CBSE Class 11 Hindi Elective Rachana पत्रकारिता के विविध आयाम
प्रश्न 1.
पत्रकारीय लेखन क्या है ?
उत्तर :
पत्रकारीय लेखन की दुनिया में आने की कोशिश करने वाले हर नए लेखक के लिए सबसे पहले यह समझना बहुत जरूरी है कि पत्रकारीय लेखन क्या है, समाज में उसकी भूमिका क्या है और वह अपनी इस भूमिका को कैसे पूरा करता है ? दरअसल, अखबार पाठकों को सूचना देने, जागरूक और शिक्षित बनाने और उनका मनोरंजन करने का दायित्व निभाते हैं। लोकतांत्रिक समाजों में वे एक पहरेदार, शिक्षक और जनमत निर्माता के तौर पर बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। अपने पाठकों के लिए वे बाहरी दुनिया में खुलने वाली ऐसी खिड़की है जिसके ज़रिये असंख्य पाठक हर रोज़ सुबह देश-दुनिया और अपने पास-पड़ोस की घटनाओं, समस्याओं, मुद्दों और विचारों से अवगत होते हैं। अखबार या अन्य समाचार माध्यमों में काम करने वाले पत्रकार अपने पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं तक सूचनाएँ पहुँचाने के लिए लेखन के विभिन्न रूपों का इस्तेमाल करते हैं। इसे ही पत्रकारीय लेखन कहते हैं और इसके कई रूप हैं।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए –
(क) पूर्णकालिक पत्रकार
(ख) अंशकालिक पत्रकार
(ग) फ्रीलांसर यानी स्वतंत्र पत्रकार
उत्तर :
(क) पूर्णकालिक पत्रकार-पूर्णकालिक पत्रकार किसी समाचार संगठन में काम करने वाला नियमित वेतन भोगी कर्मचारी होता है। उसको समय-समय पर मिलने वाली वेतन संबंधी सभी सुविधाएँ दी जाती हैं।
(ख) अंशकालिक पत्रकार-अंशकालिक पत्रकार को पूर्णकालिक पत्रकार की तरह सभी सुविधाएँ नहीं मिलतीं। अंशकालिक पत्रकार किसी समाचार संगठन के लिए एक निश्चित मानदेय पर काम करने वाला पत्रकार होता है। वह अपने काम के हिसाब से एक निश्चित राशि प्राप्त करता है।
(ग) फ्रीलांसर यानी स्वतंत्र पत्रकार-फ्रीलांसर या स्वतंत्र पत्रकार का संबंध किसी एक खास अखबार से नहीं होता है। वह भुगतान के आधार पर अलग-अलग अखबारों के लिए एक ही समय में लिखता है। उसका किसी एक अखबार के साथ अनुबंध न होकर स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य करता है।
प्रश्न 3.
समाचार बोध (News sense) से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
महत्व, उत्सुकता और रोचकता के आधार पर समाचार का महत्त्व स्थापित होता है। साथ ही यह भी कि वह घटना या स्थिति समाचार बनने योग्य है या नहीं, समाचार बनने की प्राथमिकता ही ‘समाचार-मूल्य’ है। इस मूल्य को मापना ही ‘समाचार बोध’ है। क्षेत्रीय समाचारों में महत्त्वहीन घटनाओं को भी समाचार के रूप में प्रस्तुत कर दिया जाता है। संवाददाता में इतनी सहजबुद्धि अवश्य होनी चाहिए कि वह ‘समाचार मूल्य’ का ठीक से आकलन कर सके। राष्ट्रीय स्तर के अखबारों में समाचार पढ़कर उस घटना के महत्त्व का मूल्यांकन किया जा सकता है। प्रत्येक राष्ट्रीय स्तर का समाचार पत्र इस दिशा में सजग रहता है। यह समाचार बोध (News sense) ही उसको राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करता है।
प्रश्न 4.
समाचार में ‘आमुख’ किसे कहते हैं ? इसका क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
समाचार का वह भाग जिसे पढ़कर एक दृष्टि में पूरे घटनाक्रम या समाचार की जानकारी मिल जाए, उसे आमुख कहते हैं। इसमें समाचार प्रस्तुति के छह ककारों में से अधिकतम की झलक मिलनी चाहिए। ये छह ककार हैं-क्या, कब, कहाँ, क्यों, कौन, कैसे ? अमर उजाला 11 जून, 2006 की एक खबर-
“ग्वालियर। पुलिस ने शनिवार को यहाँ उमा भारती के समर्थकों पर जमकर लाठियाँ भॉँजी, औसूू गैस छोड़ी और हवाई फायरिंग की। जबाब में उमा समर्थकों ने भी पुलिस पर जमकर पथराव किया। ये लोग उमा भारती की भारतीय जनशक्ति पार्टी के ग्वालियर चंबल संभाग के सह-प्रभारी ब बाहुबली नेता प्रीतम सिंह लोधी की गिरफ्तारी के विरोध में जाम लगा रहे थे और लोधी की रिहाई की माँग कर रहे थे।”
यह समाचार का आमुख भाग है। इसे पढ़कर पूरी खबर की संक्षिप्त जानकारी मिल जाती है। खंबर का बाकी हिस्सा छपने से छूट जाए या पढ़ने से रह जाए तो भी खबर के मुख बिंदुओं की जानकारी मिल जाती है। आमुख को अंग्रेजी में ‘इण्ट्रो’, या ‘इण्ट्रोडक्शन’ भी कहते हैं।
प्रश्न 5.
उपर्युक्त समाचार के आधार पर छह ‘ककारों’ का परिचय दीजिए।
उत्तर :
उपर्युक्त समाचार में आए छह ककार निम्नलिखित होंगे-
- क्या – उमा भारती के समर्थकों पर लाठियाँ भाँजी…..जमकर पथराव किया।
- कब – शनिवार (अर्थात् 10 जून, 2006)
- कहौँ – ग्वालियर
- क्यों – ‘बाहुबली नेता प्रीतम सिंह लोधी’ की गिरफ्तारी के विरोध में जाम लगा रहे थे।
- कौन – उमा भारती के समर्थक।
प्रश्न 6.
‘शीर्षक खबर की जान होती है।’ कैसे ?
उत्तर :
आमुख में आई बातें शीर्षक में प्रमुख रूप से समाहित होनी चाहिए। शीर्षक, खबर के केंद्र बिंदु की तरह काम करता है। वहू पाठक का ध्यान आकर्षित कर सके और पाठक को खबर पढ़ने के लिए मजबूर कर दे। शीर्षक संक्षिप्त, आकर्षक तथा जिज्ञासा जगाने वाला होता है। निम्नलिखित शीर्षक देखिए-
- ग्वालियर में उमा समर्थकों की धुनाई पुलिस पर पथराव। (अमर उजाला : 11 जून, 06)
- अलीगढ़ : कई इलाकों में ढील न मिलने से उबाल। (अमर उजाला : 11 जून, 06)
- वकीलों, डॉक्टरों पर सर्विस टैक्स की मार। (अमर उजाला : 14 जून, 06)
- और महाँगा हुआ अब घर बनाने का सपना। (उजाला : 10 जून, 06)
उपर्युक्त शीर्षकों से पूरी खबर की जानकारी मिल जाती है। बोलचाल की मार्मिक भाषा ध्यान खींच लेती है। जैसे-धुनाई, उबाल, मार, महैंगा, सपना।
अतः हम कह सकते हैं कि शीर्षक खबर की जान होता है।
प्रश्न 7.
