Class 11 Hindi Antra Chapter 4 Question Answer गूँगे

NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 4 गूँगे

Class 11 Hindi Chapter 4 Question Answer Antra गूँगे

प्रश्न 1.
गूँगे ने अपने माता-पिता के बारे में चमेली को क्या-क्या बताया और कैसे ?
उत्तर :
गूँगे ने मुँह के आगे हाथ से इशारा करके अपनी माँ के बारे में बताया कि वह भाग गई । कौन ? फिर समझ में आया। जब छोटा ही था, तब ‘माँ’ जो घूँघट काढ़ती थी, छोड़ गई, क्योंकि ‘बाप’, अर्थात् बड़ी-बड़ी मूँछें, मर गया था। और फिर उसे पाला है-किसने? बह तो समझ नहीं आया, पर वे लोग मारते बहुत हैं।

प्रश्न 2.
गूँगे की कर्कश काँय-काँय और अस्फुट ध्वनियों को सुनकर चमेली ने पहली वार क्या अनुभव किया ?
उत्तर :
चमेली ने जब गूँगे को पहली बार देखा तो उसने अनुभव किया कि यदि गले में काकल तनिक ठीक नहीं हो तो मनुष्य क्या से क्या हो जाता है। कैसी यातना है कि वह अपने हृदय को उगल देना चाहता है, किंतु उगल नहीं पाता।

प्रश्न 3.
गूँगे ने अपने स्वाभिमानी होने का परिचय किस प्रकार दिया ?
उत्तर :
गूँगे ने अपने सीने पर हाथ मारकर इशारा किया-‘हाथ फैलाकर कभी नहीं माँगा, भीख नहीं लेता’, भुजाओं पर हाथ रखकर इशारा किया-‘मेहनत की खाता हूँ’; और पेट बजाकर दिखाया ‘इसके लिए, इसके लिए…’

प्रश्न 4.
‘मनुष्य की करुणा की भावना उसके भीतर गूँगेपन की प्रतिच्छाया है।’ कहानी के इस कथन को वर्तमान सामाजिक परिवेश के संबंध में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
मनुष्य के हृदय में दूसरों को दु:खी देखकर उनके प्रति करुणा के भाव उमड़ते हैं। करुणा और दया में संभवतः यही अंतर है कि मनुष्य किसी पर द्या कर उसकी सहायता कर देता है परन्तु जिस पर वह करुणा दिखाता है बस उसको देखकर स्वयं भी दुःख का अनुभव करता है। वह उसकी कोई सहायता नहीं कर पाता। वह अपने को सहायता करने में असमर्थ पाता है। ऐसे में वह भी गूँगा होकर रह जाता है। आजकल भी लोगों के दुःखों को देखकर करुणा करने वाले तो बहुत मिल जाते हैं उनका इस प्रकार करुणा दिखाना परन्तु सहायता न करना उनका गूँगापन ही है। लोग दुःखी पीड़ित लोगों को देखकर अपने हृदय में दुःख का अनुभव कर लेते हैं परन्तु वे कर कुछ नहीं सकते। जहाँ कुछ कर दिखाने की बात आती है तो वे गूँगे हो जाते हैं।

प्रश्न 5.
‘नाली का कीड़! एक छत उठाकर सिर पर रख दी, फिर भी मन नहीं भरा।’-चमेली का यह कथन किस संदर्भ में कहा गया है और इसके माध्यम से उसके किन मनोभावों का पता चलता है।
उत्तर :
चमेली ने गूँगे को अपने यहाँ रखकर आश्रय दिया परन्तु फिर भी वह एक जगह टिककर नहीं रहता था। जब भी उसके मन में आता भाग जाता जब मन में आता लौट आता। जिस प्रकार नाली का कीड़ा नाली के गंदे कीचड़ में ही आनंद की अनुभूति करता है उसी प्रकार गूँगा भी सारी सुविधाएँ मिलने के बाद भी बाहर भाग जाने से बाज नहीं आता था। चमेली गूँगे के प्रति दया दिखाना चाहती थी परन्तु फिर वह सोचने लगी कि इन लोगों के लिए चाहे तुम कुछ भी करो ये नहीं सुधरेंगे।

प्रश्न 6.
यदि बसंता गूँगा होता तो आपकी दृष्टि में चमेली का व्यवहार कैसा होता ?
उत्तर :
यदि चमेली का पुत्र बसंता गूँगा होता तो निश्चय ही उसका व्यवहार उसके प्रति वैसा न होता जैसा कि गूँगे के प्रति था। माताएँ अपनी संतान से असीम स्नेह करती हैं। अपने पुत्र के अवगुण भी उसे गुण दिखाई देते हैं। यदि उसके पुत्र पर कोई अत्याचार करता तो वह उसे सहन नहीं कर सकती थी, यदि बसंता गूँगा होता तो वह उसकी और अपनी भाग्यहीनता पर आँसू बहाती और उसका हर संभव इलाज कराती तथा अन्य गूँगों के लिए भी उसके हृदय में उतना ही स्नेह और सहानुभूति होती। यदि कोई उसके गूँगे पुत्र को अकारण ही थप्पड़ मारता तो वह लड़ने-मरने पर उतारू हो जाती क्योंकि अपना खून अपना ही होता है और पराया-पराया ही होता है। चमेली जैसी साधारण स्त्री में उदात्त मानवीय गुण जो पक्षपात रहित हों होना सम्भव नहीं है। यदि उसका पुत्र बसंता गूँगा होता तो वह उसे बासी रोटी खाने को न देती और न ही वह उसे धक्के मारकर घर से बाहर निकालती। बसंता के घर से गायब होने पर उसे ढूूँढने के हर सम्भव उपाय करती। चुपचाप घर में बैठकर रसोई न बनाती। गली के लड़कों द्वारा सिर फोड़ने पर उसे तुरन्त डॉक्टर के पास ले जाती, चुपचाप खड़ी न देखती।

प्रश्न 7.
‘उसकी आँखों में पानी भरा था। जैसे उनमें एक शिकायत की, पक्षपात के प्रति तिरस्कार था।’ क्यों ?
उत्तर :
बसंता और गूँगे का झगड़ा हो गया था। बसंता ने कसकर गूँगे को चपत जड़ दी थी। गूँगे ने भी उसके ऊपर हाथ उठाया था परन्तु वह यह समझकर की बसंता मालिक का बेटा है मार नहीं सका। बसंता के थप्पड़ मारने पर गूँगा रोने लगा था। बसंता की शिकायत पर चमेली भी गूँगे को ही बुरा-भला कहने लगी थी। चमेली के इस रवैये को देखकर गूँगे को लगा कि वह पक्षपात कर रही है। उसे इस बात का दुःख था इसलिए उसकी आँखों में पानी भर आया था।

प्रश्न 8.
‘गूँगा दया या सहानुभूति नहीं, अधिकार चाहता है’ सिद्ध कीजिए।
उत्तर :
‘गूँगे’ कहानी में गूँगे के माध्यम से जिस शोषित, पीड़ित एवं असहाय वर्ग का चित्रण किया गया है, वह मूक रहकर समस्त अत्याचारों को बेशक सहन कर लेता है किंतु समय-समय पर व्यक्त उसका आक्रोश यह कहता है कि वह दया या सहानुभूति की अपेक्षा अधिकार चाहता है। अपने साथ हो रहे अन्याय के विरोध में कभी-कभी उसके स्वर में ज्वालामुखी के विस्फोट की-सी भयानकता झलकती है। कहानी का पात्र गूँगा कर्मठ है। वह काम करना जानता है और काम करना चाहता है। वह चमेली तथा अन्य स्त्रियों के मध्य सीने पर हाथ मारकर इशारा करता है कि वह भीख नहीं माँगता अपितु अपने पेट के लिए परिश्रम करता है। जब-जब उसे यह अनुभव होता है कि वह दया का पात्र समझा जा रहा है तो वह विद्रोह कर बैठता है। जब चमेली घर से बाहर रहने के कारण दण्डस्वरूप उसे चिमटा मारती है तो वह अपने अपराध को जानकर रोता नहीं है, वरन् दण्ड को सिर झुकाकर स्वीकार कर लेता है। किन्तु वह यह नहीं चाहता कि चमेली का पुत्र उसे थप्पड़ मारे और वह अपने पुत्र का पक्ष ले। जब चमेली अपने पुत्र की ममतावश, गूँगे को मारने के लिए हाथ उठाती है तो गूँगा उसका हाथ पकड़ लेता है, मानो कह रहा हो कि उसे बसंता को दण्ड देना चाहिए। इतना ही नहीं विद्रोह के स्वर पर उतरा गूँगा अपने स्वाभिमान पर आँच आती देखकर गली के लड़कों से भिड़ जाता है। “क्योंकि गूँगा होने के नाते उनसे दबना नहीं चाहता था।” गूँगा समाज में सम्मानपूर्वक रहने का अधिकार चाहता है इसके लिए विरोध में आक्रोश व्यक्त करता है।

प्रश्न 9.
‘गूँगे’ कहानी को पढ़कर आपके मन में कौन-सा भाव उत्पन्न होता है और क्यों?
उत्तर :
‘गूँगे’ कहानी को पढ़कर हमारे मन में गूँगे के प्रति सहानुभूति का भाव उत्पन्न होता है क्योंकि गूँगा व्यक्ति समाज में सहानुभूति का पात्र होता है। वह न्याय-अन्याय को समझता है किंतु वाणी-विहीन होने के कारण उन्हें अभिव्यक्त नहीं कर पाता। गूँगा व्यक्ति अपने पर हो रहे अत्याचार को सहन कर जाता है क्योंकि उसकी वाणी उसके विरोध-विद्रोह को स्वर नहीं दे पाती। अतः वह निरीह असहाय हमारी सहानुभूति का अधिकारी है।

