Class 11 Hindi Antral Chapter 3 Question Answer आवारा मसीहा

NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 3 आवारा मसीहा

Class 11 Hindi Chapter 3 Question Answer Antral आवारा मसीहा

प्रश्न 1.
उस समय बह सोच भी नहीं सकता था कि मनुष्य को दुख पहुँचाने के अलावा भी साहित्य का कोई उद्देश्य हो सकता है। लेखक ने ऐसा क्यों कहा? आपके विचार से साहित्य के कौन-कौन से उद्देश्य हो सकते हैं?
उत्तर :
शरत तब ‘बोधोहय’ कक्षा में पढ़ते थे पंडित जी विद्यालय में जो कुछ पढ़ाते थे वे उसकी प्रतिदिन परीक्षा भी लेते थे। शरत को जब उत्तर नहीं आते थे तो रोने लगते थे। शरत का साहित्य से परिचय आँसुओं के माध्यम से ही हुआ था। शरत का लगता था कि साहित्य का उद्देश्य केवल मन को दुःख पहुँचाना है। दुःख पहुँचाने वाला साहित्य भला किसी का क्या कल्याण करेगा। लेखक के मन को साहित्य के कारण पीड़ा पहुँची इसलिए उसने ऐसा कहा। मेरे विचार से साहित्य के निम्नलिखित उद्देश्य होने चाहिए :

  1. साहित्य हममें नैतिक गुणों को उत्पन्न करने वाला हो;
  2. साहित्य समाज का हित करने वाला हो;
  3. साहित्य हमारा स्वस्थ मनोरंजन करने वाला हो;
  4. साहित्य हमारे ज्ञान में वृद्धि करने वाला हो;
  5. साहित्य हमें अच्छे बुरे में फर्क करना सिखाए;
  6. साहित्य हममें देश प्रेम, धरर्य, ल्याग, बलिदान आदि गुणों को उत्पन्न करने वाला हो।

प्रश्न 2.
पाठ के आधार पर बताइए कि उस समय के और वर्तमान समय के पढ़ने-पढ़ाने के तौर-तरीकों में क्या अंतर और समानताएँ हैं? आप पढ़ने-पढ़ाने के कौन-कौन से तौरन्तरीकों के पक्ष में हैं और क्यों?
उत्तर :
शरत के समय में इतने बड़े स्कूल नहीं होते थे जितने आज हैं। बच्चों की शिक्षा किसी एक शिक्षक के ऊपर निर्भर होती थी। आजकल मिलने वाली सुविधाएँ तब नहीं थीं। रटने की पद्धति पर जोर दिया जाता था। छात्र यदि सबक नहीं सुनाता था तो उसकी बेंत से पिटाई की जाती थी। किसी भी विद्यालय में कभी भी दाखिला लिया जा सकता था। शिक्षक छात्र को पूरी तन्मयता के साथ पढ़ाता था। तब शिक्षा का व्यवसायीकरण नहीं हुआ था। आज भी काम न करने पर छात्रों की पिटाई की जाती है। कुछ प्राइमरी स्कूलों में छात्रों को एक शिक्षक ही सारे विषय पढ़ाता है। रटने की पद्धति आज भी है। हमारे विचार से पढ़ाई में रटने, मनन और चिंतन पर अधिक बल देना चाहिए। बात-बात पर पिटाई करना अच्छी बात नहीं है। छात्रों को प्रायोगिक विधि के द्वारा शिक्षा देनी चाहिए। गृह-कार्य छात्रों से अधिक न करवाया जाए। बच्चों पर इतना भार नहीं डालना चाहिए कि उनका बचपन ही छिन जाए। छात्रों को शुद्ध लेखन व पठन की शिक्षा भली प्रकार देनी चाहिए।

प्रश्न 3.
पाठ में अनेक अंश बाल सुलभ शरारतों को बहुत रोचक ढंग से उजागर करते हैं। आपको कौन-सा अंश अच्छा लगा और क्यों? वर्तमान समय में इन बाल सुलभ क्रियाओं में क्या परिवर्तन आए हैं?
उत्तर :
इस पाठ में बाल सुलभ शरारतों को बहुत रोचक ढंग से उजागर किया है जिनमें साँप को वश में करने की घटना, बाग से फल चुराने की घटना, नयन जब गाय लेने गया उसके साथ जाने की घटना, मछली का शिकार, स्कूल की घड़ी को आगे कर देना, अपने शिक्षक की चिलम से तम्बाकू निकालकर पिसी ईंट रख देने वाली घटना, अनेक घटनाएँ बहुत ही रोचक हैं। इन सब घटनाओं में भोलू से संबंधित प्रसंग बहुत रोचक लगे। शरत भोलू को चूने के ढेर पर गिरा कर भाग जाता है, भोलू चूने में लतपत भूत की तरह दिखाई देता है। शरत का भागना और लड़कों द्वारा उसको ढूंढ़ना काफी रोचक है। इसी घटना में शरत और धीरू की तकरार भी कम रोचक नहीं है। वर्तमान समय में इस प्रकार की शरारतें नहीं रहीं। युग परिवर्तन के साथ-साथ शरारतें भी बदल रही हैं। अब शिक्षक विद्यालय में हुक्का नहीं पीते और न ही विद्यालय का इतना स्वच्छंद वातावरण होता है।

