CBSE Class 11 Hindi Elective अपठित बोध अपठित काव्यांश

CBSE Class 11 Hindi Elective अपठित बोध अपठित काव्यांश

निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

1. लहरता है
सुहानी सी उषा में
तुम्हारा रेशमी आंचल
हवा के संग
बुन रहा वात्सल्य का कंबल
सुवह की घाटियों में
प्यार का संबल
‘सुरीली बीन सा मौसम
नमन में मन!
बसी हो माँ!
समय के हर सफर में
सुबह सी शाम सी
दिन में-बिखरती रोशनी सी
दिशाओं में-
मधुर मकरंद सी
दूर हो फिर भी
महक उठता है जीवन
नमन में मन!

प्रश्न :
1. हवा के संग माँ का आँचल क्या बुनता है ?
2. सुवह की घाटियों में आँचल क्या-क्या रूप धारण कर लेता है ?
3. समय के सफर में माँ किस प्रकार बसी है ?
4. माँ दूर होने पर भी दिशाओं में किस प्रकार बसी है ?
5. इन पंक्तियों में माँ के आँचल की वर्णित दो प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
1. हवा के संग माँ का आँचल वात्सल्य का कम्बल बुनता है अर्थात् माँ का प्रेम और गहरा हो जाता है।
2. सुबह की घाटियों में माँ का आँचल प्यार का सहारा बन जाता है, कभी सुरीली बीन की तरह मन को छू लेता है।
3. समय के सफर में माँ सुबह और शाम जैसी बसी हुई है। माँ रोशनी की तरह बसी हुई है; क्योंकि रोशनी सफर में रास्ता दिखाती है।
4. दूर होने पर भी माँ मधु-मकरंद की तरह बसी है। जिस प्रकार मकरंद की खुशबू दूर-दूर तक पहुँच जाती है। उसी प्रकार माँ का प्यार दूर होने पर भी दिल तक पहुँच जाता है।
5. माँ का आँचल रेशमी चमक लिये हुए है और वह आँचल संतान के लिए प्यार का सम्बल है।

2. नाम अलग हैं देश-देश के, पर वसुन्धरा एक है,
फल-फूलों के रूप अलग पर भूमि उर्वरा एक है,
धरा बाँटकर हृदय न बांटो, दूर रहो संहार से॥
कभी न सोचो तुम अनाथ, एकाकी या निष्प्राण रे!
बूंद-बूंद करती है मिलकर सागर का निर्माण रे!
लहर लहर देती संदेश यह, दूर क्षितिज के पार से॥
धर्म वही है, जो करता है, मानव का उद्धार रे!
धर्म नहीं वह जोकि डाल दे, दिल में एक दरार रे!
करो न दूषित आंगन मन का, नफरत की दीवार से॥
सीमाओं को लांघ न कुचलो, स्वतंत्रता का शीश रे!
बमबारी की स्वरलिपि में मत लिखो शान्ति का गीत रे !
बंध न सकेगी लय गीतों की, ऐसे स्वर-विस्तार से॥
राजनीति में स्वार्थ न लाओ, भरो न विष संसार में,
पशुता भरकर संस्कृति में, मत भरो वासना प्यार में,
करो न कलुषित जन-जीवन तुम, रूप-प्रणय-व्यापार से॥

प्रश्न :
1. हृदय बाँटने से कवि ने क्यों मना किया है ?
2. लहरें क्या सन्देश देती हैं ?
3. धर्म की क्या पहचान है ?
4. शान्ति का गीत किस लिपि में नहीं लिखा जाता ?
5. राजनीति, संस्कृति और जन-जीवन के लिए क्या-क्या घातक हैं ?
उत्तर :
1. देशों के नाम अलग होने पर भी धरती एक है, विभिन्न फल-फूल उगाने वाली उपजाऊ भूमि एक है इसलिए कवि ने ह्दय बाँटने से मना किया है।
2. लहरें सन्देश देती हैं कि मनुष्य कभी असहाय या अकेला नहीं है। बूँद-बूँद मिलकर सागर बनता है इसी प्रकार मनुष्य भी विराट स्वरूप धारण कर सकता है।
3. मानव का उद्धार करने वाला कार्य ही धर्म है।
4. शान्ति का गीत संहार की भाषा में नहीं वरन् प्रेम की भाषा में लिखा जाता है।
5. राजनीति के लिए स्वार्थ, संस्कृति के लिए पशुता और वासना तथा जन-जीवन के लिए रूप और प्रणय का व्यापार घातक है।

3. प्यास थी इस आँख को जिसकी बनी
वह नहीं इस को सका कोई पिला
प्यास जिससे हो गयी है सौगुनी
वाह क्या अच्छा इसे पानी मिला
आँख के आँसू समझ लो बात यह
आन पर अपनी रहो तुम मत अड़े
क्यों कोई देगा तुम्हें दिल में जगह
जब कि दिल में से निकल तुम यों पड़े
हो गया कैसा निराला यह सितम
भेद सारा खोल क्यों तुमने दिया।
यों किसी का है नहीं खोते भरम
आँसुओ! तुमने कहो यह क्या किया

प्रश्न :
1. आँख को कैसा पानी मिला है ?
2. ऑँख को कौन-सा पानी नहीं पिलाया गया ?
3. आँख के आँसू को कोई जगह क्यों नहीं देगा ?
4. निराला सितम क्या हो गया ?
5. ऑँसुओं से क्या भूल हो गई ?
उत्तर :
1. आँख को वह पानी मिला है जिससे प्यास और अधिक बढ़ गई है।
2. आँख को जिस प्रेम के पानी की प्यास थी, उसे वह नहीं पिलाया जा सका।
3. आँख के आसू को आँख में रहना था, व्यक्ति के दिल में रहना था लेकिन आँसू बह उठा अतः उसे कोई अपने दिल में स्थान नहीं देगा।
4. आँखों से निकलकर आँसू ने सारा भेद खोल दिया। यह भेद वता देना सबसे बड़ा सितम है।
5. आँसुओं ने व्यक्ति का विश्वास खो दिया। यही इनसे भूल हो गई।

4. मेरे गाँव में
बड़े-बड़े अपने सपने थे
दोस्त गुरु परिचित कितने थे
बड़े घने बरगद के नीचे
वड़ी-बड़ी ऊँची बातें थीं
कहाँ गये सब ?
कोई नज़र नहीं आता है
यह सब कैसा सन्नाटा है ?
तोड़ो यह सन्नाटा तोड़ो
नये सिरे से अब कुछ जोड़ो
दूर वहीं से हाथ हिलाओ
मेरी वहीं से हाथ हिलाओ
मेरी अनुगूँजों में आओ
आओ सफर लगे ना तन्हा
बोलो साथ-साथ तुम हो ना

प्रश्न :
1. गाँव में घने बरगद के नीचे कैसी बातें होती थीं ?
2. गाँव में अब क्या नज़र नहीं आता ?
3. गाँव का सन्नाटा कैसे टूट सकता है ?
4. सफर का अकेलापन कैसे दूर हो सकता है ?
5. गाँव के कौन से परिचित याद आते हैं ?
उत्तर :
1. गाँव में घने बरगद के नीचे बड़ी-बड़ी और ऊँची बातें होती थीं।
2. बड़ी-बड़ी बातें करने वाले दोस्त, गुरु, परिचित सब न जाने कहाँ-कहाँ चले गए हैं।
3. नए सिरे से प्रेम भाव और अपनापन पैदा करने से ही गाँवों का सन्नाटा टूट सकता है।
4. साथ होने का अहसास, आवाज देने पर मिला उत्तर ही सफर का अकेलापन दूर कर सकते हैं।
5. दोस्त, गुरु, परिचित न जाने कितनी बातें करते थे। वे सभी याद आते हैं।

5. वक्त के साथ
सब कुछ बदल जाता है
जगह, चेहरे, सोच
और रिश्ते।
बेमानी हो जाते हैं शब्द,
चक्रव्यूह से घिर जाती हैं
भीष्म प्रतिज्ञाएं।
वक्त शिल्पी की तरह
दीवारों पर
खुद उकेरता है
इतिहास।
हम सिर्फ देखते हैं.
दर्शक की तरह।
और रूपांतर करते हैं
अपनी-अपनी भाषाओं में।
रूपांतर-शब्दों के
रूपांतर-प्रतिज्ञाओं के
जगह, चेहरे, सोच
और रिश्तों के।

प्रश्न :
1. बक्त के साथ क्या-क्या बदल जाते हैं ?
2. बक्त को शिल्पी क्यों कहा गया है ?
3. जो हम देखते हैं, उसे किस प्रकार प्रस्तुत करते हैं ?
4. रूपान्तर किसका किया जाता है ?
5. वक्त के साथ क्या-क्या बेमानी हो जाते हैं ?
उत्तर :
1. वक्त के साथ जगह, चेहरे, आदमी की सोच और आपसी रिश्ते सभी बदल जाते हैं।
2. वक्त अपने प्रभाव से इतिहास की रचना करता है अतः वक्त को शिल्पी कहा गया है।
3. जो हम देखते हैं सिर्फ दर्शक बनकर देखते हैं और उसे अपने-अपने ढंग से प्रकट करते हैं।
4. रूपान्तर शब्दों, प्रतिज्ञाओं, जगह, व्यक्तित्व, चिन्तन और रिश्तों का किया जाता है।
5. समय के साथ कही गई बातें बेमानी हो जाती हैं क्योंकि संकट में घिरे होने पर सारी प्रतिज्ञाएँ अपना अस्तित्व खो देती हैं।

6. निराशाएँ छाती हैं
मकड़ी के जालों सी
तार-तार
सब अदृश्य जहाँ तहाँ फैलाती
जीव है कि बेचारा
होनी के बंधन में सर्प सा मचलता है
स्वर्ण हिरण छलता है
मौसम बदलते हैं
विजयपर्व संग लिए
दिशा-दिशा
उत्सव को घर-घर में बिखराते
आस दीप उजियारा
दुख के अंधियारे में जगर मगर जलता है
सुख सुहाग पलता है
सब अनिष्ट टलता है

प्रश्न :
1. निराशाएँ किस प्रकार छा जाती हैं ?
2. जीव किस बन्धन में और क्यों मचलता है ?
3. मौसम किस प्रकार बदलते हैं ?
4. आशा का दीपक बनकर उजियारा क्या करता है ?
5. सुख-सुहाग जीवन को किसी प्रकार प्रभावित करता है ?
उत्तर :
1. निराशाएँ मकड़ी के जालों की तरह बहुत महीन रूप में मन के ऊपर छा जाती हैं।
2. जीव होनी के बंधन में सर्प की तरह मचलता है।
3. उत्सव को घर-पर में बिखराने के लिए मौसम बदलते हैं।
4. उजियारा आशा का दीपक बनकर दुःख के अँधेरों को दूर करने का काम करता है।
5. सुख-सुहाग जीवन के अनिष्ट को समाप्त करता है।

7. मत काटो तुम ये पेड़ हैं ये लज्जावसन
इस माँ वसुन्धरा के।
इस संहार के बाद
अशोक की तरह
सचमुच तुम बहुत पछताओगे
बोलो फिर किसकी गोद में
सिर छिपाओगे ?
शीतल छाया
फिर कहाँ से पाओगे ?
कहाँ से पाओगे फिर फल ?
कहाँ से मिलेगा ?
सस्य- श्यामला को
सींचने वाला जल ?
रेगिस्तानों में
तब्दील हो जाएँगे खेत
बरसेंगे कहाँ से
उमड़-घुमड़कर बादल ?
थके हुए मुसाफिर
पाएँगे कहाँ से
श्रमहारी छाया ?

प्रश्न :
1. कवि अशोक की तरह पछताने की बात क्यों करता है ?
2. पेड़ों को लज्जावसन क्यों कहा है ?
3. पेड़ कटने से क्या कुप्रभाव पड़ेगा ?
4. खेत कौन-सा रूप धारण कर लेंगे ?
5. मुसाफिर किस चीज से बंचित हो जाएँगे ?
उत्तर :
1. नर-संहार करने के बाद जिस प्रकार अशोक को पश्चात्ताप हुआ था वृक्षों को काटकर उसी प्रकार हमें पछताना पड़ेगा।
2. वृक्षों से ही इस धरती की शोभा और अस्तित्व है अतः इन्हें लज्जा को ढकने वाले वस्त्र कहा गया हैं।
3. पेड़ कटने से शीतल छाया, विभिन्न प्रकार के फल, अन्न और जल नहीं मिल सकेंगे।
4. खेत रेगिस्तानों में तब्दील हो जाएँगे क्योंकि पेड़ों के कटने से वर्षा नहीं होगी।
5. थके हुए मुसाफिरों को पेड़ कटने पर थकान दूर करने वाली छाया नहीं मिलेगी।

8. मैं बार-बार आऊँगा
लेकर फूलों का हार
तुम्हारे द्वार।
जितने भी काँटे पथ में
बिखरे हुए पाऊँगा
आने से पहले मैं
जरूर हंटाऊँगा।
मैं बार-बार आऊँगा।
बहुत हैं अँधेरे जग में
आँगन में देहरी पर
जहाँ तक हो सकेगा
दीपक जलाऊँगा।
मैं बार-बार आऊँगा।
मुस्कानों की खुशबू को
बिखेर हर चेहरे पर
सूरज-सी चमक सदा
हर बार लाऊँगा
मैं बार-बार आऊँगा।

प्रश्न :
1. कवि ने बार-बार क्या लेकर आने को कहा है ?
2. काँटों के बारे में कवि ने क्या कहा है ?
3. कवि दीपक जलाने की बात क्यों करता हैं ?
4. सूरज-सी चमक कैसे लाई जा सकेगी ?
5. कवि की बार-बार आने की इच्छा क्या प्रकट करती है ?
उत्तर :
1. कवि ने बार-बार फूलों का हार लेकर आने के लिए कहा है।
2. कवि ने पथ में बिखरे हुए काँटों को अर्थात् जीवन की बाधाओं को दूर करने की बात कही है।
3. संसार में बहुत अँधेरा है। आँगन और देहरी पर भी अँधेरा है; इसलिए कवि ने दीपक जलाने की बात कही है।
4. प्रत्येक व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान की खुशबू बिखेर कर ही सूरज जैसी चमक लाई जा सकेगी।
5. कवि की बार-बार आने की इच्छा कुछ अच्छा करने का संदेश देती है। वह एक बार अच्छा काम करके ही बैठ जाना नहीं चाहता वरन् अच्छा काम करने के लिए सदैव तत्पर रहना चाहता है।

9. बुझ जाती है
दिए की लौ
अलाव की आग
फिर भी
जिन्दा रहती है
कहीं न कहीं
रिश्तों की आँच
मद्धिम ही सही।
सूख जाती है
बरसाती नदी
अलसाया-सा
चट्टानों से निकला
पतला-सा सोता जल का
कहीं न कहीं फिर भी
रह जाता है पानी
कुछ पानीदार लोगों की
चमकती आँखों में।
लू के थपेड़ों में
सूख जाते हैं
हरे-भरे उपवन
सिर उठाती कलियाँ
बच जाती है
फिर भी
थोड़ी बहुत खुशबू
कुछ लोगों की साँसों में
दिल से अँखुआई
बातों में।

प्रश्न :
1. रिश्तों की आँच किन परिस्थितियों में भी जिन्दा रहती है ?
2. पानी नदी सूखने पर भी कहाँ रह जाता है ?
3. खुशबू कहाँ बची रह जाती है ?
4. सिर उठाती कलियों से क्या तात्पर्य है ?
5. जीवन कहाँ-कहाँ बचा रह जाता है ?
उत्तर :
1. जब दिए की लौ बुझ जाती है, जब अलख की आग बुझ जाती है अर्थात् जब निराशा घिर आती है तब रिश्तों की संवेदना, अपनापन जिन्दा रहते हैं।
2. नदी सूखने पर भी मर्यादा रूपी पानी मान-प्रतिष्ठा वाले व्यक्तियों की आँखों में रह जाता है।
3. कुछ लोगों की पवित्र भावनाओं और सोच में खुशबू बची रहती है।
4. सिर उठाती कलियों से तात्पर्य उन सकारात्मक शक्तियों से है जो नकाग़न्मक सोच और कार्यों का डटकर विरोध करती है।
5. जीवन हमारे रिश्तों में, मान-मर्यादा एवं गरिमा में, हमारे हृदय में उठने वाली पवित्र भावनाओं में बचा रह जाता है।

10. लहलहाते रहेंगे
आँगन की क्यारियों में
हिलाकर नन्हे-नन्हे पांत
सुबह शाम करेंगे वात
प्यारे पौधे।
पास आने पर
दिखलाकर पँखुड़ियों की
नन्हीं-नन्हीं दूँतुलियाँ
मुस्काते हैं
फूले नहीं समाते हैं
ये लहलाते पौधे।
मिट्टी पानी और उजाला
इतना ही तो पाते
फिर भी रोज़ लुटाते
कितनी खुशियाँ!
बच्चे ………
ये भी पौधे हैं
इन्हें भी चाहिए-
प्यार का पानी
मधुर-मधुर स्पर्श की मिट्टी
और दिल की
खुली खिड़कियों से
छन-छनकर आता उजाला

प्रश्न :
1. सुबह-शाम पीधे किस प्रकार बात करते हैं ?
2. पौधे किस प्रकार मुस्काते हैं ?
3. खुशियाँ लुटाने के लिए पौधों को कौन-सी शक्ति मिलती है ?
4. बच्चों को कैसा पानी चाहिए ?
5. बच्चों के लिए कैसी मिट्टी और उजाला चाहिए ?
उत्तर :
1. सुबह-शाम पौधे नन्हें-नन्हें पात हिलाकर वान करते हैं।
2. पौधे अपनी पंखुड़ियाँ के नन्हें-नन्हें दाँत दिखलाकर मुस्काते हैं।
3. खुशियाँ लुटाने के लिए पौधों को मिट्टी-पानी और उजाला के रूप में शाक्तियाँ मिलती हैं।
4. बच्चों को प्यार का पानी चाहिए।
5. बच्चों को मधुर स्पर्श की मिट्टी और दिल की खिड़कियों से छनकर आता स्नेह रूपी उजाला चाहिए।

11. जीवन के लिए जरूरी है-थोड़ी सी छाँव
थोड़ी-सी धूप
थोड़ी-सा प्यार
थोड़ी-सा रूप।
जीवन के लिए जरूरी है-थोड़ी-तकरार
थोड़ी मनुहार।
थोड़े-से शूल
अँजुरीभर फूल।
जीवन के लिए जरूरी हैं-दो चार ऑसू
थोड़ी मुस्कान।
थोड़ा-सा दर्द
थोड़े-से गान।
जीवन के लिए जरूरी है-उजली-सी भोर
सतरंगी शाम।
हाथों को काम
तन को आराम।

प्रश्न :
1. जीवन के लिए थोड़ी-सी छाँव के साथ और क्या जरूरी है ?
2. तकरार के साथ और शूल के साथ क्या-क्या चाहिए ?
3. आँसू और दर्द किससे जुड़े हैं ?
4. भोर और कठिन परिश्रम के साथ क्या जरूरी हैं ?
5. निन्दा प्रायः कौन करते हैं ?
उत्तर :
1. जीवन के लिए थोड़ी-सी छाँव के साथ संघर्ष रूपी थोड़ी-सी धूप जरूरी है।
2. तकरार के साथ मनुहार और शूल के साथ फूल चाहिए।
3. ऑँसू-मुस्कान से तथा दर्द जीवन के मार्मिक गीतों से जुड़े हैं।
4. भोर के साथ सतरंगी शाम और कठिन परिश्रम के साथ आराम आवश्यक है।
5. प्रायः हमारे मित्र ही निन्दा करते हैं।

