मानसिक सुख और सन्तोष निबंध – Happiness Essay In Hindi

Happiness Essay In Hindi

मानसिक सुख और सन्तोष निबंध – Essay On Happiness In Hindi

जब आवै संतोष धन सब धन – When there is satisfaction, wealth is all wealth

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • आध्यात्मिक धन,
  • संसार की अर्थव्यवस्था में असंतोष,
  • असंतोष का कारण,
  • संतोष में ही सुख,
  • संतोष कौन करे?
  • उपसंहार।।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

मानसिक सुख और सन्तोष निबंध – Maanasik Sukh Aur Santosh Nibandh

प्रस्तावना–
संसार में धन का सदा महत्त्व रहा है। धन से सब कुछ खरीदा जाता है। धन को सुख का साधन माना गया है। आज मनुष्य का सारा जीवन धन कमाने में ही बीतता है। इसके लिए वह उचित–अनुचित सब उपाय अपनाता है। आर्थिक मनोकामनाएँ निरंतर पूरी होते रहने पर भी मनुष्य असन्तुष्ट रहता है।

आध्यात्मिक धन–असंतोष मानव जीवन का अभिशाप है और संतोष मानव जीवन का वरदान है। इस सम्बन्ध में भारत के अनेक कवियों की काव्य–पंक्तियों को उद्धृत किया जा सकता है।

साईं इतना दीजियो जामें कुटुंब समाय।
मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु न भूखा जाय।
कबीर मीत न नीत गलीत है जो धरिये धन जोर।
खाए खरचे जो बचै तौ जोरिये करोर। – बिहारी

उपर्युक्त सभी कवियों ने एक ही बात पर जोर दिया है कि संसार में संतोषरूपी धन ही सबसे बड़ा धन है और जब यह प्राप्त हो जाता है तो संसार में किसी धन की आवश्यकता नहीं रह जाती।

हयधन, गजधन, वाजिधन और रतन धन खानि।
जब आवै संतोष धन, सब धन धूरि समान।

संसार की अर्थव्यवस्था में असंतोष–
आज सारा संसार पूँजीवादी व्यवस्था को अपनाकर अधिक–से–अधिक धन कमाने की होड़ में लगा हुआ है। उसकी मान्यता है कि कैसे भी कमाया जाय अधिक धन कमाना चाहिए। धनोपार्जन के लिए मनुष्य किसी भी सीमा तक गिर सकता है। अनुचित साधनों द्वारा अर्जित काला धन ही लोगों की उज्ज्वलता का माध्यम बन गया है। अत: संसार की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था दूषित हो गई है। अधिक–से–अधिक धन बटोरने की होड़ मची है। अमीर और अमीर बन रहा है। गरीब और गरीब होता जा रहा है। गरीब मजबूर है, आत्महत्या करने को विवश है।

असंतोष का कारण–सम्पूर्ण
मानव–जाति आज जिस स्थिति में पहुंच गई है, उसका कारण कहीं बाहर नहीं है स्वयं मनुष्य के विचारों में ही है। आज का मानव इतना स्वार्थी हो गया है कि उसे केवल अपना सुख ही दिखाई देता है। वह स्वयं अधिक से अधिक धन कमाकर संसार का सबसे अमीर व्यक्ति बनना चाहता है। यही असंतोष का कारण है।

संतोष में ही सुख–
प्राचीनकाल से आज तक अनेक महापुरुषों ने इस विषय में अपने विचार व्यक्त किये हैं तथा निष् रूप में यही कहा है कि “धन केवल साधन है साध्य नहीं”। अत: संतोष धन प्राप्त करने में नहीं है। उपनिषद, है–”तेन त्यक्तेन भुंजीथा” जो त्याग करने में समर्थ है उसे ही भोगने का अधिकार है। अत: संतोष में हो सुख है। किन्तु यः उपदेश केवल गरीबों के लिए है और इकतरफा है।

संतोष कौन करे?–
प्रश्न यह है कि संतोष कौन करे? क्या वह निर्धन, दु:खी, त्रस्त, अभावग्रस्त मनुष्य, जो पहले से ही धनिकों के शोषण का शिकार है? संतोष का उपदेश देने वाला कहता है– ‘तू अपनी रूखी–सूखी रोटी खाकर ठंडा पानी पी ले! मुझे चुपड़ी रोटी खाने दे।

मेरी ओर मत देख।” यह शिक्षा उन महान उपदेशकों की है जो भाग्य को मनुष्य की नियति बताकर उसे अभावों की कारा में बन्दी बनाए रखना चाहते हैं। यह कुशिक्षा मनुष्य को निष्क्रिय बनाती है। शोषण को भाग्य और ईश्वर की इच्छा बताकर प्रतिरोध न करने का उपदेश देता है।

चाहे कोई तुम्हें असंतोषी कहे परन्तु अपने अधिकारों को बलात् छीन लेना जरूरी है। अर्थातस्था जो अमीर को और अमीर बना रही है, उसके पीछे गरीबों का संतोष ही कारण है। संतोष गरीबी का जन्मदाता है। मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा है-

अधिकार खोकर बैठ रहना भी महादुष्कर्म है।
न्यायार्थ अपने बंधु को भी दंड देना धर्म है।

संतोष संन्यासियों का धन हो सकता है, राष्ट्र के निर्माण में व्यस्त युवकों के लिए तो वह लोहे की जंजीर के समान है, जो उनको आगे बढ़ने से रोकती है। इसी कारण किसी कवि ने संतोष को सम्बोधित करके कहा है-

बहुत देश ने पूजा तुमको अब तो करो प्रयाण।
इस स्वतंत्र भारत को करने दो अब नव निर्माण॥

उपसंहार–
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि संतोष का उपदेश देना ही काफी नहीं है। उत्पादन के साधनों का समान वितरण भी जरूरी है। जब समाज में असमानता नहीं होगी, अमीरी–गरीबी के दो ऊँचे–नीचे पर्वत नहीं बने होंगे तो असंतोष स्वयं ही नष्ट हो जायेगा।

बाल विवाह एक अभिशाप पर निबंध – Child Marriage Essay In Hindi

Child Marriage Essay In Hindi

बाल विवाह एक अभिशाप पर निबंध – Essay On Child Marriage In Hindi

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • विवाह का महत्त्व,
  • विवाहों के प्रकार,
  • विवाह के विकृत स्वरूप,
  • बाल विवाह : एक सामाजिक अभिशाप,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

बाल विवाह एक अभिशाप पर निबंध – Baal Vivaah Ek Abhishaap Par Nibandh

प्रस्तावना–
भारतीय संस्कृति संस्कारमयी है। पूर्व पुरुषों ने मानव जीवन में षोडश–संस्कारों की व्यवस्था की थी। पाणिग्रहण अथवा विवाह इनमें अत्यन्त महत्त्वपूर्ण संस्कार माना गया है। विवाह गृहस्थ जीवन का प्रवेश–द्वार है।

आश्रम व्यवस्था में प्रथम पच्चीस वर्ष ब्रह्मचर्य अथवा छात्र–जीवन के लिये नियत किये गये थे। आज की परिस्थितियों में यह सीमा कन्या के लिये 18 वर्ष तथा पुरुष के लिये 21 वर्ष स्वीकार की गई है।

विवाह का महत्त्व–
विवाह पारिवारिक जीवन का आधार है। पितृऋण से मुक्ति पाने के लिये विवाहोपरान्त संतानोत्पत्ति आवश्यक मानी गई है। विवाह के पश्चात् ही अनेक धार्मिक एवं सामाजिक क्रिया–कलापों में भाग लेने की पात्रता प्राप्त होती है।

अतः विवाह का रूप और विधि चाहे जो भी हो, यह मानव जीवन की एक अतिमहत्त्वपूर्ण और सर्वव्यापक आवश्यकता है।

विवाहों के प्रकार–
मुक्त यौनाचार और उससे उत्पन्न विकट सामाजिक समस्याओं से बचने के लिये विवाह सभी समाजों में एक आदर्श व्यवस्था के रूप में मान्य है।

भारतीय मान्यता के अनुसार विवाह के तीन रूप प्रचलित हैं-

  • (क) ब्राह्म विवाह–माता–पिता द्वारा अग्नि को साक्षी मानकर कन्यादान किया जाना ब्राह्म–विवाह कहलाता है।
  • (ख) गन्धर्व विवाह–जब स्त्री–पुरुष स्वतन्त्र रूप से एक–दूसरे का वरण कर लेते हैं तो वह गन्धर्व या प्रेम–विवाह कहा जाता है।
  • (ग) राक्षस विवाह–पुरुष द्वारा कन्या का बलात् अपहरण करके उससे विवाह किया जाना राक्षस–विवाह कहा गया है।

विवाह के विकृत स्वरूप–
सामाजिक परिस्थितियों एवं धार्मिक अन्धविश्वासों के कारण विवाह के अनेक विकृत रूप भी प्रचलित रहे हैं। इनमें बाल–विवाह, बहु–विवाह, कुलीन विवाह, अनमेल विवाह आदि ऐसे ही रूप हैं।

बाल विवाह–
जन्म लेने से पूर्व अथवा बहुत छोटी आयु में लड़के–लड़कियों का विवाह करना बाल–विवाह है। भारत में ऐसे विवाह आज भी होते हैं। कानून की दृष्टि से बाल–विवाह अपराध है।

राजस्थान में अक्षय तृतीया के अवसर अब भी ऐसे बच्चों के विवाह होते हैं जिनको उनके माता–पिता अपनी गोद में उठाकर विवाह–संस्कार सम्पन्न कराते हैं। हिन्दुओं में यह एक पुण्य कार्य है किन्तु यह कार्य देश तथा मानवता के प्रति अपराध से कम नहीं है।

बाल–विवाह :
एक सामाजिक अभिशाप–अपूर्ण मानसिक विकास और अपरिपक्व शरीर पर मातृत्व और पितृत्व का बोझ लाद देना वस्तुतः विवाह संस्कार का उपहास है। यह दुर्बल और रोगी सन्तानों की भीड़ बढ़ाकर जनसंख्या की विकट समस्या में आहुति डालने वाला एक राष्ट्रीय अपराध है। इसी ने समाज में बाल–विधवाओं की संख्या में वृद्धि करके नारी के तिरस्कार और उत्पीड़न का मार्ग खोला है। यह नारी–जाति के साथ एक धर्म का ठप्पा लगा कुत्सित षड्यन्त्र है।

उपसंहार–
यद्यपि सरकार द्वारा 18 वर्ष से कम आयु की कन्या के विवाह पर कानूनी रोक लगा दी गई है, किन्तु इस धर्मप्राण देश के अनेक प्रदेशों में आज भी कानून को धता बताते हुए बाल–विवाह धड़ल्ले से हो रहे हैं। आज इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों में जन–जागृति की महती आवश्यकता है।

अत: सरकार और जनता दोनों को ही इस कुप्रथा के उन्मूलन में सहयोग करना चाहिए। परिवार नियोजन को पलीता लगाने वाले और नारी की गरिमा और वरण–स्वातन्त्र्य का विनाश करने वाले बाल–विवाहों पर जितना शीघ्र विराम लग जाय, उतना ही देश और परिवारों के हित में होगा।

वन जीवन का आधार निबंध – Forest Essay in Hindi

Forest Essay in Hindi

वन जीवन का आधार निबंध – Essay on Forest in Hindi

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • वनों का महत्त्व,
  • वन–संरक्षण की आवश्यकता,
  • उपसंहार।।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

वन जीवन का आधार निबंध – Van Jeevan Ka Aadhar Nibandh

प्रस्तावना–
वनों जीव–सृष्टि का आधार है। जहाँ जल है वहाँ जीवन है। वैज्ञानिक भी मानते हैं कि जल के बिना जीवन संभव नहीं। यही कारण है कि प्रकृति ने जीवों के लिए पृथ्वी पर वनों के विशाल भण्डार उपलब्ध कराए हैं।

मनुष्य मनुष्येतर जीव–जन्तु, पेड़–पौधे सभी अपने अस्तित्व के लिए जल पर निर्भर हैं। ऐसे जीवनाधार जल की सुरक्षा और सदुपयोग मनुष्य मात्र का कर्तव्य है। किन्तु खेद का विषय है कि भौतिक सुख–सुविधाओं की अन्धी दौड़ में फंसा मनुष्य इस मूल्यवान वस्तु को दुर्लभ बनाए दे रहा है।

वनों का महत्त्व–
वनों का मानव जीवन में आदिकाल से बड़ा महत्वपूर्ण स्थान रहा है। मानव–संस्कृति का शैशवकाल वनों में ही बीता है। वन मनुष्य के लिए प्रकृति की अमूल्य देन है। भारतीय वन तो ऋषि–मुनियों की साधनास्थली और संस्कृति के प्रेरणा स्रोत रहे हैं। वनों का उपयोगिता की दृष्टि से भी मानव–जीवन के लिए अत्यन्त महत्त्व है। अनेक उद्योग वन सम्पदा पर ही निर्भर हैं।

फर्नीचर उद्योग, कागज निर्माण, गृह निर्माण, दियासलाई उद्योग आदि वनों पर ही निर्भर हैं। वनों से ही हमें नाना प्रकार की औषधियाँ प्राप्त होती हैं। ईंधन, गोंद, मसाले, पशुचर्म, हाथी दाँत आदि उपयोगी वस्तुएँ भी वनों से ही प्राप्त होती हैं। वन वर्षा को आकर्षित करते हैं, बाढ़ों को नियन्त्रित करते हैं। उपजाऊ मिट्टी का क्षरण और रेगिस्तान का बढ़ना रोकते हैं।

वन–संरक्षण की आवश्यकता–
आज वनों पर भी संकट आया हुआ है। विकास के नाम पर वनों का विनाश हो रहा है, वनों को नष्ट करके नगर बसाए जा रहे हैं। कारखाने लगाए जा रहे हैं। पृथ्वी पर वनों का क्षेत्रफल निरन्तर घटता जा रहा है। वन वायुमंडल और ऋतुचक्र को प्रभावित करते हैं। जैव विविधता और प्राकृतिक संतुलन को सुरक्षित रखते हैं। वनों का विनाश होने से वर्षा का क्रम कुप्रभावित होता है।

बाढ़ें आती हैं और जन–धन का विनाश होता है। वन भूमि के तापक्रम को नियन्त्रित करके जलधाराओं के उद्गम स्थलों पर बर्फ को तेजी से पिघलने नहीं देते। वन आक्सीजन देकर और कार्बन डाई आक्साइड का शोषण करके वातावरण को शुद्ध बनाते हैं।

अतः वनों का संरक्षण अत्यन्त आवश्यक है। सरकारों की ओर से अभयारण्य और आरक्षित पार्क आदि बनाकर वनों और वन्य जीवों का संरक्षण किया जाता है। वन विभाग भी वनों की सुरक्षा और वृद्धि के कार्यक्रम चलाता है।

उपसंहार–
वन और जल दोनों ही जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक हैं। दुर्भाग्य से आज दोनों ही संकटग्रस्त हैं। केवल सरकारी उपायों से ही इनकी सुरक्षा सम्भव नहीं है, जनता को भी इनके संरक्षण की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। जल और वनों का दुरुपयोग करने वाले उद्योगों पर कठोर नियन्त्रण होना चाहिए।

जल जीवन का आधार निबंध – Jal Jeevan Ka Aadhar Essay In Hindi

Jal Jeevan Ka Aadhar Essay In Hindi

जल जीवन का आधार निबंध – Essay On Jal Jeevan Ka Aadhar In Hindi

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • जल का जीवन में महत्व,
  • जल संरक्षण की आवश्यकता,
  • उपसंहार।।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

जल जीवन का आधार निबंध – Jal Jeevan Ka Aadhar Nibandh

प्रस्तावना–
जल जीव–सृष्टि का आधार है। जहाँ जल है वहाँ जीवन है। वैज्ञानिक भी मानते हैं कि जल के बिना जीवन संभव नहीं। यही कारण है कि प्रकृति ने जीवों के लिए पृथ्वी पर जल के विशाल भण्डार उपलब्ध कराए हैं।

मनुष्य मनुष्येतर जीव–जन्तु, पेड़–पौधे सभी अपने अस्तित्व के लिए जल पर निर्भर हैं। ऐसे जीवनाधार जल की सुरक्षा और सदुपयोग मनुष्य मात्र का कर्तव्य है। किन्तु खेद का विषय है कि भौतिक सुख–सुविधाओं की अन्धी दौड़ में फंसा मनुष्य इस मूल्यवान वस्तु को दुर्लभ बनाए दे रहा है।

जल का जीवन में महत्व–
जल का मानव–जीवन में पग–पग पर महत्त्व है। हमें पीने के लिए जल चाहिए, नहाने के लिए जल चाहिए, भोजन बनाने और स्वच्छता के लिए जल चाहिए। खेतों की सिंचाई के लिए जल चाहिए, दूध–दही, घी और मिठाई . के स्रोत पालतू पशुओं के लिए जल चाहिए। झोंपड़ी और महल बनाने को, भगवान को मनाने को, पुण्य कमाने को, मनोरंजन और व्यापार को भी जल चाहिए। इसीलिए जल का एक नाम जीवन भी कहा जाता है। जल के अभाव में जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। संसार में स्थित मरुस्थल जल के अभाव का परिणाम दिखा रहे हैं। वहाँ रहने वाले लोगों का जीवन कितना कष्टदायक है।

जल संरक्षण की आवश्यकता–
आज जीवन की रक्षा करने वाला जल स्वयं ही अपनी रक्षा के लिए तरस रहा है। सुख–सुविधाएँ सजाने के पागलपन से ग्रस्त आदमी ने जल का इतना दोहन किया है, उसे इतना मलिन बनाया है कि देश में पानी के लिए त्राहि–त्राहि मची हुई है। भूगर्भ में जल का स्तर निरन्तर गिरता जा रहा है।

गहराई से आने वाला जल खारा और अपेय हो गया है। नदियाँ हमारे कुकर्मों से प्रदूषित ही नहीं हुई हैं बल्कि समाप्त होने के कगार पर पहुँच चुकी हैं। प्रदूषण के कारण भूमण्डलीय ताप में वृद्धि हो रही है और ध्रुव प्रदेश की बर्फ तथा ग्लेशियर तेजी पिघल रहे हैं। यह सब महासंकट की चेतावनियाँ हैं जिन्हें मनुष्य अपनी मूढ़ता और स्वार्थवश अनसुनी कर रहा है।

आज जल संरक्षण आवश्यक ही नहीं अनिवार्य हो गया है। जीना है तो जल.को बचाना होगा। उसका सही और नियन्त्रित उपयोग करना होगा। जलाशयों को प्रदूषित होने से बचाना होगा।

उपसंहार–
वन और जल दोनों ही जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक हैं। दुर्भाग्य से आज दोनों ही संकटग्रस्त हैं। केवल सरकारी उपायों से ही इनकी सुरक्षा सम्भव नहीं है, जनता को भी इनके संरक्षण की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। जल और वनों का दुरुपयोग करने वाले उद्योगों पर कठोर नियन्त्रण होना चाहिए।

आजादी के 70 साल निबंध – India ofter 70 Years Of Independence Essay In Hindi

India ofter 70 Years Of Independence Essay In Hindi

आजादी के 70 साल निबंध – (Essay On India ofter 70 Years Of Independence In Hindi)

क्या खोया क्या पाया – what is lost, what is found

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना
  • आजादी की प्राप्ति
  • जनतंत्र की स्थापना
  • विगत वर्षों की उपलब्धियाँ–आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, शैक्षिक, वैज्ञानिक, सुरक्षातंत्र
  • क्या खोया?
  • उपसंहार।।

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आजादी के 70 साल निबंध – Aajadi Ke 70 Saal Nibandh

प्रस्तावना-
मुगलों के शासन के पश्चात् भारत अंग्रेजी–शासन के चंगुल में फंस गया था। सन् 1857 की क्रान्ति के विफल होने के पश्चात् पराधीनता की जकड़ और ज्यादा प्रबल हो गई थी। इस काल में भारत गम्भीर निर्धनता के साथ अन्ध–विश्वासों की बेड़ियों में जकड़ा था। अशिक्षा और पिछड़ेपन ने भी उसको घेर लिया था।

आजादी की प्राप्ति–
नब्बे साल तक स्वतंत्रता के लिए भारतीयों को संघर्ष करना पड़ा। स्वाधीनता के लिए होने वाले संघर्ष की दिशा मोड़ने के लिए ए. ओ. हयूम ने काँग्रेस की स्थापना की। जब महात्मा गांधी भारत आए और काँग्रेस में उनका प्रभाव बढ़ा तो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की दिशा और दशा दोनों बदल गईं। पूरा देश उनके पीछे एकजुट हो गया और सन् 1947 के पन्द्रह अगस्त को भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई।

जनतंत्र की स्थापना–
स्वाधीन भारत के सामने अनेक समस्याएँ थीं। देश बिखरा हुआ था। अनेक रियासतों के होने के कारण भारत की एकता संकट में थी। तब सरदार पटेल के प्रयासों से इनका भारतीय राष्ट्र में विलय हआ। यह एक बहत बड़ी उपलब्धि थी।

अंग्रेज गवर्नर जनरल लार्ड माउण्ट बेटन की कूटनीति के कारण कश्मीर भारत के लिए आज भी समस्या बना हुआ है। राज्यों का पुनर्गठन भारत की महान उपलब्धि रही। भारतीय संविधान का निर्माण हुआ और 26 जनवरी, सन् 1950 को भारत जनतंत्र बना।

विगत वर्षों की उपलब्धियाँ–
आज भारत को स्वाधीन हुए कई दशक वर्ष बीत चुके हैं। इस बीच देश ने अनेक आन्तरिक तथा बाह्य संकटों का सफलतापूर्वक सामना किया है। इस काल में देश ने बहुत कुछ पाया है तो कुछ खोया भी है। हम यहाँ विभिन्न क्षेत्रों में देश के खोने–पाने का लेखा–जोखा संक्षेप में प्रस्तुत करेंगे।

(क) आर्थिक सन् 1947 में देश में भयंकर निर्धनता थी। आर्थिक दशा अच्छी नहीं थी। खाद्यान्न का भीषण अभाव था। उद्योग–व्यापार चौपट था। उसको सुधारने के लिए योजनाबद्ध प्रयासों की आवश्यकता थी। योजना आयोग (अब नीति आयोग) के प्रयास से देश की आर्थिक दशा में बहुत सुधार हुआ है। देश में कृषि उत्पादन बढ़ा है तथा उल्लेखनीय औद्योगिक प्रगति हुई है।

(ख) सामाजिक विगत वर्षों में देश की विभिन्न जातियों में ऊँच–नीच, छुआछूत आदि को दूर करने में सफलता मिली है। सभी धर्मों के अनुयायियों को अपने–अपने धर्म के अनुसार उपासना की स्वतंत्रता प्राप्त हुई है। भारतीय समाज में अनेक जातियों और धर्मों के मानने वालों में समानता और राष्ट्रीयता की भावना को बढ़ाने में सफलता मिली है।

(ग) राजनैतिक देश में जनतंत्र स्थापित हुआ है। अनेक राजनैतिक दल बने हैं। इन दलों ने संविधान के अन्तर्गत राष्ट्रनिर्माण का कार्य किया है। जनता में लोकतंत्र के प्रति आस्था पैदा हुई है तथा लोकतन्त्र भारत में मजबूत हुआ है। आज भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है।

(घ) शैक्षिक—भारत में शिक्षा की दयनीय स्थिति में सुधार के प्रयास हुए हैं। नए–नए विद्यालय स्थापित हुए हैं। विद्यालयों में पढ़ने जाने वाले विद्यार्थियों की संख्या बढ़ी है। लड़कियों को भी विद्यालयों में भेजा जा रहा है। शिक्षा के स्तर में व्यापक सुधार हुआ है। व्यावसायिक तथा प्राविधिक शिक्षा का भी विस्तार हुआ है।

(ङ) वैज्ञानिक–आज विज्ञान का युग है। भारत में वैज्ञानिक एवं तकनीकी शिक्षा को पर्याप्त महत्त्व प्रदान किया गया है। किया गया है। विज्ञान के शिक्षण–प्रशिक्षण एवं शोध कार्य की व्यवस्था हुई है। हमारे वैज्ञानिक अपनी प्रतिभा से भिन्न–भिन्न क्षेत्रों में महान कार्य कर रहे हैं। अन्तर्महाद्वीपीय अस्त्रों तथा अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत ने अद्वितीय प्रगति की है।

(च) सुरक्षातंत्र–सुरक्षा के क्षेत्र में भी भारत मजबूत हुआ है। अनेक नए वैज्ञानिक उपकरण देश में बनाए जा रहे हैं जिनका उपयोग देश की सुरक्षा के लिए हो रहा है। यद्यपि भारत ने अपने पड़ोसी देशों के अनेक आक्रमण सहन किये हैं किन्तु उनका सफलतापूर्वक सामना करते हुए देश की सुरक्षा तंत्र को मजबूत किया है।

क्या खोया–
विगत वर्षों में भारत ने अनेक उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं किन्तु उसने कुछ खोया भी है। स्वाधीनता से पूर्व देश में हिन्दू–मुस्लिम साम्प्रदायिकता नहीं थी। नियंत्रण के प्रयास के बाद भी इसमें वृद्धि हुई है। हमारे स्वतंत्रता सेनानी एक जाति–मुक्त समाज बनाना चाहते थे किन्तु पिछले अनेक वर्षों में वोट के लालची नेताओं ने जातिवाद को बढ़ावा दिया है।

जातिमुक्त समाज की रचना में आरक्षण भी बाधक है। इससे सामाजिक एकता भी छिन्न–भिन्न हुई है। राजनीति में सिद्धान्तहीनता घर कर चुकी है। इसमें बाहबली नेताओं को बढ़ावा मिला है। सम्प्रदाय और जाति राजनीति के दूषण हैं।

आर्थिक क्षेत्र में प्रगति तो हुई है किन्तु अमीर और अमीर तथा गरीब और गरीब हुए हैं। पूँजी का केन्द्रीयकरण हुआ है, फलत: देश का धन कुछ लोगों की मुट्ठी में बन्द है। जो बाह्य चमक–दमक है, उसके पीछे ऋण पर आधारित व्यवस्था है। जीवन में सादगी और सरलता घटी और आपाधापी बढ़ी है।

उपसंहार कहावत है–
‘बीती ताहि बिसारिए, आगे की सुधि लेहु’! विगत कुछ वर्षों से घटित हो रही राजनीतिक एवं सामाजिक परिवर्तन की घटनाएँ हमें यही सीख दे रही हैं। शासकों का आत्मविश्वास दृढ़ हो रहा है। वे पारदर्शी तथा जनहितैषी शासन की ओर कदम बढ़ा रहे हैं।।

परिवार नियोजन पर निबंध- Family Planning In India Essay In Hindi

Family Planning In India Essay In Hindi

परिवार नियोजन पर निबंध – (Essay On Family Planning In India In Hindi)

प्रस्तावना–
स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात् भारत विकास के पथ पर तेजी से दौड़ रहा है। कृषि, उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य, यातायात, संचार, सुरक्षा आदि क्षेत्रों में नित्य नई प्रगति हो रही है। इन सबके साथ देश की जनसंख्या भी द्रुत गति से बढ़ रही है। अब हम एक अरब पच्चीस करोड़ से अधिक मानव–शक्ति वाला राष्ट्र बन चुके हैं।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

परिवार नियोजन पर निबंध – Parivaar Niyojan Par Nibandh

बढ़ती हुई जनसंख्या का संकट–
देश की तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या हमारे लिए संकट का कारण बन चुकी है। जनसंख्या की वृद्धि दो गुणा दो के गुणात्मक सिद्धान्त पर होती है जबकि उत्पादन के साधनों की वृद्धि ‘एक धन एक’ के योग के सिद्धान्त से होती है अर्थात् जब आवश्यकता की वस्तुएँ एक से दो होती हैं, तब तक उपभोक्ताजनों की संख्या दो से चार हो जाती है।

इस तरह विकास के सभी उपाय तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या के सामने छोटे पड़ जाते हैं और समाज में वस्तुओं का अभाव बना रहता है। भोजन, वस्त्र और आवास की कमी बढ़ती ही जाती है। यही बढ़ती हुई जनसंख्या का संकट है।

जनसंख्या का दबाव–
भारत में हर क्षेत्र में विकास हुआ है परन्तु उस पर जनसंख्या वृद्धि का भीषण दबाव है। हरित क्रान्ति हुई है, खाद्य पदार्थों की उपलब्धता बढ़ी है किन्तु फिर भी भूख की समस्या हल नहीं हो रही है। एक बहुत बड़ी संख्या में लोगों को आधे पेट या खाली पेट रहना पड़ता है। इतने विशाल देश में जगह का अभाव है।

स्कूल में प्रवेश नहीं मिलता, बीमार होने पर अस्पताल में बैड नहीं मिलता, रेलों और बसों में सीट नहीं मिलती। प्रत्येक क्षेत्र में अभाव है। माँग बढ़ती ही जा रही है किन्तु आपूर्ति नहीं बढ़ रही है। इतनी लम्बी–चौड़ी दुनिया है फिर भी इसमें जगह नहीं है। रहने को घर नहीं है, सारा जहाँ हमारा।

जनसंख्या–
वृद्धि पर नियन्त्रण—जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। अन्य देशों ने इस कार्य में सफलता पाई है। जापान का प्रयास अनुकरणीय है। चीन ने भी अपनी जनसंख्या वृद्धि को कठोरता से नियंत्रित किया है।

किन्तु हम इस दिशा को कोई ठोस नीति ही निर्धारित नहीं कर सके हैं। हम लोगों को कुछ लालच देकर बढ़ती हुई जनसंख्या को रोकने का भ्रम पाले बैठे हैं।

कारण भारत में जनसंख्या पर नियन्त्रण न होने के अनेक कारण हैं। यहाँ परिवार नियोजन पर बातें करना उचित नहीं माना जाता। बालक के जन्म को ईश्वर की देन माना जाता है। पुत्र का जन्म परिवार के लिए आवश्यक और गौरवपूर्ण माना जाता है। बेटा पैदा होने की आशा में बेटियों को बार–बार जन्म दिया जाता है। गरीब परिवार में बच्चों को भी किसी काम में लगाकर कुछ न कुछ कमाई कराई जाती है।

भारत में अनेक धर्म और जातियों के लोग रहते हैं। कुछ समझदार लोगों को छोड़कर हर जाति–धर्म के लोग अपनी संख्या बढ़ाने के विचार से परिवार नियोजन का विरोध करते हैं। सरकार केवल पुरस्कार देकर परिवार नियोजन कराना चाहती है। इसके लिए किसी कठोर दण्ड की व्यवस्था नहीं करती।

निवारण–
परिवार नियोजन पर खुलकर विचार होना आवश्यक है। कवि, लेखकों, धार्मिक पुरुषों, राजनैतिक नेताओं तथा मीडिया के लोगों को इस पर खुलकर आन्दोलन चलाना चाहिए। धर्म–जाति का भेदभाव छोड़कर जनसंख्या वृद्धि पर रोक के लिए एक समान कानून बनाना चाहिए, इसके साथ ही सब्सिडी आदि के रूप में मिलने वाली सरकारी सहायता भी उन्हीं लोगों को मिलनी चाहिए जो परिवार नियोजन को अपनाएँ।

उपसंहार–
परिवार नियोजन की उपेक्षा खतरनाक होगी। देश में भूखे–नंगों की बढ़ती हुई संख्या विकास को ध्वस्त कर देगी। भयंकर अशांति और हिंसा भी होगी। महामारी और युद्ध से भी भीषण संकट आयेगा। सब कुछ उलट–पुलट हो जायेगा, सरकारी योजनायें धरी की धरी रह जायेंगी। अत: उस विषय पर कहना तो पड़ेगा ही, कुछ करना भी पड़ेगा।

नहीं तो
इक वंश वृक्ष ऐसा बढ़ेगा
कि वन हो जायेगा
और कठिन ही नहीं,
असम्भव उसमें जीवन हो जायेगा।

विकास पथ पर भारत निबंध – Development Of India Essay In Hindi

Development Of India Essay In Hindi

विकास पथ पर भारत निबंध – (Essay On Development Of India In Hindi)

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • विकास के विभिन्न सोपान,
  • विकास में बाधक तत्त्व,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

विकास पथ पर भारत निबंध – Vikaas Path Par Bhaarat Nibandh

प्रस्तावना–
15 अगस्त 1947 को सैकड़ों वर्षों के दमन, अत्याचार, शोषण और पराधीनता के. कुत्सित पंक से एक पंकज प्रस्फुटित हुआ था–’स्वतन्त्र–भारत’; स्वतन्त्र और स्वाभिमान से गर्वोन्नत भारत, विश्वभर के स्वाधीनता संग्रामों की आशाओं का आकाश–दीप भारत। तब से आज तक हमारा भारत निरन्तर विकास के पथ पर अग्रसर हो रहा है। आज हमारे राजनेता भारत को शीघ्र ही महाशक्ति बनाने का सपना देखने लगे हैं।

विकास के विभिन्न सोपान–देश के विकास के विभिन्न सोपानों को निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है-

भोजन, वस्त्र और आवास के क्षेत्र में–
कभी देश को बाहर से अन्न का आयात करना पड़ता था, आज हरित क्रान्ति के बल पर हम अनाज निर्यात करने की स्थिति में आ गये हैं। वस्त्रों का निर्यात भी हो रहा है। भवन–निर्माण की सामग्री देश में उपलब्ध है। कॉलोनियों का अबाध विस्तार हो रहा है।

चिकित्सा के क्षेत्र में स्वास्थ्य और चिकित्सा के क्षेत्र में भी देश ने उल्लेखनीय प्रगति की है। स्वास्थ्य केन्द्र तथा चिकित्सालयों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। अनेक जटिल तथा असाध्य रोगों की चिकित्सा अब देश में उपलब्ध है।

अफ्रीका और अरब देशों के नागरिक अब यूरोप के स्थान पर भारत आकर चिकित्सा कराना उचित समझते हैं।

शिक्षा के क्षेत्र में–
अशिक्षा के कलंक को मिटाने का भी देश में अथक प्रयास हुआ है। प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य कर दी गई है। प्रौढ़–शिक्षा जैसे आन्दोलन भी चलते रहे हैं। शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने का कानून पारित हो चुका है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हमारा भारत वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी दृष्टि से भी विश्व के अनेक विकसित देशों की श्रेणी में आ गया है। साइकिल से लेकर अन्तरिक्ष यान तक देश में बन रहे हैं। परमाणु विज्ञान, धातु विज्ञान, अन्तरिक्ष अनुसन्धान, सूचना प्रौद्योगिकी, संचार, शस्य विज्ञान आदि पर निरन्तर अनुसन्धान हो रहे हैं। सूचना प्रौद्योगिकी में तो भारत ने सारे विश्व में अपनी धाक जमा ली है।

हमारी अनेक कम्पनियाँ विदेशों में नामी कम्पनियों का अधिग्रहण कर रही हैं। टाटा स्टील द्वारा कोरस का अधिग्रहण इस दिशा में उल्लेखनीय है। सॉफ्टवेयर व्यवसाय में तो भारत की धूम मची हुई है। निर्यात व्यापार में भी उल्लेखनीय वृद्धि हो रही है। विदेशी मुद्रा भण्डार निरन्तर बढ़ता जा रहा है।

सुरक्षा के क्षेत्र में सुरक्षा के क्षेत्र में भी भारत अब किसी से पीछे नहीं है। परम्परागत तथा नवीनतम अस्त्र–शस्त्रों का निर्माण देश में हो रहा है। टैंक, रडार, मिसाइल, लड़ाकू यान, ‘पृथ्वी’, ‘त्रिशूल’, ‘अग्नि’ आदि प्रक्षेपास्त्रों का विकास देश को सुरक्षा के प्रति आश्वस्त बना रहा है। हम विश्व की परमाणु शक्ति बन चुके हैं। अमेरिका से हुआ परमाणु–समझौता उल्लेखनीय है। अग्नि 5 मिसाइल का सफल परीक्षण भारत की बढ़ती सुरक्षा व्यवस्था का प्रमाण है।

आर्थिक क्षेत्र में देश का शेयर बाजार आत्मविश्वास से परिपूर्ण है। गत वर्षों में आर्थिक प्रगति 8 से 10 प्रतिशत रही है। विदेशी पूँजी का निवेश निरन्तर बढ़ रहा है। ये सारे मानदण्ड देश के विकास को प्रमाणित करते हैं। जब अमेरिका और यूरोपीय देशों में मंदी तथा बेरोजगारी बढ़ रही है, भारत में विकास दर ठीक बनी रहने की उम्मीद है।

विकास में बाधक तत्व–
विकास की उपर्युक्त छवि बड़ी मनमोहिनी है। किन्तु विकास का यह प्रकाश अभी देश के लाखों गाँवों तक पूरी तरह नहीं पहुँचा है। विकास के मार्ग में अनेक ऐसे बाधक तत्त्व हैं जो विकास की धारा को जन–जन तक नहीं पहुँचने देते। भ्रष्टाचार, जनसंख्या की वृद्धि, राष्ट्रीय भावना का क्षरण, जीवन–मूल्यों के प्रति अनादर, विदेशी षड्यन्त्र, बेरोजगारी, जातिवाद, साम्प्रदायिकता आदि कारक हैं, जो देश की प्रगति में बाधक बने हुए हैं।

उपसंहार–
अन्त में यही कहा जा सकता है कि देश ने हर दिशा में विकास किया है। विश्व में भारत की विश्वसनीयता बढ़ी है, किन्तु अभी मंजिल दूर है। अर्थशास्त्रियों ने देश को विकसित राष्ट्र बनाने के लिये कुछ मूलमन्त्र सुझाए हैं किन्तु आज की कुटिल राजनीति, सत्ता–लोलुपता और जनता का दिग्भ्रमित रूप इसे साकार होने देंगे, इसमें सन्देह है।

महाकवि तुलसीदास का जीवन परिचय निबंध – Tulsidas Essay In Hindi

Tulsidas Essay In Hindi

महाकवि तुलसीदास का जीवन परिचय निबंध – (Essay On Tulsidas In Hindi)

मेरे प्रिय कवि तुलसीदास – My Dear Poet Tulsidas)

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • जीवन और कृतियाँ,
  • तुलसी की युगीन परिस्थिति,
  • लोकनायक तुलसी की समन्वय की साधना,
  • तुलसी का काव्य–वैभव,
  • उपसंहार।।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

महाकवि तुलसीदास का जीवन परिचय निबंध – Mahaakavi Tulaseedaas Ka Jeevan Parichay Nibandh

प्रस्तावना–
मर्यादा पुरुषोत्तम राम के चरित्र–गायक, भारतीय समाज के उन्नायक और काव्यरसिकों को परमानन्ददायक, गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस के समन्वय–सरोवर में स्नान कराके जन–मन के सारे ताप–संताप दूर कर दिए हैं। तुलसी ने शोषित, पीड़ित और अपमानित जनता को आश्वासन दिया था कि-

“जब–जब होइ धरम की हानी। बाढहि असुर अधम अभिमानी॥
तब–तब धरि प्रभु मनुज शरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥”

इस कारण तुलसी और उनका कृतित्व विश्व के आस्तिकजनों के लिए आस्था और विश्वास का आधार बना हुआ है। इसी कारण ‘तुलसी’ मेरे प्रिय साहित्यकार और कवि हैं।

जीवन और कृतियाँ–
भारतीयों के कण्ठहार गोस्वामी तुलसीदास ने अपने जन्म से किस भू–भाग को धन्य किया? यह विषय विवादग्रस्त है, तथापि उनकी एक महामानव के रूप में प्रतिष्ठा निर्विवाद है।

वह सोरों के थे कि राजपुर के अथवा वाराह क्षेत्र के थे, यह चिन्तन इतिहास–प्रेमियों के लिए चिन्ता का विषय भले ही हो, पर काव्य–प्रेमियों के लिए तो तुलसी सार्वजनीन और सार्वक्षेत्रीय हैं। पुत्र के रूप में तुलसी सौभाग्यशाली न थे। पिता और माता दोनों के स्नेह की छाया से वंचित तुलसी की शैशव–गाथा बड़ी करुणापूर्ण है–”मात–पिता जग जाहि तज्यौ, विधिहू न लिखी कछु भाग भलाई।”

यह पंक्ति तुलसी के विपन्न बालपन की साक्षी है। उनको एक अनाथ के समान जीवन यापन करना पड़ा, परन्तु गुरु नरहरि ने बाँह पकड़कर तुलसी को तुलसीदास बनाया। समस्त ग्रन्थों का अध्ययन कराया और राम–चरणों का सेवक बनाकर उसमें भविष्य के मानसकार को प्रतिष्ठित किया।

गोस्वामी जी का कवि रूप बड़ा भव्य और विशाल है। आपकी प्रसिद्ध कृतियाँ इस प्रकार हैं ‘दोहावली’, ‘गीतावली’, ‘रामचरितमानस’, ‘कवितावली’, ‘रामाज्ञा–प्रश्नावली’, ‘विनय–पत्रिका’, ‘हनुमान–बाहुक’, ‘रामलला नहछु’, ‘पार्वती–मंगल’, “बरवै–रामायण’ आदि।

तुलसी की युगीन परिस्थिति–तुलसी के समय देश में मुगलों का शासन था। अपना बाहुबल काम न आने से लोग निराश थे। उस समय भुखमरी और बेकारी थी।

“खेती न किसान को भिखारी को न भीख, बनिक को बनिज न चाकर को चाकरी।” समाज में ऊँच–नीच और जाति–पाँति का भेदभाव फैला था। तुलसी को भी यह आक्षेप सहना पड़ा था। कवितावली में उन्होंने लिखा है

“धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूत कहौ, जुलहा कहौ कोऊ।
काहू की बेटी तें बेटा न ब्याहव, काहू की जाति बिगारि न सोऊ।”

लोकनायक तुलसी की समन्वय की साधना–तुलसी का काव्य धार्मिक, राजनीतिक तथा सामाजिक समन्वय का अद्भुत आख्यान है। तुलसी ने लोक–व्यवहार और शास्त्र के बीच एक सुगम सेतु का निर्माण किया है।

(क) निर्गुण और सगुण का समन्वय–परमात्मा के निराकार और साकार स्वरूप को लेकर चलने वाली विरोधी भावनाओं को तुलसी ने सहज ही समन्वित कर दिया। वह कहते हैं

“सगुनहिं अगुनहिं नहिं कछु भेदा। गावहिं मुनि पुरान बुध वेदा।”

इसी प्रकार ज्ञान और भक्ति को भी समान पद प्रदान करके उन्होंने लोकमानस के लिए सुलभ साधना का मार्ग खोल दिया
“भगतिहिं ज्ञानहिं नहिं कछ भेदा। उभय हरहिं भव सम्भव खेदा।”

(ख) धर्म और राजनीति का समन्वय–भले ही आज के राजनीतिज्ञ स्वार्थवश धर्म और राजनीति को परस्पर विरोधी बताते रहें, किन्तु तुलसी ने मानस की प्रयोग–भूमि पर यह सिद्ध कर दिखाया है कि धर्म के नियन्त्रण के बिना राजनीति अपने नीति–तत्व को खो बैठती है।

“जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी। सो नृप अवसि नरक अधिकारी।”

सामाजिक समन्वय और भक्ति–समाज में मिथ्या–गर्व और अभिजात्य–भावना को भी तुलसी ने नियन्त्रित किया। उनकी दृष्टि में मानवीय श्रेष्ठता का मानदण्ड जाति या वर्ण नहीं अपितु आचरण है। भगवान राम का भक्त उनके लिए शूद्र होते हुए भी ब्राह्मण से अधिक प्रिय और सम्माननीय है। चित्रकूट जाते हुए महर्षि वशिष्ठ रामसखा निषाद को दूर से दण्डवत् प्रणाम करते देखते हैं तो उसे बरबस हृदय से लगा लेते हैं

“रामसखा मुनि बरबस भेंटा। जनु महि लुठत सनेह समेटा।”

तुलसी के राम शबरी के भक्तिरस से भीगे झूठे बेरों को बड़े प्रेम से खाते हैं। तुलसी ब्राह्मण परशुराम को क्षत्रिय राम के सम्मुख नत–मस्तक कराते हैं और ब्राह्मणं रावण को वध्य मानते हैं।

तुलसी राम के परम भक्त थे। राम का विरोधी, चाहे वह कितना ही निकटस्थ और प्रिय क्यों न हो तुलसी के लिए त्याज्य था

जाके प्रिय न राम–वैदेही।
तजिए ताहि कोटि बैरी सम यद्यपि परम सनेही।

तुलसी का काव्य–वैभव–
तुलसी रससिद्ध कवि हैं। उनके काव्य के भाव–पक्ष तथा कला–पक्ष अत्यन्त समृद्ध हैं। अवधी, ब्रज तथा संस्कृत भाषाओं पर उनका समान अधिकार है। उनकी काव्य रचनाएँ विभिन्न शैलियों का श्रेष्ठ उदाहरण हैं।

उपसंहार–
तुलसी को विचारकों ने लोकनायक माना है। उन्होंने निराशा के सागर में डूबती जनता को आशा और उत्साह का सन्देश दिया। साम्प्रदायिक अहंकारों और आडम्बरों के बीच भक्ति का सीधा सच्चा मार्ग दिखाया। तुलसी का व्यक्तिल्य अद्भुत है, अतुलनीय है और इसी कारण मुझे प्रिय है।

भारत का उज्जवल भविष्य पर निबंध – Freedom Is Our Birthright Essay In Hindi

Freedom Is Our Birthright Essay In Hindi

भारत का उज्जवल भविष्य पर निबंध – (Essay On Freedom Is Our Birthright In Hindi)

भारत के उन्नति की ओर बढ़ते कदम – Steps Towards Progress Of India

संकेत बिंदु–

  • उज्ज्वल भविष्य के संकेत
  • प्रगति के आधार
  • विविध क्षेत्रों में प्रगति
  • बाधाएँ और निराकरण
  • भारतीयों की भूमिका।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

भारत का उज्जवल भविष्य पर निबंध – Bharat Ka Ujjwal Bhavishya Par Nibandh

उज्ज्वल भविष्य के संकेत–
इक्कीसवीं सदी भारत की होगी। भारत विश्व की महाशक्ति बनेगा। ऐसी घोषणाएँ भारत के राजनेताओं, अर्थशास्त्रियों और वैज्ञानिकों ने की है। अनेक विदेशी विद्वानों ने भी भारत के उज्ज्वल भविष्य की भविष्यवाणियाँ की हैं। क्या यह सपना सच होगा ? क्या वास्तव में हम महाशक्ति, विकसित राष्ट्र बनने के मार्ग पर बढ़ रहे हैं ? इन प्रश्नों पर विचार करना आवश्यक है।

प्रगति के आधार–
भारत की चहुमुखी उन्नति के इन दावों और भविष्यवाणियों के पीछे कुछ ठोस आधार दिखायी देते हैं। पिछले कुछ वर्षों में भारत ने सभी क्षेत्रों में अपनी योग्यता का लोहा मनवाया है। हमने अपने आपको विश्व का सबसे बड़ा और स्थिर लोकतंत्र साबित किया है। हमारी अर्थव्यवस्था निरन्तर प्रगति कर रही है। पिछली विश्वव्यापी मंदी को हमने अपनी सूझ–बूझ से परास्त किया है।

हमारी अनेक कम्पनियों ने विदेशी कम्पनियों का अधिग्रहण करके भारत की औद्योगिक कुशलता का प्रमाण दिया है। हमारे शिक्षक, वैज्ञानिक और उद्योगपति विदेशों में भी अपनी प्रतिभा का डंका बजा रहे हैं। विज्ञान, चिकित्सा, व्यवसाय, कला, सैन्य–शक्ति, शिक्षा और संस्कृति, हर क्षेत्र में हमने नए–नए कीर्तिमान स्थापित किये हैं। ये सभी बातें भारत के उज्ज्वल भविष्य में हमारा विश्वास दृढ़ करती हैं।

विविध क्षेत्रों में प्रगति–
इसमें संदेह नहीं कि भारत ने विविध क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की है। हमारे वैज्ञानिकों ने अनेक मौलिक खोजें की हैं। अंतरिक्ष विज्ञान, चिकित्सा, अस्त्र–शस्त्रों का विकास, औद्योगिक कुशलता, दूर–संचार, परमाण–शक्ति आदि क्षेत्रों में हमारी प्रगति उल्लेखनीय है। आर्थिक क्षेत्र में हमारी प्रगति का प्रमाण हमारी अर्थव्यवस्था की स्थिरता और निरंतर विकास से मिलता है।

जब विश्वव्यापी मंदी से संसार की बड़ी–बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ ढह रहीं थीं तब भारतीय अर्थव्यवस्था ने इससे अप्रभावित रहकर अपनी विश्वसनीयता प्रमाणित की। विदेशी निवेश का बढ़ना और विदेशी कम्पनियों का अधिग्रहण भी हमारी अर्थव्यवस्था की सफलता का प्रमाण देता है। इसके अतिरिक्त शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में भी हमने उल्लेखनीय प्रगति की है।

बाधाएँ और निराकरण–
भारत की प्रगति–यात्रा के मार्ग में अनेक बाधाएँ भी हैं। ढाँचागत सविधाओं का अभाव, गरीबी, अशिक्षा, भ्रष्टाचार, राजनीतिक अपराधीकरण, वोट की राजनीति, महिलाओं की उपेक्षा, आतंकवाद और नक्सलवाद आदि बाधाओं पर विजय पाए बिना हमारे सारे सपने अधूरे रह जायेंगे। चरित्र की दृढ़ता, पारदर्शिता और दृढ़ प्रशासन, जनता और सरकार का तालमेल आदि ऐसे उपाय हैं जिनसे हम इन बाधाओं को दूर कर सकते हैं।

भारतीयों की भूमिका–
भारत के भविष्य को उज्ज्वल बनाने में जनता की भी अनिवार्य भूमिका है। जाति, संप्रदाय, निजी स्वार्थ आदि को ठुकराकर आपसी सद्भाव स्थापित करना हर नागरिक का कर्त्तव्य है। सभी भारतीय जन संगठित होकर बुराइयों का विनाश करें और राष्ट्र की उन्नति में सहयोग करें तभी भारत विश्व की महाशक्ति बनेगा।

भारतीय राजनीति में जातिवाद पर निबंध – Caste And Politics In India Essay In Hindi

Caste And Politics In India Essay In Hindi

भारतीय राजनीति में जातिवाद पर निबंध – (Essay On Caste And Politics In Hindi)

भारतीय राजनीति में जातिवाद और धर्म – Casteism and Religion in Indian Politics

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • सिद्धान्त और राजनीति और जनतन्त्र,
  • राजनीति का दूषण और नेता,
  • जातिवाद को बढ़ावा,
  • नियंत्रण की जरूरत,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

भारतीय राजनीति में जातिवाद पर निबंध – Bhaarateey Raajaneeti Mein Jaativaad Par Nibandh

प्रस्तावना–
किसी देश के संचालन के लिए राज्य नामक संस्था का होना आवश्यक है। राज्य के प्रबंधन के लिए राजनीति की आवश्यकता भी होती है। राजनीति यदि स्वच्छ और पवित्र होती है तो जनता का उसमें विश्वास बढ़ता है और देश की प्रगति भी तेजी से होती है।

सिद्धान्त और राजनीति और जनतन्त्र राजनीति के कुछ सिद्धान्त होते हैं। इनमें सबसे प्रमुख सिद्धान्त है जनहित और जनता की सेवा। प्रशासन और न्याय में निष्पक्षता भी स्वच्छ राजनीति का गुण होता है। भारत विश्व का एक प्रमुख जनतंत्र है। जनतंत्र में राजनीति की कार्यशैली और उसका स्वरूप जनवादी होना बहुत जरूरी है।

येन–केन–प्रकारेण
चुनाव जीतकर सत्ता पर अधिकार कर लेना राजनीति का सिद्धान्त नहीं होता। देश में दो या अधिक राजनैतिक दल होते हैं। इनके अपने सिद्धान्त और विचारधाराएँ होती हैं। चुनाव के समय ये दल उनको अपने चुनाव घोषणा पत्र में जनता के सामने रखते हैं। जनता आशा करती है जिनको वह चुन रही है, वे अपने सिद्धान्तों पर अडिग रहेंगे।

राजनीति का दूषण और नेता–
भारत का दुर्भाग्य यह है कि भारतीय राजनीति का रूप आज बहुत दूषित हो चुका है। \राजनीति में शिक्षित, ईमानदार और दृढ़ चरित्र वाले लोगों की संख्या घटती जा रही है। राजनीति में अपराधियों की संख्या बढ़ रही है। योग्य और चरित्रवान लोग राजनीति को काजल की कोठरी मानकर उससे दूर ही रहता है।

आज राजनीति और राजनेताओं का स्वरूप वह नहीं है जो ऊपर से दिखाई देता है। उनके सफेद वस्त्रों के नीचे उनका मन काला हो चुका है। नेता किसी प्रकार सत्ता पाना चाहते हैं और सिद्धान्तों से चिपके रहना मूर्खता समझा जाता है।

जातिवाद और धर्म को बढ़ावा–
यों कहने को तो प्रत्येक दल और नेता सिद्धान्तों की दुहाई देता है, जनहित की बात करता है और जाति धर्म से अप्रभावित स्वच्छ राजनीति का दम भरता है। सभी नेता देश के विकास के नाम पर पर वोट माँगते हैं, परन्तु चुनाव में प्रत्याशी तय करने से लेकर चुनाव और उसके बाद तक जाति और धर्म का खेल खेला जाता है।

वोट देना व्यक्तिगत निर्णय का विषय है, किन्तु भारत के अधिकांशः वोटर जाति–धर्म के आधार पर वोट देते हैं। जाति के चौधरी और सम्प्रदायों के गुरु लोगों को प्रेरित करते हैं। इस प्रकार राजनीति का रूप अपवित्र हो जाता है और वह सर्व समाज के हित में काम नहीं कर पाती। इससे समाज में तनाव बढ़ता है और दंगे होते हैं।

नियंत्रण की आवश्यकता–
राजनीति में जातिवाद और धर्म के नाम पर चलती साम्प्रदायिकता देश की एकता के लिए भयंकर खतरा है। राजनेता चुनाव जीतने के लिए इनको संरक्षण तथा बढ़ावा देते हैं। इन बातों पर कठोर नियंत्रण आवश्यक है।

चुनाव आयोग ऐसे राजनैतिक दलों और राजनेताओं पर नियंत्रण रख सकता है। स्वयं मतदाता को भी जाति और सम्प्रदाय के आधार पर वोट नहीं देना चाहिए।

उपसंहार–
स्वतंत्रता मिलने से पूर्व भारतीय नेता जाति और सम्प्रदायविहीन समाज की रचना करना चाहते थे किन्तु स्वतंत्रता मिलने के बाद के राजनेताओं की सोच बिल्कुल उल्टी है। जातिवाद के आधार पर मिलने वाला आरक्षण इस दोष को पैदा करने वाला प्रमुख कारण है।