प्रश्न 4.
नेना के घर किन-किन वातों का निषेंध था? शरत को उन निषिद्ध कायों को करना क्यों प्रिय था ?
उत्तर :
नाना के घर में पतंग उड़ाना, लट्टू घुमाना, गोली और गुल्ली-डंडा जैसे खेल-खेलना निषिद्ध था। पतंग उड़ाना तो इतना निषिद्ध था जितना शास्त्र में समुद्र यात्रा करना। शरत को ये कार्य बहुत प्रिय थे वह पतंग भी उड़ता था और गोली से भी खेलता था। वह खेलकर लट्टू, गोली जितनी इकट्गा करता उन सबको बच्चों में बाँट देता था।

प्रश्न 5.
आपको शरत और उसके पिता मोतीलाल के स्वभाव में क्या-क्या समानताएँ नज़र आती हैं। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
शरत के पिता मोतीलाल भी साहित्य प्रेमी थे। वे साहिल्य का पठन करते थे। उनको कहानी लिखने का भी शौक था। शरत ने उनकी अधूरी कहानियों से ही कहानी लिखने की प्रेरणा ली। मोतीलाल व शरत दोनों के जीवन में अस्थिरता रही। दोनों के दिन गरीबी में गुजरे। उन्होंने पैसे को कभी महत्त्व नहीं दिया। मोतीलाल यायावर प्रवृत्ति के थे, यही गुण शरत में भी था। मोतीलाल कला प्रमी थे। उनका लेख बहुत सुंदर था, जब वे कलम में नया निब डालकर लिखते थे तो अक्षर मोती की तरह चमकने लगते थे। वे किसी कार्य को आरंभ करके पसंद न आने पर बीच में ही छोड़ देते थे। शरत का जीवन भी इसी प्रकार बीता इसीलिए तो उसको ‘दिशाहारा’ और ‘आवारा मसीहा’ कहा गया है।

प्रश्न 6.
शरत की रचनाओं में उनके जीवन की अनेक घटनाएँ और पात्र सजीव हो उठे हैं। पाठ के आधार पर विवेचना कीजिए?
उत्तर :
शरत के जीवन में जो-जो घटित हुआ वह उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से व्यक्त किया है जैसे-शरत के बचपन की मित्र धीरू को उन्होंने अपने उपन्यास ‘देवदास’ की पारो ‘बड़ी दीदी’ की माधवी और श्रीकांत की ‘राजलक्ष्मी’ के रूप में विकसित किया है। इसी प्रकार शरत का कुछ जीवन ‘डेहरी आन सोन’ नामक स्थान पर गुजरा। शरत ने अपने उपन्यास ‘गुहदाह’ में इस स्थान को अमर कर दिया। ‘श्रीकांत’ उपन्यास में श्रीकांत के रूप में स्वयं अपने जीवन का वर्णन किया है। उनकी एक कहानी का नाम ‘काशीनाथ’ था। काशीनाथ उनके गुरु का पुत्र था जो शरत का घनिष्ठ मित्र था। इसी प्रकार जब एक बार शरत लम्बी यात्रा के लिए निकले तो उनको रास्ते में ज्वर हो गया। एक विधवा उसे अपने घर ले गई। इस विधवा को उसका देवर और बहनोई दोनों ही चाहते थे। शरत ने अपने ‘चरित्रहीन’ उपन्यास में इस विधवा के चरित्र को ही जीवंत किया है। ‘विलासी’ कहानी के पात्र भी कुछ ऐसे ही हैं जो शरत के जीवन से कहीं न कहीं जुड़े हुए हैं। शुभदा के ‘हारान बाबू’ के रूप में उन्होंने अपने पिता मोतीलाल के चरित्र को विकसित किया है।