12. तिनका तिनका-लाकर चिड़िया
रचती है आवास नया।
इसी तरह से रच जाता है
सर्जन का आकाश नया।
मानव और दानव में यूँ तो
भेद नजर नहीं आएगा।
एक पोंछता बहते आँसू
जीभर एक रुलाएगा।
रचने से ही आ पाता है
जीवन में विश्वास नया।
कुछ तो इस धरती पर केवल
खून बहाने आते हैं।
आग बिछाते हैं राहों में
फिर खुद भी जल जाते हैं।
जो होते खुद मिटने वाले
वे रचते इतिहास नया।
मंत्र नाश का पढ़ा करें कुछ
द्वार-द्वार पर जा करके।
फूल खिलाने वाले रहते
घर-घर फूल खिला करके।

प्रश्न :
1. सर्जन का नया आकाश कैसे बनता है ?
2. मानव और दानव में क्या अन्तर है ?
3. जीवन में नया विश्वास किस प्रकार आता है ?
4. अत्याचार करने वालों का क्या अन्त होता है ?
5. नाश का मंत्र पढ़ने और फूल खिलाने से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
1. तिनका-तिनका जोड़कर जैसे नीड़ बनता है उसी प्रकार छोटी-छोटी रचनात्मक वस्तुओं से संसार बनता है।
2. दुःखी के आँसू पोंछने वाला मानव एवं दूसरों को जी-भर रुलाने वाला दानव कहलाता है।
3. रचनात्मक-कार्य करने से ही जीवन में विश्वास का संचार होता है।
4. इस धरती पर अत्याचार करने वाले एक दिन खुद भी नष्ट हो जाते हैं।
5. नाश का मंत्र पढ़ने का तात्पर्य है दूसरों का अहित करना तथा फूल खिलनां का तात्पर्य है प्रत्येक व्यक्ति तक खुशियाँ पहुँचाने का प्रयास।

13. मुझको देना शक्ति-
कुछ अच्छा करने की
सबका दु:ख हरने की
हर फूल खिलाने की
हर शूल हटाने की
मुझको देना शक्ति-
हरियाली ले आऊँ
खुशहाली दे पाऊँ
नेह नीर बरसाऊँ
धरती को सरसाऊँ
मुझको देना शक्ति-
मैं सवकी पीर हूँ
आँधी में धीर धरूँ
पापों से सदा डरूँ
जीवन में नया करूँ
मुझको देना शक्ति-
नन्हीं पौध लगाऊँ
सींच सींच हरपाऊँ
अनजाने आँगन को
उपवन सा महकाऊँ

प्रश्न :
1. कवि ने अच्छा करने की शक्ति क्यों माँगी है ?
2. हरियाली लाने की कामना कवि ने क्यों की है ?
3. ‘आँधी’ से क्या तात्पर्य है ?
4. नन्हीं पौध लगाने से क्या आशय है ?
5. ‘अनजाने आँगन’ को किस प्रकार महकाना चाहा है ?
उत्तर :
1. अच्छा काम करने से दूसरों का दुःख दूर किया जा सकता है, दूसरों के जीवन की बाधाएँ दूर की जा सकती हैं; इसलिए कवि ने यह शक्ति माँगी है।
2. हरियाली से खुशहाली और समृद्धि आती है, इसीलिए कवि हरियाली लाने की कामना करता है।
3. आँधी से तात्पर्य है जीवन में बाधा पहुँचाने वाली बाधक शक्तियाँ, जो हमारा मार्ग रोकने का प्रयास करती हैं।
4. ‘नन्हीं पौध’ लगाने से तात्पर्य है भावी पीढ़ी को सही ढंग से दिशा देना, ताकि आने वाला समय सुखद हो सके।
5. अनजाने आँगन को उपवन की तरह महकाने की चाह कवि के मन में है।

