चेतक की वीरता Class 6 Summary Explanation in Hindi

चेतक की वीरता Class 6 Saransh in Hindi

Chetak Ki Veerta Class 6 Summary

चेतक की वीरता कविता का सारांश

‘चेतक की वीरता’ शीर्षक केविता एक लंबी कविता ‘हल्दीघाटी’ का एक अंश है। इसमें कवि ने महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की वीरता का गुणगान किया है। यही चेतक युद्धस्थल के मध्य चौकड़ी भरकर अनोखा बन गया था। राणा प्रताप के इस घोड़े का हवा से पाला पड़ गया था। अर्थात् यह घोड़ा हवा से टक्कर लेता था। कभी भी ऐसा मौका नहीं आया कि राणा को अपने घोड़े के शरीर पर कोड़ा मारना पड़ा हो। वह शत्रुओं के मस्तक पर दौड़ लगाता जान पड़ता था। वह आसमान का घोड़ा प्रतीत होता था। थोड़ी-सी हवा से यदि लगाम हिल जाती तो यह अपने सवार (राणा प्रताप) को लेकर उड़ जाता अर्थात् हवा हो जाता था। राणा जब की आँख का इशारा पाते ही यह मुड़ जाता था।

इसकी चाल में अद्भुत कौशल था। यह तो भयानक भालों में भी उड़ जाता था। वह निडर होकर ढालों के बीच से गुजर जाता था। तलवारों के मध्य भी वह सरपट दौड़ता चला जाता था।

चेतक की वीरता Class 6 Summary Explanation in Hindi 1

उसका कोई स्थायी ठिकाना नहीं था। वह कभी यहाँ तो कभी और कहीं दिखाई देता था। उसका ठिकाना तो शत्रु के मस्तक पर होता था। वह कभी एकता नहीं था। वह तो बहती नदी के समान लहरता दिखाई देता था। कभी जाते तो कभी ठहरते हुए दिखाई देता था। वह तो शत्रु की सेना पर कठोर बादल के समान गहराता जान पड़ता है।

शत्रु का भाला गिर गया और तरकश भी गिर गया। घोड़े की टापों से शत्रु का अंग-अंग लहू-लुहान हो गया। शत्रु-समाज घोड़े (चेतक) का ऐसा रंग देखकर हैरान रह गया।

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चेतक की वीरता कवि परिचय

इस कविता के रचयिता श्याम नारायण पाण्डेय हैं। उनका जन्म 1907 ई. हुआ था। पाण्डेय जी वीर रस के चर्चित कवि हैं। उनकी सर्वाधिक रचना है- ‘हल्दीधाटी’। इसका प्रकाशन 1939 में हुआ था। ‘चेतक की वीरता’ शीर्षक कविता उन्हीं की रचना ‘हल्दीघाटी’ का एक अंश है। इस रचना ने स्वतंत्रता सेनानियों में सांस्कृतिक एकता और उत्साह का संचार कर दिया था। पाण्डेय जी का निधन 1991 ई. में हुआ।

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चेतक की वीरता कविता का हिंदी भावार्थ

Chetak Ki Veerta Class 6 Explanation

1. रण-बीच चौकड़ी भर-भरकर
चेतक बन गया निराला था।
राणा प्रताप के घोड़े से
पड़ गया हवा को पाला था।
गिरता न कभी चेतक-तन पर
राणा प्रताग का कोड़ा था।
वह दौड़ रहा अरि-मस्तक पर
या आसमान पर घोड़ा था।

शब्दार्थ : निराला = विशेष (special)। तन = शरीर (body) । अरि = शत्रु (enemy) मस्तक = माथा (forhead)।

प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मल्हार’ में संकलित कविता ‘चेतक की वीरता’ से लिया गया है। इस कविता के रचियता श्याम नारायण पाण्डेय हैं। इसमें कवि ने राणा प्रताप के घोड़े चेतक की वीरता का गुणगान किया है।

व्याख्या : कवि बताता है-महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक युद्धभूमि में चौकड़ी भरता जान पड़ता था। इस प्रकार वह एक निराला घोड़ा बन गया था। चेतक इतनी तेज दौड़ लगाता था कि लगता था कि हवा से उसकी प्रतियोगिता हो रही है। चेतक सदैव इतना सावधान रहता था कि उसके शरीर पर कभी कोड़ा मारने की नौबत ही नहीं आती थी। वह तो शत्रुओं के मस्तक पर दौड़ लगाता था। वह तो आसमान का घोड़ा प्रतीत होता था। वह शत्रुओं के सिर पर से होता हुआ एक छोर से दूसरे छोर तक ऐसे दौड़ता था मानो वह आसमान में दौड़ लगा रहा हो।

2. जो तनिक हवा से बाग हिली
लेकर सवार उड़ जाता था।
राणा की पुतली फिरी नहीं
तब तक चेतक मुड़ जाता था।
कौशल दिखलाया चालों में
उड़ गया भयानक भालों में।
निर्भीक गया वह ढालों में
सरपट दौड़ा करवालों में।

शब्दार्थ : बाग = लगाम (rein)। कौशल = कुशलता (skill)। भाला = एक शस्त्र (a weapon)। निर्भीक = निडर (fearless)। करवाल = तलवार (sword)।

प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मल्हार’ में संकलित कविता ‘चेतक की वीरता’ से लिया गया है। इस कविता के रचियता श्याम नारायण पाण्डेय हैं। इसमें कवि ने राणा प्रताप के घोड़े चेतक की वीरता का गुणगान किया है।

व्याख्या : कवि चेतक की सजगता का उल्लेख करते हुए बताता है कि यदि थोड़ी हवा से भी उसकी लगाम हिल जाती थी तो उस सवार का इशारा समझकर उसे हवा में ले उड़ता था। राणा प्रताप की आँख की पुतली के फिरते ही वह (चेतक) स्वामी का इशारा समझकर मुड़ जाता था। राणा प्रताप का घोड़ा चेतक अपनी चाल में कौशल का परिचय दे देता था। वह तो भयानक भालों के बीच से भी उड़कर निकल जाता था। वह ढालों की परवाह किए बिना निडर होकर उनमें से निकल जाता था। वह तलवारों के बीच में भी सरपट दौड़ा चला जाता था। कहीं भी कोई बाधा उसे रोक नहीं पाती थी। उसका युद्ध-कौशल देखते बनता था।

3. है यहीं रहा, अब यहाँ नहीं
वह वहीं रहा है वहाँ नहीं।
थी जगह न कोई जहाँ नहीं
किस अरि-मस्तक पर कहाँ नहीं।
बढ़ते नद-सा वह लहर गया
वह गया गया फिर ठहर गया।
विकराल बज्र-मय बादल-सा
अरि की सेना पर घहर गया।
भाला गिर गया, गिरा निषंग,
हय-टापों से खन गया अंग।
वैरी-समाज रह गया दंग
घोड़े का ऐसा देख रंग।

शब्दार्थ : अरि-मस्तक = शत्रु का माथा (forehead of enemy)। नद = नदी (river)। विकराल= भीषण, भयंकर (dreadful)। बज्रमय = पत्थर-सा कठोर, उग्र (very hard) । निषंग = तरकश, तूणीर (quiver)। हय = घोड़ा (horse)। टाप = घोड़े के पैरों का निचला हिस्सा (tramp)। खन गया = घायल हो गया (wounded)। वैरी = शत्रु (enemy)। दंग = हैरान (surprised)।

प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मल्हार’ में संकलित कविता ‘चेतक की वीरता’ से लिया गया है। इस कविता के रचियता श्याम नारायण पाण्डेय हैं। इसमें कवि ने राणा प्रताप के घोड़े चेतक की वीरता का गुणगान किया है।

व्याख्या : चेतक की यह विशेषता थी कि वह एक जगह टिकता नहीं था। कभी यहाँ होता तो दूसरे क्षण वहाँ नहीं मिलता। वह जहाँ था अब वह वहाँ नहीं है। युद्ध-भूमि में ऐसी कोई जगह नहीं थी जहाँ वह नहीं होता अर्थात् वह सभी जगह पहुँच जाता था। वह प्रत्येक शत्रु के मस्तक पर दिखाई दे जाता था।

वह तो तेज बढ़ती नदी के समान लहराता था। जाते-जाते वह कहीं-कहीं ठहर भी जाता था। इसके पश्चात् वह शत्रु-सेना पर भयानक बज्रमय बादल बनकर टूट पड़ता था और शत्रुओं का संपूर्ण नांश कर देता था। वह तो शत्रु सेना पर बादल बनकर घहरा जाता था। शत्रु पर भाला और तरकश युद्धभूमि में गिर गए और घोड़े के पैरों की टापों से सारा शरीर घायल हो गय़ा। शत्रुओं का दल घोड़े के ऐसे रंग देखकर हैरान रह गया।

Class 6 Hindi Notes

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