रेडियो समाचार की संरचना पर प्रकाश डालते हुए वह बताइए कि रेडियो के लिए समाचार लेखन में किन-किन बुनियादी बातों का ध्यान रखना आवश्यक है?
उत्तर :
रेडियो के लिए समाचार लेखन अखबार से कई मामलों में भिन्न है। रेडियो समाचार की संरबना अखबारों या टी.वी. की तरह उल्टा पिरामिड शैली पर आधरित होती है। यह शैली सर्वाधिक लोकप्रिय मानी जाती है। उल्टा पिरामिड-शैली में समाचार के सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य को सबसे पहले लिखा जाता है और उसके बाद घटते हुए महत्वक्रम में अन्य तथ्यों को रखा जाता है। इस शैली में किसी घटना, विचार, समस्या का ब्यैरा कालानुक्रम के बजाए सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य या सूचना से शुरू होता है। इस शैली में समाचार को तीन हिस्सों में विभाजित किया जाता है-इंट्रो, बॉडी और समापान। इंट्रो या लीड को हिन्दी में मुखड़ा कहते हैं। इसमें खबर के मूल तत्व को शुरू की दो या तीन पंक्तियों में बताया जाता है। बॉडी में समाचार के विस्तृत ब्यौरे को घटते हुए महत्त्वक्रम में लिखा जाता है। हालाँकि इस शैली में अलग से समापन जैसी कोई चीज़ नहीं होती और यहाँ तक कि प्रासंगिक तथ्य और सूचनाएँ भी दी जा सकती हैं, अगर जरूरी हो तो समय और जगह की कमी को देखते हुए आखिरी कुछ लाइनों को काटकर हटाया भी जा सकता है और इस स्थिति में खबर वहीं समाप्त हो जाती है।
रेडियो के लिए समाचार लेखन संबंधी बुनियादी बातें
(क) साफ-सुधरी और टाइप्ड कॉपी-रेडियो के लिए समाचार की साफ-सुथरी टाइप की हुई कॉपी होनी चाहिए क्योंकि पहले समाचार वाचक या वाचिका उसे पढ़ते हैं और तब वह श्रोताओं तक पहुँचता है। प्रसारण के लिए तैयार की जा रही कॉपी को कम्प्यूटर पर ट्रिपल स्पेस में टाइप करना चाहिए। एक लाइन में 12-13 शब्द से अधिक नहीं होने चाहिए। अंकों के लिखने के मामले में खास सावधानी रखनी चाहिए, जैसे एक से दस तक के अंकों को शब्दों में तथा 11 से 999 तक अंकों में लिखा जाना चाहिए।
(ख) डेडलाइन, संदर्भ और संक्षिप्ताक्षर का प्रयोग-रेडियो में अखबारों की तरह डेडलाइन अलग से नहीं बल्कि समाचार से गुंथी होती है। रेडियो पर समाचार चौबीस घंटे आते रहते हैं। श्रोता के लिए समय का फ्रेम हमेशा आज होता है। इसलिए समाचार में आज, आज सुबह, दोपहर आदि का इस्तेमाल किया जाता है। इसी सप्ताह, अगले सप्ताह, पिछले सप्ताह, इसी महीने, अगले महीने, पिछले साल, अगले साल आदि का इस्तेमाल करना चाहिए। संक्षिप्ताक्षरों के इस्तेमाल में कॉफी सावधानी बरतनी चाहिए। बेहतर तो यही होगा कि उनके प्रयोग से बचा जाए।
प्रश्न 8.
टी.वी. के विभिन्न चरण कौन-कौन से हैं? संक्षेप में परिचय दीजिए।
उत्तर :
किसी भी टी.वी. चैनल पर खबर देने का मूल आधार वही होता है जो प्रिंट या रेडियो पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रचलित है यानी सबसे पहले सूचना देना। टी.वी में भी ये सूचनाएँ कई चरणों से होकर दर्शकों तक पहुँचती हैं। ये चरण हैं-(क) फ्लैश या ब्रेकिंग न्यूज; (ख) ड्राइ एंकर; (ग) फोन इन; (घ) एंकर-विजुअल; (ङ) एंकर-बाइट; (च) लाइव; (छ) एंकर-पैकेज।
(क) फ्लेश या ब्रेकिंग न्यूज-सबसे पहले कोई बड़ी खबर फ्लैश या ब्रेकिंग न्यूज के रूप में तत्काल दर्शकों तक पहुँचाई जाती है। यह कम से कम शब्दों में केवल सूचना मात्र होती है।
(ख) ड्राइ एंकर-इसमें एक एंकर खबर के बारे में दर्शकों को सीधे-सीधे बताता है कि कहौं क्या कब और कैसे हुआ। जब तक खबर के दृश्य नहीं आ जाते दर्शकों को रिपोर्टर से मिली जानकारी के आधार पर ही सूचनाएँ प्रदान की जाती हैं।
(ग) फोन इन-इसके बाद खबर का विस्तार होता है। एंकर रिपोर्टर से फोन पर बात करके सूचनाएँ प्रदान करता हैं। रिपोर्टर घटना वाली जगह पर मौजूद रहकर ज्यादा से ज्यादा जानकारियाँ दर्शकों को देता रहता है।
(घ) एंकर-विजुअल-इसके बाद घटनाओं के कुछ दृश्य आने शुरू हो जाते हैं तब इन दृश्यों के आधार पर खबर लिखी जाती है। एंकर दृश्यों के साथ-साथ खबर पढ़ता रहता है। इस खबर की शुरुआत भी प्रारंभिक सूचना से होती है और बाद में कुछ वाक्यों पर प्राप्त दृश्य दिखाए जाते हैं।
(ङ) एंकर-बाइट-बाइट यानी कथन। टेलीविजन में किसी भी खबर की पुष्टि करने के लिए इससे संबंधित बाइट दिखाए जाते हैं। किसी घटना की सूचना देने और उसके दृश्य दिखलाने के साथ ही इस घटना के बारे में प्रत्यक्षदर्शियों या संबंधित व्यक्तियों का कथन दिखा या सुनाकर खबर को प्रमाणिकता प्रदान की जाती है।
(च) लाइव-किसी भी खबर के घटना स्थल से सीधे प्रसारण का काफी महत्त्व है। किसी बड़ी घटना के दृश्य तत्काल दर्शकों तक पहुँचाए जा सकेे इसके लिए मौके पर मौजूद रिपोर्टर और कैमरा मैन ओ.बी. वैन के जरिये घटना स्थल के बारे में सीधे दर्शकों को बताते हैं।
(छ) एंकर पैकेज-किसी खबर को सम्पूर्णता के साथ प्रस्तुत करना एंकर-पैकेज कहलाता है। इसमें संबंधित घटना के दृश्य, इससे जुड़े लोगों की बाइट, ग्राफिक के जरिये जरूरी सूचनाएँ होती हैं। टेलीविजन लेखन इन तमाम चीज़ों को ध्यान में रखकर किया जाता है।
प्रश्न 9.
