हस्तक्षेप Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 18 Summary
हस्तक्षेप – श्रीकांत वर्मा – कवि परिचय
जीवन-परिचय : श्रीकांत वर्मा का जन्म बिलासपुर (मध्य प्रदेश) में 18 दिसम्बर सन् 1931 को हुआ। इनकी आरम्भिक शिक्षा बिलासपुर में ही हुई। इन्होंने सन् 1956 में नागपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए. करने के बाद अपना साहित्यिक जीवन शुरू किया। वर्मा जी मूल रूप से पत्रकारिता से जुड़े रहे। इन्होंने ‘दिनमान’ के सह-सम्पादक के पद पर भी कार्य किया। इन्होंने बिलासपुर से प्रकाशित ‘नई दिशा’ और दिल्ली से प्रकाशित ‘कृति’ मासिक पत्रिका का भी सम्पादन किया। मध्य प्रदेश सरकार ने इनको ‘तुलसी पुरस्कार’, ‘आचार्य नंद दुलारे वाजपेयी पुरस्कार’ और ‘शिखर सम्मान’ से सम्मानित किया। सन् 1984 में इनको कविता के लिए केरल का ‘कुमारन आशान’ राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्रदान किया गया।
साहित्यिक-परिचय : श्रीकांत वर्मा की कविताओं के आधार पर कुछ आलोचकों ने इनको आक्रोश का कवि कहा है। आक्रोश व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों ही प्रकार का है। वर्मा जी के कवि में इतनी अधिक बौद्धिक जागरूकता है कि व्यक्तिगत आक्रोश भी समाज की व्याख्या करता है। काव्यधारा के विकास के साथ-साथ श्रीकांत वर्मा उद्बोधनपरक कविताओं से दूर होते गए। उनकी प्रवृत्ति आधुनिक जीवन के यधार्थ का नाटकीय चित्र प्रस्तुत करने की ओर हो गई।
रचनाएँ : वर्मा जी की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं –
जलसा घर, मगध, भटका मेघ, दिनारम्भ, माया-दर्पण ये सभी काव्य संग्रह हैं। झाड़ी संवाद, घर, दूसरे के पैर (कहानी संग्रह) जिरह (आलोचना), अपोलो का रथ (यात्रा वृत्तांत) फैसले का दिन (अनुवाद), बीसवीं शताब्दी के अंभेरे में (साक्षात्कार और वार्तालाप)
भाषा-शैली : श्रीकांत वर्मा के वाक्य में एक विशिष्ट प्रभाव के शिल्प का प्रयोग हुआ है। वे कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक संकेत देने में सिद्धहस्त हैं। एक पंक्ति समाप्त होते ही, नाटकीय ढंग से दूसरी पंक्ति सामने आ जाती है और अन्त में तुक का आभास होने लगता है। उनकी कविताओं में सहायक क्रियाओं का प्रयोग नहीं के बराबर होता है। उनके काव्य की भाषा आम बोल-चाल की भाषा है परन्तु नाटकीय तेवर भाषा को विशिष्टता प्रदान कर देते हैं। उनकी भाषा आज के जीवन की समग्र विवशता और विडम्बना प्रकट करने में सक्षम है। किसी भाव-विचार, बिम्ब या प्रतीक का सजीव रूप प्रस्तुत हो जाता है। जीवन की विवशता कवि के शिल्प की विवशता बन गई है।
Hastakshep Class 11 Hindi Summary
कविता का संक्षिप्त परिचय :
प्रस्तुत कविता ‘हस्तक्षेप’ में कवि ने सत्ता की निरंकुशता, क्रूरता एवं उसके कारण पैदा होने वाले प्रतिरोध को दिखाया है। जनतांत्रिक व्यवस्था में यदि समय-समय पर हस्तक्षेप न किया जाए तो वह व्यवस्था जनतांत्रिक न रहकर निरंकुश हो जाती है। इस कविता में ऐसी व्यवस्था का जिक्र है जहाँ कोई हस्तक्षेप करने का साहस नहीं जुटाता। कवि बताना चाहता है कि हस्तक्षेप मुर्दा भी कर सकता है तो फिर जिन्दा व्यक्ति चुप कैसे रह सकता है। यदि जनतंत्र को बचाना है तो हस्तक्षेप तो करना ही पड़ेगा।
कविता का सार :
प्रस्तुत कविता में मगध एक ऐसे राष्ट्र का प्रतीक है जहाँ कोई भी शासन व्यवस्था में हस्तक्षेप नहीं करता। वहाँ कोई बोलना तो दूर छींकता तक भी नहीं कहीं मगध की शांति भंग न हो जाए क्योंकि मगध रहेगा तो शांति रहेगी। कोई चीख चिल्लाकर भी अपनी बात कहने का साहस नहीं करता क्योंकि चीखने से मगध की व्यवस्था भंग हो जाएगी। मगध जैसे राष्ट्र में यदि व्यवस्था भंग हो गई तो लोग क्या कहेंगे। कुछ लोग तो अब यह भी कहने लगे हैं कि मगध केवल कहने को ही मगध है रहने के लिए नहीं । मगध में यदि कोई गलत कार्य कर रहा है तो कोई उसे इसलिए नहीं टोकता कभी यहाँ टोकने का रिवाज न बन जाए। किसी भी राष्ट्र का जनतांत्रिक स्वरूप बनाए रखने के लिए हस्तक्षेप जरूरी है। हस्तक्षेप एक मुर्दा भी करता है, यह कहकर कि मनुष्य क्यों मरता है ? फिर तुम तो मनुष्य हो, तुम हस्तक्षेप से कैसे बच सकते हो ?
हस्तक्षेप सप्रसंग व्याख्या
1. कोई छीकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की शांति
भंग न हो जाए,
मगध को बनाए रखना है, तो
मगध में शांति
रहनी ही चाहिए
मगध है, तो शांति है
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘श्रीकांत वर्मा’ द्वारा रचित कविता हस्तक्षेप से अवतरित हैं। कवि ने यहाँ सत्तां के खिलाफ आवाज बुलंद न करने वाले व्यक्तियों पर व्यंग्य किया है।
व्याख्या : कवि कहता है कि निरंकुश शासन प्रणाली वाले राष्ट्र में कोई भी व्यक्ति शासन के कार्य में तनिक भी हस्तक्षेप नहीं करता क्योंकि हस्तक्षेप करना उसके लिए धृष्टता के समान है। ऐसा करने से उस निरंकुश राष्ट्र की शांति भंग होने का खतरा है। उनका छोटा-सा हस्तक्षेप भी शासन के प्रति विद्रोह माना जाएगा। शांति बनाए रखने के लिए कोई वहाँ हींकता भी नहीं अर्थात् हल्का-सा भी विरोध नहीं करता क्योंकि वहाँ शांति तभी तक है जब तक वहौं कोई मुँह नहीं खोलता।
काव्य सौन्दर्य : यहाँ मगध निरंकुश राष्ट्र का प्रतीक है जहाँ किसी को अपने विचार रखने की आज़ादी नहीं है। कवि ने थोड़े शब्दों में बहुत कुछ कह दिया है, अतुकांत रचना है। व्यंग्यात्मक भाषा का प्रयोग किया गया है।
2. कोई चीखता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की व्यवस्था में
दखल न पड़ जाए
मगध में ब्यवस्था रहनी ही चाहिए
मगध में न रही
तो कहाँ रहेगी ?
क्या कहेंगे लोग ?
लोगों का क्या ?
लोग तो यह भी कहते हैं
मगध अब कहने को मगध है,
रहने को नहीं
शब्दार्थ एवं टिप्पणियाँ :
दखल – हस्तक्षेप
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘अंतरा’ में संकलित ‘’स्तक्षेप’ से ली गई हैं। यहाँ कवि ने बताया है कि निरंकुश राष्ट्र में कोई मार खाकर भी चीखता-चिल्लाता नहीं क्योंकि ऐसा करने से चीखना वहाँ की व्यवस्था में हसक्षेप समझा जाएगा।
ब्याख्या : कवि कहता है कि निंखुश शासन व्यवस्था में किसी के ऊपर कितना भी अत्याचार क्यों न हो वह चीख-पुकार भी नहीं कर सकता क्योंकि ऐसा करना शासन के विरुद्ध समझा जाएगा। इससे वहाँ की व्यवस्था भंग होने का खतरा हो जाएगा। कारण एक व्यक्ति बोलना शुरु करता है तो उसके साथ और भी लग जाते हैं इसलिए किसी को बोलने का अवसर ही नहीं दिया जाता। यदि ऐसे राष्ट्र में ब्यवस्था नहीं रही तो फिर व्यवस्था कहाँ रहेगी ? लोग क्या कहेंगे ? लोग तो दबी जुवान में यह भी कहते हैं कि मगध अब कहने को ही मगध है रहने को नहीं अर्थात् अब यहाँ भी दबी जुबान ने विरोध शुरू कर दिया है।
काव्य सौन्दर्य : निरंकुश शासन व्यवस्था के प्रति लोगों के जुबान न खोलने पर व्यंग्य किया है। निरंकुश राष्ट्र में शासन व्यवस्था बल पूर्वक स्थापित की जाती है। जनतंत्र को सुचारू रुप से चलाने के लिए हस्तक्षेप की आवश्यकता पर बल दिया है।
अतुकांत रचना है। व्यंग्यात्मक भाषा के द्वारा कवि का आक्रोश प्रकट हुआ है।
3. कोई टोकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध में
टोकने का रिवाज़ न बन जाए
एक बार शुरू होने पर
कहीं नहीं रुकता हस्तक्षेप-
वैसे तो मगधनिवासियो
कितना भी कतराओ
तुम बच नहीं सकते हस्तक्षेप से-
जब कोई नहीं करता
तब नगर के बीच से गुज़रता हुआ मुर्दा
यह प्रश्न कर हस्तक्षेप करता है-
मनुष्य क्यों मरता है ?
शब्दार्थ एवं टिप्पणियाँ :
- प करना – टोकना
- रवाज़ – प्रचलन, चलन, प्रथा
- कतराना – बचन
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘श्रीकांत वर्मा’ द्वारा रचित कविता ‘हस्तक्षेप’ से ली गई हैं। कवि ने यहाँ बताया है कि प्रजातंत्र को प्रजातंत्र बनाए रखने के लिए समय-समय पर हस्तक्षेप करना अनिवार्य है अन्यथा प्रजातंत्र के स्थान पर निरंकुश शासन स्थापित हो जाता है। जब एक मुर्दा भी हस्तक्षेप कर सकता है तो तुम जीते-जागते मनुष्य होकर भी हस्तक्षेप क्यों नहीं कर पाते ?
व्याख्या : जब सत्ता क्रूर हो जाती है तो वहौं टोका-टाकी करने से भी लोग डरने लगते हैं कहीं टोकने का रिवाज ही न बन जाए; क्योंकि एक व्यक्ति टोकेगा तो और व्यक्ति भी देखा-देखी विरोध प्रदर्शन शुरू कर देंगे। हस्तक्षेप यदि एक बार शुरू हो जाए तो फिर बढ़ता ही जाता है। परन्तु कवि का मानना है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए हस्तक्षेप बहुत जरूरी है। एक मुर्दा भी नगर के बीच से गुजरता हुआ हस्तक्षेप करता है कि मनुष्य क्यों मरता है ? कवि का मानना है कि एक कमजोर-से-कमजोर व्यक्ति भी जब हस्तक्षेप कर सकता है तो फिर जिन्दा लोग हस्तक्षेप के बिना कैसे रह सकते हैं अर्थात् वे भी हस्तक्षेप अवश्यक करें। हस्तक्षेप करना है भी बहुत आवश्यक अन्यथा निरंकुशता बढ़ती ही चली जाएगी।
काव्य-सौन्दर्य : जनतंत्र के लिए हस्तक्षेप आवश्यक है। बिना हस्तक्षेप के जनतंत्र कायम नहीं रह सकता। कवि ने थोड़े-शब्दों में अधिक बात कहकर ‘गागर में सागर’ भर दिया है।
मगध यहाँ पर निरंकुश राष्ट्र का प्रतीक है। छंद मुक्त और अतुकांत रचना है।