प्रश्न 7.
जो रुदन के विभिन्न रूपों को पहचानता है वह साधारण बालक नहीं है। बड़ा होकर वह निश्चय ही मन स्तत्व के ब्यापार में प्रसिद्ध होगा” अयोर बानू के मित्र की इस टिप्पणी पर अपनी टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
एक बार अवकाश प्राप्त अध्यापक अघोरनाथ अधिकारी स्नान के लिए गंगा घाट की ओर जा रहे थे। शरत कपड़े उठाकर उनके पीछे-पीछे चल रहा था। तभी किसी नारी का करुण रुदन कानों में पड़ा। शरत ने उस रुदन की जो विवेचना की अघोरनाथ ने यह घटना अपने एक मित्र को बताई तो मित्र ने कहा ‘जो रुदन के विभिन्न रूपों को पहचानता है वह साधारण बालक नहीं है ‘अघोर बाबू’ के मित्र की यह टिप्पणी शरत चंद्र पर खंरी उतरती है। शरत दूसरों के दु:ख-दर्द को बहुत गहराई तक पहचानते थे। वे दूसरों को दु:खी देखकर उनकी सेवा के लिए प्रवृत्त हो जाते थे। नीरू दीदी की जिस प्रकार शरत ने सेवा टहल की वह इस बात को प्रमाणित करता है। सेवा के मामले में उसने सामाजिक मान-मर्यादाओं की तनिक भी चिंता नहीं की। वह चोरी छिपे ‘नीरू दीदी’ के लिए खाने-पीने की वस्तुएँ पहुँचाता था।

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प्रश्न 1.
शरतचंद्र के पिता कैसे स्वभाव के व्यक्ति थे?
उत्तर :
शरतचंद्र के पिता मोतीलाल यायावर प्रकृति के ख्वपदद्शी व्यक्ति थे। जीविका का कोई भी धंधा उन्हें कभी बाँधकर नहीं रख सका। चारों ओर से लांछित होकर बह बार-बार काम-काज की तलाश करते थे। नौकरी मिल भी जाती थी तो उनके शिल्यी मन और दासता के बन्धन में कोई सामंजस्य न हो पाता। कुछ दिन उसमें मन लगाते, परन्तु फिर एक दिन अचानक बड़े साहब से झगड़ कर उसे छोड़ बैठते और पढ़ने में व्यस्त हो जाते या कविता करने लगते। कहानी, उपन्यास, नाटक सभी कुछ लिखने का शौक था। चित्रकला में भी उनकी रुचि थी।

प्रश्न 2.
शरतचंद्र के शौक किस प्रकार के थे?
उत्तर :
शरतचंद्र को अनेक प्रकार के शौक थे-जैसे पशु-पक्षी पालना और उपवन लगाना। लेकिन उनमें सबसे प्रमुख था तितली-उद्योग। नाना रूप रंग की अनेक तितलियों को उसने काठ के बक्स में रखा था। बड़े यत्न से वह उनकी देख-भाल करता था। उनकी रुचि के अनुसार भोजन की व्यवस्था होती थी। उनके युद्ध का प्रदर्शन भी होता था। उसी प्रदर्शन के कारण उसके सभी साथी उसकी सहायता करके अपने को धन्य मानते थे। उनमें न केवल परिवार के या दूसरे बड़े घरों के बालक थे बल्कि घर के नौकरों के बच्चे भी थे। उनके साथ किसी प्रकार का भेद-भाव नहीं किया जाता था। ये बच्चे भी उसे प्रसन्न करके अपने को कृतार्थ अनुभव करते थे।

प्रश्न 3.
पढ़ाई के वारे में शरत के नानाओं की क्या मान्यता थी?
उत्तर :
पढ़ाई के बारे में शरत के नानाओं की मान्यता थी कि बच्चों को केवल पढ़ने का ही अधिकार है। प्यार, आदर और खेल से उनका जीवन नष्ट हो जाता है। सवेरे स्कूल जाने से पहले घर के बरामदे में उन्हें चिल्ला-चिल्लाकर पढ़ना चाहिए। और संख्या को स्कूल से लौटकर रात के भोजन तक चंडी-मंडप में दीवे के चारों ओर बैठकर पाठ का अभ्यास करना चाहिए। यही गुरुजनों की प्रीति पाने का गुर था। जो नियम तोड़ता था उसे आयु के अनुसार दंड दिया जाता था।

प्रश्न 4.
शरत को किस प्रकार के ख्रेल प्रिय थे?
उत्तर :
पतंग उड़ाना, लद्दू घुमाना, गोली और गुल्ली-डंडा जैसे खेल उसे बड़े प्रिय थे। नीले आकाश में नृत्य करती हुई उसकी पतंग को देखकर दल के दूसरे सदस्यों के हुदय नाच उठते। उसका माँझा विश्वजयी था। वह ऐसा पेंच मारता कि विरोधी की पतंग कटकर धरती पर आ गिरती। शून्य में लट्टू घुमाकर उसे हथेली पर ऐसे लपक लेता कि साथी मुग्ध हो रहते।

प्रश्न 5.
शरत कैसे स्वभाव का बालक था?
उत्तर :
शरत स्वभाव से अपरिग्रही था। दिन-भर में वह जितनी गोलियां और लटू जीतता, संध्या को वह उन सबको छोटे बचों में बाँट देता। देने में उसे मानो आनंद आता था, लेकिन यह देने के अभिमान का आनंद नहीं था, यह था भार-मुक्ति का आनंद। नींद और आहार पर भी उसे अधिकार था। बचपन से ही वह स्वल्पाहारी था। बड़े होने पर कथाशिल्पी शरतचंद्र की ‘बड़ी बहू’ सबसे अधिक इसीलिए तो परेशान रहती थी।

प्रश्न 6.
शरत का तपोवन कैसा था?
उत्तर :
शरत जिस स्थान पर एकांत श्रेणी में जाकर बैठता था उसे वह तपोवन कहता था। वह स्थान घोष परिवार के उत्तर में गंगा के बिल्कुल पास ही एक कमरे के नीचे नीम और करोंदे के पेड़ों से ढकी हुई जमींन पर था। वह स्थान चारों ओर से ढका हुआ था। वहाँ प्रवेश करना बहुत कठिन था।

प्रश्न 7.
मोतीलाल के पिता बैकुंठनाथ चट्टोपाध्याय की मृत्यु किस प्रकार हुई ?
उत्तर :
मोतीलाल के पिता और शरतचंद्र के दादा राढ़ी ब्राह्मण परिवार के एक स्वाधीनचेता और निर्भीक व्यक्ति थे। वे जमींदारों से कभी दबे नहीं। वे प्रजा का पक्ष लेते थे। एक जमींदार ने उनको एक मुकद्दमे में गवाही देने के लिए कहा तो उन्होंने मना कर दिया कि में इस व्यक्ति को जानता ही नहीं तो फिर गवाही क्यों दूँ। उस जमींदार ने वैकुंठनाथ को मरवा दिया था।

प्रश्न 8.
शरतचंद्र का जन्म कब और कहौं हुआ ?
उत्तर :
शरतचंद्र का जन्म 15 सितम्बर, सन् 1876 तदन्नुसार 31 भाद्र 1283 बंगाध्ध, आशिवन कृष्गा द्वादशी, संवत् 1933, शकाब्द 1798, शुक्रवार की संघ्या को देवानंदपुर गाँव में हुआ।

प्रश्न 9.
शरतचंद्र की माता भुवन मोहिनी कैसी महिला थी ?
उत्तर :
शरतचंद्र की माता भुवन मोहिनी निरंतर घूमते हुए चक्र के समान सीधे-साधे स्वभाव की महिला थी। वह हर किसी के दुःख में द्रवित हो जाती थी। सभी लोग उसको प्यार करते थे। घर के बड़े लोग उसकी सेवापरायणता पर मुग्ध रहते थे और छोटे उसका स्नेह का पाने के लिए लालायित रहते थे।

प्रश्न 10.
धीरू कैसी लड़की थी उसके बालसुलभ व्यवहार पर टिप्पणी कीजिए?
उत्तर :
धीरू शरत की बचपन की सखी थी, दोनों में बहुत प्यार था। उनकी लड़ाई भी खूब होती थी। बह करोंदे की ऋतु आने पर करौदों की माला बनाकर शरत को भेंट करती थी। वह अबोध बालिका माल्यार्पण के महत्त्व को तब तक नहीं समझती थी।

प्रश्न 11.
शरत का व्यक्तित्व कैसा था?
उत्तर :
शरत सुंदर नहीं था। आँखों को छोड़कर उसमें कोई विशेषता नहीं थी, लेकिन आँखों की यह चमक ही सामने वाले को बाँध लेती थी। वर्णश्यामता की और था और देह थी खूब रोगी, लेकिन पैर हिरन की तरह दौड़ने में मजबूत थे। बिल्ली की तरह पेड़ों पर चढ़ जाता था। बुद्धि भी तीक्ष्ण थी, लेकिन दिशाहीन कठोर अनुशासन के कारण उसका प्रयोग पथभ्रष्टता में ही अधिक होता था।

11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers