NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 15 जाग तुझको दूर जाना, सब आँखों के आँसू उजले
Class 11 Hindi Chapter 15 Question Answer Antra जाग तुझको दूर जाना, सब आँखों के आँसू उजले
1. जाग तुझको दूर जाना –
प्रश्न 1.
‘जाग तुझको दूर जाना’ कविता में कवयित्री मानव को किस विपरीत स्थितियों में आगे बढ़ने के लिए उत्साहित कर रही है?
उत्तर :
भीषण संकटों से न घबराते हुए तथा मोह के बंधन में फँसे बिना आगे बढ़ने का आह्वान किया है। इस गीत में महादेवी ने मानव को जागृत होने का संदेश दिया है। कवयित्री चाहती है कि हम भारतीय प्रकृति के कोमल रूपों में लीन न होकर तूफानों का दृढ़तापूर्वक मुकाबला करते हुए आगे बढ़ें और संघर्ष करते हुए अपनी छाप छोड़ें। कवयित्री इस रास्ते में आने वाले सामान्य बंधनों से बचते हुए आगे बढ़ने की बात कहती है क्योंकि ये बंधन हमारे लिए कारागार सिद्ध हो सकते हैं। कवयित्री ने भारतीयों को अमर पुत्र कहा है उनका कहना है कि वह इस प्रकार के बंधनों में पड़कर मृत्यु का वरण क्यों कर रहा है। जीवन संग्राम में हार भी मिलती है और जीत भी। हमें हार से विचलित हुए बिना आगे बढ़ना है।
प्रश्न 2.
‘मोम के बंधन’ और ‘तितलियों के पर’ का प्रयोग कवयिन्नी ने किस संदर्भ में किया है और क्यों?
उत्तर :
मोम के बंधन से कवयित्री का तात्पर्य शिथिल एवं शक्तिहीन सांसारिक बंधनों से है जो नाशवान हैं। मनुष्य समाज में रहकर विभिन्न प्रकार के बंधनों में जकड़ा रहता है वह चाहकर भी उनसे अलग नहीं हो सकता। तितलियों के पर से कवयित्री का तात्पर्य सुन्दरियों के आकर्षण से है। सुन्दरियों का आकर्षण भी आदमी को कमजोर बना देता है। इन बंधनों से मुक्त हुए बिना अपने लक्ष्य की ओर नहीं बढ़ा जा सकता। ये शक्ति ही आकर्षण है अतः व्यक्ति को इनमें न फँसकर अपने जीवन पथ पर आगे बढ़ना चाहिए।
प्रश्न 3.
कवयित्री किस मोहपूर्ण बंधन से मुक्त होकर मानव को जागृति का संदेश दे रही है?
उत्तर :
कवयित्री मानव को सुख और वैभव के बँधनों में न बँधधकर आगे बढ़ने का संदेश देती है। कवयित्री का मानना है कि इस समय सारा संसार पराधीनता की पीड़ा में विलाप कर रहा है ऐसे में तुम इन शक्तिहीन आकर्षण में कैसे बैंध सकते हो? तुम तो वीरों के वंशज हो, वीर हो। मोम के बँधन से माध्यम से कवयित्री उन सुखों की ओर संकेत करती है जो क्षणिक है तथा ‘तितलियों के पर’ सुंदरियों के रूप सौंदर्य की ओर इशारा करते हैं। मनुष्य को इन बँधनों को तोड़कर आगे बढ़ना चाहिए।
प्रश्न 4.
कविता में ‘अमरता-सुत’ का संबोधन किसके लिए और क्यों आया है?
उत्तर :
कविता में ‘अमरता-सुत’ का प्रयोग भारतीयों के लिए आया है। ‘अमरता-सुत’ का प्रयोग भारतवासियों के लिए इसलिए आया है क्योंकि भारतवासी ‘अमृतपुत्र’ अर्थात् देवताओं की संतान हैं। मृत्यु तो साधारण मानव की होती है। अमृत-पुत्र तो सदा अमर रहते हैं अर्थात् मर कर भी वे अमर हो जाते है।
प्रश्न 5.
‘जाग तुझ़को दूर जाना’ स्वाधीनता आंदोलन की प्रेरा से रचा एक जागरण गीत है। इरा कथन के आधार पर कविता की मूल संवेदना लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत गीत ‘जाग तुझको दूर जाना’ में कवयित्री महादेवी वर्मा ने भारत को स्वतंत्र कराने के लिए भारतीयों का आह्वान किया है। कवयित्री प्रमाद में सोए पड़े भारतीयों को जगाकर उनमें देश की रक्षा प्रेरणा भर रही है। इसमें भीषण संकटों से न घबराते हुए तथा मोह के बँधन में फँसे बिना आगे बढ़ने का आह्वान किया है। इस गीत में महादेवी ने मानव को जागृत होने का संदेश दिया है। कवयित्री चाहती है कि हम भारतीय प्रकृति के कोमल रूपों में लीन न होकर तूफानों का दृढ़तापूर्वक मुकाबला करते हुए आगे बढ़ें और संघर्ष करते हुए अपनी छाप छोड़ें। कवयित्री इस रास्ते में आने वाले सामान्य बँधनों से बचते हुए आगे बढ़ने की बात कहती है क्योंकि ये बँधन हमारे लिए कारागार सिद्ध हो सकते हैं। कवयित्री ने भारतीयों को अमर पुत्र कहा है उनका कहना है कि वह इस प्रकार के बँधनों में पड़कर मृत्यु का वरण क्यों कर रहा है। जीवन संग्राम में हार भी मिलती है और जीत भी। हमें हार से विचलित हुए बिना आगे बढ़ना है। कवयित्री यहाँ मोह-माया के बँधनों में फँसे मानव को जगाने का प्रयास कर रही है।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
(क) विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन,
क्या डुबा देंगे तुझ़े यह फूल के दल ओस-गीले ?
तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना!
(ख) कह न ठंडी साँस में अब भूल वह जलती कहानी,
आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी,
(ग) है तुड़े अंगार-शय्या पर मुद्यल कलियाँ बिहाना!
उत्तर :
(क) काव्य सौंदर्य – जब सभी लोग पराधीनता की पीड़ा से आहत हैं ऐसे में भारतीय वीरों का किसी मोह में आबद्ध होना असंभव है। भारतीय वीर परतंत्रता की बेड़ियों को काटने के लिए सजग रहंगे वे किसी प्रकार के बँधन में नहीं पड़े। भाषा संस्कृत निष्ठ खड़ी बोली है। लाक्षणिकता एवं प्रतीकात्मकता का समावेश है। उद्बोध शैली का प्रयोग है ‘फूल के दल’ और ‘छाह’ का प्रतीकात्मक प्रयोग हुआ है। फूल के दल ओस में अलंकार सौंदर्य दर्शनीय है। प्रश्न पद मैत्री, रूपक एवं मानवीकरण अलंकारों का सुंदर प्रयोग है।
(ख) काव्य-सौन्दर्य – प्रस्तुत जागरण गीत में महादेवी वर्मा देशवासियों को प्रेरणा प्रदान करती हुई कहती है कि बार-बार अपनी पराजय की कथा और परतंत्रता के दु:खों का वर्णन करते हुए आहें भरने की आवश्यकता नहीं। मान-सम्मान की बातें तभी अच्छी लगती हैं जब अपना अधिकार पाने की शक्ति हो और स्वाभिमान का भाव हो।
- प्रतीकात्मक शैली के सफल प्रयोग द्वारा भावों को अभिव्यक्त किया गया है।
- अंत्यनुप्रास का सुन्दर प्रयोग है।
- पंक्तियाँ प्रेरणादायक हैं।
- मुहावरे का सार्थक प्रयोग है-आँख का पानी।
(ग) काव्य सौंदर्य – तुम्हारा मार्ग कठिन है और इस मार्ग पर चलते हुए प्राणों के संकट की भी संभावना है लेकिन तुझे इन सभी की उपेक्षा करते हुए निरंतर आगे बढ़ते हुए स्वतंत्रता की राह को आसान बनाना है, तत्सम शब्दावली का प्रयोग है। लाक्षणिकता का प्रयोग है। ओजगुण प्रधान रचना है। अंगार शय्या प्रतीकात्मक प्रयोग है। अंगार शय्या में रूपक अलंकार है। उद्दोधन शैली है।
2. सब आखों के आँसू उजले –
प्रश्न 7.
कवयित्री ने स्वाधीनता के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों को इंगित कर म्नुष्य के भीतर किन गुणों का विस्तार करना चाहा है? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवयित्री भारतवासियों को उनकी वीरता और अमरता से परिचित कराती हुई उनमें संधर्ष, त्याग एवं बलिदान धैर्य आदिगुणों का विस्तार करना चाहती है। उनका मानना है कि मनुष्य में जब इन गुणों का विकास हो जाएगा तो उनके लिए स्वाधीनता का मार्ग स्वतः ही प्रशस्त हो जाएगा। इन गुणों के बल पर मनुष्य भीषण कठिनाइयों में भी आगे बढ़ सकेगा। सांसारिकता के बंधन उसके रास्ते को अवरुद्ध नहीं कर पाएगें। वह उनको सदा जागरुक रहकर आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रही है।
प्रश्न 8.
‘महादेवी वर्मा ने’ आँसू के लिए ‘उजले’ विशेषण का प्रयोग किस संदर्भ में किया है और क्यों?
उत्तर :
कवयित्री कहती है कि सभी आँखों के सपने उजले होते हैं और सभी में सत्य पलता है। यहाँ कवयित्री का प्रयोजन आँसुओं की बात कहना नहीं बल्कि उनके सपनों की बात कहना है। यहाँ उजले विशेषण का प्रयोग सपनों के लिए किया गया है। आशापूर्ण भविष्य के सपनों में ही सत्य पलता है और जो आँखें इन सपनों को देखती हैं वे पीड़ा से आँसू बहाती हैं। उन आँखों में सपनों का उजालापन रहता है।
प्रश्न 9.
सपनों को सत्य रूप में ढालने के लिए कवयित्री ने किन यथार्थपूर्ण स्थितियों का सामना करने को कहा है?
उत्तर :
सपनों को सत्य रूप में ढालने के लिए पर्वत की तरह अचल तथा चंचल रहना होगा। मनुष्य को विपरीत परिस्थितियों में भी काम करना होगा। सत्य रूप में ढालने के लिए मार्ग की बाधाओं को अपने अनुकूल बनाना होगा।
प्रश्न 10.
‘नीलम मरकत के संपुट दो, जिनमें बनता जीवन-मोती’ पंक्ति में ‘नीलम मरकत’ और ‘जीवन मोती’ के अर्थ को कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवयित्री ने यहाँ नीलम और मरकत का उल्लेख किया है नीलम से कवयित्री का आशय नीले आकाश से है और मरकत से आशय हरी-भरी भूमि से है। आकाश और धरती उन दो फलक के समान है जिनमें बादल रूपी मोती बनता है। इस विशाल सीप के बीच विचरण करने वाले बादल में विद्युत और जल की बूंदें भी हैं। मेघ के बरसने से धरती में अंकुर फूटते हैं जिससे जीवन रूपी मोती तैयार होता है अर्थात् जीवन पलता है। इसका दूसरा अर्थ भी है कि जल ही मोती जैसी कांति धारण करता है। उस मोती की आभा एक प्रकार की हलचल-सी पैदा करती है।
प्रश्न 11.
प्रकृति किस प्रकार मनुष्य को उसके लक्ष्य तक पहुँचाने में सहायक सिद्ध होती है? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
जब हम प्रकृति को नियम पूर्वक अपना कार्य करते देखते हैं तो हम भी अपने कार्य को करने के लिए प्रकृति से प्रेरणा लेते हैं। पर्वत हमें अचल रहकर भी चंचल रहने की सीख देते हैं। दीपक हमें सदा दूसरों को प्रकाशित करने की प्रेरणा देता है। फूल हमें स्वयं नष्ट होकर त्याग वृत्ति की प्रेरणा देता है। हम प्रकृति से प्रेरणा ग्रहण करके अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।
प्रश्न 12.
निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए :
(क) आलोक लुटाता वह घुल-घुल देता झर यह सौरभ बिखरा! दोनों संगी पथ एक किन्तु कब दीप खिला कब फूल जला?
(ख) नभ-तारक-सा खंडित पुलकित यह क्षुर-धारा को चूम रहा, वह अंगारों का मघु-रस पी केशर-किरणों-सा झूम रहा! अनमोल बना रहने को कब टूटा कंचन हीरक, पिघला।
उत्तर :
(क) भाव-दीपक ईश्वर से प्राप्त प्रकाश को लुटाता रहता है और फूल भी उससे ही प्राप्त गंध को सर्वत्र फैलाता रहता है। इस प्रक्रिया में दीपक की बाती जल जाती है और फूल भी नष्ट हो जाता है। लुटाने और बाँटने में दोनों साथ हैं परन्तु एक का कर्म दूसरा नहीं कर सकता न दीपक फूल की तरह खिल सकता है और न ही फूल दीपक की तरह जल सकता है।
(ख) भाव-कवयित्री ने हीरे और स्वर्ण के स्वभाव का चित्रण किया है। अंगारों की आँच को मधु-रस कहना कवयित्री की सुन्दर कल्पना है। दोनों का अपना अलग-अलग स्वभाव है। वे दोनों अपने स्वभाव को नहीं छोड़ते, हीरे और स्वर्ण का अपने स्वभाव पर अडिग रहने में भावों का सौन्दर्य है।
प्रश्न 13.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए :
संसृति के प्रति पग में मेरी
साँसों का नव अंकन चुन लो,
मेरे बनने-मिटने में नित
अपनी साधों के क्षण गिन लो।
जलते खिलते बढ़ते जग में घुलमिल एकाकी प्राण चला।
उत्तर :
काव्य सौन्दर्य : महादेवी वर्मा ने अपनी वैयक्तिक भावनाओं का आरोप प्रकृति के क्रिया व्यापारों में भी किया है। सर्व-शक्तिमान ईश्वर की साँसों से ही पूरा संसार चालित है। संसार में सभी की कल्पनाओं और सम्भावनाओं को हकीकत में बदला जा सकता है। संस्कृत निष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है, प्रतीकात्मक शैली है। शब्द चयन कुशलता से किया गया है। प्रतीकों और रूपकों के माध्यम से बिम्ब निर्माण हुआ है। ‘प्रति पग’ ‘जलते-खिलते बढ़ते’ में अनुप्रास अलंकार है। ‘सपने-सपने’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
प्रश्न 14.
‘सपने-सपने में सत्य ढला’ पंक्ति के आधार पर कविता की मूल संवेदना को प्रकट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत गीत ‘सब आँखों के आँसू उजले’ महादेवी वर्मा की मूल भावना से बैंधा हुआ गीत है, कवयित्री ने यहाँ प्रकृति के विभिन्न चित्रों द्वारा उन स्वप्नों का जिक्र किया है जो मनुष्य के हैं या हो भी सकते हैं। कवयित्री ने मकरन्द, निझर, तारक समूह और मोती जैसे प्रतीकों के माध्यम से मानव जीवन के सत्य को उद्घाटित किया है। कबयित्री ने यहाँ सभी मानवों के मन की सत्यता पर बल दिया है। यहाँ प्रकृति के उस स्वरूप की चर्चा की है जो सत्य है, यथार्थ है और लक्ष्य तक पहुँचने में मनुष्य की मदद करता है। कवयित्री यहाँ अपनी वैयक्तिक भावनाओं का आरोप प्रकृति के क्रिया व्यापारों में करती है।
योग्यता-विस्तार –
1. स्वाधीनता आन्दोलन के कुछ जागरण गीतों का एक संकलन तैयार कीजिए।
2. महादेवी वर्मा और सुभद्रा कुमारी चौहान की कविताओं को पढ़िए और महादेवी वर्मा की पुस्तक ‘पथ के साथी’ से सुभद्रा कुमारी चौहान का संस्मरण पढ़िए तथा उनके मैत्री-सम्बन्धों पर निबन्ध लिखिए।
उत्तर :
छात्र स्वयं करें।
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प्रश्न 1.
कैसी आँखों का उर्नींदापन देखकर कवयित्री को उन्हें जगाना आवश्यक प्रतीत हुआ ?
उत्तर :
चिरकाल से जाग्रत आँखों का उनींदापन देखकर कवयित्री को उन्हें जगाना आवश्यक प्रतीत हुआ क्योंकि वह देशवासियों को स्वाधीनता आन्दोलन की प्रेरणा से सजग बनाना चाहती हैं।
प्रश्न 2.
कवयित्री ने किन उदाहरणों द्वारा ‘नाश-पथ’ का रूपांकन किया है ? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
कवयित्री महादेवी वर्मा ने ‘नाश-पथ’ का रूपांकन करते हुए कहा है-मोम के बैंधन, तितलियों के रंगीन पर, विश्व का संताप, प्राकृतिक सौंदर्य ये सभी मनुष्य को विनाश के पथ पर ले जाने में सहायक होते हैं। इनके आकर्षणों से बचकर ही अपने लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
प्रश्न 3.
‘अमरता-सुत’ किसे कहा गया है ? कवयित्री को क्यों लगा कि वह मृत्यु को गले लगाना चाहता है ?
उत्तर :
कवयित्री महादेवी वर्मा ने अमरता-सुत का प्रयोग वीर भारतवासियों के लिए किया है। कवयित्री को परतंत्रता की श्रृंखलाओं में आबद्ध मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए वह मृत्यु को गले लगाना चाहता है।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना।
(ख) आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी।
(ग) है तुझे अंगार शय्या पर मृदुल कलियाँ बिछाना।
उत्तर :
(क) आशय-प्रस्तुत पंक्ति में कवयित्री भारतवासियों को देश की स्वतंत्रता के लिए प्रेरित करते हुए कहती हैं कि तुम्हें अपने निश्चित क्षेत्र में ही सीमित न रहकर सम्पूर्ण देश के लिए प्रयत्न करना चाहिए।
(ख) आशय-कवयित्री महादेवी वर्मा भारतीयों को नव जागरण की प्रेरणा देती हुई कहती हैं कि अब केवल अपनी पराधीनता से दुःखी होकर रोने की आवश्यकता नहीं है। हुदय में क्रोधाग्नि प्रज्ज्वलित करने का समय आ गया है अतः संघर्ष करो। शांति तभी तक अच्छी लगती है जब तक उसमें वीरता का भाव छिपा होता है।
(ग) आशय-प्रस्तुत पंक्ति में कवयित्री ने अंगार और मृदृल कलियों के प्रतीकों के माध्यम से भारतवासियों को संदेश दिया है कि वे जीवन के सभी सुखों एवं आकर्षणों का परित्याग करके स्वतंत्रता प्राप्ति की अग्नि शैय्या पर उन्हें समर्पित करना है तभी तुम अपने लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ सकते हो।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौदर्य स्पष्ट करिए-
(क) वज्ञ का उर एक छोटे अश्रु-कण में धो गलाया,
दे किसे जीवन सुधा दो घूँट मदिरा माँग लाया ?
उत्तर :
(क) काव्य-सौन्दर्य-जीवन में स्वयं प्रयास करने से ही सफलता प्राप्त होती है। जो व्यक्ति निराशा में आँसू बहाते हुए अपने धैर्य को खो बैठता है वह जीते जी मर जाता है।
- प्रश्न अलंकार का सुन्दर प्रयोग है।
- अंत्यनुप्रास अलंकार है एवं पंक्तियों में लयात्मकता का गुण है।
- प्रतीकात्मक शब्दावली का सार्थक प्रयोग है-वज्र का उस-कठोर हुदय, दो घूँट मदिरा-विनाश का सामान!
- अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग है।
प्रश्न 6.
कवयित्री ने एकाकी प्राण को ही सर्वत्र व्याप्त माना है। आप इस बात से कहाँ तक सहमत हैं ?
उत्तर :
कवयित्री का यह कथन उपयुक्त है। सृष्टि की प्रत्येक वस्तु उस परम शक्ति सम्पन्न परमेश्वर कीं साँसों से ही चालित है। प्रकृति के कण-कण में उसी का नूर व्याप्त है। इसलिए ईंश्वर की सत्ता सर्वोपरि है।
प्रश्न 7.
दीपक और फूल की क्या-क्या विशेषताएँ हैं ?
उत्तर :
दीपक स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देता है, फूल स्वयं नष्ट हो जाता है परन्तु दूसरों को सुगंधी प्रदान करता है। दोनों का स्वभाव एकदम अलग है वे एक दूसरे के गुणों को अपनाना नहीं चाहते।
प्रश्न 8.
कवयित्री ने ‘अचल’ को ‘चंचल’ क्यों कहा है ?
उत्तर :
पर्वत अचल है परन्तु जब वह धरा को भेंटता है तो चंचल हो उठता है। वह अपनी चंचलता को अपने मुखरित झरनों और नदियों के द्वारा प्रकट करता है। झरने और नदियाँ भी तो उसी के अंग हैं। कवयित्री का पर्वत को चंचल कहना उचित ही है।
प्रश्न 9.
सोने और हीरे के क्या-क्या गुण होते हैं ? कवयित्री इनके माध्यम से क्या कहना चाहती है ?
उत्तर :
हीरा बहुत कठोर होता है उसकी आभा अनोखी होती है वह कभी खंडित होने या छुरे से भय नहीं खाता क्योंकि छुरे से तराशे जाने के बाद उसकी चमक बढ़ जाती है। सोना भी आग से नहीं घबराता। आग में पिघलने के बाद उसकी चमक और बढ़ जाती है। कवयित्री कहती है कि न तो कभी हीरा आग में तपना स्वीकार करता है न सोना छुरे से तराशा जाना। कवयित्री इनके माध्यम से यह बताना चाहती है कि सब का अपना-अपना सत्य होता है और अपना-अपना स्वभाव होता है, कोई भी अपने स्वभाव को छोड़कर दूसरे के स्वभाव को नहीं अपनाता।
प्रश्न 10.
संघर्षों और असफलताओं की कहानी को ठंडी साँस में कहना क्या व्यंजित करता है ?
उत्तर :
संघर्षों और असफलताओं की बात को उंडी साँस में कहना निराशा को व्यक्त करता है। निराश और असहाय व्यक्ति ही ठंडी साँसें लेता है। स्वाभिमानी व्यक्ति कभी ठंडी साँसें नहीं लेता।
प्रश्न 11.
प्रेम में हार भी जीत की निशानी बन जाती है। इस भाव को किस उदाहरण द्वारा पुष्ट किया गया है ?
उत्तर :
उपर्युक्त भाव को कवयित्री ने निम्नलिखित उदाहरण देकर व्यक्त किया है। हार भी तेरी बनेगी मानिनी जय की पताका, राख क्षणिक पतंग की है अमर दीपक की निशानी।
प्रश्न 12.
मार्ग की बाधाओं को कवयित्री ने किन-किन प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त किया है ?
उत्तर :
मार्ग की बाधाओं को कवयित्री ने प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त करते हुए अनेकों नवीन व सार्थक प्रतीकों का प्रयोग किया है जैसे ‘मोम के बंधन, तितलियों के पर, विश्व का क्रंदन, मधुप की मधुर गुनगुन, फूल के दल ओस-गीले।’
प्रश्न 13.
प्रत्येक छंद के अन्त में ‘चिह्न अपने छोड़ आना, अपने लिए कारा बनाना, मृत्यु को उर में बसाना, मूदुल कलियाँ बिछाना’ का संदेश देकर मनुष्य के किन गुणों को विस्तार देने की बात कविता में कही गई है ?
उत्तर :
कवयित्री उपर्युक्त कथनों के द्वारा भारतीयों को देश की स्वतंत्रता के लिए प्रेरित कर रही है। वह उनको आलस्य छोड़कर धैर्य के साथ अपना बलिदान देने के लिए तैयार रहने को कहती है। ‘कारा बनाने’ से कवयित्री भारतीयों को इस बात से आगाह करती है कि तुम अपने सुखों में ही कैद होकर नहीं रह जाना। मृत्यु को उर में बसाने से कवयित्री का तात्पर्य है कि हे भारतीयो! तुम अमर पुत्र हो, देवों की संतान हो तुम कायरों की भाँति डरकर क्यों मृत्यु को गले लगाना चाहते हो। तुम्हें तो वीरता के साथ ही मृत्यु का वरण करना चाहिए। मृदुल कलियाँ बिछाने से कवयित्री का तात्पर्य है कि, कठिन से कठिन बाधाओं को पार करके स्वतंत्रता प्राप्त करना जिससे आने वाला समय सभी के लिए सुखद हो सके।
प्रश्न 14.
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए –
(क) विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन,
क्या डुबा देंगे तुड़े यह फूल के दल ओस-गीले ?
तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना!
जाग तुड़ो दूर जाना!
(ख) आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी;
हार भी तेरी बनेगी मानी जय की पताका,
राख क्षणिक पतंग को है अमर दीपक की निशानी!
है तुझे अंगार-शय्या पर मुदुल कलियाँ बिछाना!
जाग तुझ़ो दूर जाना।
(ग) नीलम मरकत के संपुट दो
जिनमें बनता जीवन-मोती,
इसमें ढलते सब रंग-रूप
उसकी आभा स्पंदन होती।
जो नभ में विद्युत मेघ बना वह रज में अंकुर हो निकला !
(घ) संसृति के प्रति पग में मेरी
साँसों का नव अंकन चुन लो,
मेरे बनने-मिटने में नित
अपनी सार्धों के क्षण गिन लो।
जलते खिलते बढ़ते जग में घुलमिल एकाकी प्राण चला।
सपने-सपने में सत्य ढला!
उत्तर :
(क) आशय-कवयित्री के कहने का आशय है जब पूरा विश्व पराधीनता की पीड़ा को झेल रहा है ऐसी स्थिति में क्या तुम अपने व्यक्तिगत सुखों में सुखी हो सकोगे। व्यक्तिगत सुख भी तभी अच्छे लगते हैं जब हमारे आसपास कोई भी दीन-दुःखी या पीड़ित न हो।
(ख) आशय-कवयित्री का कहना है कि आँखों में पानी भी उसी की अच्छा लगता है जो वीर एवं स्वाभिमानी व्यक्ति होता है। जीवन में संघर्ष करते हुए हार भी मिले तो वह भी जीत से कम नहीं। देश के लिए किया गया बलिदान कभी व्यर्थ नहीं जाता। तुम नहीं तो तुम्हारी आने वाली पीढ़ियाँ स्वतंत्रता का सुख प्राप्त करेंगी।
(ग) आशय-कवयित्री ने धरती और गगन के बीच सम्पूर्ण सृष्टि को समझाने का प्रयास किया है। कवयित्री ने इन पंक्तियों जीव-जगत एवं बनस्पति-जगत के सृजन की बात की है। सब जगह उस परमशक्ति परमेश्वर की ही आभा बिखरी है। बादलों में वह वर्षा के जल के रूप में है तो सीप में मोती के रूप में।
(घ) आशय-यहाँ कवयित्री सम्पूर्ण सृष्टि को सर्वशक्तिमान ईश्वर की सौँसों से स्पंदित होना बताना चाहती है। कवयित्री यह भी कहती है कि मेरे बनने या मिटने से तुम अपनी अभिलाषाओं और इच्छाओं के बनने या मिटने को जोड़ सकते हो। सत्य प्रत्येक सपने में होता है इसलिए सभी सपनों को सत्य किया जा सकता है।
प्रश्न 15.
कविता के अंतिम छंद में ‘सपने सपने में सत्य ढला’ का सन्दर्भ देकर पूरी कविता का भावार्थ लिखिए ?
उत्तर :
कवयित्री का मानना है कि प्रत्येक सपने में सत्य होता है और सभी सत्य पूरे भी हो सकते हैं यदि प्रयास किया जाए। ईश्वर ही वह शक्ति है जो इन आँखों में ज्वाला भर देता है और बही इन आँखों से सुन्दर सपने दिखाता है। पर्वत अचल होकर भी अपने झरनों एवं नदियों के कारण चंचल हो उठता है। इसलिए कह सकते हैं कि जब पर्वत चंचल हो सकता है तो क्या नहीं हो सकता। इस संसार में सभी का अपना-अपना अलग स्वभाव है। कोई भी एक दूसरे के स्वभाव को नहीं अपनाता चाहे उसका उसको कितना ही लाभ क्यों न हो। जिस प्रकार मोती सीपी के दो फलकों के बीच बनता है और वह अपनी चमक बिखेरता है, इसी प्रकार धरती और आकाश भी दो फलक हैं। इन फलकों के बीच में बादल मोती के समान है जो अपनी जल की बूँदों से धरती को अंकुरित कर देता है। ये अंकुर ही आगे चलकर पेड़-पौधों एवं अनाज का रूप लेते हैं। कवयित्री कहना चाहती है कि सभी वस्तुएँ और यह सम्पूर्ण सृष्टि उस परम शक्ति परमेश्वर से ही चालित है। उसका नूर सर्वत्र बिखरा पड़ा है। सभी के सपनों में सत्य होता है और सभी के सपने पूरे हो सकते हैं।
प्रश्न 16.
यह कविता सपनों को ‘सत्य’ में ढालने का संदेश देती है। इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं ?
उत्तर :
कवयित्री ने इस कविता में स्वप्न के सत्य होने की बात कही है, कवयित्री का यह कथन सत्य है। व्यक्ति स्वप्न देखेगा तभी उनको सत्य बनाने का प्रयास भी करेगा। बिना स्वप्न देखे हम किसी चीज़ को हकीकत में नहीं बदल सकते। हम जो कल्पनाएँ करते हैं अपने परिश्रम से उनको मूर्त रूप भी दे सकते हैं। सपने सदा सपने नहीं रहते । पुरुषार्थी लोग अपने सपनों को हकीकत में बदलना जानते हैं।