प्रश्न 10.
“तूँगे में ममता है, अनुभूति है और है मनुष्यत्व”- कहानी के आधार पर इस वाक्य की विवेचना कीजिए।
उत्तर :
गूँगे में ममता है-तूँगा वाणी-विहीन होते हुए भी हृदयविहीन नहीं है। उसे अपने-पराये की पहचान है। उसके हृदय में ममता जीवित है। चमेली द्वारा आश्रय दिए जाने पर उसे लगता है कि उसे मातृत्व की ग्राप्ति हुई है। वह उसे अपना हितैषी समझता है। वह जब चाहे भाग जाता है किन्तु लौटकर उसी के पास आ जाता है। यहाँ तक कि चमेली द्वारा घर से निकाल दिए जाने के बाद भी घायलावस्था में वह ममतावश उसी के दरवाजे पर आकर कराहने लगता है। इस प्रकार वह चमेली के निःस्वार्थ प्रेम को स्वीकार करता है।

गूँगे में अनुभूति है-गूँगा यद्यपि कहने में और सुनने में असमर्थ है, फिर भी वह अनुभव सब कुछ करता है। उसे अपने फूफा-बुआ की मार का दुःखद अनुभव है। उसे मेहनत करके शानदार जीवन जीने का अनुभव भी है। वह बसंता के थप्पड़ का उत्तर दे सकता था किन्तु वह अनुभव करता है कि बसंता मालिक का पुत्र है, अतः मारने का हक उसे नहीं है। वह यह भी अनुभव करता है कि चमेली ने अपने पुत्र का पक्ष लेकर उसके साथ अन्याय किया है। घर से बाहर रहने के लिए वह स्वयं को अपराधी मानकर चमेली का चिमटा भी चुपचाप सहन कर लेता है।

अपने स्वाभिमान की भी उसे अनुभूति है और उसी की रक्षा के लिए वह गली के लड़कों से लड़ पड़ता है। तूँगे में मनुष्यत्व है-गूँगा सभी मानवीय गुणों से युक्त है। बोलने वाले मनुष्यों की भाँति ही वह अपने अधिकार और कर्त्यवों के प्रति जागरूक है। वह एक मनुष्य की तरह अच्छा जीवन जीना चाहता है, किन्तु समाज उसे प्रताड़ित और पीड़ित करता है। जहाँ भी वह काम करता है, लोग उसके साथ अमानवीय व्यवहार करते हैं। वह अत्याचार सहने के लिए विवश है क्योंकि वह अन्य मनुष्यों की भाँति अपने विरोध और विद्रोह को व्यक्त नहीं कर सकता है। वास्तव में लेखक ने कहानी के इस गूँगे किशोर के माध्यम से शोषित एवं पीड़ित वर्ग की असहायता का जीवंत चित्रण किया है।

प्रश्न 11.
कहानी का शीर्षक ‘गूँगे’ है गूँगा नहीं जबकि कहानी में एक ही पूँगा पात्र है। इसके माध्यम से लेखक ने समाज की किस प्रवृत्ति की ओर संकेत किया है।
उत्तर :
‘गूँग’ कहानी में एक गूँगे पात्र के माध्यम से लेखक ने समस्त शोषित एवं पीड़ित मानव की असहायता का चित्रण किया है। कहानी का शीर्षक ‘गूँगे’ प्रतीकात्मक है। यह शब्द समाज के उन सभी शोषित-पीड़ित व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है जो इस संसार में वाणी के अभाव में पाश्विक अत्याचारों को सहकर भी स्पष्ट आवाज में विरोध नहीं कर पाते। उनके पास अनुभूति है किन्तु अभिव्यक्ति नहीं है। अस्फुट ध्वनियों में उनका चीत्कार गूँजता रहता है। उनके स्वरों का कोई अर्थ नहीं निकलता। अपने मन में उठे आक्रोश को व्यक्त करने के लिए उनके पास शब्द नहीं हैं। लेखक के शब्दों में ही-‘और ये गूँगे… अनेक-अनेक हो संसार में भिन्न-भिन्न रूपों में छाए हैं।

वे कुछ कहना चाहते हैं पर कह नहीं पाते। जिनके हृदय की प्रतिहिंसा न्याय और अन्याय को परखकर भी अन्याय को चुनौती नहीं दे सकती, क्योंकि बोलने के लिए स्वर होकर भी-स्वर में अर्थ नहीं है….. क्योंकि वे असमर्थ हैं।’ इस प्रकार स्पष्ट है कि लेखक का उद्देश्य एक पूँगे की कहानी कहना अभीष्ट नहीं है, अपितु कहानी के एक गूँगा पात्र के माध्यम से समस्त शोषित एवं पीड़ित मानव की बात कहना है। इस कहानी का पात्र ‘गूँगा’ समस्त गूँगों के वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है। इस दृष्टि से कहानी का शीर्षक ‘गूँगे’ औचित्यपूर्ण है।

