अंडे के छिलके Summary – Class 11 Hindi Antral Chapter 1 Summary
अंडे के छिलके – मोहन राकेश – कवि परिचय
हिन्दी के सुप्रसिद्ध नाटककार मोहन राकेश का जन्म पंजाब राज्य के अमृतसर जिले में 8 जनवरी, 1925 को हुआ। उनका असली नाम मदनमोहन गुगलानी था। उन्होंने लाहौर (अब पाकिस्तान) के ओरियंटल कालेज से संस्कृत में एम.ए. किया और देश विभाजन के पश्चात् जालंधर से हिन्दी में एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। कुछ वर्षों तक बम्बई, शिमला, जालंधर में प्राध्यापक रहे। तत्पश्चात् बम्बई से प्रकाशित ‘सारिका’ पत्रिका का सम्पादन किया। उनका व्यक्तिगत जीवन अशान्ति से भरपूर रहा। विवाह सम्बन्धों में तनाव रहा। सन् 1962 में उन्होंने स्वतन्त्र लेखन का मार्ग अपनाया। नाटक की भाषा पर शोध कार्य करने के लिए उन्हें नेहरू फैलोशिप प्रदान की गई और इसी विषय पर शोध करते हुए 3 दिसम्बर, 1972 को हुदय गति रुक जाने से उनका देहन्त हो गया।
साहित्यिक उपलब्धियाँ-आधुनिक हिन्दी गद्य-साहित्य के विकास में मोहन राकेश का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने नाटक, उपन्यास, कहानियाँ, निबन्ध और यात्रायृत्त से हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया है। उनके निबन्ध ‘परिवेश’ तथा ‘बकलम खुद’ में संकलित हैं। ‘आखिरी चट्टान तक’ उनके यात्रावृत्तों का संग्रह है। ‘आषाढ़ का एक दिन’, लहरों के राजहंस’ और आधे-अधूर’ उनके प्रसिद्ध नाटक हैं। ‘आषाढ़ का एक दिन’ पर ललित कला नाटक अकादमी ने सन् 1959 में सर्वश्रेष्ठ नाटक का पुरस्कार दिया था। सन् 1971 में साहित्य अकादमी द्वारा उन्हें नाट्य लेखन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। ‘इंसान के खण्डहर’, ‘नए बादल’, ‘जानवर और जानवर’, ‘एक और जिन्दगी’ उनके कहानी संग्रह हैं। ‘अंधेरे बन्द कमरे’, ‘न आने वाला कल’ और ‘अंतराल’ उनके बहुचर्चित उपन्यास हैं। उनकी समस्त कृतियों में आधुनिक बोध मुख्य रूप से मुखरित हुआ है। पारिवारिक टूटन और मानसिक अन्तर्द्वन्द्रों को मोहन राकेश ने बड़ी सहजता से उभारा है।
भाषा-शैली-मोहन राकेश की भाषा-शैली में नाटककार होने के कारण सहजता और चित्रात्मक का समावेश है। उनकी भाषा भांवानुकूल है और सूक्ष्म-मनोभावों को व्यक्त करने की अपूर्व क्षमता रखती है। उन्होंने भाषा-शैली में परम्परा का अनुकरण मात्र नहीं किया है। शब्द-विन्यास और वाक्य संरचना में सहजता और चित्रमयता और नूतन शिल्प प्रयोगों का बराबर ध्यान रखा है। सहजता और स्पष्टता का भी उन्होंने ध्यान रखा है। स्थिति के अनुरुप गम्भीरता और रोचकता भी उनकी भाषा में विद्यमान है। उनकी शैली आत्मपरकता का गुण लिए हुए है।
Ande Ke Chilke Class 11 Hindi Summary
पाठ-परिचय :
मोहन राकेश के इस एकांकी में एक परिवार की विभिन्न रुचियों को बड़ी सूक्ष्मता से उभारा है। सभी सदस्य एक-दूसरे से छिपकर अंडे खाते हैं, चंद्रकांता आदि पढ़ते हैं लेकिन एक-दूसरे की भावनाओं को भी समझते हैं। यहाँ तक अम्मा (जिनसे सभी छिपकर कार्य करने को विवश हैं) भी सब कुछ जानते हुए भी मुस्कराकर रह जाती हैं। सब देखकर भी अनदेखा करती हैं। सभी पात्रों की परस्पर घनिष्ठता तथा आत्मीयता पूरे एकांकी में झलकती है।
पाठ का सार :
घर में श्याम की भाभी है। श्याम भीगता हुआ घर में आता है। वर्षा के कारण उसने बरसाती ओढ़ रखी है। वीना उसको बरसाती एक ओर रखकर अंदर आने के लिए कहती है। वीना श्याम को चाय पीने के लिए कहती है। श्याम कहता है कि ऐसे सुहावने मौसम में केवल चाय से काम नहीं चलेगा। वह फिर से बरसाती पहन कर बाजार से कुछ गरमागरम लाने के लिए जाता है। वे दोनों सलाह करते हैं कि क्या कुछ लाना है। वीना श्याम को अंडे लाने के लिए कहती है जिससे की वह उसके लिए हलवा बना सके। हलवे के नाम से श्याम शिव शिव करता है।
वीना कहती है यहौँ तो रोज ही अंडे का आमलेट बनता है। तुम्हारे भाई ने बैड टी के बहाने बिजली का स्टोप रख रखा है। श्याम कहता है कि भाभी यदि अम्मा को पता चल गया तो खाए अंडे छिलकों सहित वसूल हो जाएंगे। वीना कहती है कि तुम लोगों की अंडे छिपाकर खाने की बात मेरी समझ में नहीं आती। वैसे अंडे में जीव होता कहाँ है? जैसे दूध वैसे अंडा। श्याम कहता है कि में अंडे लाऊँगा तो सब लोग मुझे ही दोष देंगे तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा। में तो साफ़ मुकर जाऊँगा। वीना को श्याम से पता चलता है कि वह भी अपने कमरे में अंडे खाता है। परन्तु वह कच्चे ही खा जाता है। वीना कहती है तुम तो रोज अम्मा की रसोई को भ्रष्ट करते हो। श्याम वीना को चाय चढ़ाने के लिए कह कर चला जाता है।
वीना अपने मन ही मन में घर का कार्य करती हुई सोचती है कि ये लोग छिप-छिप कर अंडे खाते हैं, अंडों के छिलकों को घर में ही छिपाकर इकड्ा करते रहते हैं। वीना अपनी जेटानी राधा के पास जाती है। वीना के हाथ में एक किताब है राधा उसे देखना चाहती है, परन्तु वीना उसे छिपाना चाहती है। पूछने पर पता चलता है कि यह ‘चंंक्रकांता संतति’ किताब है। वे दोनों चंद्रकांता’ के बारे में बात करते हैं। राधा वीना के सामने अनेक जिज्ञासाएँ प्रकट करती है। वीना कहती है कि जब तुम इसको पढ़ोगी तो खुद जान जाओगी। इसी वार्तालाप के दौरान बाहर से गोपाल आता है।
गोपाल कहता है कि पहले ही चाय की केतली रखी हुई है। वीना कहती है यह तुम्हारे लिए नहीं श्याम के लिए रखी हुई है। गोपाल कहता है कि आजकल श्याम पर बहुत मेहरबान हो रही हो। गोपाल कहता है कि तुम तो दिन भर ‘संज़ एण्ड लवर्स’ पढ़ती हो परन्तु हमारी भावी राधा रामायण पढ़ती है। गोपाल कहता है कि तुमने बी.ए. पास तो कर लिया परन्तु तुमको जो शिक्षा भाभी से मिल सकती है वह स्कूल कालेजों से नहीं। राधा कहती है कि भैया हम किसी को क्या पढ़ाएंगे हम तो खुद अनपढ़ हैं। गोपाल जेव से सिगरेट निकालकर पीने की इजाजत माँगता है।
गोपाल वीना से कहता है कि मैं बस भाभी के सामने ही कभी-कभी सिगरेट पी लेता हूँ। तभी श्याम बाजार से अंडे लेकर आता है काफी हील-हुज्जत के बाद वह अंडे बाहर निकालता है। तभी गोपाल कहता है कि घर में ये चीज़ ठीक नहीं है यदि कोई बाहर जाकर खा ले तो अलग बात है। तभी एक दूसरे के सामने उनकी पोल पट्टी खुल जाती है। राधा भी कहती है कि हमें तो पहले से ही पता था कि तुम रोज सुबह अंडे खाते हो हम तो खुशबू से ही पहचान लेती थीं। गोपाल कहता है कि भाभी यह बस तुम्हें मालूम है तुम भैया को मत बताना। वीना अंडों का हलुला बनाती है तभी जमुना देवी की आवाज आती है। वे श्याम को दरवाज़े पर खड़ा कर देते हैं। जमुना दरवाजा धकेलकर अंदर ही चली आती है।
वह पूछती है कि दरवाजा क्यों बंद कर रखा है। गोपाल कहता कि माँ दरवाजा तो खुला है आ जाओ। गोपाल की माँ जमुना अपने कमरे की छत चूने की शिकायत करती है। वह वीना से पूछती है कि इस वक्त तू चम्मच लिए क्यों खड़ी है और गोपाल तू कोने में क्यों खड़ा है ? बह कहता है कि वीना का हाथ जल गया मैं उसके लिए मरहम ढूँढ़ रहा ाूँ जमुना पूछती है कि हाथ कैसे जला? वह कहती है कि बिजली का चूल्हा घर में मत रखा करो। वह कहती है कि स्टोव के ऊपर क्या रखा है? जब जमुना को पता चलता है कि यह फ्राईगपेन है और ये इसमें कुछ तल रहे हैं।
वह देखना चाहती है कि नई बहू ने क्या बनाया है। गोपाल अपनी माँ को हाथ लगाने से रोकता है। वह कहता है कि यह करंट मारता है। जमुना कहती है कि यह तो बुझा हुआ है। राधा फिर बहाना बनाती है कि श्याम के घुटने में गेंद लग गई है यह उसके लिए पुलटिस बाँधने के लिए गर्म किया गया है। जमुना कहती है कि लाओ में ही पुलटिस बाँध देती हूँ। गोपाल अपनी माँ को पुलटिस बाँधने को मना करता है। जमुना की कुछ समझ में नहीं आता कि ये लोग इतने बहाने क्यों कर रहे हैं। गोपाल जमुना को पकड़कर पलंग पर बैठाता है कि यह तुम्हारे बस का काम नहीं तुम बैठकर आराम करो।
जमुना श्याम से पूछती है कि तू क्या पढ़ रहा है ? वह कहता है कि यह रामायण है जबकि वह ‘चंद्रकांता’ पढ़ रहा था जमुना पूछती है कि यह गुटका रामायण इतनी बड़ी कैसे हो गई। गोपाल जमुना को उनके कमरे तक छोड़ने जाता है। फिर वे सभी हलुवा खाने लगते हैं। गोपाल मेज से छिलके उठाता है कि वह इनको कहाँ रखे। वीना कहती है कि तुम्हारे मोजे तो पहले ही अंडों के छिलकों से भरे हैं। गोपाल कोट की जेब में अंडों के छिलके भरने लगता है। तभी बड़ा भाई माधव आ जाता है वह पूछता है कि तुम यह क्या कर रहे हो ? श्याम कहता है कि भाभी ने पुलटिस बनाई थी। माधव कहता है कि तुम वह पुलटिस गले के नीचे उतार रहे हो। माधव कहता है कि अंडों के इन छलकों को अब छिपाने की जरूरत नहीं है जाओ इनको नाली में डाल दो। सभी लोग जानते हैं कि तुम अंडे खाते हो। माधव कहता है कि घर के सभी सदस्य जानते हैं अब से अंड़े के छिलके छिपाने की कोई जरूरत नहीं। माधव हल्की-हल्की हैंसी हँसने लगता है।
शब्दार्थ :
- पुलटिस = हलवे की तरह पकायी हुई एक घरेलू दवा जो घाव पर बाँधी जाती है।
- कृतज्ञता = आभार।
- लच्छन = लक्षण।
- टिहियाँ = पंखोंवाले लाल रंग के कीड़े जो दल बाँधकर चलते हैं और फसल को हानि पहुँचाते हैं।
- खामखाह = बिना कारण, बेवज़ह।
- मरदूद = निकम्मा।
- एहतियात = बचाव, होशियारी।
- करतूत = काम, करनी।
- महरी = घर का काम करने वाली स्त्री।
- हील-हुज्जत = कोशिश।
- दस्तूर = रीति, तरीका।
- तिलिस्म = जादू, इंद्रजाल।
- संझा = संध्या।
- झँसा = धोखा।
- बाँच = पढ़।
- तलब = इच्छा, माँग।
- सौगात = तोहफा, उपहार।
- इश्नान = स्नान।