राजस्थान के प्रमुख लोक देवता पर निबंध – The Major Folk Deities Of Rajasthan Essay In Hindi

The Major Folk Deities Of Rajasthan Essay In Hindi

राजस्थान के प्रमुख लोक देवता पर निबंध – Essay On The Major Folk Deities Of Rajasthan

संकेत बिन्दु–

  • लोक देवता का आशय
  • प्रमुख लोक देवताओं का संक्षिप्त परिचय
  • लोक देवताओं के जनहितकारी कार्य
  • लोक देवता और लोक आस्था
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

राजस्थान के प्रमुख लोक देवता पर निबंध – Raajasthaan Ke Pramukh Lok Devata Par Nibandh

लोक देवता का आशय–
लोक देवता/देवी से तात्पर्य ऐसे महापुरुषों/महान स्त्रियों से है, जो मानव रूप में जन्म लेकर अपने असाधारण व लोकोपकारी कार्यों के कारण दैवीय अंश के रूप में स्थानीय जनता द्वारा स्वीकारे गए हैं। इनके जन्मस्थल अथवा समाधि पर मेले लगते हैं।

प्रमुख लोक देवताओं का संक्षिप्त परिचय-
एवं उनके जनहितकारी कार्य राजस्थान में लोक देवताओं की एक लंबी परम्परा रही है। क्षेत्र विशेष के अपने–अपने लोक देवता हैं तथा कुछ सर्वमान्य लोक देवता भी हैं, जो राजस्थान की सीमाओं से भी बाहर के लोगों की आस्था का केन्द्र बने हुए हैं। कुछ प्रमुख लोक देवताओं का संक्षिप्त परिचय एवं उनके जनहितकारी कार्य इस प्रकार हैं।

(i) गोगाजी–इनका जन्म 1003 ई. में चूरू जिले के ददरेवा नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम जेवरसिंह तथा माता का नाम बाछल था। ये चौहान राजपूत थे। गोगाजी को जाहरपीर व साँपों का देवता भी कहा जाता है। इनकी स्मृति में भाद्रपद कृष्ण नवमी (गोगानवमी) को गोगामेड़ी (हनुमानगढ़) में मेला लगता है। गोगाजी का प्रतीक घोड़ा है। गोगामेंडी (हनुमानगढ़) व ददरेवा (चूरू) प्रमुख स्थल हैं। जहाँ गोरख टीला है, वहीं नाथ संप्रदाय का विशाल मन्दिर भी स्थित है। गोगाजी ने गौ–रक्षा एवं मुस्लिम आक्रांताओं (महमूद गजनवी) से देश की रक्षार्थ अपने प्राण न्योछावर कर दिये।

(ii) तेजाजी—इनका जन्म नागवंशीय जाट परिवार में सन् 1047 में नागौर जिले के खड़नाल गाँव में हुआ था। पिता का नाम ताहड़जी व माता का नाम राजकुँवरी था। तेजाजी का भोपा जो कि धोड़ला भी कहलाता है सर्प के विष से लोगों को मुक्ति दिलाता है। ये गायों को मेरों से मुक्त कराने के प्रयास में शहीद हुए। इनकी सर्पो के देवता के रूप में पूजा होती है।

तेजाजी के पुजारी को धोड़ला व चबूतरों को थान कहा जाता है। नागौर जिले के परबतसर गाँव में प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला दशमी को पशु मेला भरता है। सर्प एवं कुत्ते के काटने पर इनकी पूजा होती है। इनके थान अजमेर जिले के सुरसुरा, ब्यावर, सेंदरिया, भावतां में भी हैं। ये विशेषतः अजमेर जिले के लोकदेवता हैं।

(ii) रामदेवजी—ये राजस्थान के प्रमुख लोकदेवता हैं। इनका जन्म बाड़मेर जिले के ऊँडूकासमेर गाँव में हुआ था। इनका जन्म वि. सं. 1409 से 1462 के मध्य माना जाता है। इनके पिता का नाम अजमाल एवं माता का नाम मैणादे था। समाज–सुधारक होने व हिन्दू–मुस्लिम एकता पर बल देने के कारण लोग इन्हें लोकदेवता के रूप में पूजते हैं। पोकरण (जैसलमेर) के पास रूणेचा में इनकी समाधि है, जहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला द्वितीया से एकादशी तक मेला भरता है। रूणेचा को आज रामदेवरा के नाम से भी जाना जाता है।

रामदेवजी को हिन्दू कृष्ण के अवतार के रूप में व मुसलमान रामसा पीर के रूप में पूजते हैं। रामदेवजी का प्रतीक चिह्न चरण चिह्न (पगलिये) है। रामदेवजी के मेला का प्रमुख नृत्य तेरहताली है, जिसे कामड़ जाति की स्त्रियाँ करती हैं। ये लोकदेवताओं में एकमात्र कवि माने जाते हैं। चौबीस बाणियाँ इनकी प्रमुख रचना है। इन्होंने कामड़ पंथ को प्रारम्भ किया।

(iv) पाबूजी–जन्म सन् 1239 फलौदी (जोधपुर) तहसील के कोलू गाँव में हुआ था। ये मारवाड़ के राठौड़ वंश से सम्बन्धित थे। ये ऊँटों के देवता के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। राजस्थानी लोक साहित्य में पाबूजी को लक्ष्मणजी का अवतार माना जाता है। पाबूजी का प्रतीक चिहन भाला लिए अश्वारोही है। पाबूजी का प्रमुख उपासना–स्थल कोल (फलौदी) है, जहाँ प्रतिवर्ष मेला भरता है।

ये राइका, थोरी, मेहर (मुस्लिम) जाति के आराध्य हैं। इनसे सम्बन्धित गाथा–गीत, ‘पाबूजी के पवाड़े’ नायक एवं रैबारी जाति के लोग माठ वाद्य के साथ गाते हैं। चांदा, डेमा एवं हरमल इनके रक्षक सहयोगी हैं। पाबू प्रकाश (लेखक–आशिया मोडजी) इनके जीवन पर प्रमुख पुस्तक है। इनका मेला चैत्र माह की अमावस्या को भरता है।।

इनके अतिरिक्त मल्लीनाथ जी, देवनारायण जी, भूरिया बाबा (गौतमेश्वर) बिग्गाजी, बाबा तल्लीनाथ जी, बीर कल्ला जी, हड़बू जी, झुंझार जी, देव बाबा, मामादेव, भोमिया जी आदि प्रमुख लोक देवता हैं।

लोक देवता और लोक आस्था–
लोकदेवता अपने जीवनकाल में ही जनहितकारी कार्यों व समाज सेवा के कारण समाज द्वारा आदर–सम्मान के पात्र बन जाते हैं। जीते–जी ही आस–पास के लोग इन्हें महापुरुष के रूप में प्रतिष्ठा देने लग जाते हैं। कालांतर में यह आदर–सम्मान की भावना उनके न रहने पर उनकी समाधि व स्थल पर आस्था के रूप में प्रकट होती है। यही आस्था लोक देवता के प्रति लोक आस्था में बदल जाती है।

उपसंहार–
राजस्थान की वीरप्रसू भूमि महान वीरों के साथ–साथ अनेक संतों–महापुरुषों की जन्मस्थली रही है। इसी परंपरा में राजस्थान की इस पुण्य धरा पर जन्म लेकर अपने जीवनकाल में संत–महापुरुष के रूप में प्रतिष्ठित होकर लोक देवता/देवी के रूप में सर्वमान्य हुए। आज भी लाखों–लाख की आस्था के केन्द्र लोकदेवता अपने जनहितकारी कार्यों के कारण जनमानस द्वारा पूज्यनीय हैं।

भारत में खेलों का भविष्य पर निबंध – Future Of Sports Essay In India

Future Of Sports Essay In India

भारत में खेलों का भविष्य पर निबंध – Essay On Future Of Sports In India

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • खेलों के प्रति उदासीनता और उपेक्षा,
  • कारण और परिणाम,
  • विभिन्न आयोजन और भारत,
  • बाजारवाद और खेल,
  • स्थिति में सुधार की आवश्यकता,
  • उपसंहार।

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भारत में खेलों का भविष्य पर निबंध – Bhaarat Mein Khelon Ka Bhavishy Par Nibandh

प्रस्तावना–
खेल मनुष्य की जन्मजात प्रकृति है। बच्चे बचपन से ही किसी न किसी खेल का आनन्द उठाते हैं। विद्यालयों में भी उनको खेलने का अवसर मिलता है। किन्तु खेलों के प्रति जिस प्रोत्साहन की जरूरत है, उस ओर समाज और सरकार को ही गम्भीरता से आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता बनी हुई है।

खेलों के प्रति उदासीनता और उपेक्षा–
हमारे देश में खेलों को शिक्षा में बाधक माना जाता है। परिवार के बड़े बच्चों को खेलकूद के प्रति हतोत्साहित करते हैं। उनका मानना है कि दूसरे बच्चों का ध्यान पढ़ाई–लिखाई से हट जाता है और वे जीवन में पिछड़ जाते हैं। कहावत प्रचलित है–’पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे होगे खराब।’

यद्यपि यह कहावत आधारहीन है। खेल जीवन को सँभालने के लिए जरूरी हैं और शिक्षा के समान ही आवश्यक हैं। इस मनोवृत्ति का परिणाम यह है कि खेलों के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए हमारे यहाँ कोई व्यवस्था ही नहीं है। सरकार की खेलों को बढ़ावा देने की सुनिश्चित नीति न होने के कारण, खेलने के मैदानों में बस्तियाँ बस गई हैं। स्कूलों के पास कोई प्ले ग्राउण्ड बचा ही नहीं है। न खेलने का सामान है और न खेलों के लिए धन की कोई व्यवस्था है।

कारण और परिणाम–
खेलों के प्रति इस उपेक्षा का कारण निर्धनता भी है। हम अपने बच्चों को पढ़ा–लिखाकर किसी धनोपार्जन के काम में लगाना अच्छा समझते हैं। उन्हें खेलकूद का प्रशिक्षण दिलाने की बजाय किसी व्यावसायिक शिक्षा केन्द्र में भरती कराना वे उचित समझते हैं। सरकार की ओर से भी इस विषय में किसी प्रोत्साहन की व्यापक व्यवस्था नहीं है।

परिणाम बहुत स्पष्ट है कि देश खेलकूद के क्षेत्र में अपेक्षित गति से आगे नहीं बढ़ा है। खेलों के आयोजनों में भारतीय खिलाड़ियों की सफलता का प्रतिशत ही कम ही रहा है। पदक प्राप्त करने वालों में छोटे–छोटे देश भी हमसे आगे रहते हैं।

अब भारत में वैश्विक आयोजन हो रहे हैं ओलम्पिक खेल, वर्ल्ड कप, अनेक प्रतियोगिताओं के साथ क्रिकेट का आई. पी. एल. संस्करण तो विश्वभर में लोकप्रिय बन चुका है। फुटबाल के क्षेत्र में भी लीग खेल आयोजित होते हैं।

बाजारवाद और खेल–
खेलों में राजनीति और बाजारवाद के दखल के कारण भी भारत खेलों में पिछड़ा है। इसने खेलों के मूल उद्देश्य को ही क्षति पहुँचाई है। खिलाड़ियों में खेल भावना नष्ट हो गई है और खेल धनोपार्जन करके मालामाल होने का साधन मान लिए गए हैं। क्रिकेट के खेल में फिक्सिंग का जो रोग लगा है वह बाजारवाद के ही कारण है।

बाजार ने खेलों पर कब्जा कर लिया है और खेलों को बाजार बना दिया गया है। आई. पी. एल. खिलाड़ी नहीं सट्टेबाज पैदा करता है। श्रीनिवासन की अध्यक्षता वाले आयोग ने भारतीय क्रिकेट की जो दुर्दशा की है उसकी रिपोर्ट देखकर तथा श्रीनिवासन को अपने पद से न हटता देखकर ही सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अपने पद से हटाने की बात कही है। क्रिकेट के खिलाड़ी अब राजनेताओं की तरह जनता का विश्वास खो बैठे हैं। साधारण जनता उनके खेल को एक प्रकार जुआ ही मानती है।

स्थिति में सुधार की आवश्यकता–
भारत को यदि खेल जगत में चीन की तरह आगे बढ़ना है तो उसे इस स्थिति पर नियंत्रण रखना ही होगा। खेलों को खेल मानकर उनके प्रोत्साहन की व्यवस्था करना जरूरी है।

इसके लिए उचित प्रशिक्षण केन्द्र तथा आवश्यक धनराशि की व्यवस्था करना भी जरूरी है। विद्यालय स्तर से ही इसमें सुधार की आवश्यकता है। खेलों से राजनीति के लोगों तथा व्यापारियों को दूर रखना जरूरी है। खेलों का नियंत्रण खेलों के प्रति समर्पित लोगों को ही दिया जाना चाहिए।

उपसंहार–
भारत विभिन्न क्षेत्रों में विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है। खेलों की उपेक्षा करके वह अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकता। खेलों को विकास का एक अंग मानकर ही वह विश्व के अन्य विकसित देशों के साथ खड़ा हो सकता है।

मेरा प्रिय खिलाड़ी निबंध हिंदी में – My Favorite Player Essay In Hindi

My Favorite Player Essay In Hindi

मेरा प्रिय खिलाड़ी निबंध हिंदी में – Essay On My Favorite Player In Hindi

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • परिचय,
  • बचपन से फुटबॉल में रुचि
  • फुटबॉल और पेले
  • फुटबॉलर और लेखक
  • उपसंहार।

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मेरा प्रिय खिलाड़ी निबंध हिंदी में – Mera Priy Khilaadee Nibandh Hindee Mein

प्रस्तावना–
खेलों का मनुष्य के जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। खेलों से उसका शरीरिक और मानसिक विकास होता है। मनुष्य के अनेक गुण खेल के मैदान में ही विकसित होते हैं। इस तरह खेल शिक्षा की भाँति ही मनुष्य की प्रगति में योगदान करते हैं।

परिचय–
फुटबॉल मुझे शुरू से ही पसंद रहा है। फुटबॉल के संसार में पेले का नाम उसी प्रकार प्रसिद्ध है जैसे हॉकी में ध्यानचन्द्र विश्व प्रसिद्ध हैं। पेले के पिता ने अपने पुत्र का नाम प्रसिद्ध वैज्ञानिक थॉमस अल्वा एडिसन के नाम पर एडसन रैंटेस डो नैसिमेंटो रखा था। फुटबॉल के खेल को ऊँचाई तक पहुँचाने में पेले का महान योगदान है।

पेले दक्षिण अमेरिका के ब्राजील का निवासी था। उनके खेल को ब्राजील और लैटिन अमेरिका के खेल के रूप में पहचाना जाता है। पेले के फुटबॉल ने विश्व में ब्राजील अर्जेंटिना और पराग्वे जैसे अनेक देशों को प्रसिद्धि और सम्मान दिलाया है।

बचपन से ही फुटबॉल में रुचि–
पेले की रुचि फुटबॉल खेलने में बचपन से ही थी, ब्राजील के एक छोटे शहर बोरू की बस्ती में एक गरीब परिवार रहता था, इसी परिवार में जन्मा पेले जुराब में कागज के टुकड़े भरकर गेंद बनाकर खेला करता था। वह चाय की एक दुकान पर काम करता था, 16 जुलाई, सन् 1950 में ब्राजील फीफा विश्वकप का आयोजन हुआ था।

रियो में ब्राजील का मुकाबला उरुग्वे से था। सेकेण्ड हाफ के दूसरे मिनट में ब्राजील की टीम के फार्वर्ड फ्रिएका ने विपक्षी टीम पर गोल कर दिया लेकिन उसके बाद उरुग्वे ने दो गोल किए। अन्तिम स्कोर उरुग्वे–2, ब्राजील–1 रहा। अपने पिता को रोते देखकर पेले ने उनसे वायदा किया कि वह विश्व कप जीतकर लाएगा। उस समय पेले की उम्र नौ साल थी।

फुटबॉल और पेले–
पेले को फुटबॉल तथा फुटबॉल को पेले के नाम से पुकारना अनुचित नहीं है। अपने दो दशकों के कैरियर में पेले ने फुटबॉल को अद्भुत ऊँचाइयाँ दी हैं। उसकी बिजली जैसी गति, चीते के समान फुर्ती, सीने पर गेंद को साधकर आगे बढ़ना, आश्चर्यजनक ड्रिब्लिंग और हेडर के द्वारा गेंद को गोल में प्रवेश कराने की कला को पेले का व्यक्तिगत कौशल ही कहा जायेगा। सन् 1958 के विश्व कप फाइनल में स्वीडन एक गोल से आगे हो गया था तब पेले के कारण ब्राजील ने वह फाइनल पाँच–दो से जीता था। इनमें से दो गोल पेले ने किए थे। उस समय उसकी उम्र 17 साल थी।

फुटबॉलर और लेखक–
पेले अपने फुटबॉल के खेल के लिए प्रसिद्ध है। उनके कारण दक्षिणी अमेरिका तथा ब्राजील को प्रशंसा और प्रसिद्धि प्राप्त हुई है। पेले एक महान खिलाड़ी तो थे ही, एक अच्छे लेखक भी थे। फुटबॉल से संन्यास लेने के वर्षों बाद पेले ने अपनी आत्मकथा लिखी।

इसमें उसने अपने बचपन की गरीबी, चाय की दुकान पर काम करने तथा जुराब में कागज के टुकड़े भरकर बनाई गई गेंद से खेलने का जिक्र किया है। पेले की दूसरी किताब “पेले : हाई सॉकर मैटर्स” भी प्रकाशित हो चुकी है।

उपसंहार–
पेले फुटबॉल के पर्याय हैं। अपनी शक्ति और खेलने को कला के द्वारा पराजय को जीत के शिखर पर पहुँचाने की गाथा का नाम ही पेले है। फुटबॉल के खेल को चाहने वाला कोई भी व्यक्ति पेले को कभी भूल नहीं सकता।

जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम पर निबंध – Problem Of Increasing Population Essay In Hindi

Problem Of Increasing Population Essay In Hindi

जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम पर निबंध – Essay On Problem Of Increasing Population In Hindi

जनसंख्या–वृद्धि : घटती समृद्धि – Population Growth: Decreasing Prosperity

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • बढ़ती जनसंख्या की समस्या,
  • जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम,
  • नियन्त्रण के उपाय,
  • उपसंहार।

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जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम पर निबंध – Janasankhya Vrddhi Ke Dushparinaam Par Nibandh

प्रस्तावना–
भूमि, जन और संस्कृति ये तीनों राष्ट्र के अनिवार्य अंग माने गए हैं। इनमें भूमि और संस्कृति दोनों का महत्त्व ‘जन’ के सापेक्ष ही होता है। जन के बिना भूमि निरर्थक है और संस्कृति का विकास ही सम्भव नहीं है। जन या जनसंख्या का अति विस्तार भी राष्ट्र के लिए घातक होता है,

क्योंकि उसके भरण–पोषण और सुरक्षा के लिए, उत्तरदायित्व जन को ही निभाना पड़ता है। आज हमारे देश में बेलगाम बढ़ती जनसंख्या एक विकट चुनौती बनी हुई है। विकास का रथ एक अरब से भी अधिक जनसंख्या को ढोने में असहाय–सा दिखाई दे रहा है।

बढ़ती जनसंख्या की समस्या–
भारत की जनसंख्या में अनियंत्रित वृद्धि सारी समस्याओं का मूल कारण बनी हुई है। गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा, अपराधवृद्धि, तनाव, असुरक्षा, सभी जनसंख्या वृद्धि के ही परिणाम हैं। यद्यपि सरकार और विवेकशील नागरिक इस पर नियंत्रण के प्रयास करते आ रहे हैं, किन्तु स्थिति ऐसी है कि ‘जस जस सुरसा बदन बढ़ावा। तासु दुगन कपि रूप दिखावा।

‘ भारत के विश्व की महाशक्ति बनने के सपने जनसंख्या के प्रहार से ध्वस्त होते दिखाई दे रहे हैं। ‘एक अनार सौ बीमार’ यह कहावत चरितार्थ हो रही है। जनसंख्या वृद्धि के महा–अश्वमेध का घोड़ा. शेयर बाजार के उफान, मुद्राकोष की ठसक, विदेशी निवेश की दमक सबको अँगूठा दिखाता, आगे–आगे दौड़ रहा है।

जनसंख्या–
वृद्धि के दुष्परिणाम–जब किसी समाज के सदस्यों की संख्या बढ़ती है तो उसे उनके भरण–पोषण के लिए जीवनोपयोगी वस्तुओं की भी आवश्यकता पड़ती है। उत्पादन तथा जनसंख्या वृद्धि में संतुलन न होने से जनसंख्या आगे चलने लगती है, फलस्वरूप जनसंख्या–वृद्धि आगे–आगे दौड़ती है और पीछे–पीछे उत्पादन–वृद्धि। जनसंख्या और उत्पादन–दर में चोर–सिपाही का खेल शुरू हो जाता है।

वास्तविकता यह है कि उत्पादन वृद्धि के सारे लाभ को जनसंख्या की वृद्धि व्यर्थ कर . देती है। आज हमारे देश में यही हो रहा है। जनसंख्या–वृद्धि सारी समस्याओं की जननी है। बढ़ती महँगाई, बेरोजगारी, कृषि–भूमि की कमी, उपभोक्ता–वस्तुओं का अभाव, यातायात की कठिनाई सबके मूल में यही बढ़ती जनसंख्या है।

नियंत्रण के उपाय–
आज के विश्व में जनसंख्या पर नियंत्रण रखना प्रगति और समृद्धि के लिए अनिवार्य आवश्यकता है। भारत जैसे विकासशील देश के लिए जनसंख्या नियंत्रण परम आवश्यक है। जनसंख्या पर नियंत्रण के अनेक उपाय हो सकते हैं। वैवाहिक आयु में वृद्धि करना एक सहज उपाय है। बाल–विवाहों पर कठोर नियंत्रण होना चाहिए। दूसरा उपाय, संतति–निग्रह अर्थात् छोटा परिवार है।

परिवार नियोजन के अनेक उपाय आज उपलब्ध हैं। तीसरा उपाय, राजकीय सुविधाएँ केवल परिवार नियोजन का पालन करने वालों तक सीमित करना है। परिवार नियोजन अपनाने वाले व्यक्तियों को वेतन वृद्धि देकर, पुरस्कृत करके तथा नौकरियों में प्राथमिकता देकर भी जनसंख्या–नियंत्रण को प्रभावी बनाया अतिरिक्त शिक्षा के प्रसार द्वारा तथा धार्मिक और सामाजिक नेताओं का सहयोग भी जनसंख्या नियंत्रण में सहायक हो सकता है।

उपसंहार–
जनसंख्या की अनियंत्रित वृद्धि खतरे की घंटी है। यह विस्फोटक बनकर राष्ट्र के कुशल–क्षेम को निगल जाय, उससे पहले ही इस समस्या का गम्भीरता से निराकरण होना चाहिए। आज संसार में संख्या–बल नहीं, अर्थ और बुद्धि–बल से ही सफलता प्राप्त होती है। भारत को एक समृद्ध और शक्ति–सम्पन्न राष्ट्र बनाने के लिए जनसंख्या की असीमित वृद्धि को यथाशीघ्र नियंत्रित करना चाहिए।

विज्ञान के गुण और दोष पर निबंध – Advantages And Disadvantages Of Science Essay In Hindi

Advantages And Disadvantages Of Science Essay In Hindi

विज्ञान के गुण और दोष पर निबंध – (Essay On Advantages And Disadvantages Of Science In Hindi)

विज्ञान वरदान या अभिशाप – Science Boon Or Curse

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • विज्ञान की प्रगति,
  • विज्ञान का वरदानी स्वरूप,
  • विज्ञान अभिशाप के रूप में,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

विज्ञान के गुण और दोष पर निबंध – Vigyaan Ke Gun Aur Dosh Par Nibandh

प्रस्तावना–
सेवक बनकर वरदायी जो, स्वामी बनकर है अभिशाप।

नर का ही उपयोग ज्ञान को, पुण्य बनाता या फिर पाप।। एक ही वस्तु एक पक्ष से देखने पर वरदान प्रतीत होती है और वही दूसरे पक्ष से देखने पर अभिशाप प्रतीत होती है। औषधि के रूप में जो विष जीवन–रक्षक है, वही विष के रूप में प्राणघातक है।

एक ही लोहे से, बधिक की तलवार और शल्य–चिकित्सक की छुरी बनती है किन्तु इसमें विष या लोहे को दोषी नहीं बताया जा सकता। ज्ञान का उपयोग ही उसके परिणाम को निश्चित करता है। विज्ञान भी विशिष्ट और क्रमबद्ध ज्ञान ही है। हम चाहें तो इसे सत्य, शिव और सुन्दर की अर्चना बना दें और चाहें तो उसे महाविनाश, अमंगल और कुरूपता का उपकरण बना दें।

विज्ञान की प्रगति–
यों तो सृष्टि के आदि से मानव ज्ञान–विस्तार में प्रवृत्त है किन्तु उन्नीसवीं और बीसी सदियाँ तो विज्ञान की चरमोन्नति के काल रहे हैं। आज इक्कीसवीं सदी भी विज्ञान के सृष्टि विजयी रथ को और तीव्रता से दौड़ाने में पीछे नहीं है।

जीवन पर विज्ञान के अनन्त उपकार हैं। ऐसा कौन–सा क्षेत्र है जिसे विज्ञान ने अपने उपकारों से कृतज्ञ न बनाया हो ? ऐसा कौन–सा अभागा देश है जो यन्त्रों के घर्घर नाद से न गूंज रहा हो ? सुई से लेकर अन्तरिक्ष यान तक में विज्ञान की महिमा का गान हो रहा है।

विज्ञान का वरदानी स्वरूप–आज विज्ञान मानव–जीवन के लिए हर मनोकामना की पूर्ति करने वाला कल्पवृक्ष बना हुआ है। विज्ञान ने मानव को प्रकृति पर निर्भरता से मुक्त करके उसे अकल्पनीय सुख–सुविधाएँ और सुरक्षा उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण योगदान किया है।

  1. कृषि क्षेत्र–रासायनिक खादों, उन्नत बीजों, कृषि–यन्त्रों, बाँधों, नहरों और कृत्रिम वर्षा की सौगात देकर विज्ञान मानव के कृषि–भण्डार को भर रहा है। वहीं नाना प्रकार की गृह–निर्माण सामग्री और शिल्पीय ज्ञान से मानव के विलास–भवनों की रचना कर रहा है। वही मानव तन को मनमोहक कृत्रिम और पम्परागत वस्त्रों से अलंकृत कर रहा है।
  2. चिकित्सा क्षेत्र–क्षय, कैंसर, कुष्ठ तथा एड्स जैसे घृणित रोगों पर विजय पाने में यह संघर्षरत है। जीन से लेकर क्लोन बनाने तक की मंजिल तय करके वह जीवन के रहस्य को ढूँढ़ रहा है। प्लास्टिक सर्जरी से कुरूपों को सुरूपता दे रहा है। मस्तिष्क, हृदय और गुर्दो को प्रत्यारोपित कर रहा है। अमरता की मंजिल को प्रशस्त कर रहा है।
  3. विद्युत एवं परिवहन क्षेत्र–भीमकाय यन्त्रों को उसी की विद्युत–शक्ति घुमा रही है। वही जल, थल, नभ में नाना प्रकार के वाहनों से दौड़ लगवा रहा है। वही अन्तरिक्ष और ब्रह्माण्ड के कुँआरे पथों को नाप रहा है।
  4. संचार का क्षेत्र–रेडियो, मोबाइल फोन, टेलीफोन, टेलीविजन और इण्टरनेट जैसे उपकरणों से उसने सारे विश्व को सिकोड़कर छोटा कर डाला है। रेडियो–दूरबीनों से यह ब्रह्माण्ड की छानबीन कर रहा है, वसुन्धरा के गर्भ में झाँक रहा है, सागरों के अतल तल को माप रहा है।
  5. मनोरंजन तथा व्यवसाय का क्षेत्र–मनोरंजन के अनेक साधनों के साथ व्यापार के क्षेत्र में भी उसने ई–मेल, ई–बैंकिंग जैसे साधन उपलब्ध कराये हैं।

विज्ञान अभिशाप के रूप में विज्ञान की उपर्युक्त वरदानी छवि के पीछे उसका अभिशापी चेहरा भी छिपा हुआ है। विज्ञान द्वारा आविष्कृत अस्त्र–शस्त्रों ने ही बस्तियों को श्मशान में बदला है।

हिरोशिमा और नागासाकी जैसे नगरों को विश्व के मानचित्र से मिटाने का श्रेय भी विज्ञान को ही जाता है। विज्ञान ने मनुष्य को घोर भौतिकवादी बनाकर उसके श्रेष्ठ जीवन मूल्यों को पददलित कराया है। विज्ञान की कृपा से ही आज का यह जगमगाता प्रगतिशील विश्व बारूद के ढेर पर बैठा हुआ है।

उपसंहार–
कवि दिनकर ने विज्ञान की विभूति पर इठलाने वाले आज के मानव को सावधान किया है सावधान मनुष्य यदि विज्ञान है तलवार, तो इसे दे फेंक, तजकर मोह, स्मृति के पार। हो चुका है सिद्ध, है तू शिशु अभी नादान, फूल काँटों की तुझे, कुछ भी नहीं पहचान।

वस्तुतः विज्ञान न वरदान है न अभिशाप। मनुष्य की उपयोग–बुद्धि ही उसके स्वरूप की निर्णायक है। अत: मनुष्य जाति का कल्याण इसी में है कि वह विज्ञान को अपना स्वामी न बनाकर उसे सेवक की भूमिका तक ही सीमित रखे।

मिलावटी खाद्य पदार्थ और स्वास्थ्य पर निबंध – Adulterated Foods And Health Essay In Hindi

Adulterated Foods And Health Essay In Hindi

मिलावटी खाद्य पदार्थ और स्वास्थ्य पर निबंध – Essay On Adulterated Foods And Health In Hindi

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • मिलावट की व्यापक प्रवृत्ति,
  • शिथिल दण्ड व्यवस्था,
  • मिलावटखोरी और स्वास्थ्य,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

मिलावटी खाद्य पदार्थ और स्वास्थ्य पर निबंध – Milaavatee Khaady Padaarth Aur Svaasthy Par Nibandh

प्रस्तावना–
भारत एक तेजी से विकसित होती हुई अर्थव्यवस्था वाला देश है। हर क्षेत्र में विकास के नये–नये प्रतिमान स्थापित हो रहे हैं। आज भारत के कई उद्योगपति विश्व की धनवानों की सूची में चौथे और पाँचवें स्थान पर अंकित किये जा रहे हैं। भारतीय मूल के कई उद्योगपतियों ने विश्व व्यवसाय जगत् में अपना उच्चतम नाम अंकित करवा दिया है।

हमारे यहाँ के उद्योगपति विश्व के अनेक धनवान देशों की बीमार औद्योगिक इकाइयों का अधिग्रहण कर चुके हैं। यह परिदृश्य हमारे यहाँ के छोटे छोटे व्यापारियों को मिलावट, कम तौलना या नकली माल बेचकर ग्राहकों को धोखा देने को प्रेरित कर रहा समय में और बिना परिश्रम किए सफलता पाने का विचार भारतीयों में घर कर चुका है। व्यापारी भी आनन– फानन में लखपति और करोड़पति बनने के लिए मिलावट करना बुरा नहीं समझता।

मिलावट की व्यापक प्रवृत्ति–
भारत में आज कोई भी वस्तु शुद्ध नहीं मिलती। प्रत्येक वस्तु में किसी–न–किसी वस्तु की मिलावट पाई जाती है। कहते हैं एक व्यक्ति आत्महत्या के उद्देश्य से बाजार से जहर ले आया। जहर खाने के बाद वह मरा नहीं क्योंकि जहर मिलावटी था।

फिर बीमारी के इलाज के लिए दवाएँ लाया। दवा खाकर वह मर गया, क्योंकि दवाएँ नकली थीं। यह कहानी मिलावटी और नकली माल के बाजार में भरे होने को प्रमाणित करती है।

आज हर वस्तु नकली तथा मिलावटी मिलती है। दूध में पानी, घी में डालडा या चर्बी, धनिये में घोड़े की लीद, चाय पत्ती में चमड़े की कतरन, काली मिर्च में पपीते के बीज, मसालों में पत्थर का चूरा आदि तो पहले भी मिलाये जाते थे। अब तो रसायनों का प्रयोग करके सिंथेटिक दूध, घी, खोया तथा अन्य खाद्य पदार्थ तैयार किये जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त हानिकारक होते हैं।

थोड़े से डिटर्जेंट, यूरिया, रिफाइन्ड तेल तथा सफेद आयल पेन्ट आदि से नकली दूध बनाने के कारखाने पकड़े जा चुके हैं। कुछ समय पूर्व ही पशुओं की हड्डियों तथा माँस को उबालकर चर्बी निकालने तथा उससे देशी घी बनाने की फैक्ट्री आगरा के झरना नाले के जंगल में पकड़ी जा चुकी है। एक पुरानी हिन्दी फिल्म ‘नील कमल’ में अभिनेता महमूद के गाये हुए गीत से मिलावट की व्यापकता प्रमाणित होती है-

ना जाने किस चीज में क्या हो? गरम मसाला लीद भरा हो।

मिलावटी तथा नकली माल बेचकर शीघ्र ही धनी बने लोगों से समाज यह नहीं पूछता कि वे इतनी जल्दी अमीर कैसे बन गए? समाज उल्टे उनको धर्मवीर मानकर सम्मानित करता है।

इस तरह अप्रत्यक्ष रूप से उनके मिलावटी और नकली माल बेचने के दुष्कर्म को सामाजिक मान्यता प्राप्त हो जाती है। धर्म के पीछे विवेकहीन होकर हम सच्चाई को जानने की कोशिश ही नहीं करते और समाज का शोषण जारी रहता है।

शिथिल दण्ड व्यवस्था–
समाज की तरह ही सरकार भी मिलावटखोरों का साथ देती है। मिलावट तथा नकली माल के विरुद्ध कानून अत्यन्त ढीला है। यदि कानून है भी तो उसका पालन नहीं कराया जाता। व्यापारी रिश्वत देकर स्वयं को बचा लेता है। पहले तो मिलावट पकड़ी ही नहीं जाती।

यदि पकड़ी भी जाय तो सिद्ध नहीं हो पाती। मिलावटी माल की जाँच करने वाली प्रयोगशालायें बहुत कम हैं। जो हैं भी उनमें काम नहीं होता। नमूने महीनों–वर्षों पड़े–पड़े खराब हो जाते हैं तथा फिर उनसे किसी निष्कर्ष पर पहुँचा ही नहीं जा पाता। न्यायालय में वकील के तर्क मामलों को और उलझा देते हैं। तब शिकायतकर्ता को लगता है कि दोषी मिलावटखोर नहीं है, मिलावट की शिकायत करने वाला वह स्वयं दोषी है।।

मिलावटखोरी और स्वास्थ्य–
खाद्य पदार्थों में मिलावट तो बहुत ही निन्दनीय है। अशुद्ध खाद्य पदार्थ लोगों के स्वास्थ्य को हानि पहुँचाते हैं। कुछ चीजें तो मनुष्य को गम्भीर रूप से बीमार कर देती हैं। कभी–कभी वह जीवनभर ठीक न होने वाली बीमारी का शिकार हो जाता है। रही–सही कसर नकली और मिलावटी दवाएँ पूरा कर रही हैं।

उपसंहार–
मिलावट करने तथा नकली माल बेचने की समस्या दिन–प्रतिदिन जटिल होती जा रही है। अब तो प्रत्येक वस्तु नकली बनाई जाती है तथा उसका एक बड़ा बाजार बन चुका है। नेता, अफसर, व्यापारी और कर्मचारियों का गठजोड़ मिलकर जनता को लूट रहा है।

जनता स्वयं सजग नहीं है। जनता की असावधानी भी इस बुराई के फैलने का एक कारण है। उपभोक्ता फोरम आदि संस्थायें उपभोक्ताओं के हित के लिए बनी हैं परन्तु वे तभी अपना कार्य कर सकती हैं, जब जनता भी इसमें उनकी मदद करे।

मीडिया और सामाजिक उत्तरदायित्व निबंध – Social Responsibility Of Media Essay In Hindi

Social Responsibility Of Media Essay In Hindi

मीडिया और सामाजिक उत्तरदायित्व निबंध – Essay On Social Responsibility Of Media In Hindi

लोकतन्त्र में मीडिया का उत्तरदायित्व – Responsibility Of Media In Democracy

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • लोकतंत्रीय शासन व्यवस्था,
  • मीडिया और उसके प्रकार,
  • लोकमत,
  • लोकतंत्र में मीडिया. का महत्त्व और कर्तव्य,
  • स्पर्धा की दौड़ में कर्तव्यहीन मीडिया,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

मीडिया और सामाजिक उत्तरदायित्व निबंध – Meediya Aur Saamaajik Uttaradaayitv Nibandh

प्रस्तावना–
लोकतंत्र को जनतंत्र तथा प्रजातंत्र भी कहते हैं। जिस तंत्र में ‘लोक’ अर्थात् जनता की सत्ता सर्वोपरि होती है, वही सचमुच लोकतंत्र होता है। ‘लोकतंत्र’ जनहितकारी तथा न्याय पर आधारित शासन व्यवस्था है। इस व्यवस्था को शुद्ध और पवित्र बनाये रखने के लिए जनता का सुशिक्षित और विवेकशील होना अत्यन्त आवश्यक है। जनता को लोकतन्त्रीय प्रशिक्षण देने में मीडिया की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण होती है।

लोकतंत्रीय शासन व्यवस्था–
लोकतंत्र के मूल में लोक है। लोक स्वयं ही अपने आपको शासित करता है। इसके लिए वह देश की विधायी संस्थाओं के लिए अपने प्रतिनिधि चुनता है। अपना सही प्रतिनिधि चुनना जनता का अधिकार ही नहीं कर्तव्य भी होता है।

ये निर्वाचित प्रतिनिधि ही मिलकर सरकार बनाते हैं, देश के लिए कानून बनाते हैं तथा उनका पालन कार्यपालिका द्वारा कराते हैं। इस शासन व्यवस्था में जनहित प्रमुख होता है। यदि निर्वाचित प्रतिनिधि जनता की उपेक्षा करते हैं और जनविरोधी कार्य करते हैं तो जनता उनको सत्ता से हटा देती है।

मीडिया और उसके प्रकार–संचार–
साधन को मीडिया कहते हैं। मीडिया दो प्रकार का है–प्रिन्ट (मुद्रित) मीडिया तथा इलैक्ट्रानिक मीडिया। प्रिंट मीडिया के अन्तर्गत समाचार–पत्र तथा पत्रिकाएँ आती हैं। कुछ पत्रिकाएँ साप्ताहिक होती हैं तो कुछ मासिक, त्रैमासिक और वार्षिक भी होती हैं।

पत्रिकाएँ विषय–वस्तु के अनुसार भिन्न–भिन्न प्रकार की होती हैं। दूरदर्शन, रेडियो, इण्टरनेट आदि इलैक्ट्रानिक मीडिया के अन्तर्गत आते हैं। दूरदर्शन पर अनेक चैनल हैं। कुछ केवल मनोरंजक सामग्री प्रस्तुत करते हैं तो कुछ समाचार और चिन्तन सम्बन्धी।

लोकमत–
मीडिया का प्रमख उत्तरदायित्व है–लोकमत का निर्माण और प्रकाशन। समाचार–पत्र तथा दरदर्शन आदि को समाचारों को निष्पक्ष होकर प्रस्तुत करना चाहिए। किसी समाचार अथवा घटना की समीक्षा करते समय भी उसका दृष्टिकोण तटस्थता का होना चाहिए।

उसे जनता को किसी समस्या के सम्बन्ध में अपना मत निश्चित करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। लोकमत या जनमत के निर्माण में मीडिया का महत्वपूर्ण स्थान है। ईमानदार और कर्तव्यपरायण मीडिया ही निष्पक्ष जनमत का निर्माता होता है। मीडिया के न होने या कर्तव्यहीन होने से जनतंत्र का अस्तित्व भी संकट में पड़ सकता है।

लोकतंत्र में मीडिया का महत्त्व और कर्तव्य–
मीडिया लोकतंत्र में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होता है। मीडिया को कार्य करने की पूरी स्वतन्त्रता होती है। उसका कर्तव्य होता है कि वह किसी घटना, समाचार आदि को पूर्णत: तटस्थ रहकर जनता के सामने प्रस्तुत करे। वह यह कार्य इस प्रकार करे कि जनता उस पर विश्वास करे तथा फिर स्वयं उस पर कोई निष्पक्ष निर्णय ले सके।

कुछ समाचार–
पत्र तथा दूरदर्शन के चैनल किसी बात को तटस्थ होकर प्रस्तुत नहीं करते। मीडिया जनता का प्रशिक्षक भी होता है। वह सच्चा प्रशिक्षक तभी बन सकता है, जब वह प्रत्येक पूर्वाग्रह से मुक्त होकर सच्चाई को सामने लाये। लोगों के बीच किसी समाचार–पत्र अथवा दूरदर्शन चैनल की लोकप्रियता अधिक होने के पीछे उसकी कार्य–प्रणाली का ही महत्व होता है।

स्पर्द्धा की दौड़ में कर्तव्यहीन मीडिया–
आज का युग स्पर्द्धा का है। प्रत्येक क्षेत्र में आगे निकलने की होड़ है। मीडिया में भी यह स्पर्धा अत्यन्त प्रबल है। हर समाचार–पत्र चाहता है कि उसकी प्रसार संख्या अथवा ग्राहक संख्या बढ़े। दूरदर्शन के चैनलों में भी गलाकाट प्रतियोगिता है। प्रत्येक चैनल अपना टी. आर. पी. बढ़ाना चाहता है।

इसके लिए वह सनसनीखेज तथा लोगों को आकर्षित करने वाले समाचार प्रसारित करता है। मीडिया पर आने वाले विज्ञापन तथा कार्यक्रम इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किये जाते हैं। इसी कारण दूरदर्शन के कार्यक्रमों में अश्लीलता बढ़ रही है।

किसी कार्यक्रम को प्रस्तुत करते समय मुख्य लक्ष्य अधिक से अधिक पाठकों या दर्शकों को स्वयं से जोड़ना होता है, यह नहीं देखा जाता कि इसका समाज पर क्या प्रभाव होगा।

आजकल दूरदर्शन ऐसे कार्यक्रम प्रस्तुत करता है जिससे जनता में आत्मबल के स्थान पर अन्धविश्वास तथा भाग्यवाद को बढ़ावा मिलता है। प्रत्येक चैनल पर कोई–न–कोई तथाकथित बाबा, साधु, महात्मा, ज्योतिषी इत्यादि जनता को भ्रमित करने के लिए उपस्थित रहता है। कुछ विज्ञापन तो कानून का मजाक उड़ाते हैं। इलैक्ट्रानिक सामान, बाइक, कार आदि के कुछ विज्ञापन दहेज कानून को तोड़ते हैं।

उपसंहार–
मीडिया को लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ, जनतन्त्र का प्रहरी आदि कहा जाता है। जो स्वयं अनुशासन में नहीं वह लोकतन्त्र का क्या मार्गदर्शन कर पाएगा। इलैक्ट्रानिक मीडिया के कुछ वर्ग तो मनमानी पर उतर आए हैं। इस प्रकृति पर नियन्त्रण आवश्यक है। मीडिया के लिए भी एक आचार संहिता आवश्यक है।

बढ़ते वाहन घटता जीवन पर निबंध – Vehicle Pollution Essay In Hindi

Vehicle Pollution Essay In Hindi

बढ़ते वाहन घटता जीवन पर निबंध – Essay On Vehicle Pollution In Hindi

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • नगर–सभ्यता और यातायात,
  • विज्ञान की देन वाहन,
  • वाहनों की बढ़ती संख्या और प्रदूषण,
  • वाहनों के कारण–हानि,
  • उपसंहार।।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

बढ़ते वाहन घटता जीवन पर निबंध – Badhta Vahan Ghatta Jeevan Par Nibandh

प्रस्तावना–
मनुष्य चलने–फिरने वाला प्राणी है। वह सदा एक स्थान पर नहीं रह सकता। विभिन्न कारणों से उसको एक स्थान से दूसरे स्थानों तक यात्रा करनी पड़ती है। प्राचीन काल में ये स्थान दूर नहीं होते थे और वह वहाँ पैदल चलकर ही पहुँचा जाता था।

इसके बाद उसने आवागमन के लिए पशुओं का उपयोग किया। बाद में बैलगाड़ियों, भैंसागाड़ियों, घोड़ा और ऊँटगाड़ियों आदि का प्रयोग आने–जाने के लिए होने लगा।

नगर–सभ्यता और यातायात–
प्राचीनकाल में लोग गाँवों में रहते थे। धीरे–धीरे नगरों का विकास हुआ। ये नगर बड़े और विशाल होते थे। उनमें एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने के लिए तथा गाँव या नगर से दूसरे गाँव या नगर तक आने–जाने के लिए यातायात के साधनों की आवश्यकता होती थी। यातायात के साधनों के रूप में उस समय पशुओं द्वारा चालित गाड़ियाँ ही प्रचलित थीं।

विज्ञान की देन वाहन–
वर्तमान सभ्यता विज्ञान की सभ्यता है। विज्ञान ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हस्तक्षेप किया है। यातायात को सुगम बनाने के लिए उसने अनेक प्रकार के वाहन बनाए हैं। साइकिल का आविष्कार इस क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण आविष्कार है। धीरे–धीरे साइकिल का स्थान पेट्रोल तथा डीजल चालित स्कूटर, बाइक आदि ने ले लिया।

नई–नई और विभिन्न प्रकार की कारें भी इस क्षेत्र में आ गई हैं। बसें, ट्रक, ऑटो, टेम्पो, मेटाडोर आदि का उपयोग सवारी तथा माल ढोने के वाहनों के रूप में होता है। अब कुछ गाड़ियाँ गैस, बैट्री, सौर ऊर्जा से भी चलती हैं।

वाहनों की बढ़ती संख्या और प्रदूषण–
आज सड़कों पर असंख्य वाहन दौड़ते हुए देखे जा सकते हैं। इनके इंजनों में जलने वाला पैट्रोल और डीजल वायुमण्डल को प्रदूषित करता है। इनके चलने से इंजन का शोर तथा हार्न की तेज आवाज ध्वनि प्रदूषण को कई गुना बढ़ा देती है।

वाहनों के कारण हानि–
जो लोग सड़क के किनारों पर बने मकानों में रहते हैं। वे जानते हैं कि वाहनों की बढ़ती संख्या के कारण उनको श्वसन और श्रवण सम्बन्धी अनेक बीमारियों से जूझना पड़ता है। वातावरण में बढ़ती हुई जहरीली गैसों के कारण वक्ष सम्बन्धी रोग श्वास, दमा, खाँसी, टी. वी. तथा कैंसर आदि तेजी से बढ़ रहे हैं।

लोगों की आँखें तथा कान भी रोगग्रस्त हो रहे हैं। इनके अतिरिक्त भी अनेक प्रकार की बीमारियाँ लोगों को सता रही हैं। लोग ऋण लेकर वाहन खरीदते है। इससे ऋणग्रस्तता बढ़ती है, जनता का अनावश्यक शोषण होता है।

उपसंहार–
बढ़ते वाहन जहाँ सुख–सुविधा बढ़ाते हैं, वहाँ वे लोगों के स्वास्थ्य के लिए गम्भीर समस्या भी बन रहे हैं। टूटी सड़कों पर दौड़ते धूल और धुआँ उड़ाते वाहनों के कारण लोगों का स्वास्थ्य निरन्तर गिर रहा है। वाहनों की बढ़ती संख्या के साथ दुर्घटनाओं की संख्या भी बढ़ रही है।

इस प्रकार अनेक लोगों को अपंगता का कष्ट भोगना पड़ता है। दुर्घटनाओं में अनेक लोगों की मृत्यु हो जाती है। अत: वाहनों को वातावरण–मित्र बनाते हुए इनकी बेतहाशा बढ़ती संख्या पर नियंत्रण अनिवार्य हो गया है।

राजनीति में अपराधीकरण पर निबंध – Criminalization Of Indian Politics Essay In Hindi

Criminalization Of Indian Politics Essay In Hindi

राजनीति में अपराधीकरण पर निबंध -(Essay On Criminalization Of Indian Politics In Hindi)

राजनीति का अपराधीकरण – Criminalization Of Politics

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • राजनीति क्या है?
  • अपराध और राजनीति,
  • राजनीति के अन्य दोष,
  • निवारण के उपाय,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

राजनीति में अपराधीकरण पर निबंध – Raajaneeti Mein Aparaadheekaran Par Nibandh

प्रस्तावना–
आदिम मानव–समाज प्राकृतिक नियमों से शासित होता था। सभ्यता के विकास के साथ–साथ उसे एक सर्वस्वीकृत शासनतन्त्र की आवश्यकता हुई। अतः राज्य संस्था अस्तित्व में आई। अपराध बढ़े तो अपराधियों को दण्डित करने को कानून बने। आज तो राजनीति राज अर्थात् सत्ता हथियाने की कूट–नीति बन गयी है।

राजनीति क्या है? – What is politics?

नीति शब्द के यों तो अनेक अर्थ हैं किन्तु सामान्यतया आचरण के श्रेष्ठ तथा सुसम्मत ढंग को ही नीति माना जाता है। धर्मनीति, युद्धनीति, व्यवहारनीति आदि शब्दों से नीति विधि–विधान, निपुणता और कौशल का भी बोध कराती है। राज्य करने की नीति ही राजनीति है।

‘राज’ के साथ ‘नीति’ जुड़ा होने से आशा की जा सकती है कि इसे नैतिकता से प्रेरित और संचालित होना चाहिए किन्तु आज तो राजनीति का अर्थ ही उलट गया है। राजनीति की अवधारणा आज छल, कपट, कुटिलता और क्रूरता से राजनीतिक विरोधियों को परास्त करना और सत्ता हथियाना ही राजनीति मान लिया गया है। राजनीति क्या है यह अग्रलिखित पश्चिमी कहावत से स्पष्ट हो जाता है

“पॉलिटिक्स इज द गेम ऑफ स्काउन्ड्रल्स” अर्थात् राजनीति धूर्तों की क्रीड़ा है। आज की राजनीति का वास्तव में यही रूप हो गया है।

अपराध और राजनीति–
अपराध व्यक्ति और समाज के प्रति किया गया ऐसा आचरण है जिसे परम्परा से या विधि (कानून) से दण्डनीय माना गया है। अपराधियों को दण्ड देना और सज्जनों की सुरक्षा करना ही प्रधान राजधर्म माना गया है।

राजनीति में अपराधी प्रवृत्ति के लोगों का प्रवेश ही राजनीति का अपराधीकरण है अथवा इसे अपराधों का राजनीतिकरण भी कहा जा सकता है। अनैतिक आचरण करने वालों का राजनीति के शिखरों पर बैठना–अपराधों का राजनीतिकरण बन गया है।

आज राजनीति का व्यापक और बहुमुखी अपराधीकरण हो चुका है। सुसंस्कृत और पेशेवर दोनों प्रकार के अपराधी राजनीति के मुखौटे लगाये देश के भाग्यविधाता बने हुए हैं। मतदाताओं को आतंकित करके, मतपेटियों को लूटकर और इससे काम न चले तो विरोधियों को ठिकाने लगाकर राज पर अधिकार कर लेना ही आज की राजनीति है।

अपराधीकरण के अन्य रूप–भारत की राजनीति में अनेक विकार या दोष उत्पन्न हो गये हैं। कुछ राजनैतिक दल धर्म और जाति को आधार बनाकर राजनीति करते हैं। इससे देश की एकता को खतरा पैदा होता है, साम्प्रदायिक दंगे होते हैं तथा जातिवाद में बढ़ोत्तरी होती हैं। भारत एक विशाल जनतंत्र है परन्तु सच्चे अर्थ में इस पर धनतन्त्र का अधिकार है। चुनावों में काले धन का वर्चस्व रहता है।

कोई सच्चा जनसेवक धन के अभाव में चुनाव नहीं लड़ सकता। गठजोड़ के इस युग में अपनी सरकार को चलाने तथा बनाये रखने के लिए विधायकों और सांसदों को खरीदा जाता है। इससे जनतन्त्र का मूल उद्देश्य ही नष्ट हो रहा है। जनतन्त्र की सबसे बड़ी संस्था संसद भी आज राजनीति के दोष से मुक्त नहीं है–

अपने यहाँ संसद, तेली की घानी है,
जिसमें आधा तेल है और आधा पानी है।

जब ये पंक्तियाँ लिखी गई थीं तब से अर्ध शती बीत चुकी है। अतः आधा तेल आधा पानी है, कहने की जगह ‘पानी ही . पानी है’ कहना अधिक उपयुक्त है।

आज संसद में चुनाव जीतकर पहुँचने वाले नेता भी बदल गए हैं और उनकी कार्यपद्धति भी-

पहले जननायक थे, देश को ‘जन’ से चलाते थे
अब गननायक हैं, देश को ‘गन’ (बन्दूक) से चलाते हैं
और सारे चुनाव अकेले जीत जाते हैं।

निवारण के उपाय–
राजनीति का अपराधीकरण कैसे रुके? उसको दोषरहित कैसे बनाया जाये? इसका अन्तिम और सुनिश्चित उपाय तो जनता के ही हाथों में है। वह अपराधी प्रवृत्ति और आपराधिक इतिहास के व्यक्तियों को चुनकर न भेजे। चरित्रवान् न्यायपालिका आगे आए और अपराधियों को राजनीति से बाहर करे। आज न्यायपालिका की जो प्रखर भूमिका परिलक्षित हो रही है उसे जन–समर्थन मिलना चाहिए।

शिबू सोरेन का दण्डित होना, धन लेकर संसद में प्रश्न पूछने वाले सांसदों की सदस्यता समाप्त होना तथा कुछ राजनीतिक बाहुबलियों का न्यायपालिका की वक्र दृष्टि में पड़ना इस दिशा में आशा की किरण दिखाता है।

चुनाव आयोग को भी इस दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए तथा साम्प्रदायिक, जातिवादी, धन– लोलुप दलों को अमान्य करना चाहिए। चुनाव आयोग ने इस दिशा में कदम उठाए हैं। सैकड़ों ऐसे दलों की मान्यता समाप्त की है जो वर्षों से चुनाव नहीं लड़े हैं तथा अवैध आर्थिक गतिविधियों में लगी हैं।

उपसंहार–
राजनीति के अपराधीकरण ने लोकतन्त्र को मजाक बना दिया है। इस संकट से मुक्ति पाना सरल कार्य नहीं है। आज का जन–सेवक पाँच वर्षों में करोड़पति और अरबपति बन जाता है।

अतः अपराधियों का राजनीति में छल–बल से प्रवेश करना स्वाभाविक है। कानूनों के अधिक कठोर होने और शीघ्र न्याय की व्यवस्था होने पर ही अपराधों का राजनीतिकरण रोका जा सकता है।

खुला शौच मुक्त गाँव पर निबंध – Khule Me Soch Mukt Gaon Par Essay In Hindi

Khule Me Soch Mukt Gaon Par Essay In Hindi

खुला शौच मुक्त गाँव पर निबंध – Essay On Khule Me Soch Mukt Gaon Par In Hindi

संकेत बिन्दु–

  • खुला शौच मुक्त से आशय
  • सरकारी प्रयास
  • जन–जागरण
  • हमारा योगदान
  • महत्व/उपसंहार

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

खुला शौच मुक्त गाँव पर निबंध – Khula Shauch Mukt Gaanv Par Nibandh

खुला शौच मुक्त से आशय–
‘खुला शौच मुक्त’ को सरल भाषा में कहें तो ‘खुले में शौच क्रिया से मुक्त होना’ इसका आशय है। ऐसा गाँव जहाँ लोग बाहर खेतों या जंगलों में शौच के लिए न जाते हों, घरों में ही शौचालय हों, ‘खुला शौच’ मुक्त गाँव कहा जाता है। गाँवों में खुले में शौच के लिए जाने की प्रथा शताब्दियों पुरानी है।

जनसंख्या सीमित होने तथा सामाजिक मर्यादाओं का सम्मान किए जाने के कारण इस परंपरा से कई लाभ जुड़े हुए थे। गाँव से दूर शौच क्रिया किए जाने से ‘मैला ढोने के काम से मुक्ति तथा स्वच्छता दोनों का साधन होता था। मल स्वत: विकरित होकर खेतों में खाद का काम करता था।

पर आज की परिस्थितियों में खुले में शौच, रोगों को खुला आमंत्रण बन गया है। साथ ही इससे उत्पन्न महिलाओं की असुरक्षा ने इसे विकट समस्या बना दिया है। अतः इस परंपरा का यथाशीघ्र समाधान, स्वच्छता, स्वास्थ्य और महिला सुरक्षा की दृष्टि से परम आवश्यक हो गया है।

सरकारी प्रयास–
कुछ वर्ष पहले तक इस दिशा में सरकारी प्रयास शून्य के बराबर ही थे। गाँवों में कुछ सम्पन्न और सुरुचि युक्त परिवारों में ही घरों में शौचालय का प्रबन्ध होता था। वह भी केवल महिला सदस्यों के लिए।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब ग्रामीण महिलाओं और विशेषकर किशोरियों के साथ होने वाली लज्जाजनक घटनाओं पर ध्यान दिया तो स्वच्छता अभियान के साथ ‘खुला शौच मुक्त गाँव अभियान’ को भी जोड़ दिया। इस दिशा में सरकारी प्रयास निरंतर चल रहे हैं।

घरों में शौचालय बनाने वालों को सरकार की ओर से आर्थिक सहायता प्रदान की जा रही है। समाचार पत्रों तथा टी. वी. विज्ञापनों में प्रसिद्ध व्यक्तियों द्वारा बड़े मनोवैज्ञानिक ढंग से घरों में शौचालय बनाने की प्रेरणा दी जा रही है।

जन जागरण–
किसी प्राचीन कुप्रथा से मुक्त होने में भारतीय ग्रामीण समुदाय को बहुत हिचक होती है। उन पर सरकारी प्रयासों की अपेक्षा, अपने बीच के प्रभावशाली व्यक्तियों, धार्मचार्यों तथा मनोवैज्ञानिक प्रेरणाओं का प्रभाव अधिक पड़ता है।

अतः ‘खुले में शौच’ की समाप्ति के लिए जन जागरण परम आवश्यक है। इसके लिए कुछ स्वयंसेवी संस्थाएँ : रही हैं। इसके साथ ही धार्मिक आयोजन में प्रवक्ताओं द्वारा इस प्रथा के परिणाम की प्रेरणा दी जानी चाहिए। शिक्षक, छात्र–छात्राओं के द्वारा प्रदर्शन का सहारा लेना चाहिए।

गाँव के शिक्षित युवाओं को इस प्रयास में हाथ बँटाना चाहिए। ऐसे जन जागरण के प्रयास मीडिया द्वारा तथा गाँव के सक्रिय किशोरों और युवाओं द्वारा किए भी जा रहे हैं। खुले में शौच करते व्यक्ति को देखकर सीटी बजाना ऐसा ही रोचक प्रयास है।

हमारा योगदान–
‘हमारा’ में छात्र–छात्रों, शिक्षक, राजनेता, व्यवसायी, जागरूक नागरिक आदि सभी लोग सम्मिलित हैं। सभी के सामूहिक प्रयास से बुराई को समाप्त किया जा सकता है। ग्रामीण जनता को खुले में शौच से होने वाली हानियों के बारे में समझाना चाहिए।

उन्हें बताया जाना चाहिए कि इससे रोग फैलते हैं और धन तथा समय की बरबादी होती है। साथ ही यह एक अशोभनीय आदत है। यह महिलाओं के लिए अनेक समस्याएँ और संकट खड़े कर देता है। घरों में छात्र–छात्राएँ अपने माता–पिता आदि को इससे छुटकारा पाने के लिए प्रेरित करें।

उपसंहार–
खुले में शौच मुक्त गाँवों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। सरकारी प्रयासों के अतिरिक्त ग्राम–प्रधानों तथा स्थानीय प्रबुद्ध और प्रभावशाली लोगों को आगे आकर इस अभियान में रुचि लेनी चाहिए। इससे न केवल ग्रामीण भारत को रोगों, बीमारियों पर होने वाले व्यय से मुक्ति मिलेगी बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि भी सुधेरगी।