प्रश्न 12.
निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग ब्याख्या कीजिए।
(क) “करुणा ने सबको ……………… जी जान से लड़ रहा हो।”
(ख) “वह लौटकर ……………… आदमी गुलाम हो जाता है।”
(ग) “और फिर कौन …………………. जिदंगी बिताए।”
(घ) “और ये गूँगे ………………………. क्योंकि वे असमर्थ हैं।”
उत्तर :
(क) प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश ‘रांगेय राघव’ द्वारा रचित कहानी ‘एूँगे’ से लिया गया है। लेखक ने यहाँ गूँगे द्वारा इशारों में अपना परिचय देने और वहाँ उपस्थित लोगों की करुणा को व्यक्त किया है।
व्याख्या : लेखक का कहना है कि गूँगे ने जब इशारों ही इशारों में अपना परिचय दिया तो वहाँ उपस्थित सभी के हृदय द्रवित हो गए। उनके हृदय में करुणा उमड़ पड़ी। गूँगा बोलने का कितना प्रयास करता है वह अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए कितना जोर लगाता है परन्तु उसके इस प्रयास का नतीजा कुछ भी नहीं निकलता। उसके मुख से जो ध्वनि निकलती है वह कानों को फोड़ने वाली काँय-काँय के अतिरिक्त कुछ नहीं होती है। ऐसा लगता है जैसे वह अस्पष्ट ध्वनियों का वमन कर रहा हो। जैसे कि अभी धरती पर आदि मानव किसी भाषा के बनाने का जी-जान से प्रयास कर रहा हो। उसका प्रयास निरर्थक प्रतीक होता है।

(ख) प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश ‘रांगेय राघव’ द्वारा रचित कहानी ‘गूँगे’ से लिया गया है। लेखक ने यहाँ पूँगे के हृदय में उठने वाली संवेदनाओं पर प्रकाश डाला है। साथ ही चमेली की मनःस्थिति को भी प्रकट किया है।
ब्याख्या : लेखक का मानना है कि हमारे समाज में ‘गूँगों’ की कमी नहीं। इन गूँगों का एक रूप नहीं बल्कि अनेक रूप हैं। जो व्यक्ति अन्याय को देखता रहता है, सहता रहता है परन्तु बोलता कुछ नहीं वह भी गूँगा है। जो किसी पर अत्याचार होते देखता है परन्तु बोलने का साहस नहीं करता वह भी गूँगा है। जिस व्यक्ति के मन में विचार उठते हैं परन्तु किसी कारण से वह उनको प्रकट नहीं कर पाता वह भी गूँगा है। जो न्याय और अन्याय में भेद करके भी अत्याचार के खिलाफ आवाज नहीं उठा पाते वे भी गूँगे ही हैं। वे जो बोलना चाहते हैं उनके बोलने का कोई अर्थ नहीं है। जो निर्थक बोलते हैं वे भी गूँगे के समान ही हैं। उनकी असमर्थता उनको गूँगा बना देती है।

(ग) प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘अंतरा’ भाग-1 में संकलित ‘‘ूँगे’ कहानी से लिया गया है। लेखक ने यहाँ गूँगे पर क्रोधित होते समय चमेली की मनःस्थिति को दर्शाया है।
व्याख्या : लेखक कहता है कि चमेली गूँगे के घंर से चले जाने के कारण उस पर बहुत क्रोधित हो रही थी। फिर उसने सोचा कि इसे मारने से क्या फायदा! आखिर यह मेरा लगता क्या है? कुछ भी तो नहीं। यदि इसे यहाँ रहना है तो ठीक से रहे नहीं तो इसके जहाँ जी में आए चला जाए इसकी मर्जी। मेरी ओर से यह चाहे तो सड़कों पर कुत्तों की तरह दर-दर जूठन खाता फिरता रहे। इसके जी में जैसा आए वैसी जिंदगी बिताए।

(घ) प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश ‘रांगेय राघव’ द्वारा रचित कहानी ‘गूँगे’ से लिया गया है। लेखक ने यहाँ गूँगे के हृदय में उठने वाली संवेदनाओं पर प्रकाश डाला है। साथ ही चमेली की मनःस्थिति को भी प्रकट किया है।
व्याख्या : लेखक का मानना है कि हमारे समाज में ‘गूँगों’ की कमी नहीं। इन गूँगों का एक रूप नहीं बल्कि अनेक रूप हैं। जो व्यक्ति अन्याय को देखता रहता है, सहता रहता है परन्तु बोलता कुछ नहीं वह भी गूँगा है। जो किसी पर अत्याचार होते देखता है परन्तु बोलने का साहस नहीं करता वह भी गूँगा है। जिस व्यक्ति के मन में विचार उठते हैं परन्तु किसी कारण से वह उनको प्रकट नहीं कर पाता वह भी गूँगा है। जो न्याय और अन्याय में भेद करके भी अत्याचार के खिलाफ आवाज नहीं उठा पाते वे भी गूँगे ही हैं। वे जो बोलना चाहते हैं उनके बोलने का कोई अर्थ नहीं है। जो निरर्थक बोलते हैं वे भी गूँगे के समान ही हैं। उनकी असमर्थता उनको गूँगा बना देती है।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) कैसी यातना है कि वह अपने हृदय को उगल देना चाहता है, किंतु उगल नहीं पाता।
(ख) जैसे मंदिर की मूर्ति कोई उत्तर नहीं देती, वैसे ही उसने भी कुछ नहीं कहा।
उत्तर :
(क) गूँगा होना अपने में कितना बड़ा अभिशाप है वह अपने मन के भावों और विचारों को प्रकट करने में असमर्थ है। वह अपने हृदय की सारी व्यथा बयान करना चाहता है परन्तु उसके मुँह से शब्द बनकर बाहर नहीं आते। वह जो कहना चाहता है नहीं कह पाता। उसके लिए यह कितनी बड़ी सजा है।
(ख) मंदिर की मूर्तियाँ अवाक् रहती हैं उनको आप कुछ भी कहो वे कोई जवाब नहीं देती। इसी प्रकार गूँगा न तो सुन सकता था न बोल सकता था। उसे कोई कुछ भी कहे, न तो वह पूरी तरह से किसी की बात समझ सकता था और न अपनी बात कह सकता था। मंदिर की मूर्ति और उसमें काफी समानता थी।

प्रश्न 14.
निम्नलिखित पंक्तियों को अपने शब्दों में समझाइए-
(क) इशारे गजब के करता है
(ख) सड़ से एक चिमटा उसकी पीठ पर जड़ दिया
(ग) पत्ते चाटने की आदत पड़ गई है
(क) बहुत अच्छे संकेत करता है
(ख) बिना सोचे समझे चिमटा उसकी पीठ पर दे मारा
(ग) इधर-उधर का खाने की आदत पड़ गई है।

योग्यता-विस्तार –

प्रश्न 1.
समाज में विकलांगों के लिए होने वाले प्रयास में आप कैसे सहयोग कर सकते हैं ?
उत्तर :
समाज में विकलांगों के प्रति हमारा व्यवहार दया या सहानुभूति की अपेक्षा स्नेह और सहयोग का होना चाहिए। उन्हें अपने समान समझना चाहिए ताकि उन्हें हीनता का अनुभव न हो। उन्हें काम करने के अवसर प्रदान किए जाने चाहिए। उन्हें वे ही काम दिए जाएं जिन्हें वे सुविधापूर्वक कर सकें, जिससे उनमें आत्मविश्वास और स्वाभिमान भी जागृत हो। उनमें भी सामान्य मनुष्यों के समान जीने की लालसा और क्षमता होती है। अतः हमारा कर्त्तव्य है कि हम उनकी इस लांलसा और कार्य करने की क्षमता का समुचित प्रयोग करने के अवसर प्रदान कर समाज की रचना में उनके सहयोग को सक्रिय बनाने में सहयोग प्रदान करें। विकलांग भी समाज के महत्त्वपूर्ण अंग हैं। उनके प्रति समाज का नैतिक दायित्व है कि वे ऐसे वातावरण का निर्माण करें जिससे वे आत्म-सम्मान का जीवन जी सकें और समाज के उपयोगी अंग बन सकें।

प्रश्न 2.
विकलांगों की समस्या पर आधारित ‘स्पर्श’, ‘कोशिश’ तथा ‘इकबाल’ फिल्में देखिए और समीक्षा कीजिए।
उत्तर :
छत्र फिल्म देखकर समीक्षा करेंगे कि उस फिल्म की प्रधान समस्या क्या है और उसमें क्या-क्या दिखाया गया है।

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प्रश्न 1.
‘एक गूँगे की कहानी होते हुए भी इसका आरम्भ संवाद से हुआ है’ इस कथन को दृष्टि में रखकर कहानी के संवादों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
‘पूँगे’ कहानी एक गूँगे की कहानी होते हुए भी संवादों से आरम्भ होती है क्योंकि ये संवाद गूँगे के अनुच्चरित संवादों की आधार भूमि का निर्माण करते हैं। अतः ये संवाद कहानी के विशेष सौंदर्य हैं। यह बात सर्वथा आश्चर्यजनक लगती है कि गूँगे व्यक्ति की कहानी संवादों से प्रारम्भ हो किन्तु कहानी के प्रारम्भिक संबाद ही गूँगे की वाणीहीनता को स्वर देते हैं या कहानी को संवादहीन होने से बचाकर रोचकता तथा जिज्ञासा उत्पन्न करते हैं।

गूँगे का स्वर यंत्र खराब होने के कारण वह बोल नहीं सकता। पर वह वाणीरहित अभिव्यक्ति संकेतों द्वारा करने में सक्षम है, उसकी स्वरहीनता को संवाद ही स्वर प्रदान करते हैं। पूँगे के सम्बन्ध में परस्पर बातचीत करने वाली स्त्रियाँ सुशीला, शकुन्तला और चमेली आदि तो बोल सकती हैं, इसीलिए उनके पारस्परिक वार्तालाप से ही कहानी आरम्भ होती है। कहानी के प्रार्भ के अतिरिक्त भी लेखक ने संवादों का बीच-बीच में समावेश किया है। गूँगे पात्र के संवादों के माध्यम से लेखक ने अपनी वर्णन कुशलता का परिचय दिया है। लेखक ने गूँगे के इशारों को शब्दों द्वारा अर्थपूर्ण वाणी दी है।

प्रश्न 2.
गूँगे कहानी के आधार पर निम्नलिखित उक्तियों का स्पष्टीकरण कीजिए-
(क) पुत्र की ममता ने इस विषय पर चादर डाल दी।
उत्तर :
चमेली के पुत्र बसंता ने गूँगे को जब एक थप्पड़ मारा था। शक्तिशाली होते हुए भी गूँगे ने बसंता पर यह समझकर हाथ नहीं उठाया कि यह मालिक का लड़का है। अपने पुत्र के इस कार्य पर चमेली को थोड़ा विक्षोभ या दुःख तो हुआ किन्तु अपने पुत्र पर उसकी ममता का होना स्वाभाविक था। अतः उसने अपने पुत्र का पक्ष लिया और अपने पुत्र को कुछ नहीं कहा किन्तु ममता ने धीरे-धीरे इस बात को भुला दिया कि बसंता का कोई अपराध था और चमेली को उसे दण्ड देना चाहिए था या गूँगे को अत्याचार का प्रतिशोध लेना चाहिए था।

(ख) इस मूक अवसाद में युगों का हाहाकार गूँज रहा है।
उत्तर :
चमेली ने गूँगे को घर से निकाल दिया था। शाम को गूँगा गली के लड़कों से पिटकर आया था क्योंकि उसने उनसे प्रतिशोध लिया था और वह अपने को उनसे कम नहीं समझता था। समाज के शोषित पीड़ित लोग अपने ऊपर ढाए गए अत्याचार का बदला लेना चाहते हैं तो उच्च वर्ग मिलकर उनका शोषण और दमन करता है। उन्हें शारीरिक कष्ट देता है जैसा कि बदला लेने पर गूँगे को पीटा गया। चमेली ने जब गूँगे को घायलावस्था में देखा तो उसे लगा कि गूँगे के दुःख में कई युगों से पीड़ित-शोषित गूँगे व्यक्तियों का हाहाकार गूँज रहा है। युगों-युगों से शोषित-पीड़ित वर्ग इसी प्रकार हाहाकार कर रहा है।

(ग) उसने एक पशु पाला था, जिसके हृदय में मनुष्यों की-सी वेदना थी।
उत्तर :
बसंता के थप्पड़ को गूँगा सहन तो कर गया लेकिन चमेली के अपने पुत्र के प्रति पक्षपातपूर्ण व्यवहार को देखकर उसकी आँखों में एक आक्रोश, एक शिकायत और तिरस्कार का भाव भरा हुआ था। चमेली के बुलाने पर आँखों में औसूू भरे हुए वह रात की बासी रोटी खाने के लिए आ जाता है। हैंस पड़ता है। वह फिर भी चमेली का उपकार मानता है इसलिए अन्याय सहकर भी हैंस पड़ा। उसके हँँसने में भी मानवीय हँसी न होकर एक गुर्राहट थी। उसे भीतर ही भीतर भय लगा। उसे लगा कि उसने मानवीय भावों से युक्त एक ऐसे प्राणी को पाला था जिसका व्यवहार तो पशुओं जैसा ही परन्तु उसके हृदय में पीड़ा अनुभूत करने की शक्ति अद्भुत थी। चमेली को गूँगा भयंकर लगा जो मानवीय सहानुभूति चाहता है। वह हर प्रकार के मानवीय न्याय-अन्याय को समझता है, किन्तु बोलने में अक्षम होने के कारण पशु बनकर रह गया है। असहाय होने के कारण वह अपनी वेदना व्यक्त नहीं कर पाता।

प्रश्न 3.
‘गूँगे’ कहानी के आधार पर चमेली का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर :
कोमल हृदया-चमेली एक कोमल हुदय वाली स्त्री है। किसी का कष्ट उससे देखा नहीं जाता। स्वयं लेखक की टिप्पणी है-“अनाथाश्रम के बच्चों को देख कर चमेली रोती थी। आज भी उसकी आँखों में पानी आ गया। वह सदा से ही कोमल है।” गूँगे को अपने साथ रख लेना, उसे ममता देना उसकी कोमल हृदयता के ही प्रमाण हैं। चिमटा मारने के पश्चात् स्वयं रोना भी उसकी इसी कोमलता का परिचायक है।

ममतामयी-चमेली के हृदय में ममता कूट-कूट कर भरी है। अपने पुत्र के प्रति तो हर माँ ममतामयी होती है, पर वह चमेली ही है जो अपरिचित विकलांग गूँगे को पुत्र-सा स्नेह देती है। कहानी में एक दो स्थानों पर हम चमेली का ऐसा रूप भी पाते हैं जब वह गूँगे को डपट या पीट रही है, पर वह किसी विद्वेष के कारण नहीं। उसके पीछे तो ममता ही है कि वह सुधर जाए और घर से न भागे।

कठोरता और अनुशासन-चमेली अनुशासनप्रिय है। वह चाहती है कि जब गूँगे को घर में खाना और आश्रय मिला है तो वह अन्यत्र न जाए। इससे आस-पड़ोस में चमेली की छवि धूमिल होती है। लोग उसके घर को अजायबघर कहते हैं। अतः गूँगे के भाग जाने पर वह उससे कठोरता से पेश आती है। पहले तो उसे संभलने का मौका देती है पर जब आदत नहीं छोड़ता तो उसे घर से धक्का देकर निकाल देती है।

चमेली सामान्य नारी है। उसमें कुछ न्यूनताएँ भी हैं जो किसी भी नारी में हो सकती हैं। वह अपने पुत्र के प्रति पक्षपात करती है। पर आगे चलकर यह भावना भी उसमें आती है कि यदि बसंता गूँगा होता तो……? वह अपने आचरण को बदल लेती है। इसी प्रकार झुंझलाहट में वह भला-बुरा कहकर और धक्के देकर गूँगे को घर से बाहर कर देती है, पर जब वह लहूलुहान होकर लौटता है तो उसे देख वह हतप्रभ खड़ी रह जाती है। इसकी तो उसने कल्पना भी नहीं की थी। उस मूक अवसाद में युगों का हाहाकार गूँजता प्रतीत होता है।

प्रश्न 4.
चमेली ने पूँगे को चिमटे से क्यों मारा ?
उत्तर :
एक दिन गूँगा चमेली को बताए बिना ही अचानक घर से गायब हो गया। उसे ढूंढा गया, पर वह नहीं मिला। किंतु खाना खाने के समय वह लौट आया। उसके बिना बताए जाने से चमेली को बड़ा कष्ट हुआ था। वह उससे नाराज थी। गूँगे के रोटी खा लेने के बाद चमेली ने जब पूछा कि वह कहाँ गया था तो गूँगे ने कोई उत्तर नहीं दिया। कुछ उत्तर न मिलने पर उसने आवेश में एक चिमटा जड़ दिया।

प्रश्न 5.
तूँगे द्वारा अपना हाथ पकड़ लिए जाने पर चमेली को कैसा लगा? चमेली ने अपना हाथ क्यों छुड़ा लिया? उत्तर :
गूँगे द्वारा अपना हाथ पकड़ लिए जाने पर चमेली को ऐसा लगा जैसे उसी के पुत्र ने आज उसका हाथ पकड़ लिया था। चमेली के हृदय में एकाएक घृणा का भाव आया और उसने अपना हाथ छुड़ा लिया। पुत्र के प्रति मंगलकामना ने उसे ऐसा करने को मजबूर कर दिया।

प्रश्न 6.
शकुंतला और बसंता दोनों क्यों चिल्ला उठे?
उत्तर :
गूँगे को खून से भीगा देखकर शकुंतला और बसंता चिल्ला उठे। गूँगा बाहर सड़क के लड़कों से पिटकर आया था क्योंकि वह दबना तो किसी से जानता ही न था।

प्रश्न 7.
गूँगे ने अपने संबंध में इशारे से चमेली को क्या-क्या बताया?
उत्तर :
गूँगे ने इशारा करके बताया कि उसकी माँ भाग गई है और उसका पिता मर गया वह उसको बहुत मारता था। उसने अपने सीने पर हाथ रखकर बताया कि वह किसी से भीख नहीं लेता, फिर उसने अपनी भुजाओं पर हाथ रखकर इशारा किया कि वह अपनी मेहनत की खाता है और फिर पेट बजाकर दिखाया कि यह सब इसके लिए करता है।

प्रश्न 8.
कहानी के आधार पर गूँगे के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
‘गूँग’ इस कहानी का एक ऐसा पात्र है, जो पीड़ित एवं शोषित वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है। वह एक किशोर है, वह काफी समय तक अत्याचार सहता रहता है, पर वह आक्रोश व्यक्त इसलिए नहीं कर पाता क्योंकि वह बोल नहीं पाता है।
गूँगा परिश्रमी है। वह हराम की कमाई नहीं खाता, अपितु जी-तोड़ परिश्रम करके पेट भरता है। उसने रात भर हलवाई के लड्डू बनाए, कड़ाही मांजी, कपड़े-धोये पर जी न चुराया।
पूँगा दीन-हीन है। वह मार खाकर भी चुप बैठ जाता है। चमेली द्वारा घर से निकाले जाने पर वह लहूलुहान होकर लौटता है और कराहता रहता है पर कहता कुछ नहीं।
पूँगा विवेकी है। वह बसंता पर हाथ नहीं उठाता है। यद्यपि जब बसंता गूँगे को चपत लगाता है तो उसका स्वाभिमान जग जाता है, पर विवेक उसका हाथ रोक देता है।
गूँगा सहृदय बालक है। उसे भी प्रेम, घृणा, दु:ख आदि का अनुभव होता है। वह चमेली के समक्ष रो पड़ता है। इस प्रकार गूँगा अनेक गुणों से सम्पन्न है।
गूँगे में मानवोचित सभी गुण हैं। यदि कोई दोष है तो वह ईश्वर का दिया हुआ, उसका गूँगा और बहरा होना। हमारा समाज भी तो गूँगा-बहरा ही है अतः यह दोष उसके चरित्र के लिए बड़ा दोष नहीं माना जाएगा।

