक ने ‘माइनर्स टीम’ के खिलाड़ी को गुस्से से मारने के बजाय कैसी प्रतिक्रिया दी? इस घटना का प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी के मनोबल पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर :
लेखक ने गुस्से में आकर खिलाड़ी को मारने के बजाय आत्म-नियंत्रण और खेल भावना का प्रदर्शन किया। उन्होंने मैदान में आकर शानदार खेल दिखायः और एक के बाद एक छु ोेन्त कर दिए, जिससे प्रतिद्धंदी खिलाड़ी शर्मिदा हुआ।
इस घटना से प्रतिद्धंदी खिलाड़ी का मनोबल टूट गया और उसे समझ में आया कि गुस्से में किया गया कार्य केवल स्वयं को नुकसान पहुँचाता है। लेखक ने प्रतिद्धंद्री ख्विलाड़ी को दिखा दिया कि शांतिपूर्ण और प्रभावशाली तरीके से भी अपना विरोध व्यक्त किया जा सकता है।
प्रश्न 5.
लेखक के अनुसं: सस्सा क्यों नहीं करना चाहिए तथा इसका खेल के परिणाम ज्ञात प्रभाव पड़ता है?
उत्तर :
लेखक के अनुसार, खेल में गुस्सा नहीं कर्न : हिए, क्योंकि गुस्सा केवल खेल की गुणवत्ता को प्रभावित करता :र्तर खिलाड़ी की एकाग्रता को कम करता है। गुस्से में होने पर खिलाड़ी अपने खेल पर ध्यान नहहीं दे पाता और उसके प्रदर्शन में कमी आ जाती है। लेखक ने दिखाया कि शांत रहकर और खेल भावना को बनाए रखते हुए बेहतर परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। गुस्सा केवल प्रतिशोध और अराजकता को जन्म देता है, जो खेल की मूल भावनाओं को आहत करता है।
प्रश्न 6.
लेखक ने बर्लिन ओलंपिक में कौन-सी विशेष भूमिका निभाई?
उत्तर :
लेखक ने बर्लिन ओलंपिक 1936 में भारतीय हॉकी टीम के कप्तान के रूप में विशेष भूमिका निभाई। उनके नेतृत्व में भारतीय टीम ने शानदार प्रदर्शन करते हुए स्वर्ण पदक जीता। लेखक के उत्कृष्ट खेल-कौशल और रणनीतिक दृष्टिकोण ने उन्हें ‘हॉकी का जादूगर’ का खिताब दिलाया।
उन्होने अपनी खेल भावना और नेतृत्व क्षमता दिखाते हुए खेल के दौरान अपनी टीम के अन्य खिलाड़ियों को गोल करने का अवसर देने पर जोर दिया। उनके प्रयासों ने भारतीय हॉकी को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई।