दूरसंचार में क्रांति निबंध – Revolution In Telecommunication Essay In Hindi

Revolution In Telecommunication Essay In Hindi

दूरसंचार में क्रांति निबंध – Essay On Revolution In Telecommunication In Hindi

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • दूर–संचार का मानव जीवन में महत्त्व,
  • उद्योग और व्यवसाय के क्षेत्र में दूर–संचार का योगदान,
  • भारत में दूर–संचार का विकास,
  • प्राथमिक सेवा,
  • सेल्यूलर मोबाइल टेलीफोन सेवा,
  • इण्टरनेट सेवा,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

दूरसंचार में क्रांति निबंध – Doorasanchaar Mein Kraanti Nibandh

प्रस्तावना–
दूर–संचार के क्षेत्र में उन्नति से मानवजीवन की गुणवत्ता पर गहरा प्रभाव पड़ा है। यह सर्वविदित है कि आज हम ‘सम्पर्क’ युग में रह रहे हैं। दूर–संचार के विकास ने मानवजीवन के प्रत्येक क्षेत्र को अपने दायरे में ले लिया है। प्राचीनकाल में सन्देशों के आदान–प्रदान में बहुत अधिक समय तथा धन लग जाया करता था, परन्तु आज समय और धन दोनों की बड़े पैमाने पर बचत हुई है।

दूर–संचार के क्षेत्र में नई तकनीक से अब टेलीफोन, सेल्यूलर फोन, फैक्स और ई–मेल द्वारा क्षणभर में ही किसी भी प्रकार के सन्देश एवं विचारों का आदान–प्रदान किया जा सकता है। आज चन्द्रमा तथा अन्य ग्रहों से सम्प्रेषित सन्देश पृथ्वी पर पलभर में ही प्राप्त किए जा सकते हैं। दूरसंचार ने पृथ्वी और आकाश की सम्पूर्ण दूरी को समेट लिया है।

दूर–संचार का मानव–
जीवन में महत्त्व–मानव–जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने में दूर–संचार महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। सूचनाओं के आदान–प्रदान करने में समय की दूरी घट गई है। अब क्षणभर में सन्देश व विचारों का आदान–प्रदान किया जा सकता है। शिक्षा, चिकित्सा, परिवहन तथा उद्योग आदि के क्षेत्र में दूर–संचार का महत्त्व बढ़ गया है।

अपराधों पर नियन्त्रण करने तथा शासन व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने में दूर–संचार का विशेष योगदान है। दूर–संचार के अभाव में देश में शान्ति और सुव्यवस्था करना कठिन कार्य है। व्यावसायिक क्षेत्र में भी सही समय पर सही सूचनाओं का महत्त्व दिन–प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। अतः कहा जा सकता है कि किसी भी राष्ट्र के लिए वहाँ की दूर–संचार व्यवस्था का विकसित होना अत्यावश्यक है।

उद्योग और व्यवसाय के क्षेत्र में दूर–
संचार का योगदान–किसी भी देश का विकास उसकी सुदृढ़ अर्थव्यवस्था पर निर्भर करता है। उद्योग और व्यवसाय के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाता है, लेकिन सफल व्यवसाय और उद्योगों के विकास के लिए दूर–संचार की अत्यधिक आवश्यकता होती है। भूमण्डलीकरण के इस काल में तो व्यवसायी एवं उद्योगपति सूचनाओं के माध्यम में व्यवसाय एवं उद्योग में नई ऊँचाइयों को छूने के लिए लालायित हैं।

सूचनाएँ व्यवसाय का जीवन–रक्त है। व्यवसाय के अन्तर्गत माल के उत्पादन से पूर्व, उत्पादन से वितरण तक और विक्रयोपरान्त सेवाएँ प्रदान करने के लिए दूरसंचार का महत्त्वपूर्ण स्थान है। संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास परिषद् की रिपोर्ट के अनुसार दूर–संचार एवं सूचना–प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विदेशी निवेश प्राप्त करने के मामले में भारत अग्रणी देश बनता जा रहा है।

रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2000 में दक्षिण एशिया में हुए कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में भारत का हिस्सा 76 प्रतिशत था। चीन में भारत से ज्यादा मोबाइल फोन हैं, लेकिन इण्टरनेट के क्षेत्र में व्यावसायिक गतिविधियों का लाभ उठाने के लिए भारत का माहौल चीन से कहीं बेहतर है, दूर–संचार में क्रान्ति ने आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन की नई सम्भावना को जन्म दिया है, जिसका लाभ विकसित और विकासशील देश दोनों ही उठा रहे हैं।

भारत में दूर–संचार का विकास–
भारत ने दूर–संचार के क्षेत्र में असीमित उन्नति की है। भारत का दूर–संचार नेटवर्क एशिया के विशालतम दूर–संचार नेटवर्कों में गिना जाता है। जून 2013 के अन्त तक 903.10 मिलियन टेलीफोन कनेक्शनों के साथ भारतीय दूरसंचार नेटवर्क चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा नेटवर्क है। जून 2013 के अन्त तक 873.37 मिलियन टेलीफोन कनेक्शनों के साथ भारतीय वायरलैस टेलीफोन नेटवर्क भी दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा नेटवर्क है।

आज लगभग सभी देशों के लिए इण्टरनेशनल सबस्क्राइबर डायलिंग सेवा उपलब्ध है। इण्टरनेट उपभोक्ताओं की संख्या 7 करोड़ 34 लाख है। अन्तर्राष्ट्रीय संचार–क्षेत्र में उपग्रह संचार और जल के नीचे से स्थापित संचार सम्बन्धों द्वारा अपार प्रगति हुई है।

ध्वनिवाली और ध्वनिरहित दूरसंचार सेवाएँ, जिनमें आँकड़ा प्रेषण, फैसीपाइल, मोबाइल रेडियो, रेडियो पेनिंग और लीज्ड लाइन सेवाएँ शामिल हैं। 31 मार्च, 2013 ई० की स्थिति के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में 357.74 मिलियन फोन हैं।

प्राथमिक सेवा–भारतीय दूर–
संचार विनियामक प्राधिकरण की सिफारिशों के अनुरूप सरकार ने 25 जनवरी, 2001 ई० को लाइसेंस देने के लिए दिशा–निर्देश जारी किए, जिनके अनुसार नए प्राथमिक सेवा उपलब्ध करानेवाले बिना किसी प्रतिबन्ध के सभी सेवा क्षेत्रों में खुला प्रवेश कर सकते हैं।

इन दिशा–निर्देशों के अनुसार स्थानीय क्षेत्रों में प्राथमिक टेलीफोन सेवा के उपभोक्ताओं के लिए वायरलेस सबस्क्राइबर एक्सेस प्रणालियों के अन्तर्गत भी हाथवाले टेलीफोन सेट प्रयोग करने की छूट है।

वैश्विक परिदृश्य को देखते हुए दूर–
संचार शुल्क संरचना के युक्तीकरण के कई प्रयास किए गए हैं। सर्वप्रथम शुल्क संरचना में सुधार 1 मई, 1999 ई० में किया गया, जिसके अन्तर्गत लम्बी दूरी के एस० टी० डी० और आई० एस० डी० शुल्कों में कमी की गई है। इसके दूसरे चरण का क्रियान्वयन अक्टूबर 2000 ई० में किया, जिसके अन्तर्गत एस० टी० डी० और आई० एस० डी० के शुल्कों में पुन: कमी की गई।

जनवरी 2001 ई० में 200 किमी तक की दूरी तक किए जानेवाले कालों को एस० टी० डी० की अपेक्षा लोकल काल की श्रेणी में डाल दिया गया। 14 जनवरी, 2002 ई० को बी० एस० एन० एल० और एम० टी० एन० एल० ने विभिन्न दूरियों के लिए एस० टी० डी० दरों को घटा दिया और सेल्यूलर मोबाइल फोन की शुल्क दरों में लगभग आधे की कमी कर दी गई।

सेल्यूलर मोबाइल टेलीफोन सेवा–
सभी महानगरों और 29 राज्यों के लगभग सभी शहरों के लिए सेवाएँ शुरू हो चुकी हैं। 31 मई, 2013 ई० तक देश में 873.37 मिलियन सेल्यूलर उपभोक्ता थे। नई दूर–संचार नीति के अन्तर्गत सेल्यूलर सेवा के मौजूदा लाइसेंस–धारकों को 1 अगस्त, 1999 ई० से राजस्व भागीदारी प्रणाली अपनाने की अनुमति मिल गई।

देश के विभिन्न भागों में सेल्यूलर मोबाइल टेलीफोन सेवा चलाने के लिए एम०टी०एन०एल० और बी०एस०एन०एल० को लाइसेंस जारी किए गए। नई नीति के अनुसार सेल्यूलर ऑपरेटरों को यह छूट दी गई है कि वे अपने कार्यक्षेत्र में सभी प्रकार की मोबाइल सेवा, जिसमें ध्वनि और गैर–ध्वनि सन्देश शामिल हैं, डेटा सेवा और पी०सी०ओ० उपलब्ध करा सकते हैं।

इण्टरनेट सेवा–
नवम्बर 1998 ई० से इण्टरनेट सेवा निजी भागीदारी के लिए खोल दी गई। अब इसके लाइसेंस को पहले पाँच साल तक के लिए शुल्क–मुक्त किया जा चुका है और अगले दस सालों के लिए 1 रुपया प्रतिवर्ष शुल्क निर्धारित किया गया है।

भारत में पंजीकृत कोई भी कम्पनी लाइसेंस प्राप्त कर सकती है और इसके लिए पहले से भी किसी अनुभव की आवश्यकता नहीं होगी। अब तक 506 आई०एस०पी० (इण्टरनेट सर्विस प्रोवाइडर) लाइसेंस जारी किए गए हैं।

मार्च 2013 तक भारत में लगभग 20.04 मिलियन लोग इण्टरनेट से जुड़ी ब्रॉडबैण्ड सेवाओं का उपयोग कर रहे हैं। सरकार ने देश की प्रत्येक पंचायत में वर्ष 2012 से ब्रॉडबैण्ड की शुरूआत करने का निर्णय लिया है। व्यावसायिक साइटों को इण्टरनेट पर लाँच किया जा चुका है।

ई–मेल के द्वारा मास कैम्पेन चलाना अब एक सामान्य प्रचलन हो चुका है। ‘चैट’ एक ऐसी उपलब्ध सेवा है, जिसके द्वारा इण्टरनेटधारक एक–दूसरे के साथ आपस में ऑनलाइन वार्तालाप कर सकते हैं। ई–गर्वनेंस सरकार की पहली प्राथमिकता है।

उपसंहार–
वास्तव में दूर–संचार प्रणाली ने विश्व की दूरियों को समेटते हुए मानव जीवन को एक नया मोड़ दिया है। आज हमारा देश दूर–संचार टेक्नोलॉजी की दौड़ में निरन्तर आगे बढ़ रहा है। विभिन्न निजी कम्पनियों का भी इसमें विशेष योगदान रहा है, जिसके कारण देश के कोने–कोने से जोड़ने में सफल हुए हैं।

इस प्रकार दूर–संचार के प्रसार ने शिक्षा, चिकित्सा, परिवहन, व्यवसाय तथा उद्योग के विकास के साथ–साथ मानव–जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उन्नति को गति प्रदान की है।

कंप्यूटर पर निबंध – Computer Essay In Hindi

Computer Essay In Hindi

कंप्यूटर पर निबंध – Essay On Computer In Hindi

“प्रगति के इस दौर में कम्प्यूटर एक सशक्त माध्यम के रूप में उभरा है। कम्प्यूटर का आविष्कार मानव–बुद्धि की कुशाग्रता का परिणाम है। जाहिर है कि इसकी कार्यकुशलता हमारे हाथों में ही है।”

– सत्यजीतमजूमदार

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • कम्प्यूटर और उसके उपयोग–
    • (क) बैंकिंग के क्षेत्र में,
    • (ख) प्रकाशन के क्षेत्र में,
    • (ग) सूचना और समाचार–प्रेषण के क्षेत्र में,
    • (घ) डिजाइनिंग के क्षेत्र में,
    • (ङ) कला के क्षेत्र में,
    • (च) वैज्ञानिक अनुसन्धान के क्षेत्र में,
    • (छ) औद्योगिक क्षेत्र में,
    • (ज) युद्ध के क्षेत्र में,
    • (झ) अन्य क्षेत्रों में,
  • कम्प्यूटर और मानव–मस्तिष्क,
  • उपसंहार।

प्रस्तावना–
आज कम्प्यूटर के प्रयोग से सभी क्षेत्रों में क्रान्ति आ गई है। अनेक क्षेत्रों का तो पूरी तरह कम्प्यूटरीकरण हो गया है। एक प्रकार से आज का जीवन कम्प्यूटर के बिना अधूरा हो गया है। जीवन को भली प्रकार से चलाने के लिए आज प्रत्येक व्यक्ति के लिए कम्प्यूटर का ज्ञान जरूरी हो गया है।

कम्प्यूटर और उसके उपयोग–
आज जीवन के कितने ही क्षेत्रों में कम्प्यूटर के व्यापक प्रयोग हो रहे हैं। बड़े–बड़े व्यवसाय, तकनीकी संस्थान और महत्त्वपूर्ण प्रतिष्ठान कम्प्यूटर के यन्त्र–मस्तिष्क का लाभ प्राप्त कर रहे हैं। अब तो कम्प्यूटर केवल कार्यालयों के वातानुकूलित कक्षों तक ही सीमित नहीं रह गए हैं, वरन् वह हजारों किलोमीटर दूर रखे हुए दूसरे कम्प्यूटर के साथ बातचीत कर सकते हैं, उससे सूचनाएँ प्राप्त कर सकते हैं और उसे सूचनाएँ भेज भी सकते हैं।

कम्प्यूटर का व्यापक प्रयोग जिन क्षेत्रों में हो रहा है, उनका विवरण इस प्रकार है-

(क) बैंकिंग के क्षेत्र में भारतीय बैंकों में खातों के संचालन और हिसाब–किताब रखने के लिए कम्प्यूटर का प्रयोग किया जाने लगा है। अब सभी राष्ट्रीयकृत बैंकों ने चुम्बकीय संख्याओंवाली नई चैक बुक जारी की हैं। यूरोप के कई देशों सहित अपने देश में भी ऐसी व्यवस्थाएँ अस्तित्व में आ गई हैं कि घर के निजी कम्प्यूटर को बैंकों के कम्प्यूटरों के साथ जोड़कर घर बैठे ही लेन–देन का व्यवहार किया जा सकता है।

(ख) प्रकाशन के क्षेत्र में समाचार–पत्र और पुस्तकों के प्रकाशन के क्षेत्र में भी कम्प्यूटर विशेष योग दे रहे हैं। अब कम्प्यूटर पर टंकित होनेवाली सामग्री को कम्प्यूटर के परदे (स्क्रीन) पर देखकर उसमें संशोधन भी किया जा सकता है। कम्प्यूटर में संचित होने के बाद सम्पूर्ण सामग्री एक छोटी चुम्बकीय डिस्क पर अंकित हो जाती है। इससे कभी भी टंकित सामग्री को प्रिण्टर की सहायता से मुद्रित किया जा सकता है। आज सभी बड़े प्रकाशन संस्थानों और समाचार–पत्रों के सम्पादकीय विभाग में एक ओर कम्प्यूटरों पर लेखन सामग्री टंकित की जाती है और दूसरी तरफ इलेक्ट्रॉनिक प्रिण्टर तेज रफ्तार से टंकित सामग्री के प्रिण्ट निकाल देते हैं।

(ग) सूचना और समाचार–प्रेषण के क्षेत्र में दूरसंचार की दृष्टि से कम्प्यूटर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। अब तो ‘कम्प्यूटर नेटवर्क’ और इण्टरनेट के माध्यम से देश तथा विश्व के सभी प्रमुख नगरों को एक–दूसरे से जोड़ दिया गया है।

(घ)डिजाइनिंग के क्षेत्र में प्राय: यह समझा जाता है कि कम्प्यूटर अंकों और अक्षरों को ही प्रकट कर सकते हैं। वस्तुतः आधुनिक कम्प्यूटर के माध्यम से भवनों, मोटरगाड़ियों एवं हवाई जहाजों आदि के डिजाइन तैयार करने के लिए भी ‘कम्प्यूटर ग्राफिक’ के व्यापक प्रयोग हो रहे हैं। वास्तुशिल्पी अपने डिजाइन कम्प्यूटर के स्क्रीन पर तैयार करते हैं और संलग्न प्रिण्टर से इनके प्रिण्ट भी तुरन्त प्राप्त कर लेते हैं।

(ङ) कला के क्षेत्र में कम्प्युटर अब कलाकार अथवा चित्रकार की भूमिका भी निभा रहे हैं। अब कलाकार को, न तो कैनवास की आवश्यकता है, न रंग और कूचियों की। कम्प्यूटर के सामने बैठा हुआ कलाकार अपने ‘नियोजित प्रोग्राम’ के अनुसार स्क्रीन पर चित्र निर्मित करता है और यह चित्र प्रिण्ट की ‘कुंजी’ दबाते ही प्रिण्टर द्वारा कागज पर अपने उन्हीं वास्तविक रंगों के साथ छाप दिया जाता है।

(च) वैज्ञानिक अनुसन्धान के क्षेत्र में कम्प्यूटरों के माध्यम से वैज्ञानिक अनुसन्धान का स्वरूप ही बदलता जा रहा है। अन्तरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में तो कम्प्यूटर ने क्रान्ति ही उत्पन्न कर दी है। इनके माध्यम से अन्तरिक्ष के व्यापक चित्र उतारे जा रहे हैं और इन चित्रों का विश्लेषण कम्प्यूटरों के माध्यम से हो रहा है। . आधुनिक वेधशालाओं के लिए कम्प्यूटर सर्वाधिक आवश्यक हो गए हैं।

(छ) औद्योगिक क्षेत्र में बड़े–बड़े कारखानों में मशीनों के संचालन का कार्य अब कम्प्यूटर सँभाल रहे हैं। कम्प्यूटरों से जुड़कर रोबोट ऐसी मशीनों का नियन्त्रण कर रहे हैं, जिनका संचालन मानव के लिए अत्यधिक कठिन था। भयंकर शीत और जला देनेवाली गर्मी का भी उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

(ज) युद्ध के क्षेत्र में–वस्तुत: कम्प्यूटर का आविष्कार युद्ध के एक साधन के रूप में ही हुआ था। अमेरिका में जो पहला इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटर बना था, उसका उपयोग अणुबम से सम्बन्धित गणनाओं के लिए ही हुआ था। जर्मन सेना के गुप्त सन्देशों को जानने के लिए अंग्रेजों ने ‘कोलोसम’ नामक कम्प्यूटर का प्रयोग किया था। आज भी नवीन तकनीकों पर आधारित शक्तिशाली कम्प्यूटरों का विकास किया जा रहा है। अमेरिका की ‘स्टार–वार्स’ योजना कम्प्यूटरों के नियन्त्रण पर ही आधारित है।

(झ) अन्य क्षेत्रों में सम्भवत: जीवन का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है, जिसमें कम्प्यूटर का प्रयोग न हो रहा हो अथवा न हो सकता हो। कम्प्यूटरों के माध्यम से संगीत का स्वरांकन किया जा रहा है तथा वायुयान एवं रेलयात्रा के आरक्षण की व्यवस्था हो रही है। कम्प्यूटर में संचित विवरण के आधार पर विवाह–सम्बन्ध जोड़नेवाले अनेक संगठन हमारे देश में कार्यरत हैं, यहाँ तक कि ‘कम्प्यूटर–ज्योतिष’ का व्यवसाय भी आरम्भ हो गया है।

इसके साथ ही परीक्षाफल के निर्माण, अन्तरिक्ष–यात्रा, मौसम सम्बन्धी जानकारी, चिकित्सा–क्षेत्र, चुनाव–कार्य आदि में भी कम्प्यूटर प्रणाली सर्वाधिक उपयोगी सिद्ध हो रही है। कम्प्यूटर की सहायता से एक भाषा का अनुवाद दूसरी भाषा में किया जा सकता है तथा शतरंज जैसा खेल भी खेला जा सकता है।

कम्प्यूटर और मानव–मस्तिष्क–
यह प्रश्न भी बहुत स्वाभाविक है कि क्या कम्प्यूटर और मानव–मस्तिष्क की तुल. की जा सकती है और इनमें कौन श्रेष्ठ है; क्योंकि कम्प्यूटर के मस्तिष्क का निर्माण भी मानव–बुद्धि के आधार ( ही सम्भव हुआ है। यह बात नितान्त सत्य है कि मानव मस्तिष्क की अपेक्षा कम्प्यूटर समस्याओं को बहुत कम समय में हल कर सकता है; किन्तु वह मानवीय संवेदनाओं, अभिरुचियों, भावनाओं और चित्त से रहित मात्र एक यन्त्र–पुरुष है। कम्प्यूटर केवल वही काम कर सकता है, जिसके लिए उसे निर्देशित (programmed) किया गया हो। वह कोई निर्णय स्वयं नहीं ले सकता है और न ही कोई नवीन बात सोच सकता है।

उपसंहार–
हम जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कम्प्यूटर पर आश्रित हो गए हैं। यह सही है कि कम्प्यूटर में जो कुछ भी एकत्र किया गया है, वह आज के असाधारण बुद्धिजीवियों की देन है, लेकिन हम यह प्रश्न भी पूछने के लिए विवश हैं कि जो बुद्धि या जो स्मरण–शक्ति कम्प्यूटरों को दी गई है, क्या उससे पृथक् हमारा कोई अस्तित्व नहीं है? हो भी, तो क्या यह बात अपने–आपमें कुछ कम दुःखदायी नहीं है कि हम अपने प्रत्येक भावी कदम को कम्प्यूटर के माध्यम से प्रमाणित करना चाहें और उसके परिणामस्वरूप अपने–आपको निरन्तर कमजोर, हीन एवं अयोग्य बनाते रहें।

मेरा प्रिय त्यौहार निबंध – My Favorite Festival Essay In Hindi

My Favorite Festival Essay In Hindi

मेरा प्रिय त्यौहार निबंध – (Essay On My Favorite Festival In Hindi)

राजस्थान के प्रमुख मेले तथा पर्व – Major Fairs And Festivals Of Rajasthan

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • प्रमुख त्योहार,
  • अन्य धर्मावलम्बियों के त्योहार,
  • मेले,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

मेरा प्रिय त्यौहार निबंध – Mera Priy Tyauhaar Nibandh

प्रस्तावना–
किसी देश–प्रदेश की संस्कृति उसके त्योहारों, पर्वो और मेलों के माध्यम से सहज ही अभिव्यक्त होती है। देश में मनाये जाने वाले सभी पर्वोत्सव राजस्थान में भी मनाये जाते हैं। इनमें से कुछ पर्यों को राजस्थान का रंग देकर मनाया जाता है। राजस्थान के सभी पर्व और उत्सव हमें प्रिय हैं।

प्रमुख त्योहार–
राजस्थान में मनाये जाने वाले प्रमुख त्योहार इस प्रकार हैं-

तीज–
यह महिलाओं का त्योहार है। श्रावण मास के शुक्लपक्ष की तृतीया को किशोरियाँ और नवविवाहिताएँ इसे विशेष उल्लास से मनाती हैं। इस त्योहार के उपलक्ष्य में सौभाग्यसूचक सामग्री का आदान–प्रदान होता है।

इस दिन कन्याएँ और नवविवाहिताएँ बाग–बगीचों में या घरों पर ही झूला झूलती हैं। नारी–हृदय की आकांक्षाओं और व्यथाओं को प्रतिध्वनित करने वाला यह त्योहार राजस्थान में अपना विशिष्ट स्थान रखता है।

रक्षाबन्धन–
यह त्योहार सावन की पूर्णिमा को मनाया जाता है। कहीं–कहीं पर ब्राह्मण अपने यजमानों की कलाई पर रक्षासूत्र बाँधकर उन्हें आशीर्वाद देते हैं और बदले में दक्षिणा प्राप्त करते हैं। दूसरी ओर यह भाई और बहिन के स्नेहमय सम्बन्ध को राखी के धागे से दृढ़तर बनाने वाला त्योहार है। राजस्थानी इतिहास की कुछ गौरवमयी घटनाएँ भी इस त्योहार से जुड़ी हैं।

गणेश चतुर्थी–
यह प्रमुख रूप से विद्या–बुद्धि की प्राप्ति के इच्छुक छात्रों का त्योहार है। बच्चे इस दिन नये वस्त्र धारण करके गुरुजनों को भेंट देते हैं और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस दिन विद्या और बुद्धि के प्रदाता गणेश की पूजा की जाती है।

जन्माष्टमी–
भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को यह त्योहार मनाया जाता है। यह भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव है। इस दिन बहुत–से लोग व्रत रखते हैं, मन्दिरों व घरों में कृष्ण के जीवन से सम्बन्धित झाँकियाँ भी सजायी जाती हैं।

दशहरा–
क्वार (आश्विन) मास के शुक्लपक्ष की दशमी को यह त्योहार मनाया जाता है। रामलीलाओं के प्रदर्शन तथा रावण–दहन के रूप में यह सारे भारत और राजस्थान में भी मनाया जाता है।

दीपावली–
दीपावली का त्योहार भी देशव्यापी त्योहार है और राजस्थानी इसे मनाने में पीछे नहीं रहते। इस त्योहार के स्वागत में घरों एवं दुकानों की सफाई तथा लिपाई–पुताई की जाती है। यह त्योहार कई दिनों का संयुक्त पर्व है।

धनतेरस को नये बर्तन या अन्य गृहोपयोगी वस्तुएँ खरीदने की प्रथा है। दीपावली पर व्यापारी वर्ग अपने बही–खातों का पूजन करता है। रात्रि को गणेश और लक्ष्मी जी का पूजन होता है। यह उल्लास और समृद्धि का त्योहार है।

होली–
होली का त्योहार सारे भारत में मनाया जाता है। फाल्गुन के महीने की पूर्णिमा को होलिका दहन होता है और दूसरे दिन रंग की होली खेली जाती है। यह त्योहार सबको प्रिय मानकर गले लगाने का त्योहार है।

गणगौर–
गणगौर राजस्थान का सर्वप्रमुख त्योहार है। कन्याएँ उत्तम वर पाने के लिए तथा विवाहिताएँ अखण्ड सौभाग्य पाने के लिए इस दिन (गौरा) पार्वती का पूजन करती हैं। इस दिन राजस्थान के प्रमुख नगरों में भव्य और विशाल शोभायात्रा और झाँकियाँ भी निकलती हैं।

अन्य धर्मावलम्बियों के त्योहार–
इन हिन्दू त्योहारों के अतिरिक्त राजस्थान में अन्य धर्मावलम्बियों के त्योहार भी उत्साह के साथ मनाये जाते हैं। मुसलमान बन्धु ईद, मुहर्रम आदि; ईसाई बन्धु क्रिसमस तथा सिख भाई वैशाखी आदि पर्यों को मनाते हैं। राजस्थानी लोग मक्त भाव से एक–दसरे के पर्वो और त्योहारों में भाग लेते हैं।

मेले–
महावीर जी का मेला जैन धर्मावलम्बियों से सम्बद्ध है। यह मेला हिण्डौन में लगता है। इसके अतिरिक्त कोटा का दशहरा, कैला देवी का मेला, पुष्कर जी का मेला, गोगामेढ़ी का मेला, रानी सती का मेला, गणेश चतुर्थी का मेला तथा ख्वाजा का उर्स यहाँ के प्रसिद्ध मेले हैं।

उपसंहार–
पर्व और मेले लोकमानस के उल्लास और सांस्कृतिक एकता के प्रतीक हैं। इन त्योहारों के माध्यम से परम्पराएँ और धर्म जुड़े हैं। वहीं ये पर्वोत्सव राजस्थान को शेष भारत के साथ सांस्कृतिक रूप से जोड़ने वाले भी हैं। अतः इन सभी पर्वोत्सवों को जन–जीवन के लिए अधिकाधिक उपयोगी बनाने का प्रयास होना चाहिए।

राजस्थान में जल संकट पर निबंध – Water Scarcity In Rajasthan Essay In Hindi

Water Scarcity In Rajasthan Essay In Hindi

राजस्थान में जल संकट पर निबंध – Essay On Water Scarcity In Rajasthan In Hindi

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • जल–संकट के कारण,
  • निवारण हेतु उपाय,
  • उपसंहार

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

राजस्थान में जल संकट पर निबंध – Rajasthan Mein Jal Sankat Par Nibandh

प्रस्तावना–
रहीम ने कहा है–

‘रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरै, मोती, मानुस, चून।।

अर्थात् पानी मनुष्य के जीवन का स्रोत है। इसके बिना जीवन की कल्पना नहीं हो सकती। सभी प्राकृतिक वस्तुओं में जल महत्वपूर्ण है। राजस्थान का अधिकांश भाग मरुस्थल है, जहाँ जल नाम–मात्र को भी नहीं है। इस कारण यहाँ के निवासियों को कष्टप्रद जीवन–यापन करना पड़ता है। वर्षा के न होने पर तो यहाँ भीषण अकाल पड़ता है और जीवन लगभग दूभर हो जाता है। वर्षा को आकर्षित करने वाली वृक्षावली का अभाव है। जो थोड़ी–बहुत उपलब्ध है उसकी अन्धाधुन्ध कटाई हो रही है। अतः राजस्थान का जल–संकट दिन–प्रतिदिन गहराता जा रहा है।

जल–संकट के कारण–राजस्थान के पूर्वी भाग में चम्बल, दक्षिणी भाग में माही के अतिरिक्त कोई विशेष जल स्रोत नहीं हैं, जो आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके। पश्चिमी भाग तो पूरा रेतीले टीलों से भरा हुआ निर्जल प्रदेश है, जहाँ केवल इन्दिरा गांधी नहर ही एकमात्र आश्रय है। राजस्थान में जल संकट के कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-

  • भूगर्भ के जल का तीव्र गति से दोहन हो रहा है।
  • पेयजल के स्रोतों का सिंचाई में प्रयोग होने से संकट गहरा रहा है।
  • उद्योगों में जलापूर्ति भी आम लोगों को संकट में डाल रही है।
  • पंजाब, हरियाणा आदि पड़ोसी राज्यों का असहयोगात्मक रवैया भी जल–संकट का प्रमुख कारण है।
  • राजस्थान की प्राकृतिक संरचना ही ऐसी है कि वर्षा की कमी रहती है।

निवारण हेतु उपाय–
राजस्थान में जल–संकट के निवारण हेतु युद्ध–स्तर पर प्रयास होने चाहिए अन्यथा यहाँ घोर संकट उपस्थित हो सकता है। कुछ प्रमुख सुझाव इस प्रकार हैं

  • भू–गर्भ के जल का असीमित दोहन रोका जाना चाहिए।
  • पेयजल के जो स्रोत हैं, उनका सिंचाई हेतु उपयोग न किया जाये।
  • वर्षा के जल को रोकने हेतु छोटे बाँधों का निर्माण किया जाये।
  • पंजाब, हरियाणा, गुजरात, मध्य प्रदेश की सरकारों से मित्रतापूर्वक व्यवहार रखकर आवश्यक मात्रा में जल प्राप्त किया जाये।
  • गाँवों में तालाब, पोखर, कुआँ आदि को विकसित कर बढ़ावा दिया जाये।
  • मरुस्थल में वृक्षारोपण पर विशेष ध्यान दिया जाये।
  • खनन–कार्य के कारण भी जल–स्तर गिर रहा है, अतः इस ओर भी ध्यान अपेक्षित है।
  • पहाड़ों पर वृक्ष उगाकर तथा स्थान–स्थान पर एनीकट बनाकर वर्षा–जल को रोकने के उपाय करने चाहिए।
  • हर खेत पर गड्ढे बनाकर भू–गर्भ जल का पुनर्भरण किया जाना चाहिए ताकि भू–गर्भ जल का पेयजल और सिंचाई के लिए उपयोग किया जा सके।

उपसंहार–
अपनी प्राकृतिक संरचना के कारण राजस्थान सदैव ही जलाभाव से पीड़ित रहा है। किन्तु मानवीय प्रमाद ने इस संकट को और अधिक भयावह बना दिया है। पिछले वर्षों में राजस्थान में आई अभूतपूर्व बाढ़ ने जल–प्रबन्धन के विशेषज्ञों को असमंजस में डाल दिया है। यदि वह बाढ़ केवल एक अपवाद बनकर रह जाती है तो ठीक है; लेकिन यदि इसकी पुनरावृत्ति होती है तो जल–प्रबन्धन पर नये सिरे से विचार करना होगा।

राजस्थान के लोकगीत पर निबंध – Competition Of Rajasthani Folk Essay In Hindi

Competition Of Rajasthani Folk Essay In Hindi

राजस्थान के लोकगीत पर निबंध – Essay On Competition Of Rajasthani Folk In Hindi

  • प्रस्तावना
  • प्रतियोगिता का आयोजन
  • प्रतियोगिता का आरम्भ
  • प्रतियोगिता का समापन
  • उपसंहार।

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राजस्थान के लोकगीत पर निबंध – Rajasthan Ke Lokgeet Par Nibandh

प्रस्तावना–
मैंने अनेक प्रतियोगिताएँ देखी हैं। विद्यालयों में वाद–विवाद, खेलकुद आदि अनेक प्रतियोगिताएँ होती हैं। छात्रों में अन्ताक्षरी भी प्रसिद्ध है, परन्तु राजस्थानी लोकगीतों की प्रतियोगिता देखने–सुनने का अवसर मिलना मेरे लिए अभूतपूर्व अनुभव था।

प्रतियोगिता का आयोजन–
गणतंत्र दिवस के अवसर पर मेरे विद्यालय में एक प्रतियोगिता आयोजित की गई। इसमें कक्षा 11 की दो टीमें भाग ले रही थीं। प्रत्येक टीम में पाँच–पाँच प्रतियोगी थे। उनको पाँच–पाँच मिनट का समय दिया गया था। प्रत्येक टीम के साथ संगीतकारों का एक दल भी था। यह दल अपने साजों से गायक का सहयोग करता था।

प्रत्येक गायक के गायन के लिए दस अंक निर्धारित थे जिसमें पार्श्वसंगीत के चार अंक सम्मिलित थे। प्रतियोगिता में विजयी टीम का चयन करने के लिए एक निर्णायक–मण्डल था। इसमें हमारे विद्यालय के हिन्दी–शिक्षक तथा संगीत–शिक्षक सम्मिलित थे।

प्रतियोगिता का आरम्भ–
नगर के विधायक जी ने प्रतियोगिता का शुभारम्भ दीपक प्रज्वलित करके किया। लॉटरी द्वारा निश्चित किया गया कि पहले कौन–सी टीम गायन करेगी। ‘अ’ टीम ने वर्षा ऋतु सम्बन्धी गीत प्रस्तुत किया नित बरसों रे मेघा बागड़ में मठ बाजरो बागड़ निपजै, गेहूँड़ा निपजै खादर में। इसका प्रत्युत्तर ‘ब’ टीम को देना था।

‘ब’ टीम ने भी अपने गायन में वर्षा ऋतु को ही अपना विषय बनाया सावण तो लाग्यो पिया भावणो जी एजी बरसण लाग्या मेंह। इस तरह दोनों टीमों के प्रत्येक सदस्य ने बारी–बारी से राजस्थानी गीत प्रस्तुत किए। इन गीतों पर श्रोता प्रसन्नता से झूम उठे। ‘अ’ टीम का गीत–गोरी को पल्लो लटके, विशेष पसंद किया गया।

प्रतियोगिता का समापन–
यह प्रतियोगिता लगभग एक–सवा घंटे में सम्पन्न हुई। तब निर्णायक मण्डल के दोनों सदस्यों द्वारा प्रदत्त अंकों को जोड़ा गया। इसमें ‘अ’ टीम को सर्वाधिक अंक प्राप्त हुए और उसको विजयी घोषित किया गया।

किन्तु ‘ब’ टीम में श्याम मोहन को सर्वश्रेष्ठ गायक की उपाधि प्रदान की गई। इस तरह शील्ड ‘अ’ टीम को प्राप्त हुई तथा व्यक्तिगत गायन में ‘ब’ टीम ने बाजी मारी।

उपसंहार–
राजस्थानी लोकगीतों के गायन की इस प्रतियोगिता की नगर के विधायक जी ने भी प्रशंसा की। उन्होंने ऐसे आयोजनों को छात्रों की बहुमुखी प्रतिभा को बढ़ाने वाला बताया। अंत में पुरस्कार वितरण हुआ और छात्रों को मिष्टान्न वितरण भी किया गया।

बढ़ती भौतिकता घटते मानवीय मूल्य पर निबंध – Increasing Materialism Reducing Human Values Essay In Hindi

Increasing Materialism Reducing Human Values Essay In Hindi

बढ़ती भौतिकता घटते मानवीय मूल्य पर निबंध – (Essay On Increasing Materialism Reducing Human Values In Hindi)

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • भौतिकवादी विचारधारा एवं मानवीय मूल्य,
  • भौतिक विज्ञान और मनुष्य,
  • मानवीय मूल्यों का ह्रास,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

बढ़ती भौतिकता घटते मानवीय मूल्य पर निबंध – Badhatee Bhautikata Ghatate Maanaveey Mooly Par Nibandh

प्रस्तावना–
भारतीय मनीषियों ने मनुष्य और पशु के बीच विभेद का आधार बताते हुए कहा है-

आहार निद्रा भय मैथुनं च, सामान्यमेतत् पशुभिर्नराणाम्।
धर्मोहितेषामधिको विशेषो, धर्मेण हीना पशुभिः समानाः॥

अर्थात् भोजन, शयन, भय, कामेच्छा आदि मनुष्यों और पशुओं में एक समान है। धर्म ही वह विशिष्ट गुण है जो मनुष्य को पशु से भिन्न सिद्ध करता है। धर्म का अर्थ है–मानवीय कर्तव्यों का बोध और उनको जीवन में धारण करना। अत: हमारे यहाँ धर्म का अर्थ कोई उपासना–प्रणाली नहीं, अपितु सत्य, करुणा, उपकार, प्रेम, मैत्री, उदारता, क्षमा आदि मानवीय मूल्यों का धारण किया जाना है। मानवीय मूल्यों से रहित मनुष्य और पशु में कोई अन्तर नहीं।

भौतिकतावादी विचारधारा एवं मानवीय मूल्य–
मनुष्य भी अन्य जीवों की भाँति एक भौतिक प्राणी है। अन्य प्राणियों के समान खाना, पीना, सोना, कामेच्छा–पूर्ति आदि उसकी भी भौतिक आवश्यकताएँ हैं। भौतिक दृष्टि से इन इच्छाओं की पूर्ति ही जीने का उद्देश्य है। यदि केवल इसी को मानव–जीवन का ध्येय माना जाय तो जीवन–मूल्यों की बात करना ही व्यर्थ है। जिसे मानव समाज सभ्यता और संस्कृति कहकर गर्व से फूला नहीं समाता, उसकी संरचना के आधारस्तम्भ दधीचि, रंतिदेव, सुकरात, ईसा, अशोक, गौतम और गांधी जैसे महापुरुष हैं, जो मानवीय–मूल्यों के ध्वजवाहक

भौतिक विज्ञान और मनुष्य-

आज की दुनियाँ विचित्र नवीन,
प्रकृति पर सर्वत्र है विजयी पुरुष आसीन।

प्राय: विज्ञान और मानवीय मूल्यों को एक–
दूसरे का विरोधी दर्शाया जाता है। सच तो यह है कि आदिकाल से ही विज्ञान और मानवीय मूल्य मनुष्य के जीवन–साथी रहे हैं। आग जलाने से लेकर परमाणु बम बनाने तक की यात्रा मनुष्य के वैज्ञानिक विकास की कहानी है। विज्ञान की असीमित शक्ति मनुष्य के हाथ में है परन्तु इसी के समानान्तर मनुष्य ने जीवन–मूल्यों का
भी विकास किया है।

कोई भी ज्ञान–
विज्ञान अपने आप में लाभकारी या हानिकारक नहीं होता। मनुष्य का उसके प्रति दृष्टिकोण ही उसका स्थान निश्चित किया करता है। उन्नीसवीं सदी से विज्ञान की प्रगति में जो तीव्रता आई, वह इक्कीसवीं सदी में अपने चरम विकास की ओर बढ़ रही है। रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, मनोरंजन, व्यवसाय, सैन्य सामग्री सभी क्षेत्रों में वैज्ञानिक उपकरणों की ४ म मची हुई है। विज्ञान की यह प्रगति यदि विश्व के हितार्थ नहीं है तो विज्ञान का होना ही बेकार है-

लक्ष्य क्या? उद्देश्य क्या? क्या अर्थ?
यह नहीं यदि ज्ञात तो विज्ञान का श्रम व्यर्थ।

मानवीय मूल्यों का ह्रास–
सच पूछा जाए तो भौतिक विज्ञान ने मनुष्य के सामने इतनी विलास–सामग्री परोस दी है कि वह उन्हें पाने के लिए अत्यन्त लालायित ही नहीं पागल हो रहा है। मूल्यवान् वस्त्र, कीमती भोज्य पदार्थ, बढ़िया मकान, टी.वी., फ्रिज, ए.सी., कार और अन्यान्य विलास–व्यवस्थाएँ ही जीवन का लक्ष्य बन गये हैं।

भौतिक विज्ञान की इस धूमधाम ने मानवीय मूल्यों को अपूरणीय क्षति पहुँचाई है। आज समाज में व्याप्त आपा–धापी, नैतिक अराजकता और मूल्यों के तिरस्कार के लिए भौतिक विज्ञान ही प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उत्तरदायी है।

पसंहार–
भौतिकवादी दृष्टि का यह भयावह विस्तार मानव–समाज को संकट के ऐसे बिन्दु की ओर धकेल रहा है, जहाँ से मानव–मंगल की ओर लौट पाना असम्भव हो जाएगा। अतः भौतिक विज्ञान की उपलब्धियों पर मुग्ध मानव–समाज को मानवीय मूल्यों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।

भारत में दूरसंचार क्रांति हिंदी में निबंध – Telecom Revolution In India Essay In Hindi

Telecom Revolution In India Essay In Hindi

भारत में दूरसंचार क्रांति हिंदी में निबंध – Essay On Telecom Revolution In India In Hindi

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • दूरसंचार का महत्त्व,
  • भारत में दूरसंचार की स्थिति,
  • दूरसंचार क्रान्ति का भविष्य और प्रभाव,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

भारत में दूरसंचार क्रांति हिंदी में निबंध – Bhaarat Mein Doorasanchaar Kraanti Hindee Mein Nibandh

प्रस्तावना–
प्राचीनकाल से ही मनुष्य दूरस्थ व्यक्ति से सम्पर्क के विविध उपायों को काम में लाता रहा है। आदिम जन–जातियों में ढोल या नगाड़ों की सांकेतिक ध्वनियों द्वारा संदेश दिये जाते थे। सभ्य समाज में शान्ति के संदेशवाहक कबूतरों ने भी काफी समय तक संवाद–वाहक की भूमिका निभाई। धीरे–धीरे एक व्यवस्थित डाक–प्रणाली का विकास हुआ।

वैज्ञानिक प्रगति के साथ अनेक संचार उपकरणों का आविर्भाव हुआ और अब हम दूरसंचार के नाम से एक क्रान्तिकारी संचार तंत्र के विकास और स्थापना में जुटे हुए हैं। अब तो मानते हैं हुक्म मानव का महावरुणेश। और करता शब्द गुण अम्बर वहन संदेश।

(दिनकर) दूरसंचार का महत्त्व–
भारत जैसे ग्राम–प्रधान और विशाल देश में जन–सम्पर्क और दूर–संचार कितना आवश्यक और महत्त्वपूर्ण है, यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है। दूरसंचार ने विश्व को चमत्कारिक रूप से छोटा कर दिया है। संसार के किसी भी कोने में घटित महत्त्वपूर्ण घटना को सर्वविदित कराने में, दूरसंचार की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो चुकी है।

भारत में दूरसंचार की स्थिति–
सारा विश्व आज दूरसंचार क्रांति से गुजर रहा है। भारत भी उससे अछूता नहीं है। आज भारत में दूरभाष ही दूरसंचार का सबसे व्यापक और सुलभ साधन है। दूरभाष को व्यापक बनाने में बी. एस. एन. एल. ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और आज उसे गाँव–गाँव तक पहुँचाने में सफलता प्राप्त कर ली है। स्वचालित एक्सचेंज प्रणाली के आगमन से दूरसंचार में क्रांति आई है।

इसके अतिरिक्त कदम–कदम पर पी. सी. ओ. बूथ तथा प्रत्येक जेब में फोन उपलब्ध हैं। इस दिशा में मोबाइल फोन का योगदान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। आज बी. एस. एन. एल., रिलायन्स, आइडिया, हच, रेनबो, टाटा इन्डिकॉम, एअरटेल आदि अनेक कम्पनियाँ मोबाइल फोन सुविधा उपलब्ध करा रही हैं।

टी. वी. और रेडियो भी दूरसंचार के महत्त्वपूर्ण साधन हैं। भारत जैसे विशाल देश में कोई भी क्रान्ति तभी महत्त्वपूर्ण हो सकती है जबकि वह देश के लाखों गाँवों और सम्पर्कविहीन क्षेत्रों को परस्पर सम्बद्ध कर सके। अभी सदर ग्रामीण क्षेत्र में दूरसंचार की सेवा संतोषजनक नहीं है।

दूरसंचार–
क्रांति का भविष्य और प्रभाव–दूरसंचार के क्रांतिकारी प्रसार ने भारत के जन–जीवन को गहराई से प्रभावित किया है। साधारण गृहस्थ से लेकर व्यवसायी, चिकित्सक, वैज्ञानिक और प्रशासन तंत्र सभी इससे लाभान्वित हो रहे हैं। इस क्रान्ति का प्रभाव बड़ा दूरगामी सिद्ध होगा।

इससे शासन–प्रशासन में त्वरितता, चुस्ती, सुसूच्यता और पारदर्शिता आएगी। राष्ट्रीय एकता पुष्ट होगी। भारत का विश्व की आर्थिक शक्ति बनने का सपना भी दूरसंचार की सर्वसुलभता पर निर्भर है। मोबाइल, फैक्स, ई–मेल तथा इंटरनेट जैसे साधनों ने उद्योग–व्यापार में तथा समस्त विश्व से नवीनतम सम्पर्क में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है।

उपसंहार–
किसी देश के आर्थिक विकास के लिए मूलभूत सुविधाओं की उपलब्धता प्रथम शर्त होती है। परिवहन सुविध गाओं के साथ–साथ दूरसंचार व्यवस्था भी आज मूलभूत सुविधाओं में गिनी जाती है।

सरकार और निजी क्षेत्र दोनों के पारस्परिक तालमेल से ही इस क्रांति को और अधिक सफल बनाया जा सकता है। भारत को डिजिटल बनाने को दृढ़ संकल्पित भारत सरकार इस क्रान्ति का अधिकतम लाभ जनता को पहुँचाना चाहती है। आशा है, इस प्रयास के सुपरिणाम सामने आएँगे।

परमाणु शक्ति और भारत हिंदी निंबध – Nuclear Energy Essay In Hindi

Nuclear Energy Essay In Hindi

परमाणु शक्ति और भारत हिंदी निंबध – Essay On Nuclear Energy In Hindi

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • परमाणु शक्ति का विकास,
  • परमाणु शक्ति का विनाशकारी रूप,
  • परमाणु शक्ति का कल्याणकारी रूप,
  • भारत में परमाणु शक्ति,
  • परमाणु शक्ति के खतरे,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

परमाणु शक्ति और भारत हिंदी निंबध – Paramaanu Shakti Aur Bhaarat Hindee Nimbadh

प्रस्तावना–
सृष्टि के सम्पूर्ण तत्त्वों के मूल घटक के रूप में परमाणु की कल्पना तो दार्शनिक हजारों वर्ष पूर्व कर चुके थे, लेकिन उसे प्रयोग और प्रमाण–सिद्ध करने का श्रेय वर्तमान वैज्ञानिकों को ही प्राप्त है। आज परमाणु के विखंडन से प्राप्त महाशक्ति का प्रयोग महाविनाश और जनहित दोनों में हो रहा है।

परमाणु शक्ति का विकास–
महान् वैज्ञानिक आइन्सटीन ने सिद्ध किया कि पदार्थ को ऊर्जा और ऊर्जा को पदार्थ में परिवर्तित किया जा सकता है। उनके अनुसार एक औंस ईंधन (यूरेनियम) से 15 लाख टन कोयले के बराबर शक्ति प्राप्त की जा सकती है। वैज्ञानिक ‘रदरफोर्ड’ ने 1919 ई. में प्रथम परमाणु विस्फोट करने में सफलता प्राप्त की थी।

इसके बाद अमेरिका के वैज्ञानिकों ने सन् 1945 ई. की 13 जुलाई को एलामोगेडरो के रेगिस्तान में परमाणु बम का परीक्षण किया और सफलता प्राप्त की। इसके बाद सोवियत रूस 1949, इंग्लैण्ड. 1952, फ्रांस 1960, चीन 1964, भारत और पाकिस्तान 1998 में परमाणु–सम्पन्न देशों की पंक्ति में शामिल हुए। आज रूस और अमेरिका हाइड्रोजन बम बनाने वाले देश बन गये हैं। हाइड्रोजन बम की क्षमता हिरोशिमा पर गिराए गये बम से एक सौ पचास गुना अधिक है। न्यूट्रोन बम की कल्पना भी भविष्य के गर्भ में है।

परमाणु शक्ति का विनाशकारी रूप–
किसी भी आविष्कार के विनाशक और कल्याणकारी दोनों ही रूप होते हैं। दुर्भाग्य की बात है कि परमाणु शक्ति का राजनेताओं ने विनाशक रूप अपनाया। 6 अगस्त और 9 अगस्त, 1945 ई. को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी नामक नगरों पर परमाणु बम गिराये, वहाँ व्यापक विनाश हुआ।

आज पाकिस्तान जैसे छोटे देश भी परमाणु शक्तिसम्पन्न राष्ट्र बन गये हैं जहाँ से परमाणु बम तकनीक तथा आतंकवाद का निर्यात सारे विश्व में हो रहा है। यदि ये संहारक अस्त्र आतंकवादियों के हाथ पड़ गये तो सारे विश्व की न जाने कितनी आबादी नष्ट हो जाएगी। इस खतरे ने विश्व के समझदार लोगों की नींद उड़ा दी है।

परमाणु शक्ति का कल्याणकारी रूप–
परमाणु शक्ति विनाशक ही नहीं, कल्याणकारी भी है। आज इसके सहयोग से घातक रोगों की चिकित्सा की जा रही है। ऊर्जा के क्षेत्र में परमाणु शक्ति का चमत्कारी उपयोग देखा जा सकता है। फसलों की वृद्धि मापने हेत रेडियो कोबाल्ट डेटिंग और कीटाणुओं से उनकी रक्षा अब आइसोटोप्स द्वारा संगम हो गई है। इसके अलावा नदियों का प्रवाह बदलने, पर्वतों को काटने आदि श्रमसाध्य कार्यों को सम्पन्न करने में परमाणु शक्ति का सकारात्मक प्रयोग किया जा रहा है।

भारत में परमाणु शक्ति–
भारत में 1956 ई. ट्राम्बे में ‘भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र’ की स्थापना की गई। इस केन्द्र द्वारा मानव–कल्याण हेतु परमाणु–शक्ति का उपयोग सम्भव हो गया है। 1961 ई. में इसका और विस्तार किया गया। 18 मई, 1974 को राजस्थान के पोखरण क्षेत्र में भूमिगत परीक्षण किया गया।

इस प्रकार भारत विश्व का छठा परमाणु शक्ति सम्पन्न देश बन गया। परमाणु विस्फोटों से खनिजों का पता लगाना, नहर खोदना तथा भूमिगत जलाशय बनाना आदि कार्य संभव हो गये हैं। परमाणु शक्ति के खतरे–अन्य वैज्ञानिक उत्पादनों के समान ही परमाणु शक्ति का उपयोग भी खतरों से खाली नहीं है।

विकिरण से फैलने वाला प्रदूषण भयंकर तथा मारक होता है। परमाणु शक्ति का उपयोग आज विद्युत उत्पादन के लिए हो रहा है। परमाणु शक्ति का उपयोग करते समय अत्यन्त सावधानी तथा सुरक्षा आवश्यक है।

रूस के चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र में विकिरण के भयानक संकट ने अनेक लोगों का जीवन संकट में डाल दिया था। इसी प्रकार सन् 2011 में जापान में आए भूकम्प तथा सुनामी के कारण वहाँ परमाणु संयंत्रों से विकिरण की भयानक समस्या पैदा हुई थी। इस खतरे में बचाव सतत् सतर्कता से ही संभव हो सकता है।

उपसंहार–
भारत द्वारा सन् 1974 ई. में किये परमाणु विस्फोट पर सारे संसार में हो–हल्ला हुआ था। इसी तरह 1998 के विस्फोट के पश्चात् भी हुआ था। लेकिन धीरे–धीरे सारे संसार ने माना कि परमाणु शक्ति–सम्पन्न भारत विश्व–शांति का प्रबल समर्थक है। हमारा दृष्टिकोण राष्ट्रकवि ‘दिनकर’ के शब्दों में इस प्रकार है-

रसवती भू के मनुज का श्रेय,
नहीं यह विज्ञान कटु आग्नेय।
श्रेय उसका-
प्राण में बहती प्रणय की वायु,
मानवों के हेतु अर्पित मानवों की आयु।

किन्तु अब लगता है कि पड़ोसियों की दुर्विनीतता, छल–कपट और निंदनीय कूटनीति से निरंतर प्रभावित और निराश भारत अपनी परमाणु नीति में कुछ बदलाव करने की सोच रहा है। प्रथम परमाणु–प्रहार न करने की नीति पर भार जा रहा है।

सुरीला राजस्थान निबंध – Folklore Of Rajasthan Essay In Hindi

Folklore Of Rajasthan Essay In Hindi

सुरीला राजस्थान निबंध – Essay On Folklore Of Rajasthan In Hindi

राजस्थान के लोक–गीत – Folklore of Rajasthan

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • लोक–गीतों का स्वरूप,
  • राजस्थानी लोक–गीतों के विविध रूप,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

सुरीला राजस्थान निबंध – Surela Rajasthan Nibandh

प्रस्तावना–
मानव के अन्तस्तल में आने वाले भाव ही लोक–गीतों को प्रेरणा देते हैं। लोकमानस ने अपनी अभिव्यक्ति के जो माध्यम चुने हैं, गीत उनमें सबसे मार्मिक और सर्वांगपूर्ण हैं। हृदय से स्वतः फूट पड़ने वाली इस भावधारा ने जीवन के सभी मार्मिक क्षणों को स्वर दिये हैं।

छन्द के बन्धन से मुक्त, भाषा की विविधता से समृद्ध, सहज आत्मप्रकाश से प्रकाशित और संस्कृति के वैभव से मण्डित, यह लोक–गीत–परम्परा हर प्रदेश का खुला हुआ हृदय होती है। कविता के विधान से मुक्त लोक–गीत हृदय से सहज ही फूट पड़ने वाली भावधारा है जो परिवेश को सदा से गुंजायमान करती रही है।

लोक–गीतों का स्वरूप–लोक–गीतों के प्रधान लक्षण हैं–उनकी भाव–प्रधानता, अनुभूति की तीव्रता और अकृत्रिम भाव–प्रकाशन। लोक–गीत का प्राण है–उसकी मर्मस्पर्शिता। उत्सव, पर्व, ऋतु और कार्य के अनुसार लोक–गीतों के अनेक रूप देखने को मिलते हैं।

राजस्थानी लोक–
गीतों के विविध रूप–राजस्थान तो लोक–गीतों से सदैव गूंजता रहने वाला प्रदेश है। राजस्थानी लोक–गीतों में राजस्थानी संस्कृति और परम्पराओं के विविध चित्र देखने को मिलते हैं। ये लोकगीत स्थूल रूप से संस्कार–गीत, ऋतु–गीत, पर्व तथा उत्सव–गीत, धार्मिक–गीत तथा विविध गीतों में विभाजित किए जा सकते हैं।

(i) संस्कार–गीत–संस्कार–गीत
जन्मोत्सव, विवाह, जनेऊ आदि अवसरों पर प्रचलित हैं। फेरों के अवसर पर प्रचलित लोक–गीत अवसर की मार्मिकता को व्यक्त करता है। दादा और काका धन के लोभी हैं, उन्होंने अपनी प्यारी बेटी को पराई बना दिया है-

दमड़ा रा लोभी, ओ काकासा कीदी रे पराई ढोलारी।

(ii) ऋतु–गीत–ऋतु–परिवर्तन के
साथ लोक–गीतों के स्वर और विषय–सामग्री बदल जाती है। राजस्थान सदा से इन्द्रदेव की कृपा के लिए तरसता रहने वाला प्रदेश है। सावन की रिमझिम फुहारों का स्वागत राजस्थानी नारियों द्वारा इस गीत में किया जा रहा है-

नित बरसों रे मेहा बागड़ में।
मोठ बाजरों बागड़ निपजै, गेहूणा निपजै खादर में।

इसी प्रकार झूलों पर झूलती नारियों के कण्ठ से स्वतः फूट पड़ने वाले गीत की एक झलक देखिए सावण तो लाग्ये पिया भावणो जी होजी ढोला, बरसण लाग्या जी मेह।

(iii) उत्सव–त्योहार–गीत–विभिन्न पर्व,
उत्सव–त्योहारों पर गाये जाने वाले लोक–गीत भी राजस्थान में प्रचलित हैं। गणगौर और तीज राजस्थान के प्रमुख त्योहार हैं। इन त्योहारों पर भी स्त्रियाँ लोक–गीत गाती हैं। गणगौर से सम्बन्धित कुछ गीत–पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं-

खोलिये गणगौर माता खोलिये किबारी
द्वारे ऊँभी थारे पूजण बारी।

इसी प्रकार गणगौर पूजने के लिए पति से आज्ञा लेती पत्नी के स्वरों में

खेलण द्यो गणगौर म्हाने खेलन द्यो गणगौर।
ओ जी म्हारी सखियाँ जोवे बाट।

अन्य विविध लोकगीत–
इसके अतिरिक्त कृषि–कार्य से सम्बन्धित, पीसने–कूटने से सम्बन्धित, धार्मिक कार्यों, जात–मेलों से सम्बन्धित भी अनेक गीत राजस्थान के कण्ठ में विराजते हैं। अन्य गीतों में अनेक लोकप्रसिद्ध वीरों, प्रेमियों, दानियों आदि के जीवन–प्रसंगों का वर्णन, देवी–देवताओं की स्तुति आदि विषय होते हैं।

सुरीला राजस्थान–
जल के अभाव के कारण राजस्थान भले ही सूखा और रेतीला प्रदेश हो परन्तु उसका हृदय सरस है तथा कंठ सुरीला है। विभिन्न अवसरों पर उसके कंठ से सुरीले गीत फूट पड़ते हैं। इस रसीले सुरों से पूरा राजस्थान गुंजायमान रहता है। रंग–बिरंगे परिधानों के साथ सुरों से सरस गीत राजस्थान की पहचान हैं।

उपसंहार–
राजस्थान लोकगीतों से धनी प्रदेश है। रंग–बिरंगे परिधानों के साथ रंग–बिरंगे लोकगीतों से भी जीवन्त है राजस्थानी धरती। बड़ा अच्छा हो, यदि राजस्थान में नये–नये लोककवि जन्म लें और इस गीत परम्परा को युग के अनुसार नये स्वर और नयी भाव–विभूति से समृद्ध बनाते रहें।

राजस्थान में पर्यटन पर निबंध – Tourist Places Of Rajasthan Essay In Hindi

Tourist Places Of Rajasthan Essay In Hindi

राजस्थान में पर्यटन पर निबंध – Essay On Tourist Places Of Rajasthan In Hindi

राजस्थान और पर्यटन की सम्भावनाएँ – Rajasthan And Tourism Prospects

रूपरेखा–

  • प्रस्तावना,
  • पर्यटन का महत्त्व,
  • पर्यटन–मानचित्र पर राजस्थान,
  • राजस्थान के पर्यटन–स्थल,
  • उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

राजस्थान में पर्यटन पर निबंध – Raajasthaan Mein Paryatan Par Nibandh

प्रस्तावना–
महापंडित राहुल सांकृत्यायन कहते हैं कि ‘मनुष्य एक जंगम प्राणी है। अपने आविर्भाव के आदिचरण से ही मानव की प्रकृति घुमक्कड़ी की रही है। इसके पीछे अनेक कारण रहे हैं। आज ‘पर्यटन’ शब्द का एक विशेष अर्थ में प्रयोग हो रहा है। पर्यटन अब केवल मनोरंजन का ही साधन नहीं है अपितु संसार के अनेक देशों की अर्थव्यवस्था ही पर्यटन पर आधारित हो गई है।

पर्यटन का महत्त्व–
आज पर्यटन कुछ लोगों का मनोरंजक भ्रमण मात्र नहीं रह गया है। पर्यटन का अनेक दृष्टियों से उल्लेखनीय महत्त्व है। इसका सर्वाधिक महत्त्व मनोरंजन के साधन के रूप में है। प्राकृतिक सौन्दर्य के दर्शन के साथ ही मानवीय कला–कौशल के अद्भुत नमूनों का परिचय पाने में पर्यटन अत्यन्त सहायक होता है। पर्यटन से विभिन्न देशों के निवासी एक–दूसरे के समीप आते हैं।

इससे अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव और सम्पर्क में वृद्धि होती है। छात्र ज्ञानवर्धन के लिए, व्यवसायी व्यापारिक सम्पर्क और बाजार–खोज के लिए, कलाकार आत्मतुष्टि और आर्थिक लाभ के लिए, वैज्ञानिक अनुसन्धान के लिए पर्यटन का लाभ उठा रहे हैं। पर्यटकों से विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है, राजस्व में वृद्धि होती है। पर्यटन ने होटल उद्योग, गाइड व्यवसाय, कुटीर उद्योग तथा खुदरा व्यापार को बहुत लाभ पहुँचाया है।

पर्यटन–मानचित्र पर राजस्थान–
यों तो भारत के अनेक प्रदेश अपने प्राकृतिक सौन्दर्य और जैविक विविधता के कारण पर्यटकों को आकर्षित करते रहे हैं, किन्तु राजस्थान का इस क्षेत्र में अपना ही महत्त्व है। भारत के पर्यटन–मानचित्र पर राजस्थान का स्थान किसी अन्य प्रदेश से कम नहीं है। प्रतिवर्ष लाखों पर्यटकों को आकर्षित करने के कारण, आज राजस्थान ने भारत के पर्यटन–मानचित्र पर अपनी महत्त्वपूर्ण उपस्थिति को प्रमाणित कर दिया है।

राजस्थान के पर्यटन स्थल–
राजस्थान के पर्यटन स्थलों को प्राकृतिक, वास्तु–शिल्पीय तथा धार्मिक वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

(i) प्राकृतिक पर्यटन स्थलों में भरतपुर का घना पक्षी विहार प्रमुख है। यहाँ शीत ऋतु में साइबेरिया जैसे अतिदूरस्थ स्थलों से हजारों पक्षी प्रवास के लिए आते हैं। पक्षी–प्रेमियों और पर्यटकों के लिए यह सदैव ही आकर्षण का केन्द्र रहा है। सरिस्का तथा रणथम्भौर का बाघ अभयारण्य भी महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल रहा है।

अब राजस्थान सरकार इसे पुनः नवजीवन प्रदान करने में रुचि ले रही है। इसके अतिरिक्त राजस्थान की अनेक प्राकृतिक झीलों तथा गिरिवन भी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। गल्ताजी, पुष्कर, जयसमन्द, राजसमन्द आदि उल्लेखनीय झीलें हैं।

(II) वास्तुशिल्पीय पर्यटन स्थलों में राजस्थान में महल, दुर्ग और मन्दिर आते हैं। जैसलमेर, जयपुर, जोधपुर, उदयपुर आदि के राजभवन उल्लेखनीय हैं। राजस्थान में दुर्गों की भी दर्शनीय श्रृंखला है। इनमें जयपुर का नाहरगढ़, सवाई माधोपुर का रणथम्भौर, जैसलमेर का सोनार दुर्ग, बीकानेर का जूनागढ़, भीलवाड़ा का माण्डलगढ़; चित्तौड़गढ़ आदि पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।

राजस्थान के मन्दिर भी वास्तुशिल्प के अद्भुत नमूने हैं। वाडौली मन्दिर, ओसियाँ का मन्दिर, अपूर्णा का मन्दिर, रणकपुर का जैन मन्दिर और मन्दिरों का सिरमौर आबू स्थित दिलवाड़ा के जैन मन्दिर आदि हैं। इनके अतिरिक्त चित्तौड़गढ़ स्थित कीर्तिस्तम्भ राजस्थान की पर्यटनीय कीर्ति का प्रमाण है। अजमेर की ख्वाजा साहब की दरगाह का भी पर्यटन की दष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। राजस्थान की अनेक प्राचीन हवेलियाँ भी दर्शनीय हैं।

उपसंहार–
पर्यटन ने राजस्थान को विश्व के मानचित्र पर महत्त्वपूर्ण स्थान दिलाया है। प्रतिवर्ष लाखों पर्यटक राजस्थान आते हैं। इनसे राज्य को ख्याति के अतिरिक्त उल्लेखनीय राजस्व भी प्राप्त होता है। पर्यटन विभाग एवं राजस्थानवासियों के पारस्परिक सहयोग से इस दिशा में श्रेय और प्रेय दोनों की सिद्धि हो सकती है।