रेडियो और टेलीविजन समाचार लेखन की भाषा-शैली कैसी होने चाहिए? संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर :
रेडियो और टी.वी. आम आदमी का माध्यम है। रेड़यो और टेलीविजन की भाषा ऐसी होनी चाहिए जो सभी को आसानी से समझ में आ सके। परन्तु भाषा की गरिमा को भी बनाकर रखा जा सके। सरल भाषा को लिखने का सबसे बेहतर उपाय यह है कि वाक्य छोटे-छोटे सीधे और स्पष्ट लिखे जाएँ। खबर लखते समय आप यह अवश्य सोरें कि क्या इस भाषा को अनपढ़ व्यक्ति या अपने छोटे भाई बहन कैसे इसको दूसरों को बताएं। रेडियो और टी.वी. के लिए आप कितनी सरल संत्रेषणीय और प्रभावशाली भाषा लिख रहे हैं, यह जाँचने के लिए समाचार को लिखने के बाद बोल-बोलकर पढ़े। ऐसा करने से आपको स्वयं अहसास हो जाएगा कि भाषा कितनी प्रवाहमयी है तथा उसे लोग आसानी से समझ सकते हैं या नहीं।
रेडियो और टी.वी. समाचार में भाषा और शैली के स्तर पर काफी सावधानी बरतनी पड़ती है। ऐसे कई शब्द जिनका अखबारों में धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है लेकिन रेडियो और टी.वी. में उनके प्रयोग से बचा जाता है। जैसे निम्नलिखित, उपरोक्त, अधोहसत्ताक्षित और क्रमाक आदि शब्दों का प्रयोग इन माध्यमों में बिल्कुल मना है। इसी तरह द्वारा शब्द के इस्तेमाल से भी बचने की कोशिश की जाती है क्योंकि इसका प्रयोग कई बार बहुत भ्रामक अर्थ देने लगता है। उदाहरण के लिए इस वाक्य पर गौर-कीजिए-पुलिस द्वारा चोरी करते हुए दो व्यक्तियाँ को पकड़ लिया गया। इसके बजाय पुलिस ने दो व्यक्तियों को चोरी करते हुए पकड़ लिया। ज्यादा स्पष्ट है।
इसी तरह तथा, एवं, अथवा, व, किन्तु, परन्तु, यथा आदि शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए और उनकी जगह और या, लेकिन आदि शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए। साफ-सुथरी और सरल भाषा लिखने के लिए गैरजरूरी विशेषणों, सामासिक और तत्सम शब्दों, अतिरंजित उपमाओं आदि से बचना चाहिए। इनसे भाषा कई बार बोझिल होने लगती है। मुहावरों के इस्तेमाल से भाषा आकर्षक और प्रभावी बनती है। इसलिए उनका प्रयोग होना चाहिए। लेकिन मुहावरों का इस्तेमाल स्वाभाविक और जहाँ जरूरी हो, वहीं होना चाहिए अन्यथा वे भाषा के स्वाभाविक प्रवाह को बाधित करते हैं। भाषा को साफ रखने के कुछ जाने पहचाने नुस्खे हैं। एक तो वाक्य छोटे-छोटे हों। एक वाक्य में एक ही बात कहने का धीरज हो। वाक्यों में तारतम्य ऐसा हो कि कुछ टूटता या छूटता हुआ न लगे। दूसरी बात यह कि शब्द प्रचलित हों और उनका उच्चारण सहजता से किया जा सके।
प्रश्न 10.
इंटरनेट पत्रकारिता से आप क्या समझते हैं? इंटरनेट पत्रकारिता के इतिहास पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर :
इंटरनेट पत्रकारिता को ऑनलाइन पत्रकारिता, साइबर पत्रकारिता या वेब पत्रकारिता भी कहा जाता है। जिस प्रकार प्रिंट माध्यम खबरों का प्रकाशन करता है। उसी प्रकार इंटरनेट पर खबरों का प्रकाशन इंटरनेट पत्रकारिता के माध्यम से किया जाता है। इंटरनेट पर यदि हम, किसी भी रूप में खबरों, लेखों, चर्चा-परिचर्चाओं, बहसों, फीचर, झलकियों, डायरियों के जरिये अपने समय की धड़कनों को महसूस करने और दर्ज करने का काम करते हैं तो वही इंटरनेट पत्रकारिता है। आज तमाम प्रमुख अखबार पूरे के पूरे इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। कई प्रकाशन समूहों ने और कई निजी कम्पनियों ने खुद को इंटरनेट पत्रकारिता से जोड़ लिया है। चूँकि यह एक अलग माध्यम है, इसलिए इस पर पत्रकारिता का तरीका भी थोड़ा-सा अलग है।
आइए अब एक नज़र विश्व स्तर पर इंटरनेट पत्रकारिता के स्वरूप और विकास पर डालते हैं। विश्व स्तर पर इस समय इंटरनेट पत्रकारिता का तीसरा दैर चल रहा है। पहला दौर था 1982 से 1992 तक जबकि दूसरा दौर चला 1993 से 2001 तक। तीसरे दौर की इंटरनेट पत्रकारिता 2002 से अब तक की है। पहले चरण में इंटरनेट खुद प्रयोग के धरातल पर था, इसलिए बड़े प्रकाशन समूह यह देख रहे थे कि कैसे अखबारों की उपस्थिति सुपर इंफर्मेशन-हाईवे पर दर्ज हो।
तब एओएल यानी अमेरिका ऑनलाइन जैसी कुछ चर्चित कंपनियाँ सामने आईं। लेकिन कुल मिलाकर यह प्रयोगों का दौर था। सच्चे अर्थों में इंटरनेट पत्रकारिता की शुरुआत 1983 से 2002 के बीच हुई। इस दौर में तकनीक के स्तर पर भी इंटरनेट का जबरदस्त विकास हुआ। नयी वेब भाषा एचटीएमएल (हाइपर टेक्स्ट मार्क्डअप लैंग्वेज) आई, इंटरनेट इमेल आया, इंटरनेट एक्सप्लोरर और नेटस्केप नाम के ब्राउ़जर (वह औज़ार जिसके ज़रिये विश्वव्यापी जाल में गोते लगाए जा सकते हैं) आए। इन्होंने इंटरनेट को और भी सुविधसंपन्न और तेज़-रफ़्तर बना दिया। इस दीर में लगभग सभी बड़े अखबार और टेलीविजन समूह विश्व जाल में आए। ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’, ‘वाशिंगटन पोस्ट, ‘सीएनएन’, ‘बीबीसी’ सहित तमाम बड़े घरानों ने अपने प्रकाशनों, के इंटरनेट संस्करण निकाले। दुनियाभर में इस बीच इंटरनेट का काफी विस्तार हुआ। न्यू मीडिया के नाम पर डॉटकॉम कम्पनियों का उफान आया।
प्रश्न 11.
भारत में इंटरनेट पत्रकारिता किस चरण में है तथा कौन-कौन साइटें इंटरनेट पत्रकारिता के क्षेत्र में लोकप्रिय हो रही हैं?
उत्तर :
भारत में इंटरेट पत्रकारिता का अभी दूसरा दौर चल रहा है। भारत के लिए पहला दौर 1993 से शुरू माना जा सकता है जबकि दूसरा दौर 2003 से शुरू हुआ। पहले दौर में हमारे यहाँ भी प्रयोग हुए। डॉटकॉम का तूफान आया और बुलबुले की तरह फूट गया। अंततः वही टिके रह पाए जो मीडिया उद्योग में पहले से ही टिके हुए थे। आज पत्रकारिता की दृष्टि से ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’, ‘हिंदुस्तान टाइम्स’, इंडियन एक्सप्रेस, ‘हिंदू’ ‘ट्रिब्यून’, ‘स्टेट्सममैन’, ‘पॉयनियर’, ‘एनडीटीवी’, ‘आईबीएन’, ‘जी न्यूज’, ‘आजतक’, ‘आउटलुक’, की साइटें ही बेहतर हैं। ‘इंडिया टुड़’ जैसी कुछ साइटें.भुगतान के बाद ही देखी जा सकती हैं। जो साइटें नियमित अपडेट होती हैं; उनमें ‘हिंदू’, ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’, ‘आउटलुक’, ‘इंडियन एक्सप्रेस’, ‘एनडीटीवी’, ‘आजतक’ और ‘जी न्यूज़’ प्रुख हैं। लेकिन भारत में सच्चे अर्थों में यदि कोई वेब पत्रकारिता कर रहा है तो वह ‘रीडिफ डॉटकॉम’, ‘इंडियाइंफोलाइन’ व ‘सीफी’ जैसी कुछ ही साइटें हैं। रीडिफ को भारत की पहली साइट कहा जा सकता है जो कुछ गंभीरता के साथ इंटरनेट पत्रकारिता कर रही है। वेब साइट पर विशुद्र पत्रकारिता शुरू करने का श्रेय ‘तहलका डॉटकॉम’ को जाता है।
प्रश्न 12.
इंटरनेट के इस युग में ‘हिन्दी नेट संसार’ की स्थिति कैसी है? हिन्दी नेट पत्रकारिता किस कारण से अधिक लोकप्रिय नहीं हो पर रही है?
उत्तर :
अव हिन्दी की बात करें। हिन्दी में नेट पत्रकारिता ‘वेब दुनिया’ के साथ शुरू हुई। इंदौर के ‘नयी दुनिया’ समूह से शुरू हुआ यह पोर्टल हिन्दी का संपूर्ण पोर्टल हैं। इसके साथ ही हिन्दी के अखबारों ने भी विश्वजाल में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी शुरू की। ‘जागरण’, ‘अमर उजाला’, ‘नयी दुनिया’, ‘हिन्दुस्तान’, ‘भास्कर’, ‘राजस्थान पत्रिका’, ‘नवभारत टाइम्स’, ‘प्रभात खबर’, व ‘राष्ट्रीय सहारा’ के वेब संस्करण. शुरू हुए।’ ‘रभातसाक्षी’ नाम से शुरू हुआ अखबार, प्रिंट रूप में न होकर सिर्फ इंटरनेट पर ही उपलब्ध है। आज पत्रकारिता के लिहाज से हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ साइट बीबीसी की है। यही एक साइट है जो इंटरनेट के मानंडंडं के हिसाब से चल रही है। वेब दुनिया ने शुरू में काफी आशाएँ जगाई थीं, लेकिन धीरे-धीरे स्वाफ और साइट की अपडेटिंग में कटौती की जाने लगी जिससे पत्रकारिता की वह ताज़गी जाती रही जो शुरू में नज़र आती थी।
हिन्दी वेबजगत का एक अच्छा पहलू यह भी है कि इसमें कई साहित्यिक पत्रिकाएँ चल रही हैं। अनुभूति, अभिव्यक्ति, हिन्दी नेस्ट, सराय आदि अच्छा काम कर रहे हैं। यही नहीं, सरकार के तमाम मंत्रालय, विभाग, सार्वजनिक उपक्रम और बैंकों ने भी अपने हिंदी अनुभाग शुरू किए हैं जो भले ही आज तकनीकी उपेक्षा के शिकार हैं लेकिन उनका डाटा बेस तो तैयार हो ही रहा है। अंततः ये सब मिलकर हिन्दी की ऑनलाइन पत्रकारिता का मार्ग प्रशस्त करेंगे। कुल मिलाकर हिन्दी की वेब पत्रकारिता अभी अपने शशशव काल में ही है। सबसे बड़ी समस्या हिन्दी के फौंट की है। अभी भी हमारे पास कोई ‘की-बोर्ड’ नहीं है। डायनमिक फौंट की अनुपलब्त्ता के कारण हिन्दी की ज्यादातर साइटें खुलती ही नहीं हैं। अब माइक्रोसॉफ्ट और वेबदुनिया ने यूनिकाड फौंट बनाए हैं। लेकिन ये भी खास लोकप्रिय नहीं हो पा रहे हैं। हिन्दी जगत जब तक हिन्दी के बेलगाम फौंट संसार पर नियंत्रण नहीं लगाएगा और ‘की-बोड’ का मानकीकरण नहीं करेगा, तब तक यह समस्या बनी रहेगी।
प्रश्न 13.
नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिए गए हैं। सही विकल्प लिखिए।
(क) इंटरनेट पत्रकारिता आजकल बहुत लोकप्रिय है क्योंकि-
1. इससे दृश्य एवं प्रिंट दोनों माध्यमों का लाभ मिलता है।
2. इससे खबरें बहुत तीव्र गति से पहुँचाई जाती हैं।
3. इससे खवरों की पुष्टि तत्काल होती है।
4. इससे ने केवल खबरों का संप्रेषण, पुष्टि सत्यापन होता है बल्कि खबरों के बैकग्राउंडर तैयार करने में तत्काल सहायता मिलती है।
उत्तर :
2. इससे खबरें तीव्र गति से पहुँचाई जाती हैं।
(ख) टी.वी. पर प्रसारित खबरों में सबसे महत्त्वपूर्ण है-
1. विजुुल 2. नेट 3. बाइट 4. उपर्युक्त सभी
उत्तर :
4. उपर्युक्त सभी
(ग) रेडियो समाचार की भाषा ऐसी हो-
1. जिसमें आम बोलचाल के शब्दों का प्रयोग हो।
2. जो समाचार वाचक आसानी से प्रद् सके।
3. जिसमें आम बोलचाल की भाषा के साथ-साथ सटीक मुहावरों का इस्तेमाल हो।
4. जिसमें सामासिक और तत्सम शब्दों की बहुलता हो।
उत्तर :
1. जिसमें आम बोलचाल के शब्दों का प्रयोग हो।
प्रश्न 14.
श्रोताओं या पाठकों को बाँधकर रखने की दृष्टि से प्रिंट माध्यम, रेडियो और टी.वी. में सबसे सशक्त माध्यम कौन-से हैं। पक्ष विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर :
श्रोताओं को बाँधकरा रखने में ये तीनों ही माध्यम संशक्त एवं लोकप्रिय हैं। इन सबकी अपनी-अपनी विशेषताएँ हैं किसी एक को सबसे सशक्त कहना बहुत मुशिकल है, फिर भी टी.वी एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा हम खबरों को सीधे तौर पर देख व सुन सकते हैं। जहाँ तक प्रिंट माध्यम का प्रश्न है इस माध्यम के द्वारा हम अपने समय के अनुसार खबरों की पढ़ सकते हैं परन्तु अनपढ़ व्यक्ति के लिए यह माध्यम निरर्थक है। रेडियो भी सशक्त माध्यम है परन्तु इसमें पीछे लीटकर सुनने की सुविधा नहीं है, यदि कोई पसन्द का कार्यक्रम न हो तो श्रोता को तुरंत वह स्टेशन बंद कर देना पड़ेगा। रेडियो की तरह टेलीविजन भी एक रेखीय माध्यम है लेकिन वहाँ शब्दों और ध्वनियों की तुलना में दृश्यों का सर्वाघिक महत्व होता है। टी.वी. मे शब्द, दृश्यों के अनुसार और उनके सहयोगी के रूप में चलता है।
प्रश्न 15.
संचार माध्यमों में दूरदर्शन की भमिका पर प्रकाश डालते हुए बताइए कि दूरदर्शन समाचार वाचक में कौन-कौन से गुण होने चाहिए?
उत्तर :
संचार माध्यमों में दूरदर्शन की भूमिका
आज दूरदर्शन जनसंचार का सबसे लोकप्रिय और ताकतवर माध्यम बन गया है। प्रिंट मीडिया के शब्द और रेडियो के ध्वनियों के साथ जब दूरदर्शन के दृश्य मिल जाते हैं तो सूचना की विश्वसनीयता कई गुना बढ़ जाती है। पश्चिमी देशों में रेडियो के विकांस के साथ दूरदर्शन का भी प्रयोग शुरू हो गया था। भारत में इसकी शुरुआत 15 सितम्बर, 1959,1959 को हुई थी। श्रीमती इंदिरा गाँधी को दूरदर्शन की ताकत का एहसास था। उन्होंने दूरदर्शन के कार्यक्रमों की गुणवत्ता के सुधार के लिए पी.सी जोशी की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। जोशी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था, हमारे जैसे समाज में जहौं पुराने मूल्य टूट रहे हों और नए बन रहे हों, वहाँ दूरदर्शन की अहम भूमिका है।
दूरदर्शन के लिए समाचार वाचक में अपेक्षित गुण होने चाहिए। दूरदर्शन के समाचार वाचक को दर्शक सुनने के साथ-साथ देखते भी हैं। उसका पहनावा एक दम सभ्यता के दायरे में हो। उसका उच्चारण एक दम स्पष्ट हो। किसी भी समाचार को पढ़ते समय उसके चेहरे के भाव समाचार के अनुसार हों। उसमें तुरंत निर्णय की क्षमता व भूल सुधार की क्षमता होनी चाहिए क्योंकि समाचारों का सीधा प्रसारण होता है। उनकी भाषा पर पूर्ण पकड़ होनी चाहिए।
प्रश्न 16.
इंटरनेट पत्रकारिता सूचनाओं को तत्काल उपलब्ध कराती है परन्तु इसके कुछ दुष्परिणाम भी हैं। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इंटरनेट पत्रकारिता सूचनाओं को तत्काल उपलब्ध कराती है। आजकल पूरे के पूरे अखबार इंटरनेट पर मौजूद हैं। इंटरनेट पर इन समाचारों को लगातार अपडेट भी किया जाता है। इंटरनेट पत्रिका जहाँ सूचनाओं के आदान प्रदान का एक बेहतरीन औजार है वही वह अश्लीलता दुष्प्रचार और गंदगी फैलाने का जरिया भी बन गया है। हमें इंटरनेट पत्रकारिता के संबंध में बहुत ही सजग रहने की आवश्यकता है। इंटरनेट पत्रकारिता के दुष्परिणाम हमारे सामने हैं। इसके माध्यम से कुछ लोग किसी प्रख्यात व्यक्ति का चरित्र हनन करने का कार्य भी कर रहे हैं। इसका लाभ देश और समाज विरोधी लोग उठा रहे हैं। हमें इसके इन दुष्परिणामों के प्रति सचेत रहना चाहिए।
प्रश्न 17.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो वाक्यों में दीजिए-
(क) रेडियो समाचार की भाषा कैसी होनी चाहिए?
(ख) वेबसाइट पर विशुद्ध पत्रकारिता शुरू करने का श्रेय किस साइट को प्राप्त है?
(ग) टी.वी. पर प्रसारित किए जाने वाले समाचार किन-किन चरणों से होकर दर्शकों तक पहुँचते हैं?
(घ) इंटरनेट पत्रकारिता के बहुत लोकप्रिय होने का सबसे प्रमुख कारण क्या है?
(ङ) रेडियो समाचार की संरचना किस शैली पर आधारित होती है?
उत्तर :
(क) रेडियो समाचार के लिए सरल भाषा, छोटे वाक्य और स्पष्ट लेखन होना चाहिए। समाचार लिखने के बाद उसे बोलकर पढ़ना चाहिए। इससे हमें पता चल जाएगा कि भाषा का प्रवाह कैसा है। हमें बोलचाल की भाषा का ही प्रयोग करना चाहिए।
(ख) वेयसाइट पर विशुद्ध पत्रकारिता शुरू करने का श्रेय ‘रीडिफ डॉटकाम’ को है।
(ग) टी.वी. पर प्रसारित किए जाने वाले समाचार निम्नलिखित चरणों से होकर दर्शकों तक पहुँचते हैं।
1. फ्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़ 2. ड्राई एंकर, 3. फ्रोन-इन, 4. एंकर-विजुअल, 5. एंकर-बाइट, 6. लाइव, 7. एंकर-पैकेज
(घ) इससे न केवल समाचारों का संप्रेषण, पुष्टि या सत्यापन होता है, बल्कि खबरों के बैक ग्राउंड तैयार कर्ने में तत्काल सहायता मिलती है।
(ङ) रेडियो समाचार की संरचना उल्टा पिरामिड-शैली में होती है।
प्रश्न 18.
निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए –
(क) मुद्रण माध्यम (प्रिंट मीडिया) के अन्तर्गत आने वाले दो माध्यमों का उल्लेख कीजिए।
(ख) फ्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़ का क्या आशय है?
(ग) ब्यापार-कारोबार की भाषा की एक विशेषता लिखिए।
(घ) अंशकालिक पत्रकार से आप क्या समझते हैं ?
(ङ) विशेषीकृत रिपोट्टिंग की एक प्रमुख विशेषता लिखिए।
उत्तर :
(क) मुद्रण माध्यम के अंतर्गत आने वाले दो प्रमुख माध्यम समाचार-पत्र व पत्रिकाएँ हैं।
(ख) फ्लैश या ब्रेकिंग न्यूज उसे कहते हैं जब कोई बड़ी खबर कम शब्दों में अन्य खबरों को रोककर दर्शकों को दिखाई जाती है।
(ग) व्यापार कारोबार की भाषा तत्काल दर्शकों का ध्यान खींचने वाली होती है। जैसे- सोना नरम, सेंसेक्स औंधे मुँह गिरा, दालों में गर्मी आदि।
(घ) अंशकाल अर्थात् सीमित समय के लिए काम करने वाले पत्रकारों को अंशकालिक पत्रकार कहते हैं। इनको प्रकाशित सामग्री के अनुसार पारिश्रमिक दिया जाता है।
(ङ) किसी विशेष क्षेत्र में महारथ हासिल करने वाला पत्रकार जैसे कोई अपराध जगत की खबरों की रिपोर्टिंग करता है तो कोई खेल जगत या फिल्म जगत की। इसको ही विशेषीकृत रिपोर्टिंग कहते हैं।
प्रश्न 19.
सम्पादन का अर्थ स्पष्ट करते हुए संपादन के सिद्धांतों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
संपादन का अर्थ – संपादन का अर्थ है किसी सामग्री से उसकी अशुद्धियों को दूर करके उसे पठनीय बनाना। एक उपसंपादक अपने रिपोर्टर की खबर को ध्यान से पढ़ता है और उसकी भाषा-शैली, व्याकरण, वर्तनी तथा तथ्य संबंधी अशुद्धियों को दूर करता है। वह उस खबर के महत्च के अनुसार उसे काटता-छाँटता है और उसे कितनी और कहाँ जगह दी जाए, यह तय करता है। इसके लिए वह संपादन के कुछ सिद्धांतों का पालन करता है।
संपादन के सिद्धांत – पत्रकारिता कुछ सिद्धांतों पर चलती है। एक पत्रकार से अपेक्षा की जाती है कि वह समाचार संकलन और लेखन के दौरान इनका पालन करेगा। आप कह सकते हैं कि ये पत्रकारिता के आदर्श या मूल्य भी हैं। इनका पालन करके ही एक पत्रकार और उसका समाचार संगठन अपने पाठकों का विश्वास जीत सकता है। किसी भी समाचार संगठन की सफलता उसकी विश्वसनीयता पर टिकी होती है। पत्रकारिता की साख बनाए रखने के लिए निम्नलिखित सिद्धांत आवश्यक हैं।
(क) तथ्यों की शुद्धता या तथ्यपरकता (एक्युरेसी) – एक आदर्श रूप में मीडिया और पत्रकारिता यथार्थ या वास्तविकता का प्रतिबिंब है। इस तरह एक पत्रकार समाचार के रूप में यथार्थ को पेश करने की कोशिश करता है। लेकिन यह अपने आप में एक जटिल प्रक्रिया है। सच यह है कि मानव यथार्थ की नहीं, यथार्थ की छवियों की दुनिया में रहता है। किसी भी घटना के बारे में हमें जो भी जानकारियाँ प्राप्त होती हैं, उसी के अनुसार हम उस यथार्थ की एक छवि अपने मस्तिष्क में बना लेते हैं और यही छवि हमारे लिए वास्तविक यथार्थ का काम करती है। एक तरह से हम संचार माध्यमों द्वारा सृजित छवियों की दुनिया में रहते हैं।
(ख) वस्तुपरकता (ऑबेक्टविटी) – वस्तुपरकता को भी तथ्यपरकता से ऑँकना आवश्यक है। वस्तुपरकता और तथ्यपरकता के बीच काफ़ी समानता भी है। लेकिन दोनों के बीच के अंतर को भी समझना ज़ररी है। एक जैसे होते हुए भी ये दोनों अलग विचार हैं। तथ्यपरकता का संबंध जहौँ अधिकाधिक तथ्यों से है वहीं वस्तुपरकता का संबंध इस बात से है कि कोई व्यक्ति तथ्यों को कैसे देखता है? किसी विषय या मुद्दे के बारे में हमारे मस्तिष्क में पहले से बनी हुई छवियाँ समाचार मूल्यांकन की हमारी क्षमता को प्रभावित करती हैं और हम इस यथार्थ को उन छवियों के अनुरूप देखने का प्रयास करते हैं।
(ग) निष्मक्षता (फ़ेयरनेस) – एक पत्रकार के लिए निष्पक्ष होना भी बहुत ज़रूरी है। उसकी निष्पक्षता से ही उसके समाचार संगठन की साख बनती है। यह साख तभी बनती है जब समाचार बिना किसी का पक्ष लिए सच्चाई सामने लाते हैं। पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। इसकी राष्ट्रीय और सामाजिक जीवन में अहम भूमिका है। लेकिन निष्षक्षता का अर्थ तटस्थता नहीं है। इसलिए पत्रकारिता सही और गलत, अन्याय और न्याय जैसे मसलों के बीच तटस्थ नहीं हो सकती बल्कि वह निष्पक्ष होते हुए भी सही और न्याय के साथ होती है।
(घ) संतुलन (बैलेंस) – निष्पक्षता की अगली कड़ी संतुलन है। आमतौर पर मीडिया पर आरोप लगाया जाता है कि समाचार कवरेज संतुलित नहीं है यानी वह किसी एक पक्ष की ओर डुका है। आमतौर पर समाचार में संतुलन की आवश्यकता वहीं पड़ती है जहाँ किसी घटना में अनेक पक्ष शामिल हों और उनका आपस में किसी न किसी रूप में टकराव हो। उस स्थिति में संतुलन का तकाज़ा यहीं है कि सभी संबद्ध पक्षों की बात समाचार में अपने-अपने समाचारीय बज़न के अनुसार स्थान पाए।
समाचार में संतुलन का महत्त्व तब कहीं अधिक हो जाता है जब किसी पर किसी तरह के आरोप लगाए गए हों या इससे मिलती-जुलती कोई स्थिति हो। उस स्थिति में हर पक्ष की बात समाचार में आनी चाहिए अंन्यथा यह एकतरफ़ा चरित्र हनन का हथियार बन सकता है। व्यक्तिगत किस्म के आरोपों में आरोपित व्यक्ति के पक्ष को भी स्थान मिलना चाहिए। लेकिन यह स्थिति तभी संभव हो सकती है जब आरोपित व्यक्ति सार्वजनिक जीवन में हो और आरोपों के पक्ष में पक्के सबूत नहीं हों या उनका सही साबित होना काफ़ी संदिग्ध हो। लेकिन घोषित अपराधियों या गंभीर अपराध के आरोपियों को संतुलन के नाम पर सफ़ाई देने का अवसर देने की ज़रूरत नहीं है। संतुलन के नाम पर समाचार मीडिया इस तरह के तत्त्यों का मंच नहीं बन सकता।
(ङ) स्रोत – हर समाचार में शामिल की गई सूचना और जानकारी का कोई स्रोत होना आवश्यक है। यहाँ स्रोत के संदर्भ में सबसे पहले यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि किसी भी समाचार संगठन के स्रोत होते हैं और फिर उस समाचार संगठन का पत्रकार जब सूचनाएँ एकत्रित करता है तो उसके अपने भी स्रोत होते हैं। इस तरह किसी भी दैनिक समाचारपत्र के लिए पीटीआई (भाषा), यूएनआई (यूनीवाता) जैसी समाचार एजेंसियाँ और स्वयं अपने ही संबाददाताओं और रिपोरोटों का तंत्र समाचारों का स्रोत होता है। लेकिन चाहे समाचार एजेंसी हो या समाचारपत्र, इनमें काम करने वाले पत्रकारों के भी अपने समाचार स्रोत होते हैं। यहाँ हम एक पत्रकार के समाचार के स्रोतों की चर्चा करेंगे।
समाचार की साख को बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि इसमें शामिल की गई सूचना या जानकारी का कोई स्रोत हो और वह स्रोत इस तरह की सूचना या जानकारी देने का अधिकार रखता हो और समर्थ हो। कुछ जानकारियाँ बहुत सामान्य होती हैं जिनके स्रोतों का उल्लेख करना आवश्यक नहीं है। लेकिन जैसे ही कोई सूचना ‘सामान्य’ होने के दायरे से बाहर निकलकर ‘विशिष्ट’ होती है उसके स्रोत का उल्लेख आवश्यक हो जाता है। स्रोत के बिना उसकी साख नहीं होगी। एक समाचार में समाहित सूचनाओं का स्रोत होना आवश्यक है और जिस सूचना का कोई स्रोत नहीं है, उसका स्रोत या तो पत्रकार स्वयं है या फिर यह एक सामान्य जानकारी है जिसका स्रोत देने की आवश्यकता नहीं है।
प्रश्न 20.
समाचार क्या है? समाचार के तत्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
समाचार के तत्व-लोग आमतौर पर अनेक काम मिलजुल कर करते हैं। सुख-दुख की घड़ी में वे साथ होते हैं। मेलों और उत्सवों में वे साथ-साथ होते हैं। दुर्घटनाओं और विपदाओं के समय वे साथ होते हैं। इन सबको हम घटनाओं की श्रेणी में रख सकते हैं। फिर लोगों को अनेक छोटी-बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। गाँव, कस्बे या शहर में बिजली-पानी के न होने से लेकर बेरोज़गरी, महंगाई और आर्थिक मंदी जैसी समस्याओं से उन्हें जूझना होता है। इसी तरह लोग अपने समय की घटनाओं, रुझानों और प्रक्रियाओं पर सोचते हैं। उन पर विचार करते हैं और इन सब को लेकर कुछ प्रतिक्रिया करते हैं या कर सकते हैं। इस तरह की विचार मंथन की प्रक्रिया के केंद्र में घटनाओं और समस्याओं के कारणों, प्रभाव और परिणामों का संदर्भ भी रहता है। लेकिन कोई घटना, समस्या या विचार कब और कैसे समाचार बनता है ? आखिर वे कौन-से कारक हैं जिनके होने पर काई घटना खबर बन जाती है।सामान्य तौर पर किसी भी घटना, विचार और समस्या से जब समाज के बड़े तबके का सरोकार हो तो हम यह कह सकते हैं कि यह समाचार बनने के योग्य है। लेकिन किसी घटना, विचार और समस्या के समाचार बनने की संभावना तब बढ़ जाती है, जब उनमें निम्नलिखित में कुछ अधिकांश या सभी तत्त्व शामिल हों-
- नवीनता
- निकटता
- प्रभाव
- जनरुचि
- टकराव या संघर्ष
- महत्तपूर्ण लोग
- उपयोगी जानकारियाँ
- अनोखापन
- पाठक वर्ग
- नीतिगत ढाँचा
प्रश्न 21.
निम्नलिखित पर टिप्पणी कीजिए-
(क) संपादकीय (ख) फोटो पत्रकारिता (ग) कार्टून कोना (घ) रेखांकन और कार्टोग्राफी
उत्तर :
(क) संपादकीय – संपादकीय पृष्ठ को समाचारपत्र का सबसे महत्चपूर्ण पृष्ठ माना जाता है। इस पृष्ठ पर अखबार विभिन्न घटनाओं और समाचारों पर अपनी राय रखता है। इसे संपादकीय कहा जाता है। इसके अतिरिक्त विषयों के विशेषज़ महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर अपने विचार लेख के रूप में प्रस्तुत करते हैं। आमतौर पर संपादक के नाम पत्र भी इसी पृष्ठ पर प्रकाशित किए जाते हैं। वह घटनाओं पर आम लोगों पर आम लोगों की टिप्पणी होती है। समाचारपत्र उसे महत्वपूर्ण मानते हैं।
(ख) फोटो पत्रकारिता – फोटो पत्रकारिता ने उपाई की टेक्नॉलोजी विकसित होने के साथ ही समाचारपत्रों में अहम स्थान बना लिया है। कहा जाता है कि जो बात हज़ार शब्दों में लिखकर नहीं कही जा सकती, वह एक तस्वीर कह देती है। फोटो टिप्पणियों का असर व्यापक और सीधा होता है। टेलीविजन की बढ़ती लोकप्रियता के बाद समाचारपत्रों और पत्रिकाओं में तस्वीरों के प्रकाशन पर जोर और बढ़ा है।
(ग) कार्टून कोना – कार्टून कोना लगभग हर समाचारपत्र में होता है और उनके माध्यम से की गई सटीक टिप्पणियाँ पाठक को छूती हैं। एक तरह से कार्टून पहले पन्ने पर प्रकाशित होने वाले हस्ताक्षरित संपादकीय हैं। इनकी चुटीली टिप्पणियाँ कई बार कड़े और धारदार संपादकीय से भी अधिक प्रभावी होती हैं।
(घ) रेखांकन और कार्टोग्राफु – रेखांकन और कार्टोग्राफ़ समाचारों को न केवल रोचक बनाते हैं बल्कि उन पर टिप्पणी भी करते हैं। क्रिकेट के स्कोर से लेकर सेंसेक्स के आँकड़ों तक–ग्राफ से पूरी बात एक नज़र में सामने आ जाती है। कार्टोt्राफी का उपयोग समाचारपत्रों के अलावा टेलीविजन में भी होता है।
प्रश्न 22.
पत्रकारिता के प्रमुख प्रकार कौन-कौन से हैं?
निम्नलिखित पर टिप्पणी कीजिए :
(क) खोजपरक पत्रकारिता, (ख) विशेषीकृत पत्रकारिता, (ग) वॉचडॉग पत्नकारिता, (घ) एडवोकेसी पत्रकारिता, (ङ) वैकल्पिक पत्रकारिता
उत्तर :
(क) खोजपरक पत्रकारिता – खोजपरक पत्रकारिता से आशय ऐसी पत्रकारिता से है जिसमें गहराई से छान-बीन करके ऐसे तथ्यों और सूचनाओं को सामने लाने की कोशिश की जाती है जिन्हें दबाने या छुपाने का प्रयास किया जा रहा है। आमतौर पर खोजी पत्रकारिता सार्वजनिक महत्व के मामलों में भ्रष्टाचार, अनियमितताओं और गड़बड़ियों को सामने लाने की कोशिश करती है। खोजी पत्रकारिता का उपयोग उन्हीं स्थितियों में किया जाता है जब यह लगने लगे कि सचाई को सामने लाने के लिए और कोई उपाय नहीं रह गया है। खोजी पत्रकारिता का ही एक नया रूप टेलीविजन में स्टिंग ऑपरेशन के रूप में सामने आया है।
हालाँकि भारत में खोजी पत्रकारिता तीन दशक पहले ही शुरू हो गई थी लेकिन हमारे देश में यह अब भी अपने शैशवकाल में ही है। जब जरूरत से ज्यादा गोपनीयता बरती जाने लगे और भ्रष्टाचार ब्यापक हो तो खोजी पत्रकारिता ही उसे सामने लाने का एकमात्र विकल्प बचता है। अमेरिका का वाटरगेट कांड खोजी पत्रकारिता का एक नायाब उदाहरण है, जिसमें राष्ट्रपति निक्सन को इस्तीफा देना पड़ा था। भारत में भी कई केंद्रीय मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को खोजी पत्रकारिता के कारण अपने पदों से इस्तीफा देना पड़ा।
(ख) विशेषीकृत पत्रकारिता – पत्रकारिता का अर्थ घटनाओं की सूचना देना मात्र नहीं है। पंत्रकार से अपेक्षा होती है कि वह घटनाओं की तह तक जाकर उसका अर्थ स्पष्ट करे और आम पाठक को बताए कि उस समाचार का क्या महत्त्व है? इसके लिए विशेषता की आवश्यकता होती है। पत्रकारिता में विषय के हिसाब से विशेषता के सात प्रमुख क्षेत्र हैं। इनमें संसदीय पत्रकारिता, न्यायालय पत्रकारिता, आर्थिक पत्रकारिता, खेल पत्रकारिता, विज्ञान और विकास पत्रकारिता, अपराध पत्रकारिता तथा फैशन और फिल्म पत्रकारिता शामिल हैं। इन क्षेत्रों के समाचार और उनकी व्याख्या उन विषयों में विशेषता हासिल किए बिना देना कठिन होता है।
(ग) वॉचडॉग पत्रकारिता – यह माना जाता है कि लोकतंत्र में पत्रकारिता और समाचार मीडिया का मुख्य उत्तरदायित्व सरकार के कामकाज पर निगाह रखना है और कहीं भी कोई गड़बड़ी हो तो उसका परदाफ़ाश करना है। इसे परंपरागत रूप से वॉचडॉग पत्रकारिता कहा जाता है। इसका दूसरा छोर सरकारी सूत्रों पर आधारित पत्रकारिता है। समाचार मीडिया केवल वही समाचार देता है जो सरकार चाहती है और अपने आलोचनात्मक पक्ष का परित्याग कर देता है। आमतौर पर इन दो बिंदुओं के बीच तालमेल के ज़रिये ही समाचार मीडिया और इसके तहत काम करने वाले विभिन्न समाचार संगठनों की पत्रकारिता का निर्धारण होता है।
(घ) एडवोकेसी पत्रकारिता – ऐसे अनेक समाचार संगठन होते हैं जो किसी विचारधारा या किसी खास उद्देश्य या मुद्दे को उठाकर आगे बढ़ते हैं और उस विचारधारा या उद्देश्य या मुद्दे के पक्ष में जनमत बनाने के लिए लगातार और ज़ोर-शोर से अभियान चलाते हैं। इस तरह की पत्रकारिता को पक्षधर या एडवोकेसी पत्रकारिता कहा जाता है। आपने अकसर देखा होगा कि भारत में भी कुछ समाचारपत्न या टेलीविज़न चैनल किसी खास मुद्दे पर जनमत बनाने और सरकार को उसके अनुकूल प्रतिक्रिया करने के लिए अभियान चलाते हैं। उदाहरण के लिए जेसिका लाल हत्याकांड में न्याय के लिए समाचार माध्यमों ने सक्रिय अभियान चलाया।
(ङ) वैकल्पिक पत्रकारिता – मीडिया स्थापित राजनीतिक-सामाजिक व्यवस्था का ही एक हिस्ता है और व्यवस्था के साथ तालमेल बिठाकर चलने वाले मीडिया को मुख्यधारा का मीडिया कहा जाता है। इस तरह की मीडिया आमतौर पर व्यवस्था के अनुकूल और आलोचना के एक निश्चित दायरे में ही काम करता है। इस तरह के मीडिया का स्वामित्व आमतौर पर बड़ी पूँजी के पास होता है और वह मुनाफे के लिए काम करती है। उसका मुनाफा मुख्यतः विज्ञापन से आता है। इसके विपरीत जो मीडिया स्थापित व्यवस्था के विकल्प को सामने लाने और उसके अनुकूल सोच को अभिव्यक्त करता है उसे वैकल्पिक पत्रकारिता कहा जाता है। आमतौर पर इस तरह के मीडिया को सरकार और बड़ी पूँजी का समर्थन हासिल नहीं होता है। उसे बड़ी कंपनियों के विज्ञापन भी नहीं मिलते हैं और वह अपने पाठकों के सहयोग पर निर्भर होता है।
प्रश्न 23.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए-
(क) स्तंभ लेख (ख) सम्पादक के नाम पत्र (ग) लेख (घ) साक्षात्कार/इंटर्यू
उत्तर :
(क) स्तंभ लेख-कुछ महत्त्वपूर्ण लेखक अपने खास लेखन के लिए जाने जाते हैं। ऐसी लेखकों की लोकप्रियता को देखकर अखबार उन्हें एक नियमित स्तंभ लिखने की जिम्मेदारी सौंप देता है। स्तंभ के लिए विषय चुनने और अपने विचारों को व्यक्त करने की लेखक को पूरी छूट होती है। स्तंभ को लेखक के नाम से ही जाना पहचाना जाता है।
(ख) सम्पादक के नाम पत्र-अखबारों में संपादकीय पृष्ठ तथा पत्रिकाओं के शुरुआत में संपादक के नाम पत्र छापे जाते हैं। यह सभी अखबारों में स्थाई रूप से प्रकाशित होने वाला स्तंभ होता है। इस स्तंभ के माध्यम से अखबार या पत्रिका के पाठक विभिन्न विषयों पर अपनी राय देते हैं। यह स्तंभ जनतम को प्रतिबिंबित करता है।
(ग) लेख-सभी अखबारों के सम्पादकीय पृष्ठ पर लेख और आलेख प्रकाशित होते हैं। इन लेखों में समसामयिक विषय पर विस्तार से चर्चा की जाती है। इन लेखों में लेखक के विचारों को ही प्रमुखता दी जाती है। लेख की कोई निश्चित लेखन शैली नहीं होती।
(घ) साक्षात्कार/इंटरव्यू-समाचार-पत्रों में प्रसिद्ध हस्तियों के साक्षात्कार प्रकाशित होते रहते हैं। समाचार में एक पत्रकार किसी अन्य व्यक्ति से तथ्य, उसकी भावनाएँ जानने के लिए सवाल पूछता है। साक्षात्कार का एक मकसद व निश्चित ढाँचा होता है। एक सफल साक्षात्कार के लिए आपके पास ज्ञान के साथ-साथ संवेदनशीलता तथा धर्य का होना आवश्यक है।