प्रश्न 9.
चमेली ने गूँगे को घर से निकालते समय जो कदुतापूर्ण शब्द कहे उनका गूँगे के लिए क्या अर्थ था?
उत्तर :
चमेली ने पूँगे को घर से निकालते समय जो कटुतापूर्ण शब्द कहे वे गूँगे के लिए निरर्थक थे क्योंकि वह सुन नहीं सकता था।

प्रश्न 10.
पूँगे का सिर किस प्रकार फट गया था ?
उत्तर :
सड़क के लड़कों ने उसे बुरी तरह पीटा था, अतः उसका सिर फट गया था।

प्रश्न 11.
उसके ‘मूक अवसाद’ की चमेली पर क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर :
उस निरीह गूँगे के दुःख के मारे कुत्ते की तरह चिल्लाने के ‘मूक अवसाद’ से वह करुणायुक्त चमेली द्रवीभूत हो गई।

प्रश्न 12.
चमेली की गूँगे के प्रति नाराजगी का सबसे बड़ा कारण क्या था?
उत्तर :
चमेली की गूँगे के प्रति नाराजगी का सबसे बड़ा कारण यह था कि यूँना रोज-रोज भाग जाता था और उसे पत्ते चाटने की आदत पड़ गई थी।

प्रश्न 13.
‘गूँगे’ कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
‘गूँगे’ कहानी की भाषा सरल, स्वाभाविक, सशक्त, साहित्यिक एवं सूक्ष्म भावों को अभिव्यक्त करने वाली है। कहानीकार ने आम बोल-चाल की सरल शब्दावली के माध्यम से मानवीय संवेदनाओं की प्रभावी अभिव्यक्ति की है। छोटे-छोटे वाक्यों के कारण अभिव्यक्ति में मार्मिकता आ गई है। सहज संवादों की भाषा भी पात्रानुकूल और प्रसंगानुकूल है। सहज संवादों से भाषा का प्रवाह और भी गतिशील हो उठा है। उन्होंने भाषा में तत्सम, तद्भव, विदेशी सभी लोक प्रचलित शब्दों का निस्संकोच प्रयोग किया है। उनकी भाषा में तत्सम, तद्भव, हिन्दी, उर्दू आदि के शब्द स्वाभाविक रूप से प्रयुक्त हुए हैं-यथा बोलने की कितनी जबरदस्त कोशिश करता है, लेकिन नतीजा कुछ नहीं, केवल कर्कश काँय-काँय का शोर। अस्फुट ध्वनियों का वमन, जैसे आदिम मानव अभी भाषा बनाने में जी-जान से लड़ रहा हो।

प्रसंगों के अनुसार भाषा में उतार-चढ़ाव हैं-यथा-“चमेली आवेश में आकर चिल्ला उठी-मक्कार, बदमाश! पहले कहता था भीख नहीं मांगता, और सबसे भीख माँगता है! रोज-रोज भाग जाता है, पत्ते चाटने की आदत पड़ गई है। कुत्ते की दुम क्या कभी सीधी होगी? नहीं, नहीं रखना है हमें, जा तू इसी वक्त निकल जा….” इस प्रकार रांगेय राघव जी की भाषा सरल, साहित्यिक और प्रवाहपूर्ण है। गूँगे के संकेतों और चमेली के मनोभावों को पाठक तक सशक्त रूप में सम्प्रेषित करने की अपूर्व क्षमता विद्यमान है।

प्रश्न 14.
चमेली अपने आप कब और क्यों लज्जित हो गई?
उत्तर :
चमेली गूँगे को जब चोर, उचक्का, भिखारी, मक्कार, बदमाश और न जाने क्या-क्या कहकर डाँट रही थी परन्तु गूँगा मंदिर की मूर्ति की तरह खड़ा था। जिस प्रकार मूर्ति कोई उत्तर नहीं देती इसी प्रकार गूँगा भला क्या उत्तर देता। चमेली अपने आप पर लज्जित हुई। उसने सोचा कि वह कैसी मूर्ख है। वह गूँगे बहरे से न जाने क्या-क्या कह रही थी। भला वह कुछ सुनता है ?

प्रश्न 15.
‘गूँगे’ कहानी को पढ़कर आपके मन में कौन-सा भाव उत्पन्न होता है और क्यों?
उत्तर :
‘गूँगे’ कहानी को पढ़कर हमारे मन में गूँगे के प्रति सहानुभूति का भाव उत्पन्न होता है क्योंकि गूँगा व्यक्ति समाज में सहानुभूति का पात्र होता है। वह न्याय-अन्याय को समझता है किंतु वाणी-विहीन होने के कारण उन्हें अभिव्यक्त नहीं कर पाता। गूंगा व्यक्ति अपने ऊपर हो रहे अत्याचार को सहन कर जाता है क्योंकि उसकी वाणी उसके विरोध-विद्रोह को स्वर नहीं दे पाती। अतः वह निरीह असहाय हमारी सहानुभूति का अधिकारी है।

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