14. आग के ही बीच में अपना बना घर देखिए।
यहीं पर रहते रहेंगे हम उमर भर देखिए॥
एक दिन वे भी जलेंगे जो लपट से दूर हैं।
आंधियों का उठ रहा दिल में वहाँ डर देखिए॥
पैर धरती पर हमारे मन हुआ आकाश है-
आप जंब हमसे मिलेंगे, उठा यह सर देखिए औ
जी रहे हैं वे नगर में द्वारपालों की तरह।
कमर सजदे में झुकी है, पास जाकर देखिए॥
टूटना मंजूर पर झुकना हमें आता नहीं।
चलाकर ऊपर हमारे आप पत्थर देखिए॥
भरोसे की बूँद को मोती बनाना है अगर।
जिन्दगी की लहर को सागर बनाकर देखिए॥

प्रश्न :
1. आग के वीच में घर बनाने का क्या आशय है ?
2. ‘लपट से दूर’ होने का क्या तात्पर्य है ?
3. मन और पैर की कवि ने क्या स्थिति बताई है ?
4. द्वारपालों की तरह जीना किसे कहते हैं ?
5. भरोसे की बूँद को मोती कैसे बनाया जा सकता है ?
उत्तर :
1. आग के बीच में घर बनाने का तात्पर्य है-निरन्तर विभिन्न प्रकार के संकटों से घिरा रहना, वाधाओं से जूझते रहना।
2. दूसरों को मुसीबत में फैसाकर जो दूर हट जाते हैं, उन्हें लपट से दूर कहा है।
3. पैर जमीन पर होने का अर्थ है, अहंकार न होना तथा जीवन के यथार्थ को समझना। मन में हमेशा उच्च भावनाएँ होनी चाहिए।
4. खुशामद का जीवन जीना, द्वारपालों का जीवन कहा गया है।
5. जिन्दगी में उमंग होनी चाहिए। उमंगें ही मनुष्य का जीवन व्यापक बनाती हैं।

15. गॉँव अपना-
पहले इतना
था कभी न
गाँव अपना
अब पराया हो गया।
खिलखिलाता
सिर उठाए
वृद्ध जो, बरगद
कभी का सो गया।
अब न गाता
कोई आल्हा
बिठकर चौपाल में
मुस्कान बन्दी
हो गई
बहेलिए के जाल में,
अदालतों की
फाइलों में
बंद हो, भाईचारा खो गया।
दौंगड़ा
अब न किसी के
सूखते मन को भिगोता
और धागा
न यहाँ
बिखरे हुए, मनके पिरोता
कौन जाने
देहरी पर
एक बोझिल
स्याह चुण्पी बो गया।

प्रश्न :
1. अपना गाँव अव कैसा हो गया ?
2. वृद्ध बरगद की अब क्या स्थिति है ?
3. चौपालों की हालत अब कैसी हो गई ?
4. भाईचांरा कहॉं खो गया ?
5. बिखरे हुए मनके पिरोने का क्या आशय है ?
उत्तर :
1. अपना गाँव अब पराया हो गया है। अब गाँव में अपनापन नहीं रहा है।

3. अूव चौपालों में कोई आल्हा नहीं गाता है। विभिन्न प्रकार के झमेलों में पड़ने से लोगों की मुस्कान भी गायब हो गई है।
4. आपसी झगड़ों और झगड़ों से उत्पन्न मुकदमों के कारण आपसी प्रेम नष्ट हो गया है अतः प्रेम के अभाव में भाईचारा भी समाप्त हो गया है।
5. अब कोई बिखराव और मतभेदों को समाप्त कर एकता स्थापित नहीं करता। दिलों में जाग्रत होने वाला आपसी सदूभाव खत्म हो गया है।

11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers