Tatsam-Tadbhav ( तत्सम-तद्भव ) शब्द, परिभाषा, पहचानने के नियम और उदाहरण : हिन्दी व्याकरण

Tatsam-Tadbhav ( तत्सम-तद्भव ) शब्द, परिभाषा, पहचानने के नियम और उदाहरण हिन्दी व्याकरण
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तत्सम शब्द

तत्सम शब्द : वैसे शब्द, जो संस्कृत और हिन्दी दोनों भाषाओं में समान रूप से प्रचलित हैं। अंतर केवल इतना है कि संस्कृत भाषा में वे अपने विभक्ति–चिह्नों या प्रत्ययों से युक्त होते हैं और हिन्दी में वे उनसे रहित।

जैसे—
संस्कृत में, कर्पूरः, पर्यङ्कः, फलम्, ज्येष्ठः, हिन्दी में, कर्पूर, पर्यंक, फल, ज्येष्ठ

तद्भव शब्द

तद्भव शब्द : (उससे भव या उत्पन्न) वैसे शब्द, जो तत्सम से विकास करके बने हैं और कई रूपों में वे उनके (तत्सम के) समान नजर आते हैं।

जैसे–
कर्पूर > कपूर
पर्यङ्क > पलंग
अग्नि > आग आदि।

नोट : नीचे तत्सम तद्भव शब्दों की सूची दी जा रही है। इन्हें देखें और समझने की कोशिश करें कि इनमें समानता–असमानता क्या है?

तत्सम – तद्भव

आँसू – अश्रु
इक्षु – ईख
कपूर – कर्पूर
गोधूम – गेहूँ
घोटक – घोड़ा
आम्र – आम
उलूक – उल्लू
काष्ठ – काठ
ग्राम – गाँव
घृणा – घिन
अग्नि – आग
उष्ट्र – ऊँट
कोकिल – कोयल
गर्दभ – गदहा
चर्मकार – चमार
अंध – अंधा
कर्ण – कान
क्षेत्र – खेत
गंभीर – गहरा
चन्द्र – चाँद
ज्येष्ठ – जेठ
धान्य – धान
पत्र – पत्ता
पौष – पूस
भल्लूक – भालू
बट – बड़
श्वशुर – ससुर
श्रेष्ठी – सेठ
सुभाग – सुहाग
सूई – सूची
हास्य – हँसी
कर्म – काम
कूप – कुआँ
स्नेह – नेह
कातर – कायर
लोक – लोग
शिक्षा – सीख
कुठार – कुल्हाड़ा
पक्व – पक्का
शाक – साग
इष्टिका – इट
गणना – गिनती
काक – काग
स्वश्रू – सास
भित्ति – भीत
विष्ठा – बीठ
शर्करा – शक्कर
कज्जल – काजल
अध – आज
दुर्बल – दुबला
उन्मना – अनमना
चित्रक – चीता
कुंभकार – कुम्हार
भीख – भिक्षा
कोटि – करोड़
गात्र – गात
ओष्ठ – होठ
अगम्य – अगम
मालिनी – मालिन
तत्सम – तद्भव
ताम्र – ताँबा
नव्य – नया
प्रस्तर – पत्थर
पौत्र – पोता
मृत्यु – मौत
शय्या – सेज
शृंगाल – सियार
स्तन – थन
स्वामी – साईं
मस्तक – माथा
चंचु – चोंच
हरिद्रा – हल्दी
प्रिय – पिया
अपूप – पूआ
कारवेल – करेला
श्रृंखला – साँकल
मृत्तिका – मिट्टी
चतुष्पादिका – चौकी
पर्यंक – पलंग
अर्द्धतृतीय – ढाई
कूट – कूड़ा
शुष्क – सूखा
खर्पर – खपरा
क्षीर – खीर
चणक – चना
घट – घड़ा
पक्ष – पख/पंख
काया – काय
अंगुष्ट – अँगूठा
सप्त – सात
अक्षत – अच्छत
भाग्नेय – भांजा
भ्रातृ – भाई
यजमान – जजमान
कुष्ठ – कोढ़
धैर्य – धीरज
धूम्र – धुआँ
प्रतिच्छाया
श्रावण – सावन
तैल – तेल
निद्रा – नींद
पीत – पीला
बधिर – बहरा
मित्र – मीत
शत – सौ
शिर – सिर
स्वर्णकार – सुनार
सूर्य – सूरज
हस्त – हाथ
अम्बा – अम्मा
कार्य – काज
जिह्वा – जीभ
आश्रय – आसरा
चूर्ण – चूना
सायम् – साँझ
त्वरित – तुरंत
चटका – चिड़िया
सत्य – सच
सपली – सौत
कपाट – किवाड़
अष्ट – आठ
लक्ष – लाख
श्यामल – साँवला
लाक्षा – लाख
धरती – धरित्री
अक्षर – आखर
वायु – बयार
उच्च – ऊँचा
अवतार – औतार
कुक्कुर – कुकुर
याचक – जाचक
दधि – दही
उपवास – उपास
ग्राहक – गाहक
निर्वाह – निवाह
अट्टालिका – अटारी
आदित्यवार – एतवार
कुक्षि – कोख
दात – दाँत
पद – पैर
पृष्ठ – पीठ
वानर – बन्दर
मुख – मुँह
श्वास – साँस
दश – दस
स्वर्ण – सोना
गौरी – गोरी
हस्ती – हाथी
तिक्त – तीता
चतुर्दश – चौदह
मयूर – मोर
केतक – केवड़ा
सर्षप – सरसों
स्वप्न – सपना
हास – हँसी
उद्वर्तन – उबटन
वचन – बैन
परशु – फरसा
सर्प – साँप
शलाका – सलाई
रात्रि – रात
वत्स – बच्चा
क्षुर – छुरा
दुग्ध – दूध
पूर्णिमा – पूनम
सर्व – सब
मौक्तिक – मोती
आशिष – असीस
चक्रवाक – चकवा
श्वसुराल्य – ससुराल
घृत – घी
कंकण – कंगन
गिद्रध – गिद्ध
भक्त – भगत
कांचन – कंचन
गर्भिणी – गाभिन
यशोदा – जसोदा
चरित्र – चरित
अभीर – अहीर
फाल्गुन – फागुन
श्याली – साली
योद्धा – जोधा
पक्षी – पंछी
अंजलि – अँजुरी
दंतधावन – दातौन
जव – जौ
छिद्र – छेद
शृंगार – सिंगार
यश – जस
जमाता – जमाई
रात्रि – रात

Vismaya Adi Bodhak – विस्मयादिबोधक – परिभाषा, भेद और उदाहरण, Interjection in hindi

Vismaya Adi Bodhak - विस्मयादिबोधक - परिभाषा, भेद और उदाहरण, Interjection in hindi

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विस्मयादिबोधक (Interjection)

विस्मयादिबोधक – परिभाषा

विस्मय, हर्ष, शोक, आश्चर्य, घृणा, विषाद आदि भावों को प्रकट करने वाले अविकारी शब्द ‘विस्मयादिबोधक’ कहलाते हैं। इन शब्दों का वाक्य से कोई व्याकरणिक संबंध नहीं होता। अर्थ की दृष्टि से इसके मुख्य आठ भेद हैं :

  1. विस्मयसूचक – अरे!, क्या!, सच!, ऐं!, ओह!, हैं!
  2. हर्षसूचक – वाह!, अहा!, शाबाश!, धन्य!
  3. शोकसूचक – ओह!, हाय!, त्राहि-त्राहि!, हाय राम!
  4. स्वीकारसूचक – अच्छा!, बहुत अच्छा!, हाँ-हाँ!, ठीक!
  5. तिरस्कारसूचक – धिक्!, छि:!, हट!, दूर!
  6. अनुमोदनसूचक – हाँ-हाँ!, ठीक!, अच्छा!
  7. आशीर्वादसूचक – जीते रहो!, चिरंजीवी हो! दीर्घायु हो!
  8. संबोधनसूचक – हे!, रे!, अरे!, ऐ!

इन सभी के अलावा कभी-कभी संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया और क्रियाविशेषण आदि का प्रयोग भी विस्मयादिबोधक के रूप में होता है;

जैसे:

  • संज्ञा – शिव, शिव!, हे राम!, बाप रे!
  • सर्वनाम – क्या!, कौन?
  • विशेषण – सुंदर!, अच्छा!, धन्य!, ठीक!, सच!
  • क्रिया – हट!, चुप!, आ गए!
  • क्रियाविशेषण – दूर-दूर!, अवश्य!

Interjection in hindi

Samuchaya Bodhak – समुच्चय बोधक – परिभाषा भेद और उदाहरण, Conjuction In hindi

Samuchaya Bodhak – समुच्चय बोधक – परिभाषा भेद और उदाहरण, Conjuction In hindi

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समुच्चयबोधक (Conjunction)

समुच्चय बोधक – परिभाषा भेद

जो अव्यय पद एक शब्द का दूसरे शब्द से, एक वाक्य का दूसरे वाक्य से अथवा एक वाक्यांश का दूसरे वाक्यांश से संबंध जोड़ते हैं, वे ‘समुच्चयबोधक’ या ‘योजक’ कहलाते हैं;

जैसे :
राधा आज आएगी और कल चली जाएगी। समुच्चयबोधक के दो प्रमुख भेद हैं :
1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक (Coordinate Conjunction)
2. व्यधिकरण समुच्चयबोधक (Subordinate Conjunction)
Samuchaya Bodhak - समुच्चय बोधक - परिभाषा भेद और उदाहरण, Conjuction In hindi 1

1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक-समानाधिकरण समुच्चयबोधक के निम्नलिखित चार भेद हैं :

  • (क) संयोजक
  • (ख) विभाजक
  • (ग) विरोधसूचक
  • (घ) परिणामसूचक।

(क) संयोजक-जो अव्यय पद दो शब्दों, वाक्यांशों या समान वर्ग के दो उपवाक्यों में संयोग प्रकट करते हैं, वे ‘संयोजक’ कहलाते हैं; जैसे : और, एवं, तथा आदि।
(i) राम और श्याम भाई-भाई हैं।
(ii) इतिहास एवं भूगोल दोनों का अध्ययन करो।
(iii) फुटबॉल तथा हॉकी दोनों मैच खेलूँगा।

(ख) विभाजक या विकल्पजो अव्यय पद शब्दों, वाक्यों या वाक्यांशों में विकल्प प्रकट करते हैं, वे ‘विकल्प’ या ‘विभाजक’ कहलाते हैं;

जैसे :
कि, चाहे, अथवा, अन्यथा, या, नहीं, तो आदि।
(i) तुम ढंग से पढ़ो अन्यथा फेल हो जाओगे।
(ii) चाहे ये दे दो चाहे वो।

(ग) विरोधसूचक- जो अव्यय पद पहले वाक्य के अर्थ से विरोध प्रकट करें, वे ‘विरोधसूचक’ कहलाते हैं;

जैसे :
परंतु, लेकिन, किंतु आदि।
(i) रोटियाँ मोटी किंतु स्वादिष्ट थीं।
(ii) वह आया परंतु देर से।
(iii) मैं तो चला जाऊँगा, लेकिन तुम्हें भी आना पड़ेगा।

(घ) परिणामसूचक- जब अव्यय पद किसी परिणाम की ओर संकेत करता है, तो ‘परिणामसूचक’ कहलाता है;

जैसे :
इसलिए, अतएव, अतः, जिससे, जिस कारण आदि।
(i) तुमने मना किया था इसलिए मैं नहीं आया।
(ii) मैंने यह काम खत्म कर दिया जिससे कि तुम्हें आराम मिल सके।

व्यधिकरण समुच्चयबोधक-

वे संयोजक जो एक मुख्य वाक्य में एक या अनेक आश्रित उपवाक्यों को जोड़ते हैं, व्यधिकरण समुच्चयबोधक’ कहलाते हैं;

जैसे :
यदि मेहनत करोगे तो फल पाओगे।

व्यधिकरण समुच्चयबोधक के मुख्य चार भेद हैं :
(क) हेतुबोधक या कारणबोधक,
(ख) संकेतबोधक,
(ग) स्वरूपबोधक,
(घ) उद्देश्यबोधक।।

(क) हेतुबोधक या कारणबोधक- इस अव्यय के द्वारा वाक्य में कार्य-कारण का बोध स्पष्ट होता है;

जैसे :
क्योंकि, चूँकि, इसलिए, कि आदि।
(i) वह असमर्थ है, क्योंकि वह लंगड़ा है।
(ii) चूँकि मुझे वहाँ जल्दी पहुँचना है, इसलिए जल्दी जाना होगा।

(ख) संकेतबोधक- प्रथम उपवाक्य के योजक का संकेत अगले उपवाक्य में पाया जाता है। ये प्रायः जोड़े में प्रयुक्त होते हैं;

जैसे :
जो……. तो, यद्यपि ……..”तथापि, चाहे…….. पर, जैसे……..”तैसे।
(i) ज्योंही मैंने दरवाजा खोला त्योंही बिल्ली अंदर घुस आई।
(ii) यद्यपि वह बुद्धिमान है तथापि आलसी भी।

(ग) स्वरूपबोधक- जिन अव्यय पदों को पहले उपवाक्य में प्रयुक्त शब्द, वाक्यांश या वाक्य को स्पष्ट करने हेतु प्रयोग में लाया जाए, उसे ‘स्वरूपबोधक’ कहते हैं; जैसे : यानी, अर्थात् , यहाँ तक कि, मानो आदि।
(i) वह इतनी सुंदर है मानो अप्सरा हो।
(ii) ‘असतो मा सद्गमय’ अर्थात् (हे प्रभु) असत्य से सत्य की ओर ले चलो।

(घ) उद्देश्यबोधक- जिन अव्यय पदों से कार्य करने का उद्देश्य प्रकट हो, वे ‘उद्देश्यबोधक’ कहलाते हैं;

जैसे :
जिससे कि, की, ताकि आदि।
(i) वह बहुत मेहनत कर रहा है ताकि सफल हो सके।
(ii) मेहनत करो जिससे कि प्रथम आ सको।

Kriya Visheshan in Hindi- क्रियाविशेषण – परिभाषा, भेद और उदाहरण

Kriya Visheshan in Hindi- क्रियाविशेषण – परिभाषा, भेद और उदाहरण
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क्रियाविशेषण – परिभाषा

kriya-visheshan-in-hindi

क्रियाविशेषण संबंधी अशुद्धियाँ

क्रियाविशेषण संबंधी अनेक अशुद्धियाँ देखने को मिलती हैं। विशेष रूप से इसका अनावश्यक, अशुद्ध, अनुपयुक्त तथा अनियमित प्रयोग भाषा को अशुद्ध बनाता है;

जैसे :
अशुद्ध – शुद्ध
1. जैसा करोगे, उतना ही भरोगे। – 1. जैसा करोगे, वैसा ही भरोगे।
2. वह बड़ा चालाक है। – 2. वह बहुत चालाक है।
3. वहाँ चारों ओर बड़ा अंधकार था। – 3. वहाँ चारों ओर घना अंधकार था।
4. वह अवश्य ही मेरे घर आएगा। – 4. वह मेरे घर अवश्य आएगा।
5. वह स्वयं ही अपना काम कर लेगा। – 5. वह स्वयं अपना काम कर लेगा।
6. स्वभाव के अनुरूप तुम्हें यह कार्य करना चाहिए। – 6. स्वभाव के अनुकूल तुम्हें यह कार्य करना चाहिए।
7. देश में सर्वस्व शांति है। – 7. देश में सर्वत्र शांति है।
8. उसे लगभग पूरे अंक प्राप्त हुए। – 8. उसे पूरे अंक प्राप्त हुए।
9. वह बड़ा दूर चला गया। – 9. वह बहुत दूर चला गया।
10. उसने आसानीपूर्वक काम समाप्त कर लिया। – 10. उसने आसानी से काम समाप्त कर लिया।
11. जंगल में बड़ा अंधकार है। – 11. जंगल में घना अंधकार है।
12. यद्यपि वह मेहनती है, तब भी सफलता प्राप्त नहीं करता। – 12. यद्यपि वह मेहनती है, तथापि वह सफलता प्राप्त नहीं करता।
13. मुंबई जाने में एकमात्र दो दिन शेष हैं। – 13. मुंबई जाने में केवल दो दिन शेष हैं।
14. जितना गुड़ डालोगे वही मीठा होगा। – 14. जितना गुड़ डालोगे उतना ही मीठा होगा।
15. यदि परिश्रम से पढ़ोगे तब अच्छे अंक प्राप्त करोगे। – 15. यदि परिश्रम से पढ़ोगे तो अच्छे अंक प्राप्त करोगे।

Kriya Visheshan in Hindi

वाक्य – वाक्य की परिभाषा, भेद और उदाहरण : हिन्दी व्याकरण

Vakya in Hindi

वाक्य की परिभाषा (Vakya Ki Paribhasha), Bhed, Udaharan

भाषा हमारे भावों-विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम है। भाषा की रचना वर्णों, शब्दों और वाक्यों से होती है। दूसरे शब्दों में वर्णों से शब्द, शब्दों से वोक्य और वाक्यों से भाषा का निर्माण हुआ है। इस प्रकार वाक्य शब्दों के समूह का नाम है, लेकिन सभी प्रकार के शब्दों को एक स्थान पर रखकर वाक्य नहीं बना सकते हैं।

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वाक्य की परिभाषा शब्दों का वह व्यवस्थित रूप जिसमें एक पूर्ण अर्थ की प्रतीति होती है, वाक्य कहलाता है। आचार्य विश्वनाथ ने अपने ‘साहित्यदर्पण’ में लिखा है

“वाक्यं स्यात् योग्यताकांक्षासक्तियुक्तः पदोच्चयः।”

अर्थात् योग्यता, आकांक्षा, आसक्ति से युक्त पद समूह को वाक्य कहते हैं।

वाक्य के तत्त्व
वाक्य के तत्त्व निम्न हैं-

1. सार्थकता सार्थकता वाक्य का प्रमुख गुण है। इसके लिए आवश्यक है कि वाक्य में सार्थक शब्दों का ही प्रयोग हो, तभी वाक्य भावाभिव्यक्ति के लिए सक्षम होगा; जैसे-राम रोटी पीता है।। यहाँ ‘रोटी पीना’ सार्थकता का बोध नहीं कराता, क्योंकि रोटी खाई जाती है। सार्थकता की दृष्टि से यह वाक्य अशुद्ध माना जाएगा। सार्थकता की दृष्टि से सही वाक्य होगा-राम रोटी खाता है। इस वाक्य को पढ़ते ही पाठक के मस्तिष्क में वाक्य की सार्थकता उपलब्ध हो जाती है। कहने का आशय है कि वाक्य का यह तत्त्व वाक्य रचना की दृष्टि से अनिवार्य है। इसके अभाव में अर्थ का अनर्थ सम्भव है।

2. क्रम क्रम से तात्पर्य है-पदक्रम। सार्थक शब्दों को भाषा के नियमों के अनुरूप क्रम में रखना चाहिए। वाक्य में शब्दों के अनुकूल क्रम के अभाव में अर्थ का अनर्थ हो जाता है; जैसे-नाव में नदी है। इस वाक्य में सभी शब्द सार्थक हैं, फिर भी क्रम के अभाव में वाक्य गलत है। सही क्रम करने पर नदी में नाव है वाक्य बन जाता है, जो शुद्ध है।

3. योग्यता वाक्य में सार्थक शब्दों के भाषानुकूल क्रमबद्ध होने के साथ-साथ उसमें योग्यता अनिवार्य तत्त्व है। प्रसंग के अनुकूल वाक्य में भावों का बोध कराने वाली योग्यता या क्षमता होनी चाहिए। इसके अभाव में वाक्य अशुद्ध हो जाता है; जैसे-हिरण उड़ता है। यहाँ पर हिरण और उड़ने की परस्पर योग्यता नहीं है, अत: यह वाक्य अशुद्ध है। यहाँ पर उड़ता के स्थान पर चलता या दौड़ता लिखें तो वाक्य शुद्ध हो जाएगा।

4. आकांक्षा आकांक्षा का अर्थ है-श्रोता की जिज्ञासा। वाक्य भाव की दृष्टि से इतना पूर्ण होना चाहिए कि भाव को समझने के लिए कुछ जानने की इच्छा या आवश्यकता न हो, दूसरे शब्दों में, किसी ऐसे शब्द या समूह की कमी न हो जिसके बिना अर्थ स्पष्ट न होता हो। उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति हमारे सामने आए और हम केवल उससे ‘तुम’ कहें तो वह कुछ भी नहीं समझ पाएगा। यदि कहें कि अमुक कार्य करो तो वह पूरी बात समझ जाएगा। इस प्रकार वाक्य का आकांक्षा तत्त्व अनिवार्य है।

5. आसक्ति आसक्ति का अर्थ है-समीपता। एक पद सुनने के बाद उच्चारित अन्य पदों के सुनने के समय में सम्बन्ध, आसक्ति कहलाता है। यदि उपरोक्त सभी बातों की दृष्टि से वाक्य सही हो, लेकिन किसी वाक्य का एक शब्द आज, एक कल और एक परसों कहा जाए तो उसे वाक्य नहीं कहा जाएगा। अतएव वाक्य के शब्दों के उच्चारण में समीपता होनी चाहिए। दूसरे शब्दों में, पूरे वाक्य को एक साथ कहा जाना चाहिए।

6. अन्वय अन्वय का अर्थ है कि पदों में व्याकरण की दृष्टि से लिंग, पुरुष, वचन, कारक आदि का सामंजस्य होना चाहिए। अन्वय के अभाव में भी वाक्य अशुद्ध हो जाता है। अत: अन्वय भी वाक्य का महत्त्वपूर्ण तत्त्व है; जैसे-नेताजी का लड़का का हाथ में बन्दूक था। इस वाक्य में भाव तो स्पष्ट है लेकिन व्याकरणिक सामंजस्य नहीं है। अत: यह वाक्य अशुद्ध है।यदि इसे नेताजी के लड़के के हाथ में बन्दूक थी, कहें तो वाक्य व्याकरणिक दृष्टि से शुद्ध होगा।

वाक्य के अंग वाक्य के अंग निम्न प्रकार हैं-
1. उद्देश्य वाक्य में जिसके बारे में कुछ बताया जाता है, उसे उद्देश्य कहते हैं;

जैसे-

  • राम खेलता है। (राम-उद्देश्य)
  • श्याम दौड़ता है। (श्याम-उद्देश्य)

उपरोक्त वाक्यों में राम और श्याम के विषय में बताया गया है। अत: राम और श्याम यहाँ उद्देश्य रूप में प्रयुक्त हुए हैं।

2. विधेय वाक्य में उद्देश्य के बारे में जो कुछ कहा जाता है, उसे विधेय कहते हैं;

जैसे-

  • बच्चे फल खाते हैं। (फल खाते हैं-विधेय)
  • राहुल क्रिकेट मैच देख रहा है। (क्रिकेट मैच देख रहा है-विधेय)

उपरोक्त वाक्यों में फल खाते हैं और क्रिकेट मैच देख रहा है वाक्यांश क्रमशः बच्चे तथा राहुल के बारे में कहे गए हैं। अतः स्थूलांकित वाक्यांश विधेय रूप में प्रयुक्त हुए हैं।

वाक्यों का वर्गीकरण
वाक्यों का वर्गीकरण दो आधारों पर किया गया है

1. रचना के आधार पर
रचना के आधार पर वाक्य तीन प्रकार के होते हैं-
(i) सरल वाक्य वे वाक्य जिनमें एक उद्देश्य तथा एक विधेय हो। सरल या साधारण वाक्य कहलाते हैं। जैसे-श्याम खाता है। इस वाक्य में एक ही कर्ता (उद्देश्य) तथा एक ही क्रिया (विधेय) है। अत: यह वाक्य सरल या साधारण वाक्य है।

(ii) मिश्र वाक्य वे वाक्य, जिनमें एक साधारण वाक्य हो तथा उसके अधीन या आश्रित दूसरा उपवाक्य हो, मिश्र वाक्य कहलाते हैं। जैसे-श्याम ने लिखा है, कि वह कल आ रहा है। वाक्य में श्याम ने लिखा है-प्रधान उपवाक्य, वह कल आ रहा है आश्रित उपवाक्य है तथा दोनों समुच्चयबोधक अव्यय ‘कि’ से जुड़े हैं, अत: यह मिश्र वाक्य है।

(iii) संयुक्त वाक्य वे वाक्य, जिनमें एक से अधिक प्रधान उपवाक्य हों (चाहे वह मिश्र वाक्य हों या साधारण वाक्य) और वे संयोजक अव्ययों द्वारा जुड़े हों, संयुक्त वाक्य कहलाते हैं। जैसे-वह लखनऊ गया और शाल ले आया। इस वाक्य में दोनों ही प्रधान उपवाक्य हैं तथा और संयोजक द्वारा जुड़े हैं। अत: यह संयुक्त वाक्य है।

रचना के आधार पर वाक्य के भेद एवं उनकी पहचान नीचे दी गई तालिकानुसार समझी जा सकती है।
Vakya Hindi Grammar for Class 10, 9

2. अर्थ के आधार पर अर्थ के आधार पर वाक्य आठ प्रकार के होते हैं-
(i) विधिवाचक वाक्य वे वाक्य जिनसे किसी बात या कार्य के होने का बोध होता है, विधिवाचक वाक्य कहलाते हैं;

जैसे-

  • श्याम आया।
  • तुम लोग जा रहे हो।

(ii) निषेधवाचक वाक्य वे वाक्य, जिनसे किसी बात या कार्य के न होने अथवा इनकार किए जाने का बोध होता है, निषेधवाचक वाक्य कहलाते हैं;

जैसे-

  • राम नहीं पढ़ता है।
  • मैं यह कार्य नहीं करूँगा आदि।

(iii) आज्ञावाचक वाक्य वे वाक्य, जिनसे किसी प्रकार की आज्ञा का बोध होता है, आज्ञावाचक वाक्य कहलाते हैं;

जैसे-

  • श्याम पानी लाओ।
  • यहीं बैठकर पढ़ो आदि।

(iv) विस्मयवाचक वाक्य वे वाक्य जिनसे किसी प्रकार का विस्मय, हर्ष, दुःख, आश्चर्य आदि का बोध होता है, विस्मयवाचक वाक्य कहलाते हैं;

जैसे-

  • अरे! वह उत्तीर्ण हो गया।
  • अहा! कितना सुन्दर दृश्य है आदि।

(v) सन्देहवाचक वाक्य वे वाक्य, जिनसे किसी प्रकार के सन्देह या भ्रम का बोध होता है, सन्देहवाचक वाक्य कहलाते हैं;

जैसे-

  • वह अब जा चुका होगा।
  • महेश पढ़ा-लिखा है या नहीं आदि।

(vi) इच्छावाचक वाक्य वे वाक्य, जिनसे किसी प्रकार की इच्छा या कामना का बोध होता है, इच्छावाचक वाक्य कहलाते हैं;

जैसे-

  • ईश्वर आपकी यात्रा सफल करे।
  • आप जीवन में उन्नति करें।
  • आपका भविष्य उज्ज्वल हो आदि।

(vii) संकेतवाचक वाक्य वे वाक्य, जिनसे किसी प्रकार के संकेत या इशारे का बोध होता है, संकेतवाचक वाक्य कहलाते हैं;

जैसे-

  • जो परिश्रम करेगा वह सफल होगा।
  • अगर वर्षा होगी तो फसल भी अच्छी होगी आदि।

(viii) प्रश्नवाचक वाक्य वे वाक्य, जिनसे किसी प्रश्न के पूछे जाने का बोध होता है, प्रश्नवाचक वाक्य कहलाते हैं;

जैसे-

  • आपका क्या नाम है?
  • तुम किस कक्षा में पढ़ते हो? आदि।

उपवाक्य
जिन क्रियायुक्त पदों से आंशिक भाव व्यक्त होता है, उन्हें उपवाक्य कहते हैं;

जैसे-

  • यदि वह कहता
  • यदि मैं पढ़ता
  • यद्यपि वह अस्वस्थ था आदि।

उपवाक्य के भेद
उपवाक्य के दो भेद होते हैं जो निम्न हैं

1. प्रधान उपवाक्य
जो उपवाक्य पूरे वाक्य से पृथक् भी लिखा जाए तथा जिसका अर्थ किसी दूसरे पर आश्रित न हो, उसे प्रधान उपवाक्य कहते हैं।

2. आश्रित उपवाक्य
आश्रित उपवाक्य प्रधान उपवाक्य के बिना पूरा अर्थ नहीं दे सकता। यह स्वतंत्र लिखा भी नहीं जा सकता; जैसे—यदि सोहन आ जाए तो मैं उसके साथ चलूँ। यहाँ यदि सोहन आ जाए-आश्रित उपवाक्य है तथा मैं उसके साथ चलूँ-प्रधान उपवाक्य है।

आश्रित उपवाक्यों को पहचानना अत्यन्त सरल है। जो उपवाक्य कि, जिससे कि, ताकि, ज्यों ही, जितना, ज्यों, क्योंकि, चूँकि, यद्यपि, यदि, जब तक, जब, जहाँ तक, जहाँ, जिधर, चाहे, मानो, कितना भी आदि शब्दों से आरम्भ होते हैं वे आश्रित उपवाक्य हैं। इसके विपरीत, जो उपवाक्य इन शब्दों से आरम्भ नहीं होते वे प्रधान उपवाक्य हैं। आश्रित उपवाक्य तीन प्रकार के होते हैं।

जिनकी पहचान निम्न प्रकार से की जा सकती है

  1. संज्ञा उपवाक्य संज्ञा उपवाक्य का प्रारम्भ कि से होता है।
  2. विशेषण उपवाक्य विशेषण उपवाक्य का प्रारम्भ जो अथवा इसके किसी रूप (जिसे, जिसको, जिसने, जिनको आदि) से होता है।
  3. क्रिया विशेषण उपवाक्य क्रिया-विशेषण उपवाक्य का प्रारम्भ ‘जब’, ‘जहाँ’, ‘जैसे’ आदि से होता है।

वाक्यों का रूपान्तरण
किसी वाक्य में अर्थ परिवर्तन किए बिना उसकी संरचना में परिवर्तन की प्रक्रिया वाक्यों का रूपान्तरण कहलाती है। एक प्रकार के वाक्य को दूसरे प्रकार के वाक्यों में बदलना वाक्य परिवर्तन या वाक्य रचनान्तरण कहलाता है। वाक्य परिवर्तन की प्रक्रिया में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि वाक्य का केवल प्रकार बदला जाए, उसका अर्थ या काल आदि नहीं।

वाक्य परिवर्तन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें

वाक्य परिवर्तन करते समय निम्नलिखित बातें ध्यान रखनी चाहिए

  • केवल वाक्य रचना बदलनी चाहिए, अर्थ नहीं।
  • सरल वाक्यों को मिश्र या संयुक्त वाक्य बनाते समय कुछ शब्द या सम्बन्धबोधक अव्यय अथवा योजक आदि से जोड़ना। जैसे- क्योंकि, कि, और, इसलिए, तब आदि।
  • संयुक्त/मिश्र वाक्यों को सरल वाक्यों में बदलते समय योजक शब्दों या सम्बन्धबोधक अव्ययों का लोप करना

1. सरल वाक्य से मिश्र वाक्य में परिवर्तन

  • लड़के ने अपना दोष मान लिया। – (सरल वाक्य)
    लड़के ने माना कि दोष उसका है। – (मिश्र वाक्य)
  • राम मुझसे घर आने को कहता है। – (सरल वाक्य)
    राम मुझसे कहता है कि मेरे घर आओ। – (मिश्र वाक्य)
  • मैं तुम्हारे साथ खेलना चाहता हूँ। – (सरल वाक्य)
    मैं चाहता हूँ कि तुम्हारे साथ खेलूँ। – (मिश्र वाक्य)
  • आप अपनी समस्या बताएँ। – (सरल वाक्य)
    आप बताएँ कि आपकी समस्या क्या है? – (मिश्र वाक्य)
  • मुझे पुरस्कार मिलने की आशा है। – (सरल वाक्य)
    आशा है कि मुझे पुरस्कार मिलेगा। – (मिश्र वाक्य)
  • महेश सेना में भर्ती होने योग्य नहीं है। – (सरल वाक्य)
    महेश इस योग्य नहीं है कि सेना में भर्ती हो सके। – (मिश्र वाक्य)
  • राम के आने पर मोहन जाएगा। – (सरल वाक्य)
    जब राम जाएगा तब मोहन आएगा। – (मिश्र वाक्य)
  • मेरे बैठने की जगह कहाँ है? – (सरल वाक्य)
    वह जगह कहाँ है जहाँ मैं बै? – (मिश्र वाक्य)
  • मैं तुम्हारे साथ व्यापार करना चाहता हूँ। – (सरल वाक्य)
    मैं चाहता हूँ कि तुम्हारे साथ व्यापार करूँ। – (मिश्र वाक्य)
  • श्याम ने आगरा जाने के लिए टिकट लिया। – (सरल वाक्य)
    श्याम ने टिकट लिया ताकि वह आगरा जा सके। – (मिश्र वाक्य)
  • मैंने एक घायल हिरन देखा। – (सरल वाक्य)
    मैंने एक हिरण देखा जो घायल था। – (मिश्र वाक्य)
  • मुझे उस कर्मचारी की कर्तव्यनिष्ठा पर सन्देह है। – (सरल वाक्य)
    मुझे सन्देह है कि वह कर्मचारी कर्तव्यनिष्ठ है। – (मिश्र वाक्य)
  • बुद्धिमान व्यक्ति किसी से झगड़ा नहीं करता है। – (सरल वाक्य)
    जो व्यक्ति बुद्धिमान है वह किसी से झगड़ा नहीं करता है। – (मिश्र वाक्य)
  • यह किसी बहुत बुरे आदमी का काम है। – (सरल वाक्य)
    वह कोई बुरा आदमी है जिसने यह काम किया है। – (मिश्र वाक्य)
  • न्यायाधीश ने कैदी को हाज़िर करने का आदेश दिया। – (सरल वाक्य)
    न्यायाधीश ने आदेश दिया कि कैदी हाज़िर किया जाए। – (मिश्र वाक्य)

2. सरल वाक्य से संयुक्त वाक्य में परिवर्तन

  • पैसा साध्य न होकर साधन है। – (सरल वाक्य)
    पैसा साध्य नहीं है, किन्तु साधन है। – (संयुक्त वाक्य)
  • अपने गुणों के कारण उसका सब जगह आदर-सत्कार होता था। – (सरल वाक्य)
    उसमें गुण थे इसलिए उसका सब जगह आदर-सत्कार होता था। – (संयुक्त वाक्य)
  • दोनों में से कोई काम पूरा नहीं हुआ। – (सरल वाक्य)
    न एक काम पूरा हुआ न दूसरा। – (संयुक्त वाक्य)
  • पंगु होने के कारण वह घोड़े पर नहीं चढ़ सकता। – (सरल वाक्य)
    वह पंगु है इसलिए घोड़े पर नहीं चढ़ सकता। – (संयुक्त वाक्य)
  • परिश्रम करके सफलता प्राप्त करो। – (सरल वाक्य)
    परिश्रम करो और सफलता प्राप्त करो। – (संयुक्त वाक्य)
  • रमेश दण्ड के भय से झठ बोलता रहा। – (सरल वाक्य)
    रमेश को दण्ड का भय था, इसलिए वह झूठ बोलता रहा। – (संयुक्त वाक्य)
  • वह खाना खाकर सो गया। – (सरल वाक्य)
    उसने खाना खाया और सो गया। – (संयुक्त वाक्य)
  • उसने गलत काम करके अपयश कमाया। – (सरल वाक्य)
    उसने गलत काम किया और अपयश कमाया। – (संयुक्त वाक्य)

3. संयुक्त वाक्य से सरल वाक्य में परिवर्तन

  • सूर्योदय हुआ और कुहासा जाता रहा। – (संयुक्त वाक्य)
    सूर्योदय होने पर कुहासा जाता रहा। – (सरल वाक्य)
  • जल्दी चलो, नहीं तो पकड़े जाओगे। – (संयुक्त वाक्य)
    जल्दी न चलने पर पकड़े जाओगे। – (सरल वाक्य)
  • वह धनी है पर लोग ऐसा नहीं समझते। – (संयुक्त वाक्य)
    लोग उसे धनी नहीं समझते। – (सरल वाक्य)
  • वह अमीर है फिर भी सुखी नहीं है। – (संयुक्त वाक्य)
    वह अमीर होने पर भी सुखी नहीं है। – (सरल वाक्य)
  • बाँस और बाँसुरी दोनों नहीं रहेंगे। – (संयुक्त वाक्य)
    न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी। – (सरल वाक्य)
  • राजकुमार ने भाई को मार डाला और स्वयं राजा बन गया। – (संयुक्त वाक्य)
    भाई को मारकर राजकुमार राजा बन गया। – (सरल वाक्य)

4. मिश्र वाक्य से सरल वाक्य में परिवर्तन

  • ज्यों ही मैं वहाँ पहुँचा त्यों ही घण्टा बजा। – (मिश्र वाक्य)
    मेरे वहाँ पहुँचते ही घण्टा बजा। – (सरल वाक्य)
  • यदि पानी न बरसा तो सूखा पड़ जाएगा। – (मिश्र वाक्य)
    पानी न बरसने पर सूखा पड़ जाएगा। – (सरल वाक्य)
  • उसने कहा कि मैं निर्दोष हूँ। – (मिश्र वाक्य)
    उसने अपने को निर्दोष बताया। – (सरल वाक्य)
  • यह निश्चित नहीं है कि वह कब आएगा? – (मिश्र वाक्य)
    उसके आने का समय निश्चित नहीं है। – (सरल वाक्य)
  • जब तुम लौटकर आओगे तब मैं जाऊँगा। – (मिश्र वाक्य)
    तुम्हारे लौटकर आने पर मैं जाऊँगा। – (सरल वाक्य)
  • जहाँ राम रहता है वहीं श्याम भी रहता है। – (मिश्र वाक्य)
    राम और श्याम साथ ही रहते हैं। – (सरल वाक्य)
  • आशा है कि वह साफ बच जाएगा। – (मिश्र वाक्य)
    उसके साफ बच जाने की आशा है। – (सरल वाक्य)

5. मिश्र वाक्य से संयुक्त वाक्य में परिवर्तन

  • वह उस स्कूल में पढ़ा जो उसके गाँव के निकट था। – (मिश्र वाक्य)
    वह स्कूल में पढ़ा और वह स्कूल उसके गाँव के निकट था। – (संयुक्त वाक्य)
  • मुझे वह पुस्तक मिल गई है जो खो गई थी। – (मिश्र वाक्य)
    वह पुस्तक खो गई थी परन्तु मुझे मिल गई है। – (संयुक्त वाक्य)
  • जैसे ही उसे तार मिला वह घर से चल पड़ा। – (मिश्र वाक्य)
    उसे तार मिला और वह तुरन्त घर से चल पड़ा। – (संयुक्त वाक्य)
  • काम समाप्त हो जाए तो जा सकते हो। – (मिश्र वाक्य)
    काम समाप्त करो और जाओ। – (संयुक्त वाक्य)
  • मुझे विश्वास है कि दोष तुम्हारा है। – (मिश्र वाक्य)
    दोष तुम्हारा है और इसका मुझे विश्वास है। – (संयुक्त वाक्य)
  • आश्चर्य है कि वह हार गया। – (मिश्र वाक्य)
    वह हार गया परन्तु यह आश्चर्य है। – (संयुक्त वाक्य)
  • जैसा बोओगे वैसा काटोगे। – (मिश्र वाक्य)
    जो जैसा बोएगा वैसा ही काटेगा। – (संयुक्त वाक्य)

6. संयुक्त वाक्य से मिश्र वाक्य में परिवर्तन

  • काम पूरा कर डालो नहीं तो जुर्माना होगा। – (संयुक्त वाक्य)
    यदि काम पूरा नहीं करोगे तो जुर्माना होगा। – (मिश्र वाक्य)
  • इस समय सर्दी है इसलिए कोट पहन लो। – (संयुक्त वाक्य)
    क्योंकि इस समय सर्दी है, इसलिए कोट पहन लो। – (मिश्र वाक्य)
  • वह मरणासन्न था, इसलिए मैंने उसे क्षमा कर दिया। – (संयुक्त वाक्य)
    मैंने उसे क्षमा कर दिया, क्योंकि वह मरणासन्न था। – (मिश्र वाक्य)
  • वक्त निकल जाता है पर बात याद रहती है। – (संयुक्त वाक्य)
    भले ही वक्त निकल जाता है, फिर भी बात याद रहती है। – (मिश्र वाक्य)
  • जल्दी तैयार हो जाओ, नहीं तो बस चली जाएगी। – (संयुक्त वाक्य)
    यदि जल्दी तैयार नहीं होओगे तो बस चली जाएगी। – (मिश्र वाक्य)
  • इसकी तलाशी लो और घड़ी मिल जाएगी। – (संयुक्त वाक्य)
    यदि इसकी तलाशी लोगे तो घड़ी मिल जाएगी। – (मिश्र वाक्य)
  • सुरेश या तो स्वयं आएगा या तार भेजेगा। – (संयुक्त वाक्य)
    यदि सुरेश स्वयं न आया तो तार भेजेगा। – (मिश्र वाक्य)

7. विधानवाचक वाक्य से निषेधवाचक वाक्य में परिवर्तन

  • यह प्रस्ताव सभी को मान्य है। – (विधानवाचक वाक्य)
    इस प्रस्ताव के विरोधाभास में कोई नहीं है। – (निषेधवाचक वाक्य)
  • तुम असफल हो जाओगे। – (विधानवाचक वाक्य)
    तुम सफल नहीं हो पाओगे। – (निषेधवाचक वाक्य)
  • शेरशाह सूरी एक बहादुर बादशाह था। – (विधानवाचक वाक्य)
    शेरशाह सूरी से बहादुर कोई बादशाह नहीं था। – (निषेधवाचक वाक्य)
  • रमेश सुरेश से बड़ा है। – (विधानवाचक वाक्य)
    रमेश सुरेश से छोटा नहीं है। – (निषेधवाचक वाक्य)
  • शेर गुफा के अन्दर रहता है। – (विधानवाचक वाक्य)
    शेर गुफा के बाहर नहीं रहता है। – (निषेधवाचक वाक्य)
  • मुझे सन्देह हुआ कि यह पत्र आपने लिखा। – (विधानवाचक वाक्य)
    मुझे विश्वास नहीं हुआ कि यह पत्र आपने लिखा। – (निषेधवाचक वाक्य)
  • मुगल शासकों में अकबर श्रेष्ठ था। – (विधानवाचक वाक्य)
    मुगल शासकों में अकबर से बढ़कर कोई नहीं था। – (निषेधवाचक वाक्य)

8. निश्चयवाचक वाक्य से प्रश्नवाचक वाक्य में परिवर्तन

  • आपका भाई यहाँ नहीं है। – (निश्चयवाचक)
    आपका भाई कहाँ है? (प्रश्नवाचक)
  • किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। – (निश्चयवाचक)
    किस पर भरोसा किया जाए? – (प्रश्नवाचक)
  • गाँधीजी का नाम सबने सुन रखा है। – (निश्चयवाचक)
    गाँधीजी का नाम किसने नहीं सुना? – (प्रश्नवाचक)
  • तुम्हारी पुस्तक मेरे पास नहीं है। – (निश्चयवाचक)
    तुम्हारी पुस्तक मेरे पास कहाँ है? – (प्रश्नवाचक)
  • तुम किसी न किसी तरह उत्तीर्ण हो गए। – (निश्चयवाचक)
    तुम कैसे उत्तीर्ण हो गए? – (प्रश्नवाचक)
  • अब तुम बिल्कुल स्वस्थ हो गए हो। – (निश्चयवाचक)
    क्या तुम अब बिल्कुल स्वस्थ हो गए हो? – (प्रश्नवाचक)
  • यह एक अनुकरणीय उदाहरण है। – (निश्चयवाचक)
    क्या यह अनुकरणीय उदाहरण नहीं है? – (प्रश्नवाचक)

9. विस्मयादिबोधक वाक्य से विधानवाचक वाक्य में परिवर्तन

  • वाह! कितना सुन्दर नगर है! – (विस्मयादिबोधक)
    बहुत ही सुन्दर नगर है! – (विधानवाचक वाक्य)
  • काश! मैं जवान होता। – (विस्मयादिबोधक)
    मैं चाहता हूँ कि मैं जवान होता। – (विधानवाचक वाक्य)
  • अरे! तुम फेल हो गए। – (विस्मयादिबोधक)
    मुझे तुम्हारे फेल होने से आश्चर्य हो रहा है। – (विधानवाचक वाक्य)
  • ओ हो! तुम खूब आए। (विस्मयादिबोधक)
    मुझे तुम्हारे आगमन से अपार खुशी है। – (विधानवाचक वाक्य)
  • कितना क्रूर! – (विस्मयादिबोधक)
    वह अत्यन्त क्रूर है। – (विधानवाचक वाक्य)
  • क्या! मैं भूल कर रहा हूँ! – (विस्मयादिबोधक)
    मैं तो भूल नहीं कर रहा। – (विधानवाचक वाक्य)
  • हाँ हाँ! सब ठीक है। – (विस्मयादिबोधक)
    मैं अपनी बात का अनुमोदन करता हूँ। – (विधानवाचक वाक्य)

1. वाक्यों का वर्गीकरण कितने आधारों पर किया गया है?
(a) दो (b) तीन (c) चार (d) पाँच
उत्तर :
(a) दो

2. जिन वाक्यों में एक उद्देश्य तथा एक ही विधेय होता है, उसे कहते हैं
(a) एकल वाक्य (b) सरल वाक्य (c) मिश्र वाक्य (d) संयुक्त वाक्य
उत्तर :
(b) सरल वाक्य

3. मिश्र वाक्य कहते हैं
(a) जिनमें एक कर्ता और एक ही क्रिया होती है (b) जिनमें एक से अधिक प्रधान उपवाक्य हों और वे संयोजक अव्यय द्वारा जुड़े हों (c) जिनमें एक साधारण वाक्य तथा उसके अधीन दूसरा उपवाक्य हो (d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर :
(c) जिनमें एक साधारण वाक्य तथा उसके अधीन दूसरा उपवाक्य हो

4. जिन वाक्यों में एक-से-अधिक प्रधान उपवाक्य हों और वे संयोजक अव्यय द्वारा जुड़े हों, उसे कहते हैं-
(a) विधिवाचक (b) सरल वाक्य (c) मिश्र वाक्य (d) संयुक्त वाक्य
उत्तर :
(d) संयुक्त वाक्य

5. वाक्य के गुणों में सम्मिलित नहीं है
(a) लयबद्धता (b) सार्थकता (c) क्रमबद्धता (d) आकांक्षा
उत्तर :
(a) लयबद्धता

6. ‘नाव में नदी है’-इस वाक्य में किस वाक्य गुण का अभाव है?
(a) आकांक्षा (b) क्रम (c) योग्यता (d) आसक्ति
उत्तर :
(b) क्रम

7. वाक्य गुण ‘आकांक्षा’ का अर्थ है
(a) भावबोध की क्षमता (b) सार्थकता (c) श्रोता की जिज्ञासा (d) व्याकरणानुकूल
उत्तर :
(c) श्रोता की जिज्ञासा

8. वाक्य गुण ‘आसक्ति’ का अर्थ है
(a) व्याकरणानुकूल (b) क्रमबद्धता (c) योग्यता (d) समीपता
उत्तर :
(d) समीपता

9. अर्थ के आधार पर वाक्य कितने प्रकार के होते हैं?
(a) आठ (b) दस (c) तीन (d) चार
उत्तर :
(a) आठ

10. जिन वाक्यों से किसी कार्य या बात करने का बोध होता है, उन्हें कहते हैं
(a) आज्ञावाचक (b) विधानवाचक (c) इच्छावाचक (d) संकेतवाचक
उत्तर :
(b) विधानवाचक

Anek Shabdon Ke Ek Shabd अनेक शब्दों के लिए एक शब्द ( one word substitution )

Anek Shabdon Ke Ek Shabd

ऐसा कहा गया है- “कम–से–कम’ शब्दों में अधिकाधिक भाव या विचार अभिव्यक्त करना अच्छे लेखक अथवा वक्ता का गुण है। इसके लिए ऐसे शब्दों का ज्ञान आवश्यक है जो विभिन्न वाक्यांशों या शब्द–समूहों का अर्थ देते हों। ऐसे शब्दों के प्रयोग से कृति में कसावट आती है और अभिव्यक्ति प्रभावशाली होती है।

एक उदाहरण द्वारा इस बात को और स्पष्टतापूर्वक समझा जा सकता है’यह बात सहन न करने योग्य है’ की जगह पर ‘यह बात असह्य है’ ज्यादा गठा हुआ और प्रभावशाली लगता है। इस प्रकार के शब्दों की रचना उपसर्ग–प्रत्यय एवं समास की सहायता से की जाती है। हम पहले ही चर्चा कर चुके हैं कि उपसर्ग–प्रत्यय एवं समास की सहायता से नये शब्द बनाए जाते हैं। नीचे कुछ ऐसे ही शब्द दिए जा रहे हैं जो किसी लंबी अभिव्यक्ति के लिए प्रयुक्त होते हैं

Anek Shabdon Ke Ek Shabd (अनेक शब्दों के एक शब्द )

Learn Hindi Grammar online with example, all the topic are described in easy way for education. in This article we cover Anek Shabdon Ke Liye Ek Shabd for Class 10, 9, 8, 7, 6 Students.

अनेक शब्दों के लिए एक शब्द (One Word Substitution) : हिंदी व्याकरण

  • अनेक शब्द – एक शब्द
  • जो क्षमा न किया जा सके – अक्षम्य
  • जहाँ पहुँचा न जा सके – अगम्य
  • जिसे सबसे पहले गिनना उचित हो – अग्रगण्य
  • जिसका जन्म पहले हुआ हो – अग्रज
  • जिसका जन्म बाद/पीछे हुआ हो – अनुज
  • जिसकी उपमा न हो – अनुपम
  • जिसका मूल्य न हो। – अमूल्य
  • जो दूर की न देखे/सोचे – अदूरदर्शी
  • जिसका पार न हो – अपार
  • जो दिखाई न दे – अदृश्य
  • जिसके समान अन्य न हो – अनन्य
  • जिसके समान दूसरा न हो – अद्वितीय
  • ऐसे स्थान पर निवास जहाँ कोई पता न पा सके – अज्ञातवास
  • जो न जानता हो – अज्ञ
  • जो बूढ़ा (पुराना) न हो – अजर
  • जो जातियों के बीच में हो – अन्तर्जातीय
  • आशा से कहीं बढ़कर – आशातीत
  • अधः (नीचे) लिखा हुआ – अधोलिखित
  • कम अक्लवाला – अल्पबुद्धि
  • जो क्षय न हो सके – अक्षय
  • श्रद्धा से जल पीना – आचमन
  • जो उचित समय पर न हो – असामयिक
  • जो सोचा भी न गया हो – अतर्कित
  • जिसका उल्लंघन करना उचित न हो – अनुल्लंघनीय
  • जो लौकिक या सांसारिक प्रतीत न हो। – अलौकिक
  • जो सँवारा या साफ न किया गया हो – अपरिमार्जित
  • आचार्य की पत्नी – आचार्यानी
  • जो अर्थशास्त्र का विद्वान् हो – अर्थशास्त्री
  • अनुवाद करनेवाला – अनुवादक
  • अनुवाद किया हुआ – अनूदित
  • अर्थ या धन से संबंधित – आर्थिक
  • जिसकी तुलना न हो – अतुलनीय
  • जिसका आदि न हो – अनादि
  • जिसका अन्त न हो। – अनन्त
  • जो परीक्षा में पास न हो – अनुत्तीर्ण
  • जो परीक्षा में पास हो – उत्तीर्ण
  • जिसपर मुकदमा हो। – अभियुक्त
  • जिसका अपराध सिद्ध हो – अपराधी
  • जिस पर विश्वास न हो – अविश्वसनीय
  • जो साध्य न हो – असाध्य

 

  • स्वयं अपने को मार डालना – आत्महत्या
  • अपनी ही हत्या करनेवाला – आत्मघाती
  • जो दूसरों का बुरा करे – अपकारी
  • जो पढ़ा–लिखा न हो – अनपढ़
  • जो आयुर्वेद से संबंध रखे – आयुर्वेदिक
  • अंडे से पैदा लेनेवाला – अंडज
  • दूसरे के मन की बात जाननेवाला – अन्तर्यामी
  • दूसरे के अन्दर की गहराई ताड़नेवाला – अन्तर्दर्शी
  • अनेक राष्ट्रों में आपस में होनेवाली बात – अन्तर्राष्ट्रीय
  • जिसका वर्णन न हो सके – अवर्णनीय
  • जिसे टाला न जा सके – अनिवार्य
  • जिसे काटा न जा सके – अकाट्य
  • नकल करने योग्य – अनुकरणीय
  • बिना विचार किए विश्वास करना – अंधविश्वास
  • साधारण नियम के विरुद्ध बात – अपवाद
  • जो मनुष्य के लिए उचित न हो – अमानुषिक
  • जो होने से पूर्व किसी बात का अनुमान करे – अनागतविधाता
  • जिसकी संख्या सीमित न हो – असंख्य
  • इन्द्र की पुरी – अमरावती
  • कुबेर की नगरी – अलकापुरी
  • दोपहर के बाद का समय – अपराह्न
  • पर्वत के ऊपर की समभूमि – अधित्यका
  • जो जाँच या परीक्षा बहुत कठिन हो – अग्नि–परीक्षा
  • जिसे ईश्वर या वेद में विश्वास न हो – नास्तिक
  • जिसे ईश्वर या वेद में विश्वास हो – आस्तिक
  • जिसका नाथ (सहारा) न हो – अनाथ/यतीम
  • जो थोड़ा जानता हो – अल्पज्ञ
  • जो ऋण ले – अधमर्ण
  • जिसे भय न हो – निर्भय/अभय
  • जो कभी मरे नहीं – अमर
  • जिसका शत्रु पैदा नहीं लिया – अजातशत्रु
  • जिस पुस्तक में आठ अध्याय हो – अष्टाध्यायी
  • जो नई चीज निकाले या खोज करे – आविष्कार
  • जो साधा न जा सके – असाध्य
  • किसी छोटे से प्रसन्न हो उसका उपकार करना – अनुग्रह
  • किसी के दुःख से दुखी होकर उसपर दया करना – अनुकम्पा
  • वह हथियार जो फेंककर चलाया जाय – अस्त्र
  • मोहजनित प्रेम – आसक्ति
  • किसी श्रेष्ठ का मान या स्वागत – अभिनन्दन
  • किसी विशेष वस्तु की हार्दिक इच्छा – अभिलापा
  • जिसके आने की तिथि ज्ञात न हो – अतिथि
  • जिसके पार न देखा जा सके – अपारदर्शी
  • जो स्त्री सूर्य भी न देख सके – असूर्यम्पश्या
  • जो नहीं हो सकता – असंभव
  • बढ़ा–चढ़ाकर कहना – अतिशयोक्ति
  • जो अल्प बोलनेवाला है – अल्पभाषी
  • जो स्त्री अभिनय करे – अभिनेत्री
  • जो पुरुष अभिनय करे – अभिनेता
  • बिना वेतन के – अवैतनिक

 

  • आलोचना करनेवाला – आलोचक
  • सिर से लेकर पैर तक – आपादमस्तक
  • बालक से लेकर वृद्ध तक – आबालवृद्ध
  • आलोचना के योग्य – आलोच्य
  • जिसे जीता न जा सके – अजेय
  • न खाने योग्य – अखाद्य
  • आदि से अन्त तक – आद्योपान्त
  • बिना प्रयास के – अनायास
  • जो भेदा या तोड़ा न जा सके – अभेद्य
  • जिसकी आशा न की गई हो – अप्रत्याशित
  • जिसे मापा न जा सके – अपरिमेय
  • जो प्रमाण से सिद्ध न हो – अप्रमेय
  • आत्मा या अपने आप पर विश्वास – आत्मविश्वास
  • दक्षिण दिशा – अवाची
  • उत्तर दिशा – उदीची
  • पूरब दिशा – प्राची
  • पश्चिम दिशा – प्रतीची
  • जो व्याकरण द्वारा सिद्ध न हो – अपभ्रंश
  • झूठा मुकदमा – अभ्याख्यान
  • दो या तीन बार कहना – आमेडित
  • माँ–बहन संबंधी गाली – आक्षारणा
  • बार–बार बोलना – अनुलाप
  • न कहने योग्य वचन – अवाच्य
  • नाटक में बड़ी बहन – अत्तिका
  • दूसरे के गुणों में दोष निकालना – असूया
  • मानसिक भाव छिपाना – अवहित्था
  • जबरन नरक में धकेलना या बेगार – आजू
  • तट का जो भाग जल के भीतर हो – अन्तरीप
  • वह गणित जिसमें संख्याओं का प्रयोग हो – अंकगणित
  • दागकर छोड़ा गया साँड़ – अंकिल
  • आलस्य में अँभाई लेते हुए देह टूटना – अंगड़ाई
  • अंग पोंछने का वस्त्र – अंगोछा
  • पीसे हुए चावल की मिठाई – अँदरसा
  • जिसके पास कुछ भी नहीं हो – अकिंचन
  • जो पासे के खेल में धूर्त हो – अक्षधूर्त
  • निंदा न किया हुआ – अगर्हित

 

  • सेना के आगे लड़नेवाला योद्धा – अग्रयोधा
  • जिसकी चिकित्सा न हो सके – अचिकित्स्य
  • बिना चिन्ता किया हुआ – अचिन्तित
  • प्रसूता को दिया जानेवाला भोजन – अछवानी
  • जिसका जन्म न हो – अज/अजन्मा
  • घर के सबसे ऊपर के खंड की कोठरी – अटारी
  • न टूटने वाला – अटूट
  • ठहाका लगाकर हँसना – अट्टहास
  • अति सूक्ष्म परिमाण – अणिमा
  • व्यर्थ प्रलाप करना – अतिकथा
  • मर्यादा का उल्लंघन करके किया हुआ – अतिकृत
  • जिसका ज्ञान इन्द्रियों के द्वारा न हो – अतिन्द्रिय
  • जो ऊँचा न हो – अतुंग
  • शीघ्रता का अभाव – अत्वरा
  • आज के दिन से पूर्व का काल – अनद्यतनभूत
  • होठों पर चढ़ी पान की लाली – अधरज
  • वह व्यक्ति जिसके एक के ऊपर दूसरा दाँत हो – अधिकदन्ती
  • रथ पर चढ़ा हुआ योद्धा – अधिरथ
  • अध्ययन किया हुआ – अधीत
  • उतरती युवावस्था का – अधेर
  • हित न चाहनेवाला – अनहितू
  • अनुभव प्राप्त – अनुभवी
  • प्रेम उत्पन्न करनेवाला – अनुरंजक
  • जल से परिपूर्ण – अनूप
  • जिसके जल का प्रवाह गुप्त हो – अन्तस्सलिल
  • दूध पिलानेवाली धाय – अन्ना
  • देह का दाहिना भाग – अपसव्य
  • जिसकी आकृति का कोई और न मिले – अप्रतिरूप
  • स्वर्ग की वेश्या – अप्सरा
  • शाप दिया हुआ – अभिशप्त
  • इन्द्रपुरी की वेश्या – अमरांगना
  • पानी भरनेवाला – अम्बुवाह
  • लोहे का काम करनेवाला – लोहार
  • असम्बद्ध विषय का – अविवक्षित
  • आठ पदवाला – अष्टपदी
  • धूप से बचने का छाता – आतपत्र
  • बंधक रखा हुआ – आधीकृत
  • विपत्ति के समय विधान करने का धर्म – आपद्धर्म
  • तुलना द्वारा प्राप्त – आपेक्षिक
  • दर्पण जड़ी अंगूठी, जिसे स्त्रियाँ अँगूठे में पहनती हैं – आरसी
  • भारतवर्ष का उत्तरी भाग – आर्यावर्त
  • घर के सामने का मंच – आलिन्द
  • मंत्र–द्वारा देवता को बुलाना – आवाहन
  • उत्कंठा सहित मन का वेग – आवेग
  • वृक्षों को जल से थोड़ा सींचना – आसेक
  • अनुमान किया हुआ – अनुमानित

 

  • जिसका दूसरा उपाय न हो – अनन्योपाय
  • जिसका अनुभव किया गया हो – अनुभूत
  • जो जन्म लेते ही मर जाय – आदण्डपात
  • जो शोक करने योग्य न हो – अशोच्य
  • महल के भीतर का भाग – अन्तःपुर
  • अनिश्चित जीविका – आकाशवृत्ति
  • जिस पेड़ के पत्ते झड़ गए हों – अपर्ण
  • उच्च वर्ण के पुरुष के साथ निम्न वर्ण की स्त्री का विवाह – अनुलोम विवाह
  • जिसका पति आया हुआ है – आगत्पतिका
  • जिसका पति आनेवाला है – आगमिष्यत्पतिका
  • बच्चे को पहले–पहल अन्न खिलाना – अन्नप्राशन
  • आम का बगीचा – अमराई
  • राजा का बगीचा – आक्रीड
  • अनुसंधान की इच्छा – अनुसंधित्सा
  • किसी के शरीर की रक्षा करनेवाला – अंगरक्षक
  • किसी को भय से बचाने का वचन देना – अभयदान
  • चोट खाया हुआ – आहत
  • जिसे पान करने से अमर हो जाय – अमृत
  • जिसका अनुभव किया जा सके – अनुभवजन्य
  • जो अपमानित हो चुका हो – अनादृत
  • अभिनय करने योग्य – अभिनेय
  • उपासना करने योग्य – उपास्य
  • ऐसी भूमि जो उपजाऊ नहीं हो – ऊसर
  • जो इन्द्रियों के बाहर हो – इन्द्रियातीत
  • जो उड़ा जा रहा हो – उड्डीयमान
  • नई योजना का सर्वप्रथम काम में लाने का उत्सव – उद्घाटन
  • भूमि को भेदकर निकलनेवाला – उद्भिद्
  • तिनकों से बना घर – उटज
  • जो छाती के बल चले – उरग
  • ऊपर जानेवाला – ऊर्ध्वगामी
  • ऊपर गया हुआ – ऊर्ध्वगत
  • लाली मिल हुआ काले रंग का – ऊदा
  • छाती का घाव – उरक्षत
  • अन्य देश का पुरुष – उपही
  • आकाश से तारे का टूटना – उपप्लव
  • गरमी से उत्पन्न – उष्मज
  • स्वप्न में बकझक करना – उचावा
  • उभरा या लाँधा हुआ – उत्क्रान्त
  • दो दिशाओं के बीच की दिशा – उपदिशा
  • अँगुलियों में होनेवाला फोड़ा – इकौता
  • त्वचा के ऊपर निकला हुआ मस्सा – इल्ला
  • गर्भिणी स्त्री की लालसा – उकौना

 

  • जो बहुत कुछ जानता हो – बहुज्ञ
  • नीचे लिखा हुआ – निम्नलिखित
  • ऊपर कहा गया। – उपर्युक्त
  • बुरी बुद्धिवाला – कुबुद्धि
  • चारों ओर चक्कर काटना – परिक्रमा
  • जिसका कोई आसरा न हो – निराश्रित
  • जिसमें विष न हो – निर्विष
  • जिसका धव (पति) मर गया हो – विधवा
  • जिसका पति जीवित हो – सधवा
  • जो बरतन बेचने का काम करे – कसेरा
  • जिसे कर्तव्य न सूझ रहा हो – किं – कर्त्तव्यविमूढ़
  • जो तीनों कालों की बात जानता हो – त्रिकालज्ञ
  • पन्द्रह दिनों का समूह – पक्ष
  • पढ़नेवाला – पाठक
  • बाँचनेवाला – वाचक
  • सुननेवाला – श्रोता
  • बोलनेवाला – वक्ता
  • लिखनेवाला – लेखक
  • लेख की नकल – प्रतिलिपि
  • जो सब देशों का हो – सार्वदेशिक
  • जो आँखों के सामने हो – प्रत्यक्ष
  • जानने की इच्छा – जिज्ञासा
  • जानने को इच्छुक/इच्छावाला – जिज्ञासु
  • जिसे प्यास लगी हो – पिपासु/प्यासा
  • जो मीठा बोले – मधुरभाषी
  • जो देर तक स्मरण के योग्य हो – चिरस्मरणीय
  • समाज से संबंध रखनेवाला – सामाजिक
  • केवल फल खाकर रहनेवाला – फलाहारी
  • जो शाक–सब्जी खाए – शाकाहारी
  • शासन हेतु नियमों का समूह – संविधान
  • जो चाँदी–जैसा सफेद हो – परुहला
  • सोने–जैसे रंगवाला – सुनहला
  • दस वर्षों का समूह – दशक
  • सौ वर्षों का समूह – शताब्दी
  • जिसके होश ठिकाने न हो – मदहोश
  • लेने की इच्छा – लिप्सा
  • जी बहुत बातें बनाए – बातूनी
  • जो नाप–तौलकर खर्च करे – मितव्ययी
  • व्याकरण जाननेवाला – वैयाकरण
  • जिसे तनिक भी लज्जा न हो – निर्लज्ज
  • शिव का उपासक – शैव
  • विष्णु का उपासक – वैष्णव
  • शक्ति का उपासक – शाक्त
  • जो तत्त्व सदा रहे – शाश्वत
  • जो जिन के मत को माने – जैनी
  • जो बुद्ध के मत को माने – बौद्ध
  • विनोबा के मत को माननेवाला – सर्वोदयी
  • जो बात साफ–साफ करे – स्पष्टवादी
  • इतिहास से संबंधित – ऐतिहासिक
  • जो कठिनाई से साधा जाय – दुःसाध्य
  • जो सुगमता से साधा जाय – सुसाध्य
  • जो आसानी से मिल जाय – सुलभ
  • जो कठिनाई से मिले – दुर्लभ
  • जिसका जवाब न हो – लाजवाब
  • जिसका इलाज न हो – लाइलाज
  • जो हर काम देर से करे – दीर्घसूत्री
  • जो किसी काम की जिम्मेदारी ले – जवाबदेह
  • हाथ की लिखी पुस्तक या मसौदा – पांडुलिपि
  • पूर्वी देशों से संबंध रखनेवाला – पूर्वीय
  • जो तरह–तरह के रूप बना सके – बहुरूपिया
  • कम बोलनेवाला – मितभाषी

 

  • जो किसी की ओर से बोले – प्रवक्ता
  • दो बातों या कामों में से एक – वैकल्पिक
  • गिरने से कुछ ही बची इमारत – ध्वंसावशेष
  • वीर पुत्रों को जन्म देनेवाली – वीरप्रसूता
  • वीरों द्वारा भोगी जानेवाली – वीरभोग्या
  • जिसके गर्भ में रत्न हो – रत्नगर्भा
  • जो सबको समान रूप से देखे – समदर्शी
  • जो सब जगह व्याप्त हो। – सर्वव्यापक
  • जो रोग एक से दूसरे को हो – संक्रामक
  • जो दो बार जन्म ले – द्विज
  • पिता से प्राप्त सम्पत्ति आदि – पैतृक
  • जो अपनी इच्छा से सेवा करे – स्वयंसेवक
  • गोद ली संतान – दत्तक
  • भूगोल से संबंध रखनेवाला – भौगोलिक
  • पृथ्वी से संबंध रखनेवाला – पार्थिव
  • साधारण लोगों में कही जानेवाली बात – किंवदंती
  • किसी कलाकार की कलापूर्ण रचना – कलाकृति
  • लोगों में परंपरा से चली आई कथा – दन्तकथा
  • जिसका नाश अवश्यंभावी हो – नश्वर
  • जो पुराणों से संबंध रखता हो – पौराणिक
  • जो वेदों से संबंध रखता हो – वैदिक
  • जिसका जन्म पसीने से हो – स्वेदज
  • जेर से उत्पन्न होनेवाला – जरायुज
  • विमान चलानेवाला – वैमानिक

 

  • सबके साथ मिलकर गाया जानेवाला गान – सहगान
  • जो सब कालों में एक समान हो – सार्वकालिक
  • जो सम्पूर्ण लोक में हो – सार्वलैकिक
  • जिसका उदाहरण दिया गया हो – उदाहृत
  • जिसका उद्धरण दिया गया हो – उद्धृत
  • जिस स्त्री के सन्तान न होती हो – बाँझ
  • शिव के गण – प्रमथ
  • शिव के धनुष – पिनाक
  • जहाँ शिव का निवास है – कैलाश
  • इन्द्र का सारथि – मातलि
  • इन्द्र का घोड़ा – उच्चैःश्रवा
  • इन्द्र का पुत्र – जयन्त
  • इन्द्र का बाग – नन्दन
  • इन्द्र का हाथी – ऐरावत
  • ईश्वर या स्वर्ग का खजाँची – कुबेर
  • मध्य रात्रि का समय – निशीथ
  • लताओं से आच्छादित रमणीय स्थान – निकुंज
  • सीपी, बाँसी, सूकरी, करी, धरी और नरसल से बनी माला – बैजयन्तीमाला
  • मरने के करीब – मुमूर्षु/मरणासन्न
  • पर्वत के नीचे की समभूमि (तराई) – उपत्यका
  • जहाँ नाटक का अभिनय किया जाय – रंगमंच
  • जिस सेना में हाथी, घोड़े, रथी और पैदल हों – चतुरंगिणी
  • जो काम कठिन हो – दुष्कर
  • दिन में होनेवाला – दैनिक

 

  • किए गए उपकार को माननेवाला – कृतज्ञ
  • किए गए उपकार को न माननेवाला – कृतघ्न
  • जिसका रूप अच्छा हो – सुरूप
  • अच्छा बोलनेवाला – वाग्मी/सुवक्ता
  • बुरे मार्ग पर चलनेवाला – कुमार्गगामी
  • जिसका आचरण अच्छा हो – सदाचारी
  • जिसका आचरण अच्छा नहीं हो – दुराचारी
  • जिसमें दया हो – दयालु
  • जिसमें दया नहीं हो – निर्दय
  • जो प्रशंसा के योग्य हो – प्रशंसनीय
  • जिसमें कपट न हो – निष्कपट
  • जिसमें कोई विकार न आता हो – निर्विकार
  • समान समय में होनेवाला – समसामयिक
  • जो आकाश में विचरण करे – खेचर
  • वह पहाड़ जिससे आग निकले – ज्वालामुखी
  • जो मोह नहीं करता है – निर्मोही
  • जो प्रतिदिन नहाता हो – नित्यस्नायी
  • मोक्ष या मुक्ति की इच्छा रखनेवाला – मुमुक्षु
  • जो राजा/राज्य से द्रोह करे – राजद्रोही
  • किसी का पक्ष लेनेवाला – पक्षपाती
  • इतिहास को जाननेवाला – इतिहासज्ञ
  • पाप करने के अनन्तर स्वयं दंड पाना – प्रायश्चित
  • जिस शब्द के दो अर्थ हों – श्लिष्ट
  • अपना नाम स्वयं लिखना – हस्ताक्षर
  • जो सबको प्रिय हो – सर्वप्रिय
  • जो हमेशा बदलता रहे – परिवर्तनशील
  • अपना मतलब साधनेवाला – स्वार्थी
  • कुसंगति के कारण चरित्र पर दोष – कलंक
  • सतो गुण का – सात्त्विक
  • रजो गुण का – राजसिक
  • तमो गुण का – तामसिक

 

  • नीति को जाननेवाला – नीतिज्ञ
  • महान् व्यक्तियों की मृत्यु – निधन
  • व्यक्तिगत आजादी – स्वतंत्रता
  • सामूहिक आजादी – स्वाधीनता
  • जिसके आर–पार देखा जा सके – पारदर्शी
  • जिसकी गर्दन सुन्दर हो – सुग्रीव
  • अनुचित बातों के लिए आग्रह – दुराग्रह
  • जो नया आया हुआ हो – नवागन्तुक
  • जो नया जन्म हुआ हो – नवजात
  • जो तुरंत जन्मा है – सद्यःजात
  • जो अच्छे कुल में जन्म ले – कुलीन
  • जो बहुत बोले – वाचाल
  • इन्द्रियों को जीतनेवाला – जितेन्द्रिय
  • नींद पर विजय प्राप्त करनेवाला – गुडाकेश
  • जो स्त्री के स्वभाव का हो – स्त्रैण
  • जो क्षमा पाने के लायक हो – क्षम्य
  • जो अत्यन्त कष्ट से निवारित हो – दुर्निवार
  • जो वचन से परे हो – वचनातीत
  • जो सरों (तालाब) में जन्म ले – सरसिज,
  • जो मुकदमा लड़ता हो – मुकदमेबाज
  • जो देने योग्य हो – प्रहरी/पहरेदार
  • जो पहरा देता है – सत्याग्रह
  • सत्य के लिए आग्रह – वादी/मुद्दई
  • जो मुकदमा दायर करे – संगीतज्ञ
  • जो संगीत जानता हो – कलाविद्
  • जो कला जानता हो लौटकर आया हुआ – प्रत्यागत
  • जो जन्म से अंधा हो – जन्मान्ध
  • जो पोत युद्ध के लिए हो – युद्धपोत
  • जो शत्रु की हत्या करे – शत्रुघ्न
  • जो पिता की हत्या करे – पितृहंता
  • जो माता की हत्या करे – मातृहन्ता
  • जो पत्नी की हत्या करे – पत्नीहंता
  • गृह बसाकर रहनेवाला – गृहस्थ
  • जो विज्ञान जानता है – वैज्ञानिक
  • बिना अंकुश का – निरंकुश
  • बिक्री करनेवाला – विक्रेता

 

  • हृदय का विदारण करनेवाला – हृदय–विदारक
  • धन देनेवाला – धनद
  • प्राण देनेवाली – प्राणदा
  • यश देनेवाली – यशोदा
  • जो किसी विषय को विशेष रूप से जाने – विशेषज्ञ
  • गगन चूमनेवाला – गगनचुंबी
  • जो मन को हर ले – मनोहर
  • जो सबसे प्रिय हो – प्रियतम
  • याचना करनेवाला – याचक
  • जो देखने योग्य हो – दर्शनीय
  • जो पूछने योग्य हो – प्रष्टव्य
  • जो करने योग्य हो – कर्तव्य
  • जो सुनने योग्य हो – पूजनीय
  • जो सुनने योग्य हो – श्रव्य
  • जो तर्क द्वारा सम्मत हो – तर्कसम्मत
  • जो पढ़ने योग्य हो – पठनीय
  • जंगल की आग – दावानल
  • पेट या जठर की आग – जठरानल
  • समुद्र की आग – वडवानाल
  • जो राजगद्दी का अधिकारी हो – युवराज
  • रात और संध्या के बीच की बेला – गोधूलि
  • पुत्र की वधू – पुत्रवधू
  • पुत्र का पुत्र – पौत्र
  • जहाँ खाना (भोजन) मुफ्त मिले – सदाव्रत
  • जहाँ दवा दान स्वरूप मिले – दातव्य औषधालय
  • जो व्याख्या करे – व्याख्याता
  • जो पांचाल देश की हो – पांचाली
  • द्रुपद की पुत्री – द्रौपदी
  • जो पुरुष लोहे की तरह बलिष्ठ हो – लौहपुरुष
  • युग का निर्माण करनेवाला – युगनिर्माता
  • यात्रा करनेवाला – यात्री
  • तेजी से चलने वाला – द्रुतगामी

 

  • जिसकी बुद्धि झट सोच ले – प्रत्युत्पन्नमति
  • जिसकी बुद्धि कुश के अग्रभाग में समान हो – कुशाग्रबुद्धि
  • वह, जिसकी प्रतिज्ञा दृढ़ हो – दृढ़ प्रतिज्ञ
  • जिसने चित्त किसी विषय में दिया है – दत्तचित्त
  • जिसका तेज निकल गया है – निस्तेज
  • जीतने की इच्छा – जिगीषा
  • लाभ की इच्छा/पाने की इच्छा – लिप्सा
  • खाने की इच्छा – बुभुक्षा
  • किसी काम में दूसरे से बढ़ने की इच्छा – स्पर्धा
  • जान से मारने की इच्छा – जिघांसा
  • देखने की इच्छा – दिदृक्षा
  • करने की इच्छा – चिकीर्षा
  • तरने की इच्छा – तितीर्षा
  • जीने की इच्छा – जिजीविषा
  • मेघ की तरह गरजनेवाला – मेघनाद
  • पीने की इच्छा – पिपासा
  • वासुदेव के पिता – वसुदेव
  • विष्णु का शंख – पाञ्चजन्य
  • विष्णु का चक्र – सुदर्शन
  • विष्णु की गदा – कौमोदकी
  • विष्णु की तलवार – नन्दक
  • विष्णु का मणि – कौस्तुभ
  • विष्णु का धनुष – शांर्ग
  • विष्णु का सारथि – दारुक
  • विष्णु का छोटा भाई – गद
  • शिव की जटाएँ – कपर्द
  • इन्द्र का महल – वैजयन्त
  • वर्षा सहित तेज हवा – झंझावात
  • कुबेर का बगीचा – चैत्ररथ
  • कुबेर का पुत्र – नलकूबर
  • कुबेर का विमान – पुष्पक
  • अगस्त्य की पत्नी – लोपामुद्रा
  • अँधेरी रात – तमिम्रा
  • सोलहो कलाओं से युक्त चाँद – राका
  • अशुभ विचार – व्यापाद
  • मनोहर गन्ध – परिमल
  • दूर से मन को आकर्षित करनेवाली गंध – निर्हारी
  • मुख को सुगंधित करनेवाला पान – मुखवासन
  • कच्चे मांस की गंध – विम्न
  • कमल के समान गहरा लाल रंग – शोण
  • सफेदी लिए हुए लाल रंग – पाटल
  • काला पीला मिला रंग – कपिश
  • दुःख, भय आदि के कारण उत्पन्न ध्वनि – काकु
  • झूठी प्रशंसा करना – श्लाघा
  • वस्त्रों या पत्तों की रगड़ से उत्पन्न आवाज – मर्मर
  • पक्षियों का कलरव – वाशित
  • बिना तार की वीणा – कोलंबक
  • नाटक का आदरणीय पात्र – मारिष
  • धोखायुक्त बात–चीत – विप्रलम्भ
  • पानी से उठा हुआ किनारा – पुलिन
  • बालुकामय किनारा – सैकत

 

  • नाव से पार करने योग्य नदी – नाव्य
  • मछली रखने का पात्र – कुवेणी
  • मछली मारने का काँटा – वडिश
  • अंडों से निकली छोटी मछलियों का समूह – पोताधान
  • केंचुए की स्त्री – शिली
  • कुएँ की जगत – वीनाह
  • तीन प्रहरों वाली रात – त्रियामा
  • वृद्धावस्था से घिरा हुआ – जराक्रान्त
  • खाली या रिक्त करानेवाला – रिक्तक/रेचक
  • सिर पर धारण करने योग्य – शिरोधार्य
  • जिसका दमन करना कठिन हो – दुर्दम्य
  • जिसको लाँघना कठिन हो – दुर्लध्य
  • जो पापरहित हो – निष्पाप
  • सब कुछ खानेवाला – सर्वभक्षी
  • जो सहज रूप से न पचे (देर से पचने वाला) – गुरुपाक
  • जो दिन में एकबार आहार करे – एकाहारी
  • जो अपने से उत्पन्न हुआ हो – स्वयंभू
  • जो शत्रु की हत्या करे – शत्रुघ्न
  • बहुत–सी भाषाओं को बोलनेवाला – बहुभाषा–भाषी
  • बहुत सी भाषाओं को जाननेवाला – बहुभाषाविद्
  • रोंगटे खड़े करनेवाला – लोमहर्षक
  • जिसकी पत्नी साथ नहीं हो – विपत्नीक
  • ‘जिस समय मुश्किल से भिक्षा भी मिले – दुर्भिक्ष
  • हाथ की सफाई – हस्तलाघव
  • पके हुए अन्न की भिक्षा – मधुकरी
  • किसी के पास रखी हुई दूसरे की सम्पत्ति – थाती/न्यास
  • पर्दे में रहनेवाली नारी – पर्दानशीं
  • जो विषय विचार में आ जाय – विचारागम्य
  • लम्बी भुजाओं वाला – दीर्घबाहु
  • जिसका घर्षण कठिनता से हो – दुर्घर्ष
  • जिसके दोनों ओर जल है – दोआव
  • वर्षा के जल से पालित। – देवमातृक
  • पृथ्वी को धारण करनेवाला – महीधर
  • जो सम नहीं है, उसे सम करना – समीकरण
  • जिसे मन पवित्र मानता है – मनःपूत
  • अस्तित्वहीन वस्तु का विश्लेषण – काकदन्तपरीक्षण
  • बेरों के जंगल में जनमा – बादगयण
  • केवल वर्षा पर निर्भर – बारानी
  • अधिक रोएँ वाला – लोमश
  • द्वीप में जनमा – द्वैपायन
  • जिसके सिर पर बाल न हो – खल्वाट
  • जो प्रायः कहा जाता है – प्रायोवाद
  • सोना, चाँदी पर किया गया रंगीन काम – मीनाकारी
  • जिसके सभी दाँत झड़ चुके हों – पोपला
  • पूर्णिमा की रात – राका
  • अमावस्या की रात – कुहू
  • पुत्री का पुत्र – दौहित्र/नाती
  • इस्लाम पर विश्वास न करनेवाला – काफिर
  • ईश्वर द्वारा भेजा गया दूत – पैगम्बर
  • कलम की कमाई खानेवाला – मसिजीवी
  • कुएँ के मेढ़क के समान संकीर्ण बुद्धिवाला – कूपमंडुक
  • काला पानी की सजा पाया कैदी – दामुल कैदी
  • किसी काम में दखल देना – हस्तक्षेप
  • गणपति का उपासक – गाणपत्य
  • घास खानेवाला – तृणभोजी

 

  • स्थिर रहनेवाली वस्तु – स्थावर
  • छोटी चीज को बड़ी दिखानेवाला यंत्र – खुर्दबीन
  • जवाहर बेचने/परखने वाला – जौहरी
  • जहाँ से गंगा निकली – गंगोत्री
  • जल में रहनेवाली सेना – नौसेना
  • जहाँ किताबें छपती हैं – छापाखाना
  • जहाँ रुपये ढाले जाते हैं – टकसाल
  • जहाँ घोड़े बाँधे जाते हैं – घुड़साल
  • जिसको पूर्व जन्म की बातें याद हैं – जातिस्मर
  • जिसके आधार पर रास्ता आनंदपूर्ण हो – संबल
  • जिसपर चित्र बनाया जाय – चित्रपट
  • जिसके द्वारा चित्र बनाया जाय – तूलिका
  • जिसके नाखून सूप के समान हो – शूर्पणखा
  • जिस नारी की बोली कठोर हो – कर्कशा
  • जिसका आशय महान् हो – महाशय
  • जिसका यौवन क्षत नहीं हुआ – अक्षत यौवन
  • जिसे एक ही सन्तान होकर रह जाय – काकबन्ध्या
  • जिसे जीवन से विराग हो गया हो – वीतरागी
  • जिसकी सृष्टि की गई हो – बड़भागी
  • जिसका भाग्य बड़ा हो – परीक्षित
  • जिसकी परीक्षा ली जा चुकी हो – विश्वंभर
  • जो विश्वभर का भरण–पोषण करे – क्लीव
  • जो पुरुषत्वहीन हो जिसकी राह गलत हो – गुमराह
  • जो बहुत छोटा न हो – नातिलघु
  • जो प्रकाशयुक्त हो – भास्वर
  • जिसके अंग–प्रत्यंग गल गए हों – गलितांग
  • जिसकी इच्छा न की जाती हो – अनभिलषित
  • जिसके दर्शन प्रिय माने जाएँ – प्रियदर्शन

Gender/Ling in Hindi – लिंग – परिभाषा, भेद और उदाहरण

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लिंग

ling-in-hindi

हिन्दी भाषा में संज्ञा शब्दों के लिंग का प्रभाव उनके विशेषणों तथा क्रियाओं पर पड़ता है। इस दृष्टि से भाषा के शुद्ध प्रयोग के लिए संज्ञा शब्दों के लिंग-ज्ञान अत्यावश्यक हैं। ‘लिंग’ का शाब्दिक अर्थ प्रतीक या चिहून अथवा निशान होता है। संज्ञाओं के जिस रूप से उसकी पुरुष जाति या स्त्री जाति का पता चलता है, उसे ही ‘लिंग’ कहा जाता है।

निम्नलिखित वाक्यों को ध्यानपूर्वक देखें

  1. गाय बछड़ा देती है।
  2. बछड़ा बड़ा होकर गाड़ी खींचता है।
  3. पेड़-पौधे पर्यावरण को संतुलित रखते हैं।
  4. धोनी की टीम फाइनल में पहुँची।।
  5. सानिया मिर्जा क्वार्टर फाइनल में पहुँची।
  6. लादेन ने पेंटागन को ध्वस्त किया।
  7. अभी वैश्विक आर्थिक मंदी छायी है।

उपर्युक्त वाक्यों में हम देखते हैं कि किसी संज्ञा का प्रयोग पुँल्लिंग में तो किसी का स्त्रीलिंग में हुआ है। इस प्रकार लिंग के दो प्रकार हुए
(i) पुँल्लिंग और
(ii) स्त्रीलिंग पुँल्लिंग से पुरुष-जाति और स्त्रीलिंग से स्त्री-जाति का बोध होता है।
बड़े प्राणियों (जो चलते-फिरते हैं) का लिंग-निर्धारण जितना आसान है छोटे प्राणियों और निर्जीवों का लिंग-निर्धारण उतना ही कठिन है। नीचे लिखे वाक्यों में क्रिया का उचित रूप भरकर देखें-

  1. भैया पढ़ने के लिए अमेरिका ……….. (जाना)
  2. भाभी बहुत ही लज़ीज़ भोजन ………. (बनाना)
  3. शेर को देखकर हाथी चिग्घाड़ने ……….। (लगना)
  4. राणा का घोड़ा चेतक बहुत तेज ………..। (दौड़ना)
  5. तनवीर नाट्य-जगत् के सिरमौर ………..। (होना)
  6. चींटी अण्डे लेकर ……….. (चलना)
  7. चील बहुत ऊँचाई पर उड़ ………. है। (रहना)
  8. भरी सभा में ………. नाक कट …………… (वह/जाना)
  9. किताब ………… ! (लिखा जाना)
  10. मेघ बरसने ………………। (लगना)

आपने गौर किया होगा कि ऊपर के प्रथम पाँच वाक्यों को भरना जितना आसान है, नीचे के शेष वाक्यों को भरना उतना ही कठिन। क्यों? क्योंकि, आपको उनके लिंगों पर सन्देह होता है। इसलिए वैयाकरणों ने लिंग-निर्धारण के कुछ नियम बनाए हैं जो इस प्रकार हैं

नोट : वैयाकरण विभिन्न साहित्यकारों और आम जनों के भाषा-प्रयोग के आधार पर नियमों का गठन करते हैं; अपने मन से नियम नहीं बनाते। अर्थात् भाषा-संबंधी-नियम उसके प्रयोग पर निर्भर करता है।

1. प्राणियों के समूह को व्यक्त करनेवाली कुछ संज्ञाएँ पुँल्लिंग हैं तो कुछ स्त्रीलिंग :
पुंल्लिंग

  • परिवार – कुटुम्ब – संघ
  • दल – गिरोह – झुंड
  • समुदाय – समूह – मंडल
  • प्रशासन – दस्ता – कबीला
  • देश – राष्ट्र – राज्य
  • प्रान्त – मुलक – नगरनिगम
  • प्राधिकरण – मंत्रिमंडल – अधिवेशन
  • स्कूल – कॉलेज – विद्यापीठ
  • विद्यालय – विश्वविद्यालय

स्त्रीलिंग

  • सभा – जनता – सरकार
  • प्रजा – समिति – फौज
  • सेना – ब्रिगेड – मंडली
  • कमिटी – टोली – जाति
  • जात–पात – कौम – प्रजाति
  • भीड़ – पुलिस – नगरपालिका
  • संसद – राज्यसभा
  • विधानसभा – पाठशाला
  • बैठक – गोष्ठी

2. तत्सम एवं विदेशज शब्द हिन्दी में लिंग बदल चुके हैं :
शब्द – तस्सम/विदेशज – हिन्दी में

  • महिमा – पुं० – स्त्री०
  • आत्मा – पुँ०– (आतमा) स्त्री०
  • देह – पुं० – स्त्री०
  • देवता – स्त्री० – पुं०
  • विजय – पुं० – स्त्री०
  • दुकान – स्त्री० – (दूकान) पुं०
  • मृत्यु – पुं० – स्त्री०
  • किरण – पुँ० – स्त्री०
  • समाधि – पुँ० – स्त्री०
  • राशि – पुँ० – स्त्री०
  • ऋतु – पुँ० – स्त्री०
  • वस्तु – नपुं० – स्त्री०
  • आयु – नपुं० – स्त्री०

3. कुछ शब्द उभयलिंगी हैं। इनका प्रयोग दोनों लिंगों में होता है :

  • तार आया है। – तार आई है।
  • मेरी आत्मा कहती है। – मेरा आतमा कहता है।
  • वायु बहती है। – वायु बहता है।
  • पवन सनसना रही है। – पवन सनसना रहा है।
  • दही खट्टी है। – दही खट्टा है।
  • साँस चल रही थी। – साँस चल रहा था।
  • मेरी कलम अच्छी है। – मेरा कलम अच्छा है।
  • रामायण लिखी गई। – रामायण लिखा गया।
  • उसने विनय की। – उसने विनय किया।

नोट : प्रचलन में आत्मा, वायु, पवन, साँस, कलम, रामायण आदि का प्रयोग स्त्री० में तथा तार, दही, विनय आदि का प्रयोग पुँल्लिंग मे होता है। हमें प्रचलन को ध्यान में रखकर ही प्रयोग में लाना चाहिए।

4. कुछ ऐसे शब्द हैं, जो लिंग–बदल जाने पर अर्थ भी बदल लेते हैं :

  1. उस मरीज को बड़ी मशक्कत के बाद कल मिली है। (चैन)
  2. उसका कल खराब हो चुका है। (मशीन)
  3. कल बीत जरूर जाता है, आता कभी नहीं। (बीता और आनेवाला दिन)
  4. मल्लिकनाथ ने मेघदूत की टीका लिखी। (मूल किताब की व्याख्या)
  5. उसने चन्दन का टीका लगाया। (माथे पर बिन्दी)
  6. उसने अपनी बहू को एक सुन्दर टीका दिया। (आभूषण)
  7. वह लकड़ी के पीठ पर बैठा भोजन कर रहा है। (पीढ़ा/आसन)
  8. उसकी पीठ में दर्द हो रहा है। (शरीर का एक अंग)
  9. सेठजी के कोटि रुपये व्यापार में डूब गए। (करोड़)
  10. आपकी कोटि क्या है, सामान्य या अनुसूचित? (श्रेणी)
  11. कहते हैं कि पहले यति तपस्या करते थे। (ऋषि)
  12. दोहे छंद में 11 और 13 मात्राओं पर यति होती है। (विराम)
  13. धार्मिक लोग मानते हैं कि विधि सृष्टि करता है। (ब्रह्मा)
  14. इस हिसाब की विधि क्या है? (तरीका)
  15. उस व्यापारी का बाट ठीक–ठाक है। (बटखरा)
  16. मैं कबसे आपकी बाट जोह रहा हूँ। (प्रतीक्षा)
  17. पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले। (राह)
  18. चाकू पर शान चढ़ाया गया। (धार देने का पत्थर)
  19. हमारे देश की शान निराली है। (इज्जत)
  20. मेरे पास कश्मीर की बनी एक शाल है। (चादर)
  21. उस पेड़ में काफी शाल था। (कठोर और सख्त भाग)
  22. मैंने एक अच्छी कलम खरीदी है।
  23. मैंने आम का एक कलम लगाया है। (नई पौध)

5. कुछ प्राणिवाचक शब्दों का प्रयोग केवल स्त्रीलिंग में होता है, उनका पुंल्लिंग रूप बनता ही नहीं।
जैसे—

  • सुहागिन, सौत, धाय, संतति, संतान, सेना, सती, सौतन, नर्स, औलाद, पुलिस, फौज, सरकार।

6. पर्वतों, समयों, हिन्दी महीनों, दिनों, देशों, जल–स्थल, विभागों, ग्रहों, नक्षत्रों, मोटी–भद्दी, भारी वस्तुओं के नाम पुँल्लिंग हैं।
जैसे—

  • हिमालय, धौलागिरि, मंदार, चैत्र, वैसाख, ज्येष्ठ, सोमवार, मंगलवार, भारत, श्रीलंका, अमेरिका, लट्ठा, शनि, प्लूटो, सागर, महासागर आदि।

7. भाववाचक संज्ञाओं में त्व, पा, पन प्रत्यय जुड़े शब्द पुँ० और ता, आस, अट, आई, ई प्रत्यय जुड़े शब्द स्त्रीलिंग हैं–
पुल्लिंग

  • शिवत्व – मनुष्यत्व
  • पशुत्व – बचपन
  • लड़कपन – बुढ़ापा

स्त्रीलिंग

  • मनुष्यता – मिठास – घबराहट
  • बनावट लड़ाई – गर्मी
  • दूरी प्यास – बड़ाई

8. ब्रह्मपुत्र, सिंधु और सोन को छोड़कर सभी नदियों के नामों का प्रयोग स्त्रीलिंग में होता है।
जैसे—

  • गंगा, यमुना, कावेरी, कृष्णा, गंडक, कोसी आदि।

9. शरीर के अंगों में कुछ स्त्रीलिंग तो कुछ पुँल्लिंग होते हैं :
पुल्लिंग

  • सिर, माथा, बाल, मस्तक, ललाट, कंठ, गला, हाथ, पैर, पेट, टखना, अंगूठा, फेफड़ा, कान, मुँह, ओष्ठ, नाखून, भाल, घुटना, मांस, दाँत

10. कुछ प्राणिवाचक शब्द नित्य पुंल्लिंग और नित्य स्त्रीलिंग होते हैं :
नित्य पुंल्लिंग

  • गरुड़ – बाज – पक्षी
  • खग – विहग – कछुआ
  • मगरमच्छ – खरगोश – गैंडा
  • चीता – मच्छर – खटमल
  • बिच्छू – रीछ – जुगनू

नित्य स्त्रीलिंग

  • दीमक – चील – लूँ
  • मछली – गिलहरी –
  • तितली – कोयल – मकड़ी
  • छिपकली – चींटी – मैना

नोट : इनके स्त्रीलिंग–पुंल्लिंग रूप को स्पष्ट करने के लिए नर–मादा का प्रयोग करना पड़ता है। जैसे–नर चील, नर मक्खी, नर मैना, मादा रीछ, मादा खटमल आदि।

11. हिन्दी तिथियों के नाम स्त्रीलिंग होते हैं।
जैस—

  • प्रतिपदा, द्वितीया, षष्ठी, पूर्णिमा आदि।

12. संस्कृत के या उससे परिवर्तित होकर आए अ, इ, उ प्रत्ययान्त पुं० और नपुं० शब्द हिन्दी में भी प्रायः पुं० ही होते हैं।
जैसे–

  • जग, जगत्,. जीव, मन, जीत, मित्र, पद्य, साहित्य, संसार, शरीर, तन, धन, मीत, चित्र, गद्य, नाटक, काव्य, छन्द, अलंकार, जल, पल, स्थल, बल, रत्न, ज्ञान, मान, धर्म, कर्म, जन्म, मरण, कवि, ऋषि, मुनि, संत, कांत, साधु, जन्तु, जानवर, पक्षी.

13. प्राणिवाचक जोड़ों के अलावा ईकारान्त शब्द प्रायः स्त्री० होन हैं। जैसे–

  • कली, नाली, गाली, जाली, सवारी, तरकारी, सब्जी, सुपारी, साड़ी, नाड़ी, नारी, टाली, गली, भरती, वरदी, सरदी, गरमी, इमली, बाली, परन्तु, मोती, दही, घी, जी, पानी, आदि, ईकारान्त, होते, हुए, भी, पुँल्लिंग हैं।

14. जिन शब्दों के अन्त में त्र, न, ण, ख, ज, आर, आय, हों वे प्रायः पुंल्लिंग होते हैं। जैसे–

  • चित्र, रदन, वदन, जागरण, पोषण, सुख, सरोज, मित्र, सदन, बदन, व्याकरण, भोजन, दुःख, मनोज, पत्र, रमन, पालन, भरण, हरण, रूख, भोज, अनाज, ताज, समाज, ब्याज, जहाज, प्रकार, द्वार, शृंगार, विहार, आहार, संचार, आचार, विचार, प्रचार, अधिकार, आकार, अध्यवसाय, व्यवसाय, अध्याय, न्याय, सम्पूर्ण, हिन्दी, व्याकरण, और, रचना, अपवाद,

(यानी स्त्री०)
थकन, सीख, लाज, खोज़, हार, हाय, लगन, खाज, हुंकार, बौछार, गाय, चुमन, चीख, मौज़, जयजयकार, राय

15. सब्जियों, पेड़ों और बर्तनों में कुछ के नाम पुँल्लिंग तो कुछ के स्त्री हैं। जैसे–
पुंल्लिंग

  • शलजम – अदरख – टमाटर
  • बैंगन – पुदीना – मटर
  • प्याज – आलू – लहसुन
  • धनिया – खीरा – करेला
  • कचालू – कद्दू – कुम्हड़
  • नींबू – तरबूज – खरबूजा
  • कटहल – फालसा – पपीता
  • कीकर – सेब – बेल
  • जामुन – शहतूत – नारियल
  • माल्टा – बिजौरा – तेंदू
  • आबनूस – चन्दन – देवदार
  • ताड़ – खजूर – बूटा
  • वन – टब – पतीला
  • कटोरा – चूल्हा – चम्मच
  • स्टोव – चाकू – कप
  • चर्खा – बेलन – कुकर

स्त्रीलिंग

  • बन्दगोभी – फूलगोभी – भिंडी
  • तुरई – मूली – गाजर
  • पालक – मेंथी – सरसों
  • फलियाँ – फराज़बीन – ककड़ी
  • कचनार – शकरकन्दी – नीम
  • नाशपाती – लीची – इमली
  • बीही – अमलतास – मौसंबी
  • खुबानी – चमेली – बेली, जूही
  • अंजीर – नरगिस – चिरौंजी
  • वल्लरी – लता – बेल, गूठी
  • पौध – जड़ – बगिया, छुरी
  • भट्ठी – अँगीठी – बाल्टी
  • देगची – कटोरी – कैंची
  • थाली – चलनी – चक्की
  • थाल – तवा – नल

16. रत्नों के नाम, धातुओं के नाम तथा द्रवों के नाम अधिकांशतः पुंल्लिंग हुआ करते हैं। जैसे–

  • हीरा, पुखराज, पन्ना, नीलम, लाल, जवाहर, मूंगा, मोती, पीतल, ताँबा, लोहा, कांस्य, सीसा, एल्युमीनियम, प्लेटिनम, यूरेनियम, टीन, जस्ता, पारा, पानी, जल, तेल, सोडा, दूध, शर्बत, रस, जूस, कहवा, कोका, जलजीरा, आदि।

अपवाद (यानी स्त्री०)

  • सीपी, मणि, रत्ती, चाँदी, मद्य, शराब, चाय, कॉफी, लस्सी, छाछ, शिकंजवी, स्याही, बूंद, धारा आदि

17. आभूषणों में स्त्रीलिंग एवं पुँल्लिंग शब्द हैं…
पुँल्लिंग

  • कंगन – कड़ा – कुंडल
  • गजरा – झूमर – बाजूबन्द
  • हार – काँटे – झुमका
  • कील – शीशफूल – आभूषण

स्त्रीलिंग

  • आरसी – नथ – तीली माला
  • बाली – झालर – चूड़ी बिंदिया
  • पायल – अंगूठी – कंठी’ मुद्रिका

18. किराने की चीजों के नाम, खाने–पीने के सामानों के नाम और वस्त्रों के नामों में पुँल्लिग स्त्रीलिंग इस प्रकार होते हैं।
पॅल्लिग

  • अदरक – जीरा – धनिया
  • मसाला – अमचूर – अनारदाना
  • पराठा – हलवा – समोसा
  • भात – भठूरा – कुल्या
  • चावल – रायता – गोलगप्पे
  • पापड़ – लड्डू – रसगुल्ला
  • मोहनभोग – पेड़ – फुल्का
  • रूमाल – कुरता – पाजामा
  • कोट – सूट – मोजे
  • जांधिया – दुपट्टा – टोप
  • गाऊन – घाघरा – पेटीकोट

स्त्रीलिंग

  • सोंठ – हल्दी – सौंफ – अजवायन
  • दालचीनी – लवंग (लौंग) – हींग – सुपारी
  • इलायची – मिर्च – कालमिर्च – इमली
  • रोटी – रसा – खिचड़ी – पूड़ी
  • दाल – खीर – चपाती – चटनी
  • पकौड़ी – भाजी – सब्जी तरकारी
  • काँजी – बर्फी – मट्ठी – बर्फ
  • चोली – अंगिया – जुर्राब – बंडी
  • गंजी – पतलून – कमीज – साड़ी
  • धोती – पगड़ी – चुनरी – निक्कर
  • बनियान – लँगोटी – टोपी

19. आ, ई, उ, ऊ अन्तवाली संज्ञाएँ स्त्रीलिंग और पुँल्लिंग इस प्रकार होती हैं
पुँल्लिग

  • कुर्ता – कुत्ता – बूढ़ा
  • शशि – रवि – यति –
  • कवी – हरि – मुनि –
  • ऋषि – पानी – दानी
  • घी – प्राणी – स्वामी
  • मोती – दही – गुरु
  • साघु – मधु – आलू
  • काजू – भालू – आँसू

स्त्रीलिंग

  • प्रार्थना, दया, आज्ञा, लता, माला, भाषा, कथा, दशा, परीक्षा, पूजा, कृपा, विद्या, शिक्षा, दीक्षा, बुद्धि, रुचि, राशि, क्रांति, नीति, भक्ति, मति, छवि, स्तुति, गति, स्थिति, मुक्ति, रीति, नदी, गठरी, उदासी, सगाई, चालाकी, चतुराई, चिट्ठी, मिठाई, मूंगफली, लकड़ी, पढ़ाई, ऋतु, वस्तु, मृत्यु, वायु, बालू, लू, झाडू, वधू.

20. ख, आई, हट, वट, ता आदि अन्तवाली संज्ञाएँ प्रायः स्त्रीलिंग होती हैं। जैसे

  • राख, भीख, सीख, भलाई, बुराई, ऊँचाई, गहराई, सच्चाई, आहट, मुस्कराहट, घबराहट, झुंझलाहट, झल्लाहट, सजावट, बनावट, मिलावट, रूकावट, थकावट, स्वतंत्रता, पराधीनता, लघुता, मिगता, शत्रुता, कटुता, मधुरता, सुन्दरता, प्रसन्नता, सत्ता, रम्यता, अक्षुण्णता

21. भाषाओं तथा बोलियों के नाम स्त्रीलिंग हुआ करते हैं। जैसे

  • हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, बंगला, मराठी, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, सिंधी, उर्दू, अरबी, फारसी, चीनी, फ्रेंच, लैटिन, ब्रज, अपभ्रंश, प्राकृत, बुंदेली, मगही, अवधी, भोजपुरी, मैथिली, पंजाबी, अफ्रीदी.

22. अरबी–फारसी उर्दू के ‘त’ अन्तवाली संज्ञाएँ प्रायः स्त्रीलिंग होती हैं। जैसे–

  • मोहब्बत, शोहरत, इज्जत, जिल्लत, किल्लत, शरारत, हिफाजत, इबादत, नसीहत, बगावत, हुज्जत, जुर्रत, कयामत, नजाकत, गनीमत, तमिल, गुजराती, ग्रीक, बाँगडू, सम्पूर्ण, हिन्दी, व्याकरण, और रचना.

23. अरबी–फारसी के अन्य शब्दों में कुछ स्त्रीलिंग तो कुछ पुँल्लिंग इस प्रकार होते है
पुँल्लिग

  • हिसाब, मकान, मेजबान, बाजार, वक्त, जोश, जवाब, कबाब, इनसान, दरबान, दुकानदार, खत, कुदरत, कशीदाकार, जनाब, मेहमान, अखबार, मजा, होश, नवाब.

स्त्रीलिग

  • दीवार, दुनिया, दवा, शर्म, दुकान, सरकार, हवा, फिजाँ, हया, गरीबी, अमीरी, लाचारी, खराबी, लाश, तलाश, बारिश, शोरिश, वफादारी, मजदूरी, कशिश, कोशिश.

24. अंग्रेजी भाषा से आए शब्दों का लिंग हिन्दी भाषा की प्रकृति के अनुसार तय होता है। जैसे–
पुल्लिंग

  • टेलीफोन – टेलीविजन – रेडियो
  • स्कूल – स्टूडेंट – स्टेशन
  • पेन – बूट – बटन

स्त्रीलिंग

  • ग्राउंड, यूनिवर्सिटी, बस, जीव, कार, ट्रेन, बोतल, पेंट, पेंसिल, फिल्म, फीस, पिक्चर, फोटो, मशीन.

25. क्रियार्थक संज्ञाएँ पुंल्लिग होती हैं। जैसे

  • नहाना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है।
  • टहलना हितकारी होता है।
  • गाना एक व्यायाम होता है।

नोट : जब कोई क्रियावाची शब्द (अपने मूल रूप में) किसी कार्य के नाम के रूप में प्रयुक्त हो तब वह संज्ञा का काम करने लगता है। इसे ‘क्रियार्थक संज्ञा’ कहते हैं। ऊपर के तीनों वाक्यों में लाल रंग के पद संज्ञा हैं न कि क्रिया।

26. द्वन्द्व समास के समस्तपदों का प्रयोग पुँल्लिंग बहुवचन में होता है।
नीचे लिखे वाक्यों पर ध्यान दें–

  • मेरे माता–पिता आए हैं।
  • उनके भाई–बहन शहर में पढ़ते हैं।

लिंग–संबंधी कुछ रोचक और विचारणीय बातें :

हिन्दी भाषा में लिंगों का तन्त्र काफी विकृत एवं भ्रामक है; क्योंकि एक ही शब्द का एक पर्याय तो स्त्रीलिंग है; जबकि दूसरा पुँल्लिंग। हिन्दी के भाषाविदों एवं विद्वानों के लिए यह चुनौती भरा कार्य है कि वे मिल–जुलकर इसपर विमर्श करें और कोई ठोस आधार तय करें। भारत–सरकार एवं राष्ट्रभाषा–परिषद् को भी सचेतन रूप से इस पर ध्यान देना चाहिए, नहीं तो कहीं यह भाषा अपनी पहचान न खो दे। वर्तमान समय में हिन्दी भाषा का कोई ऐसा कोश नहीं है जो भ्रामक नहीं है।

नीचे लिखे वाक्यों को ध्यानपूर्वक देखें और तर्क की कसौटी पर परखें कि कितनी हास्यास्पद बात है कि यदि एक शब्द जो स्त्रीलिंग है तो उसके तमाम पर्यायवाची शब्द भी स्त्रीलिंग ही होने चाहिए अथवा एक पुंल्लिंग तो उसके सभी समानार्थी पुंल्लिंग ही हों

इसी तरह एक और बात है, यदि हमारा कोई अंग (सम्पूर्ण रूप से) पुंल्लिंग या स्त्रीलिंग है तो फिर उसका अलग–अलग हिस्सा कैसे भिन्न लिंग का हो जाता है।

निम्नलिखित उदाहरणों पर विचार करें—
हाथ

  • हाथ : पुँल्लिंग
  • बाँह : स्त्रीलिंग
  • उँगली : स्त्रीलिंग
  • कलाई : स्त्रीलिंग
  • अंगूठा : पुँल्लिंग

पैर

  • पैर : पुंल्लिग
  • जाँघ : स्त्रीलिंग
  • घुटना : पुंल्लिग
  • तलवा : पुंल्लिंग
  • एड़ी : स्त्रीलिंग

बाल–यदि यह पुंल्लिंग है तो फिर दाढ़ी, मूंछ, चेहरे पर स्थित आँख, नाक, भौंह, ढोड़ी आदि के बाल स्त्रीलिंग क्यों हैं?

दाढ़ी, मूंछ, जीभ–ये सभी स्त्रीलिंग और मुँह, कान, गाल, माथा, दाँत–ये सभी पुँल्लिंग

नोट : पुंल्लिंग से स्त्रीलिंग बनाने के नियमों और उदाहरणों की चर्चा शब्द–प्रकरण में ‘स्त्री प्रत्यय’ बताने के क्रम में हो चुकी है। वाक्य द्वारा लिंग–निर्णय :
वाक्य–द्वारा लिंग–निर्णय करने की मुख्य रूप से निम्नलिखित विधियाँ हैं :

1. संबंध विधि

इस विधि से लिंग–निर्णय करने के लिए हमें निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए :
(a) पुँल्लिंग संज्ञाओं के लिए संबंध के चिह्न ‘का–ना–रा’ का प्रयोग करना चाहिए।
(b) उक्त संज्ञा को या तो वाक्य का उद्देश्य या कर्म या अन्य कारकों में प्रयोग करना चाहिए।
(c) संज्ञा का जिससे संबंध है उन दोनों को एक साथ रखना चाहिए।

नीचे लिखे उदाहरणों को देखें
रूमाल (उद्देश्य रूप में)
यह मेरा रूमाल है। (‘मेरा’ से लिंग–स्पष्ट)
उनका रूमाल सुन्दर है। (‘उनका’ से लिंग–स्पष्ट)
अपना भी एक रूमाल है। (‘अपना’ से लिंग–स्पष्ट)
पुस्तक
वह मेरी पुस्तक है। (‘मेरी’ से लिंग–स्पष्ट)
उसकी पुस्तक यहाँ है। (‘उसकी’ से लिंग–स्पष्ट)
वहाँ अपनी पुस्तक है। (‘अपनी’ से लिंग–स्पष्ट)

कर्म एवं अन्य कारक रूपों में
1. वह मेरा रूमाल उपयोग में लाता है। – (कर्म रूप)
2. वह मेरे रूमाल के लिए दौड़ पड़ा। – (सम्प्रदान रूप)
3. मेरे रूमाल में गुलाब का फूल बना है। – (अधिकरण रूप)
4. वह मेरे रूमाल से बल्ब खोलता है। – (करण रूप)
5. मेरे रूमाल से सिक्का गायब हो गया। – (अपादान रूप)

अब आप स्वयं पता करें पुस्तक का प्रयोग किस कारक में हुआ है—
1. मेरी पुस्तक जीने की कला सिखाती है।
2. उसने मेरी पुस्तक देखी है।
3. मेरी पुस्तक में क्या नहीं है।
4. आपकी पुस्तक पर पेपर किसने रख दिया है?
5. मेरी पुस्तक से ज्ञान लेकर देखो।
6. आप मेरी पुस्तक के लिए परेशान क्यों हैं?
7. मै अपनी पुस्तक आपको नहीं दूंगा।

2. विशेषण–विधि

इस विधि से लिंग–स्पष्ट करने के लिए आप दी गई संज्ञा के लिए कोई सटीक आकारान्त (पुंल्लिंग के लिए) या ईकारान्त (स्त्री० के लिए) विशेषण का चयन कर लीजिए, फिर संबंध विधि की तरह विभिन्न रूपों में उसका प्रयोग कर दीजिए।

आकारान्त विशेषण : अच्छा, बुरा, काला, गोरा, भूरा, लंबा, छोटा, ऊँचा, मोटा, पतला.
ईकारान्त विशेषण : अच्छी, बुरी, काली, गोरी, भूरी, लंबी, छोटी, ऊँची, मोटी, पतली…

नीचे लिखे उदाहरण देखें मोती :

  • मोती चमकीला है। (‘चमकीला’ से लिंग स्पष्ट)
  • दही : दही खट्टा नहीं है। (‘खट्टा’ से लिंग स्पष्ट)
  • घी : घी महँगा है। (‘महँगा’ से लिंग स्पष्ट)
  • पानी : गंदा है। (‘गंदा’ से लिंग स्पष्ट)
  • रूमाल : रूमाल चौड़ा है। (‘चौड़ा’ से लिंग स्पष्ट)
  • पुस्तक : पुस्तक अच्छी है। (‘अच्छी’ से लिंग स्पष्ट)
  • कलम : कलम नई है। (‘नई’ से लिंग स्पष्ट)
  • ग्रंथ : ग्रंथ बड़ा है। (‘बड़ा’ से लिंग स्पष्ट)
  • रात : रात डरावनी है। (‘डरावनी’ से लिंग स्पष्ट)
  • दिन : दिन छोटा है। (‘छोटा’ से लिंग स्पष्ट)
  • मौसम : मौसम सुहाना है। (‘सुहाना’ से लिंग स्पष्ट)

3. क्रिया विधि

इस विधि से लिंग–निर्धारण के लिए भी आकारान्त व ईकारान्त क्रिया का प्रयोग होता है। विशेषण–विधि की तरह पुंल्लिंग संज्ञा के लिए आकारान्त और स्त्रीलिंग संज्ञा के लिए ईकारान्त क्रिया का प्रयोग किया जाता है।

निम्नलिखित वाक्यों को देखें-

  • गाय : गाय मीठा दूध देती है।
  • मोती : मोती चमकता है।
  • बचपन : उसका बचपन लौट आया है।
  • सड़क : यह सड़क लाहौर तक जाती है।
  • आदमी : आदमी आदमीयत भूल चुका है।
  • पेड़ : पेड़ ऑक्सीजन देता है।
  • चिड़िया : चिड़िया चहचहा रही है।
  • दीमक : . दीमक लकड़ी को बर्बाद कर देती है।
  • खटमल : खटमल परजीवी होता है।

नोट : उपर्युक्त वाक्यों में आपने देखा कि सभी संज्ञाओं का प्रयोग उद्देश्य (कत्ता) के रूप में हुआ है। ध्यान दें क्रिया–विधि से लिंग–निर्णय करने पर वह संज्ञा शब्द (जिसका लिंग–स्पष्ट करना है) वाक्य में कर्ता का काम करता है।

4. कर्ता में ‘ने’ चिह्न लगाकर

इस विधि से लिंग–निर्णय करने के लिए हमें निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए
1. दिए गए शब्द को कर्म बनाएँ और कोई अन्य कर्ता चुन लें।
2. कर्ता में ‘ने’ चिह्न और ‘कर्म’ में शून्य चिह्न (यानी कोई चिह्न नहीं) लगाएँ।
3. क्रिया को भूतकाल में कर्म (दिए गए शब्द) के लिंग–वचन के अनुसार रखें।

ठीक इस तरह
कर्ता (ने) + दिया गया शब्द (चिह्न रहित) + कर्मानुसार क्रिया

  • नीचे लिखे उदाहरणों को देखें
  • घोड़ा : मैंने एक अरबी घोड़ा खरीदा।
  • घड़ी : चाचाजी ने मुझे एक घड़ी दी।
  • कुर्सी : आपने कुर्सी क्यों तोड़ी?
  • साइकिल : मम्मी ने एक साइकिल दी।
  • गोली : तुमने ही गोली चलाई थी।
  • जूं : बंदर ने जूं निकाली।
  • कान : मैंने कान पकड़ा।
  • ‘फसल : किसानों ने फसल काटी।
  • सूरज : मैंने उगता सूरज देखा।

ध्यातव्य बातें : हमने केवल एकवचन संज्ञाओं का वाक्य–प्रयोग बताया है। बहुवचन के लिए उसी के अनुसार संबंध (के–ने–रे) विशेषण एवं क्रिया (एकारान्त–ईकारान्त) लगाने चाहिए।

A. निम्नलिखित संज्ञाओं को पुलिंग एवं स्त्रीलिंग में सजाएँ :

  • चिड़िया, गाय, मोर, बछड़ा, आदमी, चील, दीमक, खटिया, वर्षा, पानी, चीलर, खटमल, गैं, नीम, औरत, पुरुष, महिला, किताब, ग्रंथ, समाचार, खबर, कसम, प्रतिज्ञा, सोच, पान, घी, जी, मोती, चीनी, जाति, चश्मा, नहर, झील, पहाड़, चोटी, बरतन, ध्यान, योगी, सपना, कैंची, नाली, गंगा, ब्रह्मपुत्र, खाड़ी, जनवरी, सौगात, संदेश, दिन, रात, नाक, कान, आँख, जी, जीभ, वायु, दाँत, गरमी, सर्दी, कफन, आकाश, दर्पण, चाँद, चाँदनी, छड़ी, साधु, विद्या, बचपन, मिठास, सफलता, पाठशाला, नौका, सूर्य, तारा, पंखा, दर्पण.

पत्र लेखन – Patra Lekhan in Hindi – हिन्दी

पत्र लेखन Patra Lekhan in hindi

पत्र-लेखन (Letter-Writing)

पत्र-लेखन ‘पत्राचार’ की सामान्य विशेषताएं

  1. नियुक्ति-आवेदन-पत्र,
  2. बैंक से किसी व्यवसाय के लिए ऋण प्राप्त करने का आवेदन-पत्र,
  3. अपने नगर या गाँव की सफाई हेतु सम्बन्धित अधिकारी को प्रार्थना-पत्र
  4. विचारों की अभिव्यक्ति में क्रमबद्धता का होना भी आवश्यक है।
  5. पत्र में पुनरावृत्ति से बचना चाहिए।
  6. पत्र लिखते समय इस प्रारूप का ध्यान रखना चाहिए।

Patra Lekhan in Hindi

पत्र लेखन की इतिहास

कहा जा सकता है कि जबसे मानव जाति ने लिखना सीखा, तब से ही पत्र लिखे जाते रहे हैं। पत्र-लेखन का प्रारम्भ कब हुआ? पहला पत्र कब, किसने, किसको लिखा? उन प्रश्नों का कोई प्रामाणिक उत्तर इतिहास के पास नहीं है, भाषा-वैज्ञानिकों के मतानुसार अपने मन की बात दूसरे तक पहुँचाने के लिए मनुष्य ने सर्वप्रथम जिस लिपि का आविष्कार किया, वह चित्रलिपि है।

इससे एक बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि लेखन के इतिहास के साथ ही मानव द्वारा पत्र-लेखन प्रारम्भ हो गया होगा, क्योंकि लिपि का सम्बन्ध भावाभिव्यक्ति से है। ईसा से चार हजार वर्ष पूर्व ध्वनि लिपि का प्रयोग प्रारम्भ हो चुका था। सुविधा के लिए हम यह मान सकते हैं कि मानव ने तब से ही किसी न किसी रूप में पत्र लिखना प्रारम्भ कर दिया होगा।

पत्र-लेखन और विशेषत: व्यक्तिगत पत्र-लेखन आधुनिक युग में कला का रूप धारण कर चुका है। अगर पत्र लेखन को उपयोगी कला के साथ ललित कला भी कहा जाए तो अत्युक्ति नहीं होगी। इसका प्रमाण यह है कि आज साहित्य के विभिन्न रूपों में पत्र-साहित्य नामक रूप भी स्वीकृत हो चुका है। महापुरुषों द्वारा लिखित पत्र इसी कोटि में आते हैं। इन पत्रों में ललित कला का पुष्ट रूप दिखाई देता है।

प्रश्न-ज्ञान : इस प्रकरण से परीक्षा में दिए गए विषयों में से किसी एक विषय पर पत्र लिखने के लिए कहा जाएगा। परीक्षा में पूछे जानेवाले पत्र सम्बन्धी प्रश्न निम्नलिखित विषयों पर आधारित होंगे-
(क) नियुक्ति आवेदन-पत्र।
(ख) बैंक से किसी व्यवसायाके लिए ऋण प्राप्त करने के लिए आवेदन-पत्र।
(ग) अपने नगर या गाँव की सफाई हेतु सम्बन्धित अधिकारी को प्रार्थना-पत्र।

पत्र-लेखन एक कला है। इस कला का साहित्य में विशिष्ट स्थान है। अपने प्रतिदिन के जीवन में हम किसी-न-किसी को पत्र लिखते ही हैं। पत्र ही वह माध्यम है, जिसके द्वारा हम दूरस्थ व्यक्ति को अपने हृदयगत भावों का परिचय देते हैं। साहित्य में तो पत्र-लेखन एक शैली माना जाता है। बहुत-सी कहानियों और उपन्यासों को पत्रात्मक शैली में लिखा गया है। इस प्रकार जीवन और साहित्य दोनों में ही पत्र-लेखन का महत्त्वपूर्ण स्थान है।

पत्र के प्रकार पत्र मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं
(1) व्यक्तिगत या घरेलू-पत्र।
(2) व्यावसायिक-पत्र।
(3) सरकारी या आधिकारिक-पत्र।

विषय-भेद के अनुसार पत्र अनेक प्रकार के हो सकते हैं: जैसे—बधाई-पत्र, निमन्त्रण-पत्र, धन्यवाद-पत्र, सूचना-पत्र, सिफारिशी-पत्र, परिचय-पत्र, उपदेशात्मक-पत्र, प्रबन्धात्मक-पत्र, याचना-पत्र. पूछताछ-पत्र, आवेदन-पत्र, शिकायती पत्र आदि।

Patra Lekhan Letter-Writing

पत्र समापन की रीति
पत्र पूरा होने के बाद अन्त में सामान्यतः निम्नांकित वाक्यों का प्रयोग किया जाता है-

  • पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में
  • पत्रोत्तर की प्रतीक्षा रहेगी
  • लौटती डाक से उत्तर अपेक्षित है
  • आशा है आप सपरिवार स्वस्थ एवं सानन्द होंगे।
  • यथाशीघ्र उत्तर देने की कृपा करें।
  • शेष मिलने पर।
  • मेष अगले पत्र में।
  • शेष फिर कभी।
  • शेष कुशल है।
  • यदा-कदा पत्र लिखकर समाचार देते रहें।
  • आशा है आपको यह सब स्मरण रहेगा।
  • मैं सदा/आजीवन आभारी रहूँगा/रहूँगी।
  • सधन्यवाद।
  • त्रुटियों के लिए क्षमा।
  • अब और क्या लिखू।
  • कष्ट के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।

पत्र प्रारम्भ करने की रीति
सामान्यतः पत्र का प्रारम्भ निम्नांकित वाक्यों से किया जाता है-

  • आपका पत्र/कृपापत्र मिला/प्राप्त हुआ
  • बहुत दिन से आपका कोई समाचार नहीं मिला
  • कितने दिन हो गये, आपने खैर-खबर नहीं दी/भेजी
  • आपका कृपा-पत्र पाकर धन्य हुआ
  • मेरा सौभाग्य है कि आपने मुझे पत्र लिखा
  • यह जानकर/पढ़कर हार्दिक प्रसन्नता हुई
  • अत्यन्त शोक के साथ लिखना/सूचित करना पड़ रहा है कि-
  • देर से उत्तर देने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ
  • आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि-
  • आपका पत्र पाकर आश्चर्य हुआ कि-
  • सर्वप्रथम मैं आपको अपना परिचय दे दूं ताकि-
  • मैं आपके पत्र की आशा छोड़ चुका था/चुकी थी
  • आपको एक कष्ट देने के लिए पत्र लिख रहा हूँ/रही हूँ
  • आपसे मेरी एक प्रार्थना है कि-
  • सविनय निवेदन है कि-

पत्र-लेखन के आवश्यक नियम

पत्र लिखते समय निम्नलिखित नियमों का ध्यान रखना आवश्यक है

  1. पत्र लिखते समय पत्र-लेखक को पत्र लिखने के उद्देश्य. तात्पर्य प्रयोजन आदि के साथ-साथ इस बात पर भी विचार कर लेना चाहिए कि पत्र पानेवाले का उससे क्या सम्बन्ध है।
  2. पत्र शान्त मन से, स्थिरचित्त होकर लिखना चाहिए। उद्वेगपूर्ण स्थिति में लिखा गया पत्र अस्पष्ट और अव्यवस्थित हो सकता है।
  3. पत्र में व्यर्थ की पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए, अन्यथा पत्र पढ़नेवाला उसमें रुचि नहीं लेगा।
  4. पत्र में सीधी, सरल और स्पष्ट भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए। साथ ही दोहों, कहावतों, मुहावरों, ग्रामीण शब्दों और क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग कम किया जाना चाहिए, जिससे पढ़नेवाला उसे आसानी से समझ सके।
  5. पत्र के ऊपर दाहिनी ओर तिथि तथा स्थान अवश्य लिखना चाहिए, परन्तु आवेदन-पत्रों में तिथि अन्त में बाईं ओर लिखनी चाहिए।
  6. पत्र-समाप्ति के बाद यदि कुछ और लिखना हो तो सदैव ‘पुनश्च’ करके लिखना चाहिए।
  7. सरकारी पत्र संक्षिप्त एवं सुगठित होने चाहिए। ऐसे पत्रों में कम शब्दों में अधिक बात लिखी जानी चाहिए।
  8. सरकारी पत्रों के प्रारम्भ में पत्र का विषय भी लिख देना चाहिए।
  9. सरकारी पत्रों में ओ३म्, श्री गणेशाय नमः आदि नहीं लिखना चाहिए। सरकारी पत्रों में कहावतों, मुहावरों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए, साथ ही उनमें कविता का कोई अंश भी नहीं लिखना चाहिए।
  10. सरकारी पत्रों में व्यक्ति का नाम न लिखकर उसे पद से सम्बोधित किया जाना चाहिए।
  11. पत्र का उत्तर देते समय आए हुए पत्र को सामने रख लेना चाहिए, जिससे पूछी गई सभी बातों का प्रत्युत्तर दिया जा सके।

विभिन्न प्रकार के पत्रों में प्रयोग किए जानेवाले सम्बोधन, निवेदन आदि
पत्र लेखन Patra Lekhan in Hindi हिन्दी 1

पत्र के अंग
पत्र के मुख्यत: छह अंग हैं-

  1. स्थान तथा तिथि-पत्र में दाईं ओर सबसे ऊपर भेजनेवाले का पता तथा पत्र लिखने की तिथि अंकित रहती है।
  2. सम्बोधन एवं प्रशस्ति-पत्र के प्रारम्भ में, जिसे पत्र लिखा जा रहा है, उसके लिए सम्बन्ध-विशेष, आयु अथवा पद के अनुसार सम्बोधन शब्द लिखा जाता है।
  3. शिष्टाचार सम्बोधन या प्रशस्ति के बाद पदानुसार नमस्कार, प्रणाम, आशीर्वाद आदि लिखा जाता है।
  4. मुख्य विषय-इसमें मुख्य सामग्री रहती है।
  5. समाप्ति-पत्र के समाप्त होने पर इति शुभम्, शुभमस्तु, धन्यवाद आदि लिखने के बाद लिखनेवाले का नाम अंकित होता है।
  6. पता-कार्ड या लिफाफे पर पानेवाले का पूरा नाम व पता लिखा जाना चाहिए।

(क) नियुक्ति हेतु आवेदन-पत्र

(1) किसी विद्यालय के प्रबन्धक के नाम प्रवक्ता पद पर अपनी नियुक्ति हेतु एक आवेदन-पत्र लिखिए।
अथवा
अपने जिले के जिला विद्यालय निरीक्षक/प्रधानाचार्य को एक पत्र लिखिए जिसमें उनसे अपने विद्यालय में हिन्दी शिक्षक/लिपिक की नियुक्ति हेतु निवेदन किया गया हो।

सेवा में,
श्रीमान् प्रबन्धक महोदय,
डी० ए० वी० इण्टर कॉलेज,
मुजफ्फरनगर।

मान्यवर,
25 मार्च, 20…… के ‘दैनिक अमर उजाला’ में प्रकाशित आपके विज्ञापन के सन्दर्भ में मैं हिन्दी-प्रवक्ता पद-हेतु अपना प्रार्थना-पत्र आपकी सेवा में प्रेषित कर रहा हूँ।

मेरी शैक्षणिक योग्यताओं का विवरण निम्नलिखित है-
पत्र लेखन Patra Lekhan in Hindi हिन्दी 2
अपने विद्यार्थी-जीवन में मैंने विद्यालय की सांस्कृतिक व साहित्यिक गतिविधियों में उत्साह के साथ भाग लिया और वाद-विवाद प्रतियोगिता में अन्तर्विश्वविद्यालयीय शील्ड भी प्राप्त की।

मैं 2010 से एस० डी० इण्टर कॉलेज, मुजफ्फरनगर में हिन्दी-प्रवक्ता के रूप में कार्य कर रहा हूँ, परन्तु यह स्थान अस्थायी है। आपसे निवेदन है कि मेरी शैक्षणिक योग्यताओं पर विचार करते हुए मुझे अपने कॉलेज में सेवा का अवसर प्रदान कीजिए। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं अपने परिश्रम, कार्यक्षमता एवं अध्यापन-कार्य से अपने छात्रों को सदैव सन्तुष्ट रखूगा और आपको किसी भी प्रकार की शिकायत का अवसर नहीं दूंगा।

दिनांक : 2 अप्रैल, 20….
संलग्नक : प्रमाण-पत्रों की सत्यापित प्रतिलिपियाँ।

भवदीय
अजय शर्मा
218, पुरानी मण्डी,
मुजफ्फरनगर।

(2) सरकारी विभाग के किसी अधिकारी के नाम अपनी नियुक्ति के लिए एक प्रार्थना-पत्र लिखिए।
अथवा
किसी शासकीय कार्यालय में लिपिक पद हेतु नियुक्ति के लिए आवेदन-पत्र लिखिए।

सेवा में,
अतिरिक्त मुख्य अधिकारी
जिला परिषद् ,
बिजनौर।

महोदय,
‘दैनिक जागरण’ के रविवार 1 अप्रैल, 20……… के अंक में प्रकाशित आपके विज्ञापन के सन्दर्भ में मैं हिन्दी-टंकणकर्ता के रिक्त स्थान-हेतु अपना आवेदन आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूँ।

मेरी शैक्षिक योग्यताएँ एवं अनुभव आदि का विवरण इस प्रकार है-
पत्र लेखन Patra Lekhan in Hindi हिन्दी 3
अनुभव-विगत दो वर्षों से मैं स्थानीय शुगर मिल में अस्थायी रूप से टंकणकर्ता का कार्य कर रहा हूँ। हिन्दी में मेरी टंकण गति 50 शब्द प्रति मिनट है।

आयु व स्वास्थ्य-मैं 25 वर्ष का स्वस्थ युवक हूँ और हॉकी का राज्य स्तर का खिलाड़ी भी हूँ।

निवेदन है कि यदि आप मुझ सेवा करने का अवसर प्रदान करेंगे तो मैं अपने सभी वरिष्ठ अधिकारियों को सन्तुष्ट रखेंगा और कभी किसी प्रकार की शिकायत का अवसर न दूंगा।
अपने प्रमाण-पत्रों की सत्यापित प्रतिलिपियाँ संलग्न कर रहा हूँ।

दिनांक : 11-4-20….

भवदीय
विनोद कुमार
25, सिविल लाइन्स,
बिजनौर।

(3) किसी उद्योग के प्रबन्धक को लिपिक के पद पर अपनी नियुक्ति हेतु एक आवेदन-पत्र लिखिए। अथवा अपने महाविद्यालय में कनिष्ठ लिपिक के रिक्त पद पर नियुक्ति हेतु विद्यालय के प्रबन्धक के नाम एक आवेदन-पत्र लिखिए।

सेवा में,
प्रबन्धक,
कागज उद्योग लि०,
सहारनपुर (उ० प्र०)।

विषय : लिपिक के रिक्त पद पर नियुक्ति हेतु आवेदन-पत्र।

महोदय,
मुझे दिनांक 9.4-20…. के दैनिक समाचार-पत्र ‘नवभारत टाइम्स’ द्वारा ज्ञात हुआ है कि आपको अपने कार्यालय के लिए एक लिपिक की आवश्यकता है। इस पद के सन्दर्भ में मेरी शैक्षणिक एवं व्यावसायिक योग्यताओं का विवरण निम्नवत् है-

  1. शैक्षिक योग्यता-मैंने वर्ष 2012 में उ० प्र० बोर्ड से प्रथम श्रेणी में हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की है।
  2. मैं हिन्दी एवं अंग्रेजी के टंकण तथा हिन्दी आशुलिपि में डिप्लोमा प्राप्त हूँ।
  3. मैं विगत 6 माह से एक फाइनेंस कम्पनी में टाइपिस्ट क्लर्क के रूप में कार्य कर रहा हूँ।

उपर्युक्त योग्यताओं के सन्दर्भ में मेरा आपसे निवेदन है कि आप मुझे अपने सुप्रतिष्ठित उद्योग में कार्य करने का अवसर प्रदान करें। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि अवसर प्राप्त होने पर मैं इस पद के योग्य सिद्ध हो सकूँगा तथा अपने कार्य, परिश्रम, निष्ठा एवं आचरण से आपको सन्तुष्ट कर सकूँगा।

धन्यवाद !

दिनांक : 16-4-20….

प्रार्थी
अमित कुमार उपाध्याय
बी-4. रेलवे कॉलोनी,
कानपुर।

(ख) बैंक से किसी व्यवसाय के लिए ऋण प्राप्त करने हेतु आवेदन-पत्र

(4) किसी बैंक के प्रबन्धक को कोई व्यवसाय करने/कार खरीदने/कम्प्यूटर शिक्षा/चिकित्सा शिक्षा हेतु ऋण-प्राप्ति के लिए एक आवेदन-पत्र लिखिए।

सेवा में,
प्रबन्धक,
इलाहाबाद बैंक,
माल रोड,
मेरठ।

महोदय,
सविनय निवेदन है कि वर्ष 2013 में चौ० चरणसिंह विश्वविद्यालय से बी० ए० की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण करने के बाद से अब तक मुझे कहीं कोई रोजगार प्राप्त नहीं हो सका है। मुझे ज्ञात हुआ है कि विभिन्न सरकारी ऋण-योजनाओं के अन्तर्गत आपका बैंक भी बेरोजगार युवकों को 50,000.00 रुपये तक की ऋण

सुविधा प्रदान कर रहा है। अतः इस सन्दर्भ में आवश्यक प्रपत्र आदि भरवाकर मुझे भी 50,000.00 रुपये का ऋण प्रदान करने की कृपा करें।

धन्यवाद!
दिनांक : 20-4-20…..

प्रार्थी
अनुज आनन्द
सुपुत्र श्री धर्मवीर आनन्द
25, साकेत, मेरठ।

(ग) अपने नगर या गाँव की सफाई हेतु सम्बन्धित अधिकारी को प्रार्थना-पत्र

(5) किसी दैनिक-पत्र के सम्पादक के नाम एक पत्र लिखिए, जिसमें मुहल्ले की गन्दगी दूर करने के लिए स्वास्थ्य अधिकारी से प्रार्थना की गई हो।

सेवा में,
सम्पादक,
दैनिक अमर उजाला,
मेरठ।

महोदय,
आपके सम्मानित पत्र के माध्यम से मैं मेरठ नगर निगम के स्वास्थ्य अधिकारी का ध्यान यहाँ के मुहल्ले नई बस्ती में व्याप्त गन्दगी की ओर दिलाना चाहता हूँ।

इस मुहल्ले को बसे हुए सात वर्ष से अधिक हो चुके हैं, किन्तु अभी तक यहाँ सफाई की समुचित व्यवस्था नहीं की गई है। गन्दे पानी की निकासी का भी कोई प्रबन्ध नहीं है। नालियों में हर समय पानी सड़ता रहता है जो असंख्य मक्खी-मच्छरों को जन्म देता रहता है।

दिन में मक्खियों और रात्रि में मच्छरों का ताण्डव-नृत्य मुहल्ले के निवासियों का जीवन दूभर बनाए हुए है, परिणामतः न दिन में चैन है, न रात्रि में आराम।

नगर निगम का स्वास्थ्य विभाग यदि इसी प्रकार की कुम्भकर्णी निद्रा में सोया रहा तो हैजा और मलेरिया-जैसे भयानक रोगों के फैलने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। अतः समय रहते विभाग को सचेत हो जाना चाहिए।

दिनांक : 20 अप्रैल, 20…..

भवदीय
रमेश कुमार
मेरठ।

(6) नगर निगम के स्वास्थ्य अधिकारी ने उस पत्र पर ध्यान नहीं दिया, जिसमें आपने अपने मुहल्ले की गन्दगी की शिकायत की थी। इस बात की शिकायत करते हुए मुख्य नगर अधिकारी को पत्र लिखिए।
अथवा
नगर की सफाई हेतु नगर निगम को पत्र लिखिए।
अथवा
अपने नगर में बाढ़ एवं घनघोर वर्षा के बाद गन्दगी के कारण फैलनेवाले संक्रामक रोगों की आशंका को दृष्टिगत करते हुए रोकथाम के उपायों हेतु जिलाधिकारी को एक पत्र लिखिए।

सेवा में,
मुख्य नगर अधिकारी,
नगर निगम,
मेरठ।

विषय : मुहल्ले में व्याप्त गन्दगी और सड़कों की दशा।

महोदय,
हम आपका ध्यान अपने मुहल्ले में बढ़ती हुई गन्दगी की ओर आकर्षित कराना चाहते हैं। यह लिखते हुए अत्यधिक दुःख है कि हमारा मुहल्ला (शिवपुरी) नगर निगम की उपेक्षा के कारण नरक बन चुका है।

चारों ओर फैला कूड़ा-कचरा, बदबूदार गन्दा पानी, उसमें रेंगते कीड़े और पैदा होते मच्छर नगर निगम की उपेक्षा की कहानी सुना रहे हैं। इससे हैजा जैसे संक्रामक रोगों के फैलने की आशंका बड़ी बलवती हो गई है। मुहल्ले में अनेक लोग मलेरिया से पीड़ित हैं। सड़कों की दशा इतनी खराब है कि पता ही नहीं चलता कि सड़क में गड्ढे हैं अथवा गड्ढ़ों में सड़क है। सड़कों पर चलना जान जोखिम में डालना है, किन्तु घर में बैठकर तो गुजारा नहीं हो सकता, लोगों को प्रतिदिन यह जोखिम उठाना ही पड़ता है। इस विषय में स्वास्थ्य अधिकारी एवं सड़क निर्माण विभाग को भी कई पत्र लिखे हैं, किन्तु उनकी ओर से किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं की गई।

आपसे पुनः निवेदन है कि आप नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए स्वास्थ्य अधिकारी को तुरन्त प्रभावी कार्यवाही का आदेश देकर अनुगृहीत कीजिए।

दिनांक : 25 जुलाई, 20….

हम हैं आपके
मुहल्ला शिवपुरी के निवासी।

(7) अपने नगर/मुहल्ले की सड़कों, नालियों आदि की गन्दगी को दूर करने के लिए उपयुक्त अधिकारी (नगरपालिकाध्यक्ष/स्वास्थ्य अधिकारी) को पत्र लिखिए।
अथवा
अपने नगर में बाढ़ एवं घनघोर वर्षा के बाद जल-जमाव एवं गन्दगी के कारण संक्रामक रोग फैलने की आशंका को ध्यान में रखते हुए जिलाधिकारी को एक पत्र लिखिए।
अथवा
ग्राम प्रधान की ओर से अपने जनपद के जिलाधिकारी को एक पत्र लिखिए, जिसमें गाँव की सफाई व्यवस्था हेतु अनुरोध किया गया हो।

सेवा में,
अधिशासी अधिकारी,
नगरपालिका, रूड़की।

विषय : गन्दगी की समस्या।

महोदय,
मैं आपका ध्यान मॉडल टाउन में व्याप्त गन्दगी और दुर्दशा की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ। इस बस्ती को बसे हुए आठ वर्ष हो चुके हैं; किन्तु अभी भी कुछ ऐसी सड़कें हैं, जहाँ पर ग्रामीण भारत के साक्षात् दर्शन हो जाते हैं। जो सड़कें बनी हुई हैं, वे भी जगह-जगह से टूटी हुई हैं और वर्षों से उनकी मरम्मत भी नहीं हुई है। कई सड़कें अभी तक कच्ची हैं।

जिन स्थानों पर नालियाँ बनाई गई हैं, वे भी जगह-जगह से टूट गई हैं। जहाँ नालियाँ हैं, वहाँ पर उनकी सफाई के लिए सफाई कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं की गई है, परिणामतः पानी हर समय सड़ता रहता है।

आपसे निवेदन है कि कृपया इस बस्ती की दुर्दशा को देखते हुए इसकी सड़कों की मरम्मत और गन्दे पानी के निकास की उचित व्यवस्था का आदेश दीजिए।

धन्यवाद सहित!

दिनांक : 15 जुलाई, 20…..

भवदीय
रामचन्द्र धवन
134- ए, मॉडल टाउन,
रूड़की।

Hindi Grammar

उपसर्ग (Upsarg) – परिभाषा, भेद और उदाहरण- Upsarg in Hindi

upsarg in Hind

उपसर्ग की परिभाषा (Prefixes)

वह शब्द अथवा शब्दांश जो अन्य शब्दों के पूर्व में जुड़कर नए अर्थ उत्पन्न कर देते हैं, ‘उपसर्ग’ कहलाते हैं। एक ही मूल शब्द अलग-अलग उपसर्गों के योग से अलग-अलग अर्थ धारण कर लेता है।

Upsarg in Hindi

उपसर्ग की अर्थ

‘उपसर्ग’ उस वर्ण या वर्ण-समूह को कहते हैं, जिसका स्वतन्त्र प्रयोग न होता हो और जिसे किसी शब्द से पहले, अर्थ सम्बन्धी विशेषता लाने के लिए जोड़ा जाए। उपसर्गों का विशेष महत्त्व यह है कि इनकी सहायता से अनेक प्रकार के शब्द एवं रूप बनते हैं। हिन्दी में तीन प्रकार के उपसर्ग प्रयोग में आते हैं-

विशेष-
(क) उपसर्ग सदैव शब्द के पूर्व में जुड़ते हैं।
(ख) उपसर्ग अव्यय होते हैं।
(ग) इनके योग से शब्द का अर्थ बदल जाता है।

उदाहरण उदाहरण के लिए ‘योग’ शब्द को ही लीजिए, जिसका अर्थ होता है ‘मिलना’ या ‘जुड़ना। इसके पूर्व क्रमशः ‘सम्’ तथा ‘वि’ उपसर्ग जोड़कर बनता है ‘संयोग’ और ‘वियोग’। ‘योग’ के साथ ‘सम् जुड़कर बनने वाले संयोग शब्द का अर्थ हो गया ‘मिलन’ अथवा ‘भाग्य. जबकि योग के साथ ‘वि’ उपसर्ग जुड़कर बनता है ‘वियोग’ जिसका अर्थ हो जाता है “बिछुड़ना। इससे सिद्ध होता है कि उपसर्ग शब्द के पूर्व में जुड़कर उसके अर्थ बदल देते हैं।

हिन्दी में प्रयुक्त उपसर्गों के प्रकार-हिन्दी भाषा में अधिकांश शब्द समूह संस्कृत का है तथा हिन्दी भाषा व्याकरण भी संस्कृत व्याकरण से अधिक प्रभावित है, अतः हिन्दी के अधिकांश उपसर्ग भी संस्कृत भाषा से ही उत्तराधिकार के रूप में आये हैं। प्राचीन काल से प्रयोग होते-होते हिन्दी अब एक सबल भाषा, बन गयी है। अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए इसमें अपने उपसर्गों की भी खासी संख्या हो गयी है;

अतः हिन्दी उपसर्गों में पहला वर्ग उन उपसर्गों का है जो संस्कृत से आये हैं तथा कुछ हिन्दी में विकसित विभिन्न भाषाओं के सम्पर्क में आने पर प्रत्येक भाषा दूसरी भाषा से शब्दों का आदान-प्रदान करती है। हिन्दी के जन्म से सबसे पहली जिन विदेशी भाषाओं से इसका सम्पर्क हुआ, वह है-अरबी और फारसी। हिन्दी में उर्दू के माध्यम से जब अरबी और फारसी के शब्द आये तब उन भाषाओं के उपसर्ग भी साथ चले आये। उपसर्गों का दूसरा वर्ग है उर्दू भाषा से आये उपसर्गों का। संक्षेप में कह सकते हैं कि हिन्दी भाषा में उपसर्ग दो प्रकार के हैं।

  1. संस्कृत से आगत और हिन्दी में स्वतन्त्र रूप से विकसित।
  2. उर्दू के माध्यम से आगत अरबी और फारसी के उपसर्ग।

निम्नलिखित तालिका में दोनों वर्गों के प्रमुख उपसर्गों का परिचय दिया गया है।
Upsarg in hindi 1
Upsarg in hindi 2
Upsarg in hindi 3
Upsarg in hindi 4
Upsarg in hindi 5
Upsarg in hindi 6
Upsarg in hindi 7
Upsarg in hindi 8
Upsarg in hindi 9
Upsarg in hindi 10

निम्नलिखित उपसर्गों से एक-एक शब्द बनाइये –

  1. अधि – अधिकार, अधिपति
  2. आ – आहार, आकण्ठ
  3. अ – अहिंसा, असुविधा
  4. अप अपयश, अपमान
  5. अन् – अनावृष्टि, अनादि, अनमोल
  6. अनु – अनुगमन, अनुभूति
  7. अति – अत्यावश्यक, अतिरिक्त
  8. अभि – अभिमुख, अभिनव, अभिवादन
  9. परा – पराजय
  10. प्रति – प्रतिकूल, प्रतिकार
  11. ना – नालायक
  12. सम् – संचय, संस्कार, सम्मान
  13. उप – उपहार, उपनिरीक्षक, उपमन्त्री
  14. परि – परिकल्पना, परिश्रम, परिजन
  15. सु – सुजन, सुयोग्य, सुपात्र
  16. दुर् – दुर्धर, दुर्जन, दुर्गम
  17. प्र – प्रबल, प्रभाव
  18. वि – विभिन्न, विरोध, विराग
  19. निर् – निरभिमान, निर्जन, निरपराध
  20. बे – बेफिक्र, बेईमान
  21. सह – सहपाठी, सहयोग, सहचर
  22. कम – कमजोर
  23. उप – उपस्थित, उपकार
  24. कु – कुचाल, कुसंग

निम्नलिखित शब्दों में से उपसर्ग पहचान कर लिखिए (अथवा) निम्नलिखित में से उपसर्ग तथा मल शब्दों को अलग-अलग लिखिए-
Upsarg in hindi 11
Upsarg in hindi 12
Upsarg in hindi 13
Upsarg in hindi 14

छन्द – परिभाषा, भेद और उदाहरण : हिन्दी व्याकरण, Chhand in Hindi

Chhand In Hindi

Chhand (Metres)-छन्द – परिभाषा

छन्द का अर्थ एवं परिभाषा जिस काव्य में वर्ण और मात्रा-गणना, यति (विराम) एवं गति का नियम तथा चरणान्त में समता हो, उसे ‘छन्द’ कहते हैं।

‘हिन्दी साहित्य कोश’ के अनुसार-“अक्षर, अक्षरों की संख्या एवं क्रम, मात्रा, मात्रा-गणना तथा यति-गति आदि से सम्बन्धित विशिष्ट नियमों से नियोजित पद्य-रचना ‘छन्द’ Chhand कहलाती है।”

छन्द के तत्त्व

छन्दों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए छन्दों के विभिन्न तत्त्वों के विषय में जानना परम आवश्यक है। छन्दों के मुख्य तत्त्व इस प्रकार हैं

(1) वर्ण-मुख से निकलनेवाली ध्वनि को सूचित करने के लिए निश्चित किए गए चिह्न ‘वर्ण’ कहलाते हैं। वर्ण दो प्रकार के होते हैं–

  • (क) ह्रस्व (लघु),
  • (ख) दीर्घ (गुरु)।

इनका विवेचन इस प्रकार है

(क) ह्रस्व (लघु)-

वर्ण मात्रा-गणना की प्रमुख इकाई है। लघु वर्ण एक मात्रिक होता है; यथा-अ, इ, उ, क, कि, कु। लघु का चिह्न।’ है। दो लघु वर्ण मिलाकर एक गुरु के बराबर माने जाते हैं। इसके नियम इस प्रकार हैं-

  • संयुक्ताक्षर स्वयं लघु होते हैं।
  • चन्द्रबिन्दुवाले वर्ण लघु या एक मात्रावाले माने जाते हैं; यथा-हँसना, फँसना आदि में हँ, फँ।
  • ह्रस्व मात्राओं से युक्त सभी वर्ण लघु ही होते हैं; जैसे–कि, कु आदि।
  • हलन्त-व्यंजन भी लघु मान लिए जाते हैं; जैसे-अहम्, स्वयम् में ‘म्’।

(ख) दीर्घ (गुरु)-

दीर्घ वर्ण ह्रस्व या लघु की तुलना में दुगनी मात्रा रखता है। दीर्घ वर्ण के लिए ” चिह्न प्रयुक्त होता है। मात्रिक छन्दों में मात्रा की गणना से सम्बन्धित दीर्घ वर्ण सम्बन्धी नियम इस प्रकार हैं

  • संयुक्ताक्षर से पूर्व के लघु वर्ण दीर्घ होते हैं, यदि उन पर भार पड़ता है। जैसे–दुष्ट, अक्षर में ‘दु’ और ‘अ’। यदि संयुक्ताक्षर से नया शब्द प्रारम्भ हो तो कुछ अपवादों को छोड़कर उसका प्रभाव अपने पूर्व शब्द के लघु वर्ण पर नहीं पड़ता; जैसे–’वह भ्रष्ट’ में ‘ह’ लघु ही है।
  • अनुस्वार युक्त वर्ण दीर्घ होते हैं; जैसे-कंत, आनंद में ‘कं’ और ‘न’।
  • विसर्गवाले वर्ण दीर्घ माने जाते हैं; जैसे-दुःख में ‘दुः’।
  • दीर्घ मात्राओं से युक्त वर्ण दीर्घ माने जाते हैं; जैसे-कौन, काम, कैसे आदि। यदि उनका उच्चारण लघु की तरह किया गया है तो उन्हें लघु ही माना जाएगा; जैसे–’कहेउ’ में ‘हे’। वास्तव में उच्चारण ही किसी वर्ण को दीर्घ बनाने का आधार है।।
  • कभी-कभी चरण के अन्त में लघु वर्ण भी विकल्पत: दीर्घ मान लिया जाता है। जैसे–’लीला तुम्हारी अति ही विचित्र’ में ‘त्र’ दीर्घ है।

(2) मात्रा-वर्ण के उच्चारण में जो समय व्यतीत होता है, उसे ‘मात्रा’ कहते हैं। लघु वर्ण की एक मात्रा मानी जाती है। गुरु वर्ण के उच्चारण में उससे दुगना समय लगता है, अत: उसकी दो मात्राएँ मानी जाती हैं।
(3) गति-पढ़ते समय कविता के स्पष्ट सुखद प्रवाह को गति कहते हैं।
(4) यति-छन्दों में विराम या रुकने के स्थलों को यति कहते हैं।
(5) तुक- छन्द के चरणों के अन्त में एकसमान उच्चारण वाले शब्दों के आने से जो लय उत्पन्न होती है, उसे तुक कहते हैं।
(6) शुभाक्षर-शुभाक्षर 15 हैं–क, ख, ग, घ, च, छ, ज, द, ध, न, य, श, स, क्ष, ज्ञ।
(7) अशुभाक्षर-इन्हें ‘दग्धाक्षर’ भी कहते हैं। दग्धाक्षरों को कविता के प्रारम्भ में नहीं रखना चाहिए। ये अक्षर इस प्रकार हैं–ङ्, झ, ञ्, ट, ठ, ड, ढ, ण, त, थ, ब, भ, म, र, ल, व, ष, ह। आवश्यकतानुसार इनके दोष-परिहार का भी विधान है।
(8) वर्णिक गण-वर्णिक वृत्तों में वर्षों की व्यवस्था तथा गणना के लिए तीन-तीन वर्षों के गण-समूह बनाए गए हैं। इन्हें ‘वर्णिक गण’ कहते हैं। इनकी संख्या आठ है। इनका विवरण अग्रवत् है-

इन गणों का रूप जानने के लिए ‘यमाताराजभानसलगा’ सूत्र विशेष रूप से सहायक है। गण का नाम और उसकी मात्राओं की संख्या इस सूत्र के आधार पर सरलता से ज्ञात हो जाती है; यथा-प्रारम्भ में आठ अक्षर आठ गणों के नाम हैं, उनकी मात्राओं को जानने के लिए प्रत्येक गण के वर्ण के आगेवाले दो वर्ण लिखकर उसके लघु-गुरु क्रम से मात्राओं को जाना जा सकता है; जैसे–
यगण में य मा ता = 5 मात्राएँ।

छन्द के प्रकार

छन्द अनेक प्रकार के होते हैं, किन्तु मात्रा और वर्ण के आधार पर छन्द मुख्यतया दो प्रकार के होते हैं–
(अ) मात्रिक,
(ब) वर्णवृत्त।

इनका विवेचन निम्नलिखित है

(अ) मात्रिक छन्द- मात्रा की गणना पर आधारित छन्द ‘मात्रिक छन्द’ कहलाते हैं। इनमें वर्णों की संख्या भिन्न हो सकती है, परन्तु उनमें निहित मात्राएँ नियमानुसार होनी चाहिए।

(ब) वर्णिक छन्द केवल वर्ण- गणना के आधार पर रचे गए छन्द ‘वर्णिक छन्द’ कहलाते हैं। वृत्तों की तरह इनमें गुरु-लघु का क्रम निश्चित नहीं होता, केवल वर्ण-संख्या का ही निर्धारण रहता है। इनके दो भेद हैं–साधारण और दण्डक। 1 से 26 तक वर्णवाले छन्द ‘साधारण’ और 26 से अधिक वर्णवाले छन्द ‘दण्डक’ होते हैं। हिन्दी के घनाक्षरी (कवित्त), रूपघनाक्षरी और देवघनाक्षरी ‘वर्णिक छन्द’ हैं।

वर्णिक छन्द का एक क्रमबद्ध, नियोजित और व्यवस्थित रूप ‘वर्णिक वृत्त’ होता है। ‘वृत्त’ उस सम छन्द को कहते हैं, जिसमें चार समान चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में आनेवाले वर्गों का लघु-गुरु क्रम भारत विना सामान्य हिन्दी सौरभ – कक्षा 12 सुनिश्चित रहता है। गणों के नियम से नियोजित रहने के कारण इसे ‘गुणात्मक छन्द’ भी कहा जाता है। मन्दाक्रान्ता, इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, वंशस्थ, मालिनी आदि इसी प्रकार के छन्द हैं।

(अ) मात्रिक छन्द
मात्रिक छन्दों में केवल मात्राओं की व्यवस्था होती है, वर्गों के लघु और गुरु के क्रम का विशेष ध्यान नहीं रखा जाता। इन छन्दों के प्रत्येक चरण में मात्राओं की संख्या नियत रहती है। मात्रिक छन्द तीन प्रकार के होते हैं–

  1. सम,
  2. अर्द्धसम,
  3. विषम।

मात्रिक छन्दों का उदाहरण सहित परिचय निम्नलिखित है

(1) चौपाई
परिभाषा-चौपाई सम मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। अन्त में जगण और तगण के प्रयोग का निषेध है।

उदाहरण-

। । । ऽ। ऽ।। ।।ऽऽ
निरखि सिद्ध साधक अनुरागे।
सहज सनेहु सराहन लागे॥
होत न भूतल भाउ भरत को।
अचर सचर चर अचर करत को॥

-तुलसी : रामचरितमानस

स्पष्टीकरण-इस पद्य के प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ हैं; अतः यह ‘चौपाई छन्द है।

(2) दोहा
परिभाषा-यह अर्द्धसम मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। इसके विषम चरणों के आदि में जगण नहीं होना चाहिए तथा सम चरणों के अन्त में गुरु-लघु होना चाहिए।

उदाहरण-

।।। ऽ। ।। ऽ।ऽ ऽ। ऽ। ।।ऽ।
लसत मंजु मुनि मंडली, मध्य सीय रघुचंदु।
ग्यान सभा जनु तनु धरें, भगति सच्चिदानंदु॥
-तुलसी: रामचरितमानस

स्पष्टीकरण-इस पद्य के पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएँ हैं और दूसरे तथा चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ हैं; अतः यह ‘दोहा’ छन्द है।

(3) सोरठा
परिभाषा–यह अर्द्धसम मात्रिक छन्द है। इसके प्रथम और तृतीय चरण में 11-11 मात्राएँ तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। पहले और तीसरे चरण के अन्त में गुरु-लघु आते हैं और कहीं-कहीं तुक भी मिलती है। यह दोहा छन्द के विपरीत होता है।

उदाहरण-

ऽ। ।ऽ।। ऽ। ।।। ।।। ऽ।। ।।।
नील सरोरुह स्याम, तरुन अरुन बारिज नयन।
करउ सो मम उर धाम, सदा छीरसागर सयन।
–तुलसी : रामचरितमानस

स्पष्टीकरण-इस पद्य के प्रथम और तृतीय चरण में 11-11 तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 13-13 मात्राएँ हैं; अत: यह ‘सोरठा’ छन्द है।

(4) कुण्डलिया
परिभाषा–यह विषम मात्रिक छन्द है। इसमें छह चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। आदि में एक दोहा और बाद में एक रोला जोड़कर कुण्डलिया छन्द बनता है। ये दोनों छन्द मानो कुण्डली रूप में एक-दूसरे से गुंथे रहते हैं, इसलिए इसे ‘कुण्डलिया’ छन्द कहते हैं। जिस शब्द से इस छन्द का प्रारम्भ होता है, उसी से इसका अन्त भी होता है। ‘दोहे’ का चौथा चरण रोला’ के प्रथम चरण का भाग होकर आता है।

उदाहरण-

ऽ ऽ ऽ। । ऽ।ऽ ।। ऽ ।। ।। ऽ ।
साईं बैर न कीजिए, गुरु पण्डित कवि यार।
बेटा बनिता पौरिया, यज्ञ करावन हार॥
यज्ञ करावन हार, राजमंत्री जो होई।
बिप्र पड़ोसी बैद्य, आपुनो तपै रसोई॥
कह गिरिधर कविराय, जुगत सों यह चलि आई।
इन तेरह को तरह, दिए बनि आवै साईं।

स्पष्टीकरण-इस पद्य के प्रथम एवं द्वितीय चरण दोहा के हैं तथा आगे के चार चरण रोला के। दोनों के कुण्डलित होने पर ‘कुण्डलिया’ छन्द का निर्माण हुआ है।

छन्दों से सम्बन्धित बहुविकल्पीय प्रश्न और उनके उत्तर उपयुक्त विकल्प द्वारा निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

1. जिस छन्द में चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं, वह कहलाता है- (2003, 06)
अथवा
यह सममात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। अन्त में जगण और तगण के प्रयोग का निषेध है। इस छन्द का नाम है- [2006]
(क) दोहा (ख) सोरठा (ग) रोला (घ) चौपाई।
उत्तर –
(घ) चौपाई।

2. आदि में एक दोहा जोड़कर और बाद में एक रोला जोड़कर कौन-सा छन्द बनता है- [2008]
(क) हरिगीतिका (ख) कुण्डलिया (ग) बरवै (घ) वसन्ततिलका।
उत्तर –
(ख) कुण्डलिया

3. जथा पंख बिनु खग अति दीना।
मनि बिनु फनि करिबर कर हीना॥
-उपर्युक्त पंक्ति में कौन-सा छन्द है [2003]
(क) रोला (ख) कुण्डलिया (ग) सोरठा (घ) चौपाई।
उत्तर –
(घ) चौपाई।

4. जहाँ प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। चरण के अन्त में जगण और तगण का प्रयोग न हो, वहाँ छन्द होता है [2003]
(क) उपेन्द्रवज्रा (ख) इन्द्रवज्रा (ग) रोला (घ) चौपाई।
उत्तर –
(घ) चौपाई।

5. बन्दहुँ अवध भुवाल; सत्य प्रेम जेहि राम पद। बिछुरत दीनदयाल, प्रियतनु तृण इव परिहेउ। -इस पद में छन्द है (2004)
(क) बरवै (ख) दोहा (ग) सोरठा (घ) चौपाई।
उत्तर –
(ग) सोरठा

6. चौपाई छन्द में कितने चरण होते हैं? नीचे दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर लिखिए (2004, 05, 07, 08)
(क) दो (ख) चार (ग) छह (घ) आठ।
उत्तर –
(ख) चार

7. सुनत सुमंगल बैन, मन प्रमोद सनपुलक भर। सरद सरोरुह नैन, तुलसी भरे सनेह जल॥ इसमें छन्द है
(क) दोहा (ख) रोला (ग) बरवै (घ) सोरठा।
उत्तर –
(घ) सोरठा।

8. नील सरोरुह स्याम, सरुन अरुन बारिज नयन। करउ सो मम उर धाम, सदा छीरसागर सयन॥ इसमें छन्द है
(क) चौपाई (ख) सोरठा (ग) सवैया (घ) बरवै।
उत्तर –
(ख) सोरठा

9. ‘सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेउ मुनिनाथ।
हानि लाभु जीवनु मरनु, जसु अपजसु बिधि हाथ॥’
-इस पद्य में छन्द है
(क) चौपाई (ख) सोरठा (ग) दोहा (घ) सवैया।
उत्तर –
(ग) दोहा

10. ‘मेरी भवबाधा हरौ, राधा नागरि सोय।
जा तन की झाई पड़े, श्याम हरित-दुति होय॥’
-इस पद में छन्द है
(क) चौपाई (ख) सोरठा (ग) दोहा (घ) सवैया।
उत्तर –
